खनिज भी नीति भी, फिर भी सवाल


राज्य में लगभग 95 कराेड़ टन चूना पत्थर, 20 कराेड़ टन डाेलाेमाइट, 18 कराेड़ टन मैग्नेसाइट आैैर बीस लाख टन फास्फाेरस के भण्डार हैं। देहरादून, नैनीताल आैर टिहरी में संगमरमर भी है। कुछ जगहाें पर मैग्नेसाइट का भण्डार भी है।


राज्य की स्थापना के बाद खनिज और उपखनिज संपदा के लिये एक स्पष्ट व्यावहारिक नीति बनाने के अपेक्षा हुई। 2001 में राज्य में पहली खनिज नीति को सामने लाया गया। इसके तहत वन स्थित खदानों में खनन कार्य उत्तरांचल वन विकास निगम और अन्य राजस्व क्षेत्र में खनन कार्य गढ़वाल मंडल विकास निगम और कुमाऊं मंडल विकास निगम के जरिए किए जाने का घोषणा का गई।उत्तराखंड खनिज की दृष्टि से एकदम संपन्न राज्य ताे नहीं है, लेकिन मध्यम श्रेणी के राज्य में यह जरूर आता है। फिर भी कहा जा सकता है कि यहाँ प्रचुर मात्रा में खनिज भण्डार हैं। खनिज संपदा काे कृषि के साथ द्वितीयक क्षेत्र में रखा गया है। 2004-05 में घरेलू क्षेत्र में द्वितीय क्षेत्र का याेगदान 24 फीसदी था। लघु हिमालय आैर शिलालिक क्षेत्र के पर्वताें, नदी घाटियाें आैर दूनाें में खनिज आैर उपखनिज पाये जाते है। राज्य में चूना, पत्थर, खड़िया, फास्फाेरस, सेलखड़ी, गंधक पटाल, सीसा, जिप्सम आदि खनिज पाए जाते हैं। नैनीताल, पाैड़ी, टिहरी, अल्माेड़ा में कुछेक मात्रा में लाैह के निक्षेप मिलते हैं। चमाेली में टिन ताे चमाेली सहित अल्माेड़ा, पाैड़ी, टिहरी, देहरादून में तांबा मिलता है।

अलकनंदा आैर पिंडर की बालू में साेना आैर अल्माेड़ा जिले में चांदी हाेने की बात कही जाती है। राज्य में खनिजाें की खाेज सर्वेक्षण आैर इससे जुड़े कार्य के लिये भूतत्व एवं खनिज कर्म निदेशालय का गठन किया गया। राज्य में 2001 में पहली खनिज नीति बनी। खनिज दाेहन आैर अवैध खनन काे लेकर भी जब-तब सवाल उठते रहे। समय-समय पर खनिज नीति में संशाेधन हाेते रहे। हाल में कांग्रेेस सरकार ने राज्य के लिये नई खनिज नीति की घाेषणा की। सरकार ने इसके पीछे यही संकेत दिए हैं कि अवैध खनन पर अकुंश लगाने के लिये नई नीति लाई गई है। इसमें सरकार ने जहाँ खनन क्षेत्र को तीन जोन में बांटा है, वही भंडारण नीति में भी बदलाव किया गया है।

राज्य की खनिज संपदा में चूना पत्थर के पर्याप्त भंडार हैं। देहरादून के कालसी क्षेत्र में उत्तम किस्म के चूना पत्थर का भंडार है। इसी तरह टिहरी, पौड़ी की अलकनंदा घाटी, पिंडर का क्षेत्र चूना पत्थर के लिये जाना जाता है। चमोली और रुद्रप्रयाग में भी उत्तम कोटि का चूना पत्थर और डोलोमाइट पाया जाता है। खासकर मंदराम क्षेत्र, बारकोट और पीपलकोटी उत्तम कोटि के चूने पत्थर के लिये जाना जाता है। राज्य के पर्वतीय इलाकों और वनो में रोड़ा, बजरी पत्थर जैसे वन खनिज भी पाए जाते हैं। उत्तरखंड विकास विभाग के स्रोत के मुताबिक राज्य में लगभग 95 करोड़ टन चूना पत्थर, 20 करोड़ टन डोलोमाइट, 18 करोड़ टन मैग्नेसाइट आैैर बीस लाख टन फास्फाेरस के भण्डार हैं। देहरादून, नैनीताल आैर टिहरी में संगमरमर भी है। कुमाऊं के बागेश्वर, पिथौरागढ़ और अल्मोड़ा तथा गढ़वाल के चमोली में मैग्नेसाइट का भंडार हैं। यह खनिज लौह इस्पात की भट्टियों में ताप सहने वाली ईंटों के रूप में प्रयु्क्त होता है।

अल्मोड़ा, चमोली, पिथौरागढ़ के कुछ क्षेत्रों में टाल्क भी पाया जाता है। राज्य में खड़िया भी उपलब्ध है। देहरादून, टिहरी, पौड़ी और नैनीताल में इसके स्रोत हैं। मसूरी के समीप पाए जाने वाले खड़िया में कैल्शियम सल्फेट की काफी मात्रा है। राज्य में गंधक के स्रोत भी हैं। चमोली गोहानाताल के पास के चूने में, बद्रीनाथ के तप्तकुण्ड और तपोवन में यह पाया गया है। देहरादून के पास सहस्रधारा के जल में भी गंधक है। राज्य में अल्मोड़ा, चमोली और नैनीताल में तांबा के भंडार हैं। पौड़ी के करीब धनपुरडोबरी का एक बड़ा क्षेत्र तांबा उत्पादक क्षेत्र के तौर पर जाना गया है। इसी तरह उत्तराखंड की धरती में सीसा, जिप्सम, ग्रेफाइट भी पाया जाता है। यहाँ तक कि टिहरी में यूरेनियम होने की बात कही जा रही है।

