सिंचाई :
पौधों के विकास के लिये कृत्रिम रूप से जल देना सिंचाई कहलाता है। वर्षा की अनिश्चितता एवं अनियमितता के कारण सिंचाई की आवश्यकता होती है। ऊपरी महानदी बेसिन में जल उपयोग की दृष्टि से सिंचाई का स्थान महत्त्वपूर्ण है। यहाँ 12,38,084 हेक्टेयर भूमि विभिन्न साधनों से सिंचित है। यह सम्पूर्ण फसली क्षेत्र का 28.99 प्रतिशत है, जबकि मध्यप्रदेश का औसत 23.8 प्रतिशत है। अव्यवस्थित, असमान एवं अपर्याप्त वर्षा के प्रभाव को सिंचाई के साधनों द्वारा कम किया जा सकता है।
ऊपरी महानदी बेसिन के बहुत बड़े भाग में कृषि के लिये सबसे बड़े बाधक तत्व आर्द्रता की कमी है। सिंचाई का महत्त्व न केवल फसलों को बचाने के लिये अपितु अधिक उत्पादन एवं गहन कृषि के लिये हमेशा रहा है। सिंचाई के द्वारा फसल प्रतिरूप में विभिन्नता एवं परिवर्तन देखने को मिलता है इसके अतिरिक्त सिंचाई परिवर्तित प्रविधि रासायनिक खाद तथा आधुनिक यंत्रों के उपयोग के संदर्भ में अधिक महत्त्वपूर्ण है।
सिंचाई के साधन :
ऊपरी महानदी बेसिन में धरातलीय एवं भूमिगत जलस्रोतों से सिंचाई होती है। धरातल का जल नदियों और तालाबों से तथा भूमिगत जल कुओं और जलकूपों द्वारा उपलब्ध होता है। बेसिन में सिंचाई के मुख्य तीन साधन हैं - 1. नहर, 2. तालाब एवं 3. कुआँ तथा नलकूप।
बेसिन के सिंचाई साधनों विकास की प्रगति में विभन्नता है क्योंकि ज्यादातर सिंचाई कुओं एवं नहरों के द्वारा होती है। इसके साथ ही नलकूप एवं तालाबों द्वारा सिंचाई में प्रगति हुई है।
सिंचाई का वितरण :
ऊपरी महानदी बेसिन में सिंचाई प्राचीन काल से ही की जाती है। किंतु अभी तक केवल 12,38,084 हेक्टेयर क्षेत्र में जो कुछ फसली क्षेत्र का 28.99 प्रतिशत एवं कुछ भौगोलिक क्षेत्रफल का 23.36 प्रतिशत है, पर सिंचाई की जाती है। बेसिन में सिंचाई की तीव्रता कम है क्योंकि इसका वितरण असमान है। रायपुर जिले में सर्वाधिक 52.47 प्रतिशत सिंचित क्षेत्र है। जबकि बिलासपुर जिले में 21.55 प्रतिशत, दुर्ग जिले में 17.85 प्रतिशत, राजनांदगाँव जिले में 4.21 प्रतिशत, रायगढ़ जिले में 3.47 प्रतिशत एवं कांकेर जिले में 0.45 प्रतिशत क्षेत्र सिंचित है। रायपुर दुर्ग जिले में समतल धरातल है जबकि राजनांदगाँव, रायगढ़ एवं कांकेर जिले में वनीय क्षेत्र तथा विषम धरातल का विस्तार अधिक है, इस कारण सिंचाई का प्रतिशत अपेक्षाकृत कम है।
ऊपरी महानदी बेसिन में नहरें सिंचाई का सबसे बड़ा साधन है। बेसिन में नहरों द्वारा 7,29,575 हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई की जाती है, जो कुल सिंचित क्षेत्र का 58.92 प्रतिशत है। बिलासपुर जिले में कुल सिंचित क्षेत्र का 80.66 प्रतिशत, कांकेर जिले में 55.30 प्रतिशत, राजनांदगाँव जिले में 65.51 प्रतिशत, दुर्ग में 64.93 प्रतिशत, रायपुर में 48.49 प्रतिशत एवं रायगढ़ जिले में 43.28 प्रतिशत सिंचित क्षेत्र नहरों से सिंचित है।
नहर के बाद नलकूप सिंचाई का दूसरा बड़ा साधन है। बेसिन में नलकूप द्वारा 3,13,588 हेक्टेयर (25.32 प्रतिशत) क्षेत्र में सिंचाई होती है। रायपुर में 41.50 प्रतिशत, रायगढ़ में 18.49 प्रतिशत, कांकेर में 17.40 प्रतिशत, दुर्ग में 10.56 प्रतिशत, बिलासपुर में 4 प्रतिशत एवं राजनांदगाँव में 1.11 प्रतिशत क्षेत्र में कुओं से सिंचाई होती है।
