उत्तर प्रदेश

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अमृत-जल बांटता एक चिकित्सक
Posted on 09 Feb, 2011 03:24 PM

 

इस वक्त हम है उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जनपद में। ये इलाका जिसे पंडित नेहरु ने भारत का स्विट्जरलेंड कहा था, विकास कि अंधी दौड़ में विश्व के सर्वाधिक प्रदूषित और अभावग्रस्त क्षेत्रों में शामिल हो गया है। आदिवासी बहुल इस जनपद में प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुन्ध दोहन से जिस चीज पर सर्वाधिक असर पड़ा वो था जल। जल के अभाव ने यहां के आदिवासी गिरिजनों को अकाल मौत के मुहाने पर ला खड़ा किया। इस बीच लगभग दो दशक पहले उम्मीद की एक किरण नजर आई वो उम्मीद थी डाक्टर रमेश कुमार गुप्ता के रूप में। एक प्रख्यात चिकित्सक और एक पर्यावरणविद् जिसने जलदान की अभिनव परम्परा शुरू कर जल संकट से त्राहि - त्राहि कर आदिवासी-गिरिजनों के जीवन को बदल कर रख दिया। डाक्टर गुप्ता द्वारा बनायी गयी बंधियां आज यहां के आदिवासियों के लिए अमृत कलश है। डॉ आर के गुप्ता से बात की आवेश तिवारी ने।

आवेश तिवारी -डाक्टर साहब ये बतायें सोनभद्र के आदिवासी क्षेत्रों में बंधियां बनाने की योजना आपके मन में कैसे आई ?
डