गंगा के प्रति अपने अनुराग लिये विख्यात प्रोफेसर जीडी अग्रवाल सह स्वामी ज्ञान स्वरूप सानंद 22 जून से हरिद्वार के कनखल स्थित मातृ सदन में आमरण अनशन पर हैं। मकसद है जीवनदायिनी गंगा की अविरलता और निर्मलता की रक्षा। प्रोफेसर अग्रवाल इससे पहले भी 2012 में वाराणसी में गंगा पर बाँध बनाये जाने के विरोध में 68 दिनों तक अनशन पर रह चुके हैं। ये आईआईटी कानपुर में अध्यापक रहने के अलावा केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के प्रथम सचिव सहित पर्यावरण और गंगा संरक्षण के लिये भारत सरकार द्वारा गठित कमेटियों से भी जुड़े रहे हैं। विगत दिनों स्वामी सानंद के आत्मत्याग को गति देने के लिये अनशन स्थल पर दो दिनी कार्यक्रम ‘गंगा तपस्या सिद्धि हेतु संवाद’ का आयोजन किया गया। पेश है इसी दौरान स्वामी सानंद से हिन्दी इंडिया वाटर पोर्टल के राकेश रंजन से हुई बातचीत का प्रमुख अंश…
गंगा के प्रति आपके इस अनुराग की वजह क्या है?
गंगा जल की विलक्षण रोग नाशिनी शक्ति। गंगा विश्व की सभी जल धाराओं में सबसे अलग है। लेकिन सरकार की गलत नीतियों के कारण इस अद्भुत धारा की रोग निवारक शक्ति क्षीण हो रही है। यदि गंगा का विनाश इसी तरह से जारी रहा तो एक दिन यह भी सरस्वती की तरह विलुप्त हो जाएगी। इसकी रक्षा किसी भी कीमत पर करनी होगी।
इस तथ्य का आधार क्या है?
जब मैं पढ़ाई करता था तो मेरे मित्र की आँख में कुछ दिक्कत आई। हम दोनों डॉक्टर के पास गये। आपको जानकर यह आश्चर्य होगा कि डॉक्टर ने उसे आँखों में किसी दवा के बजाय गंगा जल डालने की सलाह दी। गंगा जल डालने के एक हफ्ते बाद ही उसकी आँखें स्वस्थ हो गईं। अकबर भी गंगा जल पीता था उसे इस जल की विलक्षणता का आभास था। इसके अतिरिक्त वैज्ञानिक परीक्षण से भी इस जल की शुद्धता का आकलन किया जा चुका है। 1974-75 में आईआईटी कानपुर के सहयोग से प्रोफेसर देवेन्द्र स्वरूप भार्गव द्वारा किये गये शोध से यह स्थापित हो चुका है कि गंगा जल में किसी भी तरह के सैप्रोफाईटिक बैक्टीरिया और कोलिफॉर्म्स को मारने की अद्भुत शक्ति है। सामान्य नदियों की तुलना में गंगा की जलधारा में यह शक्ति 17 गुणा ज्यादा है। एक अध्ययन में यह भी पता चला है कि गंगाजल में 17 रोगों के बैक्टीरिया मारने की क्षमता है जिसमें कॉलरा, टाइफाइड, टीबी सहित अन्य रोग शामिल हैं।
क्या गंगा जल में अभी भी यह क्षमता बरकरार है?
गंगा का वह स्वरूप अब रहा कहाँ! शहरीकरण, औद्योगीकरण और ऊर्जा उत्पादन के लिये बाँधों के निर्माण गंगा के लिये सबसे बड़े प्रदूषक हैं। शहरीकरण और औद्योगीकरण ने गंगा के अवजल शोधन क्षमता पर प्रभाव डाला है। प्रदूषण के ये कारक पहले भी मौजूद थे लेकिन इससे निकलने वाले अपशिष्ट की मात्रा इतनी ज्यादा नहीं थी कि गंगा अपने जल को शुद्ध न रख सके। लेकिन अब स्थिति बदल गई है। गंगा के ऊपर क्षेत्र में बाँधों का बेतरतीब निर्माण भी इसकी इस क्षमता पर व्यापक प्रभाव डाल रहा है।
बाँधों का निर्माण गंगा को किस तरह से नुकसान पहुँचा रहा है?
