रूफ वाटर हारवेस्टिंग :
शहरी क्षेत्र एवं ग्रामीण क्षेत्र के रिहायशी इलाकों एवं उद्योगों की छतों पर एकत्रित होने वाला वर्षा जल बहकर व्यर्थ चला जाता है। यदि इस जल को संग्रहित कर नलकूप या अन्य जलस्रोत में सीधा पहुँचा दिया जाए तो निश्चित रूप से भूजल भंडारण में वृद्धि होगी। इस विधि में बारिश से पूर्व छत को अच्छी तरह से साफ किया जाता है, ताकि छत की गंदगी पानी के साथ नलकूप या अन्य स्रोत में पहुंचकर भूजल को प्रदूषित नहीं कर सके। नलकूप के समीप एक फिल्टर पिट बनाया जाता है। फिल्टर पिट एक पक्की संरचना है। इसमें विभिन्न आकारों के गोलपत्थर भर दिए जाते हैं। इस पिट के निचले हिस्से से एक पाइप को नलकूप से जोड़ दिया जाता है। पश्चात छत से आने वाले जल निकासी पाईप को फिल्टर पिट से जोड़ दिया जाता है। इस जल निकासी पाइप में एक ड्रेन वाल्व भी लगा होता है, जिसे खोलकर पहली दो बारिश का पानी नलकूप से बाहर खुले में छोड़ दिया जाता है। यह इसलिए किया जाता है ताकि छत पहली दो बारिश में साफ धुल जाए तथा गंदगी नलकूप में नहीं पहुंच सके। भूमि से ऊपर भी एक सीमेंट की टंकी में फिल्टर मीडिया डालकर उसका उपयोग किया जा सकता है। इसको ढँक सकते हैं, जिसे खोलकर गंदगी आदि साफ की जा सकती है। इसी प्रकार छत से आने वाले इस वर्षा जल को घर/उद्योग में स्थित खुले कुएँ में भी एकत्र किया जा सकता है। रिचार्ज किए जाने वाले नलकूप में ऊपर की ओर एक ‘यू’ आकार का पाइप लगा दिया जाता है, जो एयर वेंट का काम करता है।
फिल्टर पिट बनाते समय यह ध्यान रखना आवश्यक है कि फिल्टर पिट की तली नलकूप में जाने वाले पाइप की ओर थोड़ा ढलान लिए हुए हो ताकि तली में पानी जमा न हो सके। पानी के तली में जमा होने से वहाँ काई पैदा हो सकती है, जिससे नलकूप के पानी के प्रदूषित होने की संभावना हो जाती है। मकानों या उद्योगों के जिन हिस्सों में छत ढालू है, वहाँ एक सिरे से दूसरे सिरे तक लोहे की चद्दर की ‘यू’ आकार की नाली बनाकर बाँध दी जाती है। इसे जल निकासी पाईप से जोड़ दिया जाता है। छत पर गिरने वाले इन वर्षा जल को घर में बनी पानी की टंकी में छत से सधे एक पाइप के द्वारा इकट्ठा कर इसका उपयोग घर के काम में लिया जा सकता है।
सूखे नलकूपों को रिचार्जिंग नलकूपों में परिवर्तित करना :
ऐसे नलकूपों के चारों ओर 3 मीटर व्यास का 3 मीटर गहरा गड्ढा खोद दिया जाता है। इस गहराई में नलकूप केसिंग में दो हिस्सों में 100 से ज्यादा छिद्र किए जाते हैं। नीचे एवं ऊपर के छिद्रित हिस्से के बीच लगभग एक फुट में छिद्र नहीं किए जाते। पश्चात केसिंग के चारों ओर नारियल की रस्सी कसकर लपेट दी जाती है। बाद में गड्ढे को बोल्डर एवं रेती से भर दिया जाता है। इसी प्रकार सूखे एवं अनुपयोगी कुओं में भी वर्षा जल पहुँचाकर उन्हें रिचार्ज कुएँ में परिवर्तित कर भू-जल संवर्द्धन का कार्य किया जा सकता है।
भू-जल संवर्द्धन के लिए प्राकृतिक संरचनाओं का उपयोग
शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्र में नालों में वर्षा जल को बहकर निकल जाने से रोका जाएगा। ढलान वाली निचली सतह पर रिसन तालाब बनाकर भू-जल स्तर में वृद्धि की जा सकती है।
चालू कुओं की रिचार्जिंग :
ऐसे कुएँ, जिनमें जल स्तर कम हो गया है, उनके चारों ओर एक मीटर चौड़ाई की एवं काली मिट्टी को पार करते हुए मुर्रम में दो फुट गहराई तक एक खंती खोद दी जाती है। इसमें बोल्डर भर दिए जाते हैं। साथ ही कुएँ एवं खंती के बीच एक परकोलेशन पिट तथा जगह की उपलब्धता के अनुसार कुछ ऑगर बोर खोदकर उसमें बोल्डर व रेती भर दी जाती है। इस संरचना के निर्माण से व्यर्थ बहने वाला वर्षा जल खंती, परकोलेशन पिट व ऑगर बोर में संग्रहित होकर कुएँ के भू-जल स्तर में वृद्धि करेगा। यह तकनीक ट्यूबवेल रिचार्जिंग के लिए भी उपयोग में लाई जा सकती है।
सूखे एवं अनुपयोगी कुओं के समीप एक फिल्टर पिट बनाकर उसे पाईप के जरिए कुएँ में जोड़ दिया जाता है। वर्षा जल इस फिल्टर पिट से स्वच्छ होकर सीधे कुएँ में पहुँचकर उसके जल स्तर में वृद्धि करता है।
खनिज खदानों द्वारा रिचार्जिंग :
ऐसी कई खनिज खदानें हैं, जो अनुपयोगी या शिथिल पड़ी हुई हैं। इन खदानों में लगातार उत्खन्न से प्राकृतिक रूप से जलग्रहण क्षेत्र निर्मित हो गया है। साथ ही साथ इन जलग्रहण क्षेत्रों की तली में वेदर्ड वेसिकुलर बेसाल्ट (एक प्रकार की चट्टानी संरचना) होने से इन क्षेत्रों में सामान्य संरचनाओं का निर्माण कर इन्हें रिजार्जिंग क्षेत्र के रूप में परिवर्तित किया जा सकता है।
ऐसे स्थानों पर मिट्टी के बाँध (अर्दन बंदिश) तथा अतिरिक्त जल निकास द्वार निर्मित कर तली में फ्रेक्चर्ड बेसाल्ट की गहराई तक रिचार्ज नलकूप का खनन किया जाएगा। इससे उथले भू-जलभृत एवं गहरे भू-जलभृत को रिचार्ज किया जाएगा।
भूमि के कटाव की रोकथाम तथा पहाड़ी पर से बहने वाले पानी को जमीन के अंदर रिसन के माध्यम से पहुँचाने के अलावा खोदी गई मिट्टी पर पौधे तथा घास लगाई जा सकती है। वर्षा का जो पानी व्यर्थ में बह जाता है, उसको इस संरचना के माध्यम से जमीन के अंदर उतारकर आसपास के कुएँ तथा नलकूपों का जल स्तर बढ़ाया जा सकता है।
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