उत्तराखंड

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उत्तराखण्ड में वनाग्नि के कारण
Posted on 16 Jun, 2017 11:43 AM
गत वर्ष के उत्तराखण्ड के वन फरवरी माह से जुलाई प्रथम सप्ताह तक जलते रहे हैं, और बढ़ा वन क्षेत्र खतरे की जद में आया है। तेजी से फैली जंगल की आग ने आपदा का रूप धारण करके 9 लोगों के जीवन को लील लिया जो अक्सर मानवीय हस्तक्षेप से अधिक फैलती और आग का पैमाना कम नहीं हो पाता है। इस वर्ष उत्तराखण्ड में वनाग्नि की भयावहता ने खतरनाक स्तर छुआ और वनस्पति, जीवों को नुकसान पहुँचाया व मानव जीवन भी खतरे में प
समस्त जीवों के अस्तित्व के लिये प्रकृति का स्वस्थ होना आवश्यक
Posted on 23 May, 2017 05:06 PM
मनुष्य तो प्रकृति के सम्मुख स्वयं ही क्षुद्र है, वह प्रकृति को क्या न्याय देगा! पर प्रतीक रूप में ऐसा करके यह प्रयास उत्तराखंड उच्च न्यायालय और मध्यप्रदेश सरकार ने अवश्य किया है। संदेश यह है कि यदि प्रकृति और नदियों के अधिकारों का उल्लंघन किया आया तब उल्लंघन करने वालों के साथ न्याय-प्रणाली निपटेगी।उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने गत 20 और 30 मार्च को दो ऐतिहासिक निर्णय सुनाए। ये दोनों निर्णय भारत के विधि इतिहास में मील के पत्थर हैं। ऐसे विधिक निर्णय विश्व के विभिन्न राष्ट्रों में पहले से हैं पर भारत में ऐसे निर्णय पहली बार किसी न्यायालय ने दिए हैं। ये निर्णय हैं – गंगा-यमुना और उनकी सहायक नदियों तथा पारिस्थितिक तंत्र को विधिक अधिकार प्रदान किया जाना और साथ ही वे समस्त न्यायालयी अधिकार जो मनुष्य को प्राप्त हैं। न्यायालय के इन निर्णयों के अनुसार अब यदि इन नदियों अथवा पारिस्थितिक तंत्र को किसी ने हानि पहुँचाई तो उसके विरुद्ध नदियों, पारिस्थितिकतंत्र अर्थात प्रकृति की ओर से न्यायालय में केस किया जा सकेगा। दूसरे शब्दों में, इन निर्णयों में प्रकृति को अस्तित्ववान माना गया है जिसे मनुष्य की भाँति पूरे वैधानिक अधिकार दिए गए हैं।

तीन मई को मध्य प्रदेश सरकार ने भी वही अधिकार नर्मदा नदी को दिए जो मार्च माह में उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने गंगा और यमुना इत्यादि नदियों तथा पारिस्थितिक तंत्र को लेकर दिए थे। केन्द्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह इस आशय का सुझाव मध्य प्रदेश सरकार को देकर आये थे। संभव है कि उत्तराखंड उच्च न्यायालय के निर्णयों के पश्चात उनके मन में यह विचार आया हो!

क्या अब बच पायेंगे प्राकृतिक संसाधन
Posted on 20 May, 2017 11:39 AM
नैनीताल हाईकोर्ट ने अपने फैसले में गंगोत्री और यमुनोत्री ग्ले
खनिज भी नीति भी, फिर भी सवाल
Posted on 16 May, 2017 04:44 PM
राज्य में लगभग 95 कराेड़ टन चूना पत्थर, 20 कराेड़ टन डाेलाेमाइट, 18 कराेड़ टन मैग्नेसाइट आैैर बीस लाख टन फास्फाेरस के भण्डार हैं। देहरादून, नैनीताल आैर टिहरी में संगमरमर भी है। कुछ जगहाें पर मैग्नेसाइट का भण्डार भी है।

आस्था, आपदा और पर्यटन
Posted on 16 May, 2017 04:36 PM
हिमालय की गोद में बसे उत्तराखंड में पर्यटन-तीर्थाटन की अपार संभावनाएं हैं, लेकिन आज भी यहां आने वालों की बड़ा हिस्सा चार धाम यात्रा और कुम्भ क्षेत्र हरिद्वार तक ही सीमित है। जरूरत ठोस कार्ययोजना बनाकर काम करने की है।
आपदा प्रबंधन एवं पुनर्वास
Posted on 16 May, 2017 01:39 PM
जून, 2013 में आई प्राकृतिक आपदा में केदारनाथ धाम सहित राज्य के अनेक हिस्से में भारी तबाही मचाई थी। पुनर्वास और पुनर्निर्माण के ज़रिये राज्य इस आपदा से उबरने की कोशिश कर रहा है।
गाँवों को क्या चाहिए
Posted on 16 May, 2017 11:46 AM
‘आज दो, अभी दो, उत्तराखंड राज्य दो’ का नारा हर गाँव में गूँज रहा था। मगर देढ़ दशक बाद राज्य के गाँव बदहाली की कहानी कह रहे हैं। यह तस्वीर आखिर कैसे बदलेगी?
आपदा के आगे असहाय
Posted on 16 May, 2017 11:04 AM
सौ-सवा-सौ वर्षों के इतिहास को देखें तो उत्तराखंड को प्राकृतिक आपदाओं से जूझना पड़ा है। प्रकृति को छेड़ने और विकास के लिए उसके अति दोहन की प्रवृत्ति ने उत्तराखंड के जनजीवन को प्रभावित किया है। पलायन और गावों से लोगों के निकलने की एक बड़ी वजह आर्थिक दिक्कतों के साथ-साथ प्रकृति का प्रकोप भी रहा है।
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