बेसिन में तालाब ग्रामीण भू-दृश्य के आवश्यक अंग हैं। यहाँ तालाब निर्माण के लिये भौतिक स्वरूप अत्यंत अनुकूल है। इसके अलावा विषम धरातल नहरों के निर्माण के लिये अनुकूल नहीं है। इन तालाबों में वर्षाऋतु में वर्षा का जल एकत्रित होता है, जिसका उपयोग सिंचाई के लिये किया जाता है। यहाँ के तालाब सिंचाई के वार्षिक साधन नहीं हैं।
ऊपरी महानदी बेसिन में 73.343 हेक्टेयर क्षेत्र (5.93 प्रतिशत) में तालाबों द्वारा सिंचाई की जाती है। यहाँ तालाबों की संख्या 32,842 है जिसमें 40 हेक्टेयर से अधिक सिंचाई क्षमता वाले तालाब 1662 (5.06 प्रतिशत) एवं 40 हेक्टेयर से कम सिंचाई क्षमता वाले तालाब 31,180 (94.94 प्रतिशत) है।
बेसिन में रायगढ़ जिले में 17.78 प्रतिशत, कांकेर में 14.97 प्रतिशत, राजनांदगाँव में 10.01 प्रतिशत, बिलासपुर में 6.85 प्रतिशत, रायपुर में 5,34 प्रतिशत एवं दुर्ग जिले में 3.00 प्रतिशत क्षेत्रों में तालाबों द्वारा सिंचाई की जाती है। लेकिन सिंचाई जलाशयों में सर्वाधिक बिलासपुर जिले में 47-69 प्रतिशत तालाब हैं। इसके बाद क्रमश: रायपुर में 39.53 प्रतिशत, राजनांदगाँव में 2.03 प्रतिशत, दुर्ग में 5.68 प्रतिशत, रायगढ़ में 4.41 प्रतिशत एवं कांकेर जिले में 0.66 प्रतिशत हैं।
कुओं द्वारा सिंचाई उन क्षेत्रों में अधिक की जाती है, जहाँ पर सिंचाई के अन्य साधनों का अभाव है। कुओं द्वारा सिंचाई की कम गहनता, प्रतिकूल भू-वैज्ञानिक संरचना, विषम स्थलाकृति वाले क्षेत्रों में की जाती है। बेसिन में 50.596 हेक्टेयर क्षेत्र (4.09 प्रतिशत) में कुओं द्वारा सिंचाई होती है। राजनांदगाँव जिले में कुल सिंचित क्षेत्र का 7.78 प्रतिशत, बिलासपुर जिले में 6.46 प्रतिशत, दुर्ग जिले में 5.18 प्रतिशत, रायगढ़ जिले में 5.14 प्रतिशत, रायपुर जिले में 2.12 प्रतिशत एवं कांकेर जिले में 9.07 प्रतिशत क्षेत्रों में कुओं द्वारा सिंचाई की जाती है।
ऊपरी महानदी बेसिन में अन्य साधनों से 71,012 हेक्टेयर (5.74 प्रतिशत) क्षेत्र सिंचित है। अन्य साधनों में नदी, नाले जलाशय एवं पम्प आदि से पानी खींचकर सिंचाई की जाती है। सिंचाई की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए शासन ने इस प्रकार की सिंचाई सुविधा प्रदान करने वाली कई योजनाएँ प्रारम्भ की हैं। बेसिन में सर्वाधिक दुर्ग जिले में 15.73 प्रतिशत एवं इसके बाद क्रमश: रायगढ़ 15.31 प्रतिशत, राजनांदगाँव 14.79 प्रतिशत, कांकेर 3.76 प्रतिशत, रायपुर 2.55 प्रतिशत एवं बिलासपुर जिले में 2.03 प्रतिशत अन्य साधनों द्वारा सिंचाई होती है।
सिंचाई योजनाएँ -
ऊपरी महानदी बेसिन कृषि प्रधान क्षेत्र है। इसके कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 57,92,787 हे. क्षेत्र की 74.11 प्रतिशत भूमि कृषि योग्य है। यहाँ के सतही जल का 96.99 प्रतिशत जलावाह कृषि को सिंचाई सुविधा प्रदान करती है। साथ ही 137 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि सतही जल एवं 120 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि, भूमिगत जल में सिंचित होती है। अर्थात उपलब्ध क्षमता का 75 प्रतिशत भाग बेसिन में प्रयुक्त हो रहा है। शेष 25 प्रतिशत उपलब्ध जलीय संसाधनों का उपयोग अभी तक नहीं हो पाया है।