बाँधों का निर्माण इस जलधारा के विलक्षण गुणों को नष्ट करने के अलावा अविरलता और निर्मलता को अत्यधिक प्रभावित कर रहे हैं। जैसे टिहरी बाँध के बन जाने के बाद गंगा जल की रोग नाशक क्षमता का ह्रास हुआ है। इसका मुख्य कारण भागीरथी के प्राकृतिक प्रवाह में मौजूद रोग निवारक अवलम्बित कण बाँध को क्रॉस नहीं कर पाते जिससे इस विलक्षणता की क्षति होती है। इसके अलावा जल के टरबाइन के संपर्क में आने से भी जल का यह गुण प्रभावित होता है। इसलिये मैंने सरकार से अलकनंदा पर प्रस्तावित विष्णुगढ़-पीपलकोठी, मन्दाकिनी पर प्रस्तावित फाटा व्यूंग और सिगोली-भटवारी जलविद्युत परियोजनाओं को बन्द करने की माँग की है।
बाँधों के निर्माण को रोकने के अलावा आपने गंगा अधिनियम 2012 और गंगा भक्त परिषद के गठन की माँग भी की है ये क्या हैं?
गंगा अधिनियम 2012 में गंगा के संरक्षण से सम्बधित कई उपबन्ध हैं जिन्हें लागू करना आवश्यक है क्योंकि गंगा एक राष्ट्रीय धरोहर है। गंगा भक्त परिषद, गंगा की रक्षा के लिये ऐसे कृतसंकल्प लोगों का समूह होगा जो इसके संरक्षण के लिये काम करेंगे।
गंगा नहर में पानी कम छोड़ा जाना भी आपकी माँगों में शामिल है। क्या इससे सिंचाई प्रभावित नहीं होगी?
मैं यह नहीं कहता कि नहर में पानी के बहाव को पूर्णतः रोक दिया जाये। इससे मेरा मतलब सिर्फ इतना है कि आईआईटी कानपुर द्वारा नहर में पानी के बहाव के सन्दर्भ में दिये गये सुझाव को अपनाया जाये। वर्तमान में गंगा से लगभग 9000 क्यूसेक पानी नहर में छोड़ दिया जाता है। इसे कम करके 4500 क्यूसेक किया जाना चाहिए। यही आईआईटी का भी सुझाव है। जहाँ तक कृषि पर पड़ने वाले प्रभाव की बात है किसानों को फसल चक्र अपनाने के लिये प्रेरित किया जाना चाहिए ताकि कम पानी की खपत वाले फसलों को बढ़ावा दिया जा सके।
सरकार द्वारा गंगा सरक्षण के लिये अब तक किये गये कार्यों पर आप क्या कहना चाहते हैं?
अब तक किसी भी सरकार ने गंगा संरक्षण के लिये पर्याप्त काम नहीं किया है। वर्तमान सरकार से बहुत अपेक्षा थी लेकिन कार्यकाल के चार वर्ष से ज्यादा बीत जाने के बाद भी अभी तक इसने गंगा के लिये कुछ नहीं किया है। हालांकि सरकार की सत्ता में आने की एक मुख्य वजह गंगा प्रेम भी था। मेरी प्रधानमंत्री से माँग है कि गंगा अधिनियम आने वाले संसद के सत्र में पास करे और गंगा की निर्मलता और अविरलता के लिये मन्दाकिनी और अलकनंदा पर प्रस्तावित जलविद्युत परियोजनाओं पर प्रतिबन्ध लगाया जाये। गंगा के नाम पर राजनीति सरकार के लिये अच्छा परिणाम देने वाला साबित नहीं होगा।
लोगों के लिये आप क्या सन्देश देना चाहेंगे?
गंगा के संरक्षण के लिये एक जन जागृति चलाये जाने की जरुरत है। लोगों को यह बताने और समझाने की जरुरत है कि धार्मिक अनुष्ठानों के नाम पर गंगा का अहित न करें। गंगा को संरक्षित करने की जिम्मेवारी हम-सब की है।
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