सफलता की कहानियां और केस स्टडी

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प्रकृति को सहेजने की कोशिश
Posted on 13 Jan, 2012 05:11 PM

75 साल के सत्यदेव सगवान ने सेना की नौकरी करते समय प्रकृति एवं पर्यावरण के साथ भावनात्मक नाता जोड़ा। अपने परिश्रम से उन्होंने हरियाणा और राजस्थान के कई इलाकों को हरा-भरा किया है। अपने घर पर ही 2500 पौधों की नर्सरी तैयार की है। इनमें वट, पीपल, खेजड़ी, नीम, जामुन व कदम के पौधे हैं। सत्यदेव जी यह कहकर कि पेड़ भूमि क्षरण रोकने व वर्षा की स्थिति बेहतर करने साथ ही भूमंडल से ब्रह्मांडीय संपर्क भी सकारात्मक एवं सहज करते हैं, लोगों को पौधे रोपने के लिए प्रेरित करते हैं।

इंसान के क्षुद्र स्वार्थ ने पर्यावरण का गंभीर संकट पैदा कर दिया है। इस कारण कब बाढ़ आ जाए, और कब सूखे की मार पड़ जाए या कहां भूकम्प आ जाए, कहा नहीं जा सकता। इसका एकमात्र जिम्मेदार प्राणी मानव है और इसके निदान के लिए जलवायु सम्मेलनों से ही बात नहीं बनेगी। देश-दुनिया का पर्यावरण बचाने के लिए सभी को दिल से कोशिश करनी होगी जैसे गढ़वाल क्षेत्र की की डॉ. हर्षंवती बिष्ट, नैनीताल के वनखंडी महाराज, राजस्थान के बांसवाड़ा जिले के स्कूल शिक्षक दिनेश व्यास और हरियाणा के 75 वर्षीय सत्यदेव सगवान कर रहे हैं।
पक्षियों के संरक्षण का जीवंत उदाहरण: ग्राम सरेली
Posted on 24 Nov, 2011 10:48 AM

एक मनुष्य के पूरे शरीर की तरह यदि शरीर का एक अंग नष्ट हो जाये तो उससे सारा शरीर बिना प्रभावित हुये नहीं रह सकता। इसी प्रकार इस प्रकृति के सारे तत्व एक दूसरे से जुड़े हुए हैं और यदि कोई एक तत्व प्रभावित होता है तो इससे पूरा पारिस्थितिकी तंत्र प्रभावित होता है। अतः आकाश की सुन्दरता को पक्षीविहीन होने से जिस प्रकार यह ग्रामीण सतत् प्रयासरत् हैं, यह अपने आप एक सराहनीय प्रयास है और इससे हमें सबक लेना चाहिये।

उन्नीसवीं सदी की शुरूआत में ब्रिटिश हुकूमत के एक अफसर को लहूलुहान कर देने से यह गाँव चर्चा में आया मसला था। एक खूबसूरत पक्षी प्रजाति को बचाने का, जो सदियों से इस गाँव में रहता आया। बताते हैं कि ग्रामीण ये लड़ाई भी जीते थे, कोर्ट मौके पर आयी और ग्रामीणों के पक्षियों पर हक जताने का सबूत मांगा, तो इन परिन्दों ने भी अपने ताल्लुक साबित करने में देर नहीं की, इस गाँव के बुजुर्गों की जुबानी कि उनके पुरखों की एक ही आवाज पर सैकड़ों चिड़ियां उड़ कर उनके बुजुर्गों के आस-पास आ गयी, मुकदमा खारिज कर दिया गया। गाँव वालों के घरों के आस-पास लगे वृक्षों पर ये पक्षी रहते हैं और ये ग्रामीण उन्हें अपने परिवार का हिस्सा मानते हैं,

वृक्षारोपण से जीवित हुए जलस्रोत
Posted on 02 Oct, 2011 12:32 PM

पेशे से अध्यापक सच्चिदानंद भारती ने पौड़ी जिले की थलीसेंण और बीरोंखाल विकासखंडों के एक-दो नहीं बल्कि 133 गांवों में पानी के संरक्षण और संवर्द्धन की मुहिम को अंजाम तक पहुंचाया है।