बेसिन में क्रियान्वित की जा रही योजनाओं को निम्नलिखित दो वर्गों में रखा जा सकता है। 1. सतही जल पर आधारित सिंचाई योजनाएँ एवं 2. भूमिगत जल पर आधारित सिंचाई योजनाएँ
1. सतही जल पर आधारित सिंचाई योजनाएँ :
बेसिन की नदियों के जल को बांध एवं जलाशयों का निर्माण कर रोका गया है। इन जलाशयों से नहरें निकालकर जल का उपयोग सिंचाई के लिये किया गया है। लागत एवं प्रस्तावित सिंचाई क्षेत्र के आधार पर सतही जल पर आधारित सिंचाई परियोजनाओं को तीन श्रेणियों में रखा गया है-अ. वृहद सिंचाई परियोजनाएँ, ब. मध्यम सिंचाई परियोजनाएँ, स. लघु तथा अन्य सिंचाई परियोजनाएँ।
अ. वृहद सिंचाई परियोजनाएँ :
बेसिन में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से योजनाक्रम में वृहद सिंचाई परियोजनाओं से वास्तविक सिंचाई क्षमता में वृद्धि हुई है। इन योजनाओं से 4,60,644 हेक्टेयर भूमि में सिंचाई होती है। इसमें खरीफ एवं रबी फसलें उत्पन्न की जाती हैं। इसमें योजनाओं की संख्या 502 है। जिसका रूपांकित एवं निर्मित क्षमता 6016.00 हे. है। इसमें रविशंकर सागर जलाशय परियोजना, दुधावा, मुरुमसिल्ली, सिकासार, सोंदूर, कोडार, पैरीहाइडेम, हसदेव बांगो परियोजना, तांदुला, गौदली एवं खरखरा जलाशय (दुर्ग) सम्मिलित हैं।
ब. मध्य सिंचाई परियोजनाएँ -
बेसिन के उन भागों में जहाँ नहरें निर्मित नहीं की जा सकती या नलकूप आदि की व्यवस्था नहीं है वहाँ शासकीय साधनों से छोटे नालों को बाँधकर एवं जल एकत्र करके सिंचाई की जाती है। इसमें केशवनाला जलाशय, कुम्हारी, पेंड्रावन एवं राजनांदगाँव जिले की योजनाएँ सम्मिलित हैं, जिनका रूपांकित एवं निर्मित क्षमता 20,014.00 हे. है। इनकी संख्या 249 है इसमें 1,167 हे. क्षेत्रफल में सिंचाई होती है।
स. लघु सिंचाई परियोजना -
वर्तमान समय में जहाँ नहरे एवं सिंचाई साधनों का अभाव है, वहाँ शासकीय साधनों से उप नहरें तथा बांधिया नहरें निर्मित कर सिंचाई की जाती है। इनकी कुल संख्या 358 है, जिनकी रुपांकित एवं निर्मित क्षमता 88,229 हे. तथा वास्तविक सिंचाई क्षमता 67,729.00 हेक्टेयर है। पर्वतीय एवं पहाड़ी क्षेत्रों में जलस्रोतों के आधार पर छोटी-छोटी नहरों का निर्माण किया गया है। यहाँ इस परियोजनाओं से अधिकाधिक सिंचाई सुविधाओं का विकास हुआ है।
निष्कर्षत: सम्पूर्ण महानदी बेसिन में इन योजनाओं की कुल संख्या 1,109 है जो रायपुर, बिलासपुर, दुर्ग, राजनांदगाँव एवं बस्तर जिले के कांकेर तहसील में क्रियान्वित है। इनकी रुपांकित एवं निर्मित क्षमता 1,14,259.00 हे. एवं वास्तविक सिंचाई क्षमता 5,40,044.00 हे. है। इस प्रकार की योजनाएँ नदियों के सहारे स्थित हैं। वर्तमान में कुछ वृहद एवं मध्यम योजनाएँ निर्माणाधीन हैं जैसे - रुद्री, बेरॉज, हसदेव, बोगो आदि।
धरातलीय जल संसाधन के भविष्य में उपयोग के लिये राज्य सरकार द्वारा तीन वर्गीय योजनाएँ बनायी गई हैं :-
1. शासन को प्रशासकीय स्वीकृति हेतु भेजी गयी सिंचाई योजनाएँ- रविशंकर सागर एवं उदन्ति जलाशय,
2. सर्वेक्षण विहीन योजनाएँ, इनकी संख्या 09 है।
