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तपती दोपहरी में तीन ओर पहाड़ों से घिरे जंगल में हमारी आंखे नम हो गई हैं..... !
हम कभी पहाड़ तो कभी गौतम को देखते! बूंदों की हमसफर यात्रा का यह कथानक बूंदों से परे भी बहुत कुछ सुना रहा था। हमको लगता कि क्या हम बूंदों से भटक रहे हैं? लेकिन जब भी कभी पड़ाव मिलता तो बूंदों की महिमा हमारे सामने होती।
हे नन्हीं बूंदों!
जीवन के लिए
धरा पर कुछ देर थमो
जमीन की नसों में बहो
और धरती की सूनी कोख
पानी से भर दो.....!!
रूफ वाटर हारवेस्टिंग :