पुस्तकें और पुस्तक समीक्षा

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जल संरक्षण हम पर है भार
Posted on 16 Apr, 2014 03:15 PM जल संरक्षण का हम पर है भार,
तभी बचेगा यह संसार।
जल है जीवन का अनमोल रत्न,
इसे बचाने का करो जतन,
जल बचाएं- जीवन बचाएं

जल प्रकृति द्वारा प्रदत्त अनमोल उपहार है,
इसका संरक्षण हमारा नैतिक कर्तव्य है,
साफ सुथरा पानी,
अच्छे स्वास्थ्य की है निशानी,
जल संरक्षण का हम पर है भार,
तभी बचेगा यह संसार।

जल को न व्यर्थ गंवाओ,
गंगा.....
Posted on 15 Apr, 2014 03:42 PM गंगा तुम क्या हो????
मानवीय संवेदनाओं से जुड़ी
कैसी कथा हो...
जो चिरकाल से
हमें पाल रही हो?????

माई, तुम्हें नहीं पता
कौन आर्य है, कौन द्रविड़,
कौन बौद्ध है, कौन मुसलमाँ,
कौन सिक्ख है, कौन जैन,
पारसी या ईसाई भी तुम्हें नहीं पता............

शांत, अविचल, धवल,
श्वेत चन्द्र रेखा सी...
अनवरत सभ्यताओं को जन्म देती
टिहरी, भाग -2
Posted on 15 Apr, 2014 03:41 PM प्राकृतिक सौंदर्य को देखता
विभोर हो रहा हूँ
नव विहान के साथ
जल सतह पर
तैरता कोहरा ढॅंक लेता है
अपने आँचल में
मध्धम होती
निःशेष छवि काल की
कोहरा छंटने पर
दिखती हैं स्पष्ट रेखाएं
आधुनिक अभियांत्रिकी
कौशल की
मानव की अदम्य इच्छाशक्ति
आशा-विश्वास
अद्भुत-अकम्प संकल्प का
जीवंत उदाहरण 'टिहरी बाँध'
नदी और आदमी
Posted on 08 Apr, 2014 03:50 PM
नदी निश्चल बहती है
इसका अर्थ
यह तो नहीं कि वह कुछ नहीं कहती।
बहुत कुछ कहती है तब
जब जानलेवा गरमी में
प्यास से बदहाल
हम निहारते हैं उसे।
स्वाद लेते हैं उसके
ममतामयी शीतल नीर का।
वह कहती है तब भी
जब हम चखते हैं
उसके अमृत से सिंचित
पेड़ के मीठे सुस्वादु फल को।
चलाना हो कल-कारखाने
या विपुल विद्युत उत्पादन
नदियां हमें बचानी होंगी
Posted on 08 Apr, 2014 03:49 PM
देखों नदियां धधक रही हैं,
हमको आगे आना होगा।
तालाब कुएं सब सूख रहे हैं
इनको हमें बचाना होगा।
निर्मल-निर्मल पानी है देखो,
हमकों क्या-क्या नहीं देते हैं
इनसे ही जीवन है अपना,
अमृत रस ये देते हैं,
गंदगी का है परचम भारी
हमें इसे मिटाना होगा।
देखों नदियां धधक रही हैं,
हमको आगे आना होगा।
नदियों से ही पानी मिलता,
पानी, आदमी और गिलास
Posted on 08 Apr, 2014 03:34 PM
मेरे पास
नहीं है एक गिलास
किसी को कैसे पिलाऊ पानी?
मैं चाहता हूं
मेरे पास भी हो एक गिलास
पिलाने को पानी
तभी न पिला पाऊंगा
पानी किसी को
पर देखता हूं
नहीं है पानी हर गिलास में
मैं इतना जरूर चाहता हूं
न हो गिलास
तो भी हो
पानी जरूर मेरे पास
पानी प्यास को करता है शांत
ओक से ही चाहे
पीया-पिलाया जाए पानी
अंगिका काव्य में पावस वर्णन
Posted on 27 Mar, 2014 09:53 AM

‘तित्तर पांखे मेघ, विधवा करै सिंगार
इक बरसै, एक उड़रै कहि गेलै डाक गुबार।’

cloud
भारतीय चिंतन : पर्यावरणीय-चेतना का स्रोत
Posted on 23 Mar, 2014 11:58 AM जले विष्णुः थले विष्णुः पर्वत मस्तके।
ज्वाला माला कुले विष्णुः सर्वे विष्णुमयं जगत।।

जनकल्याणी गोमती की पुकार
Posted on 19 Mar, 2014 12:35 PM गोमती हूं, तीर्थ नैमिष धाम की पहचान हूं।
देव-ऋिषियों का सदा से कर रही गुणगान हूं।
ज्ञान-गौरव-भक्ति भावों से भरे मेरे किनारे।
तीर्थ-मठ-मंदिर-महाऋिषि धाम, गुरूद्वारा हमारे।
वृक्ष-वन पावन तपोमय भूमियां सम्पत्ति मेरी।
है सभी कुछ किंतु अब तो है अथाह विपत्ति मेरी।
एक मां के रूप में, मैंने सदा सबको दुलारा।
दी, सदा इस भूमि को शीतल सुधा सी नीरधारा।
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