3. पूर्ण योजनाएँ - इनकी संख्या 196 है।
2. भूमिगत जल पर आधारित सिंचाई योजनाएँ -
इसके अंतर्गत भूमि के अंदर विभिन्न चट्टानी परतों में नीहित जल सम्मिलित है जिसे - कुएँ, नलकूप आदि के माध्यम से निकालकर सिंचाई के लिये उपयोग किया जाता है। बेसिन में उपलब्ध भूमिगत जल के आधार पर सिंचाई पम्पों के माध्यम से सिंचाई प्रदान की जा रही है।
बेसिन में भूमिगत जलस्रोतों से कुओं के द्वारा सर्वाधिक 83.66 प्रतिशत एवं नलकूपों द्वारा 16.34 प्रतिशत भू-भागों में सिंचाई होती है।
ऊपरी महानदी बेसिन की सिंचाई क्षमता में अभिवृद्धि का कार्य निम्नलिखित परियोजनाओं के माध्यम से विश्व बैंक की सहायता से क्रियान्वित है।
1. महानदी जलाशय (रविशंकर सागर परियोजना) :
महानदी नहर प्रणाली छत्तीसगढ़ एवं मध्य प्रदेश की पुरानी एवं सफल प्रणलियों में से एक है। इनमें दो जलाशय मुरूमसिल्ली एवं दुधावा जलाशय है, तथा रूद्री से निकलने वाली मुख्य नहर उसकी शाखाएँ तथा उप शाखाओं की समस्त प्रणालियों समविष्ट होती है। जो रायपुर जिले के 716 ग्रामों एवं दुर्ग जिले के 11 ग्रामों में 4 लाख हेक्टेयर भूमि में धान की सिंचाई करती है। इससे 1145 किमी लंबी महानदी नहर प्रणाली निकाली गई है।
2. मुरूमसिल्ली जलाशय -
इसका निर्माण 1915-1923 में हुआ। इसकी ऊँचाई 83.7 मीटर है, यह एक मिट्टी का बांध है, जिसे महानदी की सहायक नदी सिलारी नाले पर बनरौद गाँव के पास बनाया गया है। इसकी बांध की जल संग्रहण क्षमता 5,839 लाख घन मीटर है। इसका पूर्ण जलस्तर 1,223.60 एवं न्यूनतम जलस्तर 1,185.00 लाख घन मीटर है। यहाँ 40,000 लाख घनमीटर जल सुविधापूर्वक निकाला जा सकता है, जिनसे होकर पूरे का पानी नदी की मुख्य धारा में मिलता है।
3. रूद्री जलाशय -
यह 2 मीटर ऊँचा 400 मीटर लंबा वियर है जिसे 1912-15 में बनवाया गया। इस पर 1.5 मीटर ऊँचे गिरने वाले गेट बनाये गये है। रूद्री शीर्ष कार्य का जलग्रहण क्षेत्र 1,429 वर्गमीटर है तथा अधिकतम पूरे 2,94,000 लाख घनमीटर नापा गया है। वियर से जल निकालने की क्षमता 3,21,000 लाख घनमीटर रखी गयी है। सन 1967 में 3,08,000 लाख घनमीटर पूरे का बहाव था।
4. दुधावा जलाशय -
यह बांध 1954-1962 में निर्मित हुआ। इसकी अधिकतम ऊँचाई 24.2 मीटर तथा लंबाई 2,860 मीटर है इसके साथ ही दोनों किनारों पर 560 मीटर तथा 420 मीटर लंबी मिट्टी के दो छोटे-छोटे बांध और बनाये गये हैं इस बांध का जल ग्रहण क्षेत्र 241.60 वर्ग किलोमीटर है तथा अधिकतम 18,369 लाख घनमीटर बनाया गया है। कुल जलग्रहण क्षमता 1,01,000 लाख घनमीटर है। बांध के नीचे झरने वाले पानी के उचित निकासी हेतु फिल्टर दी गई। वर्षा के पानी के निकासी हेतु 120 मीटर फुट लंबा वियर है तथा 1,170 मीटर लंबी नहर से होता हुआ यह जल मुख्य नदी में मिल जाता है।
महानदी मुख्य नहर की लंबाई 76.44 किमी तथा मुख्य शाखाओं की लंबाई 185.36 किमी है तथा उपशाखाओं की लंबाई 917.96 किमी है। इसमें प्रतिवर्ष 16 हजार हेक्टेयर में सिंचाई की जाती है। सन 1896-97, 1899-1990, 1902-1903 में छत्तीसगढ़ क्षेत्र में लगातार अकाल की स्थिति रही। अत: इस क्षेत्र की भीषण स्थिति में हमेशा के लिये बचाव हेतु बड़े पैमाने पर सिंचाई सुविधाओं के निर्माण की आवश्यकता प्रतीत हुई। इस दिशा में तांदुला बांध 13,200 हे. तथा महानदी 14,200 हे. नहर योजनाओं का निर्माण किया गया।