करोड़ों रुपए की सरकारी योजनाएं जो काम नहीं कर पातीं वह काम चिपको आंदोलन के सिपाही सच्चिदानंद भारती ने जनसहभागिता के आधार पर कर दिखाया। जंगल बचाने की मुहिम में तो वे चिपको आंदोलन से शुरुआती दिनों से ही जुटे हुए थे लेकिन जब उन्होंने जंगल बचाने की मुहिम के साथ जल को भी जोड़ दिया तो पौड़ी जिले के कई सीमांत गांवों के सूखे जलस्रोतों में फिर से जलधाराएं फूट पड़ीं। पेशे से अध्यापक सच्चिदानंद भारती ने पौड़ी जिले की थलीसेंण और बीरोंखाल विकासखंडों के एक-दो नहीं बल्कि 133 गांवों में पानी के संरक्षण और संवर्द्धन की मुहिम को अंजाम तक पहुंचाया है।
जामड़ : हर बंदू को सहेजने का प्रयास
Posted on 29 Aug, 2011 12:44 PM

सन् 1952 में स्वीकृत प्रथम पंचवर्षीय योजना की रणनीति में यह बात मुख्य रूप से थी कि टिकाऊ एवं स्थाई लाभ तभी सुनिश्चित किये जा सकते हैं जब समुदाय की भरपूर भागीदारी हो। पानी की समस्या समाज के हर वर्ग को प्रभावित करती है। इस तथ्य के प्रकाश में समाज के सभी वर्गों का अपेक्षित सहयोग इस अभियान में लेना होगा।

मध्यप्रदेश में जल संरक्षण और संवर्धन कार्यक्रम जन आंदोलन बने इस विचार को केन्द्र में रखकर पिछले वर्ष 10 अप्रैल 2010 को प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने रतलाम जिले में जामड़ नदी के पुनरूत्थान के कार्य से प्रादेशिक जलाभिषेक अभियान की शुरुआत की थी।

राह दिखाता रैतोली
Posted on 30 Jun, 2011 03:13 PM

यहां ग्रामीण विकास की यह बुनियाद लगभग 20 वर्ष पूर्व तत्कालीन ग्राम प्रधान स्वर्गीय माधो सिंह फर्स्वाण ने रखी थी। तब न गांव में रोजगार के साधन थे और ना ही बुनियादी सुविधाएं। लोग रोजगार के लिए पलायन कर रहे थे या फिर आस-पास के क्षेत्रों में मजदूरी। ग्रामीणों की इस पीड़ा एवं गांवों से हो रहे पलायन को देखते हुए उन्होंने गांव में ही दुग्ध व्यवसाय को बढ़ावा देने पर जोर दिया।

एक गांव जहां हर घर शिक्षित है। ग्रामीणों ने अपनी मेहनत से पैदल पथ का निर्माण किया। दुग्ध समिति बनाकर स्वरोजगार की राह खोली। किसी सरकारी मदद का इंतजार करने के बजाय यहां के लोगों ने खुद को सक्षम बनाया। यह है चमोली जनपद में बद्रीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित रैतोली गांव। आपसी सहयोग एवं श्रमदान से यहां के ग्रामीणों ने रैतोली की तस्वीर को सवारा है।

कोस्का की राह पर
Posted on 09 Jun, 2011 11:39 AM

कोस्का के लोगों ने सरकारी तरीके से कानून लागू करने की प्रक्रिया को ठेंगा दिखा दिया। इस पर स्थानीय वन विभाग और प्रशासन इन्हें 75 वर्षों के निवास प्रमाण की अनिवार्यता के मकड़जाल में फंसाकर इनके अधिकारों की राह में रोड़े अटकाने लगा। कोस्का में वनाधिकार कानून लागू करने के लिए सरकार को ही यहां के ग्रामीणों से प्रशिक्षण लेना चाहिए।