नैनीताल के कालाढुंगी और रामगढ़ में लोहा मिलता है। सुरमा, आर्सेनिक, लिग्नाइट या भूरा संगमरमर, अभ्रक और चांदी जैसे खनिज का राज्य की अर्थव्यवस्था में खासा योगदान है। बिल्डिंग स्टोन का आमतौर पर घरों की छत, सड़क और नहरों को बनाने में इस्तेमाल किया जाता है।

खनिज नीति


राज्य की स्थापना के बाद खनिज और उपखनिज संपदा के लिये एक स्पष्ट व्यावहारिक नीति बनाने के अपेक्षा हुई। 2001 में राज्य में पहली खनिज नीति को सामने लाया गया। इसके तहत वन स्थित खदानों में खनन कार्य उत्तरांचल वन विकास निगम और अन्य राजस्व क्षेत्र में खनन कार्य गढ़वाल मंडल विकास निगम और कुमाऊं मंडल विकास निगम के जरिए किए जाने का घोषणा का गई। इस नीति के तहत खनिज निधि को स्थापित किया जाना था। इसके तहत राजस्व का पांच प्रतिशत मुख्य खनिजों और उपखनिजों का प्रावधान था। खनिज संपदा का राज्य के विकास उत्थान में खासा योगदान हो सकता है। लेकिन अवैध खनन पर अंकुश लगाने और अनुचित कारोबार को रोकने के लिये समय-समय पर आवाज उठती रही है। खासकर नदी के किनारे अवैध खनन पर तो राज्य में कई जगहों पर धरना प्रदर्शन भी होते रहे हैं। राज्य बनने के बाद भी अवैध खनन होता रहा है।

राज्य में भाजपा की सरकार 2011 में नई नीति लेकर आई। सरकार ने इस नीति को सामने लाते हुए कहा कि यह वन विकास निगम को उसकी क्षमता के अनुरूप ही निश्चित क्षेत्रफल में खनन का जिम्मा सौंपने को तैयार है। सरकार ने तब अवैध खनन पर अंकुश लगाने के लिये एंटी माइनिंग सेल को प्रभावशाली बनाने के लिये कुछ कदम उठाने के संकेत दिए।

नई नीति में साफ कहा गया कि नदियों में अवैध खनन को रोकने के लिये प्रभावी ढंग से चेकिंग की व्यवस्था होगी। साथ ही धर्म कांटा टोल में भी नई तकनीक लाने का आश्वासन था। राज्य सरकार की खनन नीति को उच्च न्यायालय ने एक फैसले के आधार पर निरस्त किया। बाजपुर निवासी रंजीत सिंह ने मामला दायर करते हुए आरोप लगाया था कि केंद्र सरकार के आदेशानुसार दाबुका नदी में केवल वन विकास निगम ही खनन का कार्य कर सकता है। जबकि वन विकास निगम ने तीसरी पार्टी को यह काम सौंपा। यह वन अधिनियम 1980 के तहत सीधा उल्लंघन है। दाबुका नदी का खनन कार्य तीसरे पक्ष को देने पर यह आपत्ति थी। उच्च न्यायालय द्वारा खनन नीति को निरस्त कर देने के बाद राज्य सरकार के लिये नए सिरे से मंथन करने की जरूरत थी।

कांग्रेस सरकार ने खनन नीति के सभी पक्षों पर सोच विचार करने के बाद इसी वर्ष 2015 में नई नीति लेकर आई है। इस बीच राज्य में अवैध खनन पर काफी जुलूस-प्रदर्शन होते रहे हैं। अलग-अलग कोनों से सवाल उठते रहे हैं। आखिरकार सरकार की नई खनन नीति में संशोधन को कैबिनेट से मंजूरी मिली है। जिससे अवैध खनन पर अंकुश लगने की उम्मीद है। संशोधित खनन नीति में प्रदेश को तीन जोन में बांटा गया है -

जोन ए में स्टोन क्रेशर लगाने में दो लाख,
जोन बी में चार लाख और
सी में 10 लाख रुपये शुल्क तय किया गया।

इसमें पर्वतीय और मैदानी इलाकों के स्वरूप का ध्यान रखा गया है। इसके अलावा भंडारण नीति में बदलाव में दो खास व्याख्या की गई है। इसमेें भंडारण की अनुमति पहले डीएम से ही मिल जाया करती थी। अब शासन से इसकी अनुमति लेनी होगी। इसके अलावा जिसके पास खनन का पट्टा होगा, उसे ही स्टोन क्रेशर की अनुमति मिलेगी। साथ ही रिवर बैंक मैटेरियल को लेकर भी बदलाव किया गया। इसके तहत अब घनमीटर की जगह टन में वजन मापा जाएगा। सरकार ने संकेत दिया कि खड़िया को लेकर नीति बन सकती है।

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