5. हंसदेव - बांगो परियोजना -
महानदी की सहायक नदी हसदेव के क्रमिक विकास के माध्यम से इसके जल के सिंचाई तथा औद्योगिक उपयोग की परिकल्पना इस परियोजना में की गई। इस परियोजना का विस्तार बिलासपुर तथा रायपुर जिले में है। इसके पश्चिम में लीलागार, खारुन तथा जोंक नदियों के दक्षिण में महानदी एवं पूर्व में मांद नदी कोरबा शहर के निकट स्थित हसदेव बराज से परियोजना क्षेत्र में जल का वितरण किया जाता है। प्रारंभ में इसकी स्थापना कोरबा तथा आस-पास स्थित ताप विद्युत ग्रहों तथा अन्य औद्योगिक इकाईयों की आवश्यकता की पूर्ति के उद्देश्यों से की गई थी। यह परियोजना कई चरणों में पूरी की जा रही है।
प्रथम चरण -
इसके अंतर्गत कोरबा के निकट हसदेव नदी पर एक बराज का निर्माण किया गया है तथा चार किलोमीटर लंबी बांध तट से मुख्य नहर का निर्माण किया गया है। यह कार्य 1967 में पूर्ण हो गया। इसका उद्देश्य कोरबा स्थित 200 मेगावाट के ताप विद्युत गृह को पानी देने के साथ-साथ औद्योगिक उपयोग के बाद बच रहे अतिरिक्त पानी का उपयोग नहर के नियंत्रण क्षेत्र के अंदर सीमित सिंचाई सुविधा उपलब्ध करना था।
द्वितीय चरण -
इसके अंतर्गत मुख्य नहर के निर्माण के साथ बराज से 42,000 हे. में सिंचाई करने का लक्ष्य रखा गया जबकि इसके नियंत्रण (कमांड) में 1,34,000 हेक्टेयर कृषि भूमि आती है। खरीफ फसल के 42,000 हे. में जांजगीर नहर के माध्यम से सिंचाई की जाती थी। यह प्रणाली 1976 में प्रारम्भ हुई।
तृतीय चरण –
इस चरण में हसदवे के ऊपर बांगो बांध बनाया गया था जिसका उपयोगी जल संग्रहण क्षमता 3,415 लाख घन मीटर है। इन परियोजनाओं की क्षमता 2,55,000 हे. है। जल की प्रचुर मात्रा के कारण 2,34,600 हेक्टेयर क्षेत्र में धान की फसल को पानी दिया जा रहा है, वहीं रबी तथा अन्य फसलों के लिये 1,27,500 हेक्टेयर कृषि भूमि के लिये पानी मिल रहा है। साथ ही गेहूँ 51,000 हेक्टेयर, गन्ना तथा केले जैसी वर्ष भर की जा सकने वाली फसलों के लिये 20,400 हेक्टेयर क्षेत्र में पानी मिल रहा है। इस प्रकार कुल वार्षिक सिंचाई क्षमता 4,33,600 हेक्टेयर है।
सिंचाई के साथ-साथ इस परियोजना के माध्यम से 3,740 मेगावाट क्षमता की ताप विद्युत इकाईयों के अतिरिक्त कोरबा के आस-पास स्थित औद्योगिक संस्थानों तथा कोरबा नगरपालिका क्षेत्र की आबादी को जल प्रदाय किया जा रहा है। बांध पर 45 मेगावाट क्षमता की 3 जल विद्युत इकाईयों की स्थापना भी की जा रही है।
इस प्रकार हसदेव बांगो परियोजना की सिंचाई की क्षमता 2,55,200 हेक्टेयर है, जिसमें कोरबा (646), चांपा 23,639, पामगढ़ (35,231), अकलतरा (25,816), बलौदा (11,728), करतला (10,591), सक्ती (31,445), माल खरौदा (22,056), डबरा (18,218), जैजपुर (28,053) एवं रायगढ़ जिले के खरसियां विकास खंड के (4,444) हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई की जा रही है। इस बांध के पूर्ण होने में 44.8 प्रतिशत क्षेत्र में सिंचाई हो रही है। यहाँ से निकलने वाली शाखा नहरों की कुल सिंचाई क्षमता 1,38,000 हेक्टेयर है।