देश भर के वन क्षेत्रों में स्वशासन और वर्चस्व के सवाल पर वनवासियों और वन विभाग के बीच छिड़ी जंग के बीच उड़ीसा के जंगल में एक ऐसा गांव भी है, जिसने अपने हजारों हेक्टेयर जंगल को आबाद कर न सिर्फ पर्यावरण और आजीविका को नई जिंदगी दी है बल्कि वन विभाग और तकनीकी वन वैज्ञानिकों को चुनौती देकर एक नजीर भी पेश की है।

गंगा देवी पल्ली गाँव : ज़िन्दगी बदलनी है तो खुद कदम उठाइये
Posted on 31 May, 2011 10:09 AM

आंध्र प्रदेश के वारंगल जिले की मचापुर ग्राम पंचायत का एक छोटा-सा पुरवा था `गंगा देवी पल्ली´। ग्राम पंचायत से दूर और अलग होने के चलते विकास की हवा या सरकारी योजनाएं यहां के लोगों तक कभी नहीं पहुंची। बहुत सी चीजें बदल सकती थी लेकिन नहीं बदली क्योंकि लोग प्रतीक्षा किये जा रहे थे… कि कोई आएगा और उनकी जिन्दगी सुधरेगा। उसमें बदलाव की नई हवा लाएगा। करीब दो दशक पहले गंगा देवी पल्ली के लोगों ने तय किया

15 किलोमीटर में बन गए हैं 500 तालाब
Posted on 23 May, 2011 09:35 AM

इंदौर। कभी वे पानी की तलाश में 600 फीट तक जमीन में उतर जाते थे, अब खुद के खेत में तालाब भरे रहते हैं। हालत यह है कि 15 किमी की परिधि में बसे गांवों में करीब 500 तालाब बन गए हैं। एक-दो गांव तो ऐसे हैं जहां हर किसान एक-दो तालाबों का मालिक है। तालाबों में कुछ सरकारी भी हैं। ये तालाब एक से पांच बीघा तक में फैले हैं।

रेत में लोटती हरियाली
Posted on 13 May, 2011 11:24 AM

धरती की जल-ग्रहण क्षमता बढ़ गई है। इसके साथ अनेक वन्य जीवों व पक्षियों को जैसे नवजीवन मिल गया है। एक समय बंजर सूख रही इस धरती पर जब हम घूम रहे थे तो पक्षियों के चहचहाने के बीच हमें नीलगाय के झुंड भी नजर आए। वह हरियाली उनके लिए भी उतना ही वरदान है जितना गाँववासियों के लिए।

सूखी भूमि को हरा-भरा करने का कार्य बहुत जरूरी है, सब मानते हैं, फिर भी न जाने क्यों पौधरोपण व वनीकरण के अधिकांश कार्य उम्मीद के अनुकूल परिणाम नहीं दे पाते हैं। खर्च अधिक होने पर भी बहुत कम पेड़ ही बच पाते हैं। इस तरह के अनेक प्रतिकूल समाचारों के बीच यह खबर बहुत उत्साहवर्धक है कि राजस्थान में सूखे की अति प्रतिकूल स्थिति के दौर में भी एक लाख से अधिक पेड़ों को पनपाने का काम बहुत सफलता से किया गया है।

कच्छ में बना दिए पंजाब जैसे खेत
Posted on 23 Apr, 2011 12:16 PM

कच्छ का रण. जिन लोगों ने गुजरात में आकर कच्छ को नहीं देखा उन के दिल-ओ-दिमाग में इस क्षेत्र के बारे में रेगिस्तान जैसी धारणा होगी। यह सही भी है। भौगोलिक दृष्टि से देश के दूसरे बड़े इस जिले का अधिकांश भाग रेगिस्तानी है। इसी लिए कच्छ का रण (रेगिस्तान) कहते हैं। लेकिन हिंदू-मुस्लिम दोनों की श्रद्धा के केंद्र ‘हाजीपीर’ के नजदीक स्थित नरा गांव आइए। धारणा बदल जाएगी।

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