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दिनांकः
दिनांकः 9 जुलाई 2016
सेवा में,
सेवा में,
ग्लेशियर पिघले। नदियाँ सिकुड़ी। आब के कटोरे सूखे। भूजल स्तर तल, वितल, सुतल से नीचे गिरकर पाताल तक पहुँच गया। मानसून बरसेगा ही बरसेगा; अब यह गारंटी भी मौसम के हाथ से निकल गई है।
इस बार अधिक वर्षा की सम्भावना बताई गई है; बावजूद इसके हमारे कई इलाके मानसून की पारम्परिक तिथि निकल जाने के बाद भी सूने पड़े आकाश की ओर निहार रहे हैं। हम क्या करें? वैश्विक तापमान वृद्धि को कोसें या सोचें कि दोष हमारे स्थानीय विचार-व्यवहार का भी है ? दृष्टि साफ करने के लिये यह पड़ताल भी जरूरी है कि पानी, हमसे दूर हुआ या फिर पानी से दूरी बनाने के हम खुद दोषी हैं?