निष्कर्षत: महानदी नहर सिंचाई परियोजना के अंतर्गत मुरुमसिल्ली जलाशस से 14,810 हेक्टेयर रविशंकर सागर 3,40,000 हेक्टेयर, दुधावा 1,19,000 हेक्टेयर, सिकासार 43,734 हेक्टेयर, कोडार 72,198 हेक्टेयर, पैरीहाईडेम 9,140 हेक्टेयर, सोंदूर 12,260 हेक्टेयर, केशवनाला जलाशय 13,280 हेक्टेयर एवं कुम्हारी से 78,372 हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई हो रही है। बेसिन की कुल सिंचाई क्षमता 7,02,794 हेक्टेयर है। इसमें सर्वाधिक सिंचाई (48.37 प्रतिशत) रविशंकर जलाशय से एवं कम पैरीहाईडेम से (1.30 प्रतिशत) हो रही है। इसी क्रम में दुधावा (16.93 प्रतिशत), कुम्हारी (11.15 प्रतिशत), कोडार (10.27 प्रतिशत), सिकासार (6.22 प्रतिशत), मुरुमसिल्ली (2.10 प्रतिशत), सोंदूर (1.74 प्रतिशत) एवं केशवनाला (1.88 प्रतिशत) क्षेत्र में सिंचाई हो रही है।
6. तांदुला जलाशय -
तांदुला जलाशय दुर्ग जिले के बालोद तहसील में बालोद शहर से 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इसका निर्माण 1910 से 1921 की अवधि में हुआ था। तांदुला बांध सूखा एवं तांदुला नदी पर बनाया गया है। जिसका संयुक्त जलग्रहण क्षेत्र 818 वर्ग किलोमीटर है। तांदुला जलाशय के मुख्य नहर की लंबाई 110 किलोमीटर है और उपनहरों तथा लघुनहरों की लंबाई 880 किलो मीटर है। इस जलाशय द्वारा 68,219 हेक्टेयर खरीफ फसल की सिंचाई होती है। तांदुला से खपरी जलाशय को भी 4454 हे. क्षेत्र की सिंचाई के लिये 303 लाख घनमीटर पानी दिया जाता है।
7. गोंदली जलाशय :
इसका निर्माण 1955 से 1957 की अवधि में जुझारा नाला को बांधकर किया गया है। इसका जल ग्रहण क्षेत्र 192 वर्ग किलोमीटर है। इससे 21,053 हेक्टेयर खरीफ फसल की सिंचाई होती है। इसकी जल संग्रहण क्षमता 97 लाख घन मीटर है।
8. खरखरा जलाशय :
इसका निर्माण 1965-66 में खरखरा नदी पर बालोद तहसील के बंदर चुआ ग्राम के समीप किया गया है। इसका जल ग्रहण क्षेत्र 368 वर्ग किलोमीटर है। इससे एक पूरक नहर जो 35 किलो मीटर लंबी है। इसे तांदुला मुख्य नहर से जोड़ा गया है। इस जलाशय से 4,049 हे. क्षेत्र में सिंचाई सुविधा उपलब्ध है। खरखरा जलाशय की क्षमता 139 लाख घनमीटर है।
9. खारंग जलाशय :
खारंग जलाशय खूंटा घाट (बिलासपुर) में 614 वर्ग किलो मीटर क्षेत्र में है। इसका जल विस्तार क्षेत्र 38.10 वर्ग किमी एवं सिंचाई क्षमता 198.25 लाख घन मीटर है। इसकी लंबाई 21.30 किमी है।
सिंचित फसलें -
खरीफ मौसम की मुख्य फसल धान के लिये सिंचाई सम्पूरक है। इसलिये सिंचाई में विस्तार से ही खरीफ फसलों के उत्पादन एवं उसके क्षेत्र में वृद्धि के साथ-साथ रबी फसलों के क्षेत्रफल में भी वृद्धि की जा सकती है। इस क्षेत्र में धान की खेती के लिये बोता पद्धति मुख्यत: उपयोग में लाई जाती है। यद्यपि कुछ क्षेत्रों में रोपा पद्धति से फसल लगाते हैं। बेसिन में 1981 में सिंचाई क्षमता 1,54,300 हेक्टेयर थी जो 1991 में बढ़कर 2,41,700 हेक्टेयर हो गई। वर्ष 1991 में कुल सिंचाई क्षमता 2,33,700 हे. थी। इस वर्ष वास्तविक सिंचाई कम हुई। क्योंकि अपर्याप्त वर्षा के कारण जलाशय में जलसंग्रह कम हुआ एवं उपलब्ध जल का प्रयोग भिलाई इस्पात संयंत्र के लिये, पीने के पानी व निस्तारी तालाबों के भरने हेतु किया गया।
ऊपरी महानदी बेसिन कृषि प्रधान क्षेत्र होने के कारण सिंचाई योजना का निर्माण कृषि उत्पाद और जनसंख्या की जीविका के लिये आवश्यक है। वर्षा की अनिश्चितता के कारण सिंचाई साधनों में वृद्धि कर, द्विफसली क्षेत्र में वृद्धि कर सिंचाई असमानता को दूर किया जा सकता है। यहाँ कुल साधनों की संख्या 1,59,455 है जो कुल क्षेत्रफल का 2.39 प्रतिशत है। इनमें सर्वाधिक कुओं की संख्या 1,17,680 है इसके बाद क्रमश: तालाब (30,065) नलकूप (23,176) एवं नहरें (793) हैं। जो कि बेसिन के सिंचाई असमानता को स्पष्ट करती हैं।
बेसिन में शुद्ध बोया क्षेत्र 4,22,14,100 हे. जिसमें से 9,86,500 हे. क्षेत्र शुद्ध सिंचित क्षेत्रफल के अंतर्गत आता है। सिंचित क्षेत्र का शुद्ध बोया गया क्षेत्र से यह 22.26 प्रतिशत है जो म. प्र. के सिंचित क्षेत्रफल 23.8 प्रतिशत से कम है। फिर भी सकल बोया गया क्षेत्र 50,46,800 हे. में से कुल सिंचित क्षेत्रफल 10,15,000 हे. (18.2 प्रतिशत) क्षेत्र इसके अंतर्गत सम्मिलित है।
इससे स्पष्ट होता है कि कुल सिंचित क्षेत्रफल का प्रतिशत (18.2%), शुद्ध सिंचित क्षेत्रफल (22.26%) से कम है। इसका कारण सिंचाई सुविधाओं का पर्याप्त विकास न हो पाना है।
सिंचाई व्यवस्था -
सम्पूर्ण सिंचित क्षेत्र में पानी इस प्रकार भेजा जाता है कि केवल एक ही फसल के लिये पानी पर्याप्त होता है। महानदी नहर प्रणाली सुरक्षात्मक सिंचाई प्रदान करती है। इससे विभिन्न उपज या खेती संभव नहीं है इस प्रकार की सुरक्षात्मक सिंचाई के लिये भी कम से कम प्रति हेक्टेयर 30 सेमी. पानी की आवश्यकता होती है।
सिंचित क्षेत्र में सिंचाई कुलापा से पानी निकलने के बाद खेत से खेत पानी होकर जाने की पद्धति अपनाई जाती है। इस प्रकार की व्यवस्था यद्यपि रबी फसल के लिये उपयुक्त नहीं है परंतु खरीफ फसल के लिये उपयुक्त है।
सिंचाई का विकास :
ऊपरी महानदी बेसिन में विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं में सिंचाई की ओर विशेष ध्यान दिया गया है। इसके मध्यम तथा गौण सिंचाई को महत्त्व मिला है। साथ ही साथ 1976 में मध्यप्रदेश में उद्वहन सिंचाई निगम की स्थापना से यहाँ मध्यम तथा गौण सिंचाई योजनाओं के द्वारा नलकूप खनन कार्य, नहरें आदि की पर्याप्त व्यवस्था की गई है। अभियांत्रिक दृष्टिकोण से वृहद मध्यम एवं लघु सिंचाई योजनाओं को पूर्ण कर निर्मित योजनाओं का क्रियान्वयन आर्थिक लाभ की दृष्टि से अति आवश्यक है। बेसिन में कृषि प्रमुख होने के कारण कृषि आधारित योजनाओं पर ही इस क्षेत्र का विकास निर्भर करता है क्योंकि बढ़ती जनसंख्या की प्रमुख आवश्यकता कृषि पर ही निर्भर है। इसके लिये दो बातें महत्त्वपूर्ण हैं :-
1. पड़ती एवं अकृषिगत भूमि का यथासंभव कृषि क्षेत्रों में परिवर्तित कर निरा फसली क्षेत्र में वृद्धि करना, तथा
2. सिंचाई साधनों में वृद्धि कर सिंचित क्षेत्र में वृद्धि करना।
विकास की सम्भावनाएँ :
बेसिन में सिंचाई एवं कृषि विकास की प्रचुर संभावना विद्यमान है। बेसिन के दक्षिण-पूर्वी भाग में विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं में सिंचाई मंडल द्वारा जल का विकास किया गया है और भविष्य के लिये किया जा रहा है। इसमें कई वृहत एवं लघु सिंचाई परियोजनाएँ सम्मिलित है। बेसिन के 2,30,839 वर्ग किमी क्षेत्र का 1,06,000 हजार हेक्टेयर क्षेत्र कृषि योग्य है। बेसिन में राजनांदगाँव के उत्तर-पूर्वी भाग में खैरागढ़, कवर्धा, तथा दुर्ग जिले की बेमेतरा तहसील, बिलासपुर के उ. पू. भाग, रायपुर के दक्षिण पूर्वी भाग में सिंचाई का समुचित विकास नहीं हो पाया है जबकि वहाँ प्रचुर जल संसाधन उपलब्ध है। जहाँ बांध बनाना संभव नहीं, वहाँ उद्वहन सिंचाई योजनाओं की स्थापना कर सिंचाई किया जा रहा है ये योजनाएँ निम्नलिखित हैं -
1. अभनपुर उद्वहन सिंचाई योजना
2. नया रूद्री बैराज
3. सोंदूर बांध
4. दुधावा तथा मुरूमसिल्ली बांध के सुरक्षात्मक फार्म
5. पैरी हाईडेम फर्शों का निर्माण
6. नहरों से पानी रिसने की क्रिया को रोकना
7. रूद्री में तांदुला मुख्य नहर तक पूरक नहर का निर्माण
8. लवन शखा नहर का नवीनीकरण एवं विस्तार
9. भाटापारा शाखा नहर का नवीनीकरण एवं भीतरी विस्तार तथा
10. महानदी मुख्य नहर का नवीनीकरण एवं भीतरी सतह को पक्की करना।
इस तरह बेसिन में सिंचाई के विकास तथा क्षेत्रीय वितरण का विश्लेषण किया गया है। जिससे यह स्पष्ट है कि सिंचाई के विकास की गति मंद है एवं विकास की प्रगति सभी भागों में समान नहीं है। अत: अतिरिक्त सिंचाई क्षमता का विकास कर सिंचाई में तीव्रता लाया जा रहा है।
जलीय सिंचाई समस्याएँ
स्वतंत्रता पश्चात मानसूनी वर्षा की अनियमितता एवं अनिश्चितता के कारण उपलब्ध जल को सिंचित कर एवं निकालकर उसका उपयोग सिंचाई के रूप में करने से प्रति हेक्टेयर कृषि उत्पादन में वृद्धि हुई है। अत: जनसंख्या के दबाव एवं आवश्यकताओं को देखते हुये क्रमबद्ध योजनानुसार जल संसाधन का उपयोग होने लगा है, फिर भी निम्नलिखित समस्याएँ हैं -
1. वर्षा की कमी
2. जल का दुरुपयोग
3. बाढ़ग्रस्त क्षेत्र
4. जल प्रदूषण की समस्या
5. सूखाग्रस्त क्षेत्र में पेयजल संबंधी समस्याएँ
6. सिंचाई संबंधी समस्याएँ - अ. अवैज्ञानिक सिंचाई पद्धति, ब. प्रशासकीय समस्याएँ
बेसिन में जल का महत्त्वपूर्ण स्रोत मानसूनी वर्षा ही है। अत: मानसूनी वर्षा की अनियमितता, अनिश्चितता एवं असमान वितरण जल संसाधन की मुख्य समस्या है। ये आर्थिक, भौतिक एवं राजनैतिक प्रकार की होती है। सिंचाई संबंधी समस्याओं के निराकरण के उपाय एवं विकास हेतु सुझाव -
उपाय -
1. सिंचाई सुविधा में विस्तार की विषमताओं को दूर करना
2. उपलब्ध जल द्वारा अधिकतम सिंचाई की व्यवस्था कर पैदावार बढ़ाना
3. सिंचाई प्रणाली में सुधार एवं विस्तार की आवश्यकता
4. प्रशासकीय समस्याओं को यथासंभव दूर करना
5. धरातलीय विषमताओं को सुव्यवस्थित करना
6. छोटे-छोटे बांध बनाकर सिंचाई सुविधा का विस्तार करना एवं
7. स्टॉप बांध का निर्माण करना।
ऊपरी महानदी बेसिन में जल संसाधन मूल्यांकन एवं विकास, शोध-प्रबंध 1999 (इस पुस्तक के अन्य अध्यायों को पढ़ने के लिये कृपया आलेख के लिंक पर क्लिक करें।) | |
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11 | सारांश एवं निष्कर्ष : ऊपरी महानदी बेसिन में जल संसाधन मूल्यांकन एवं विकास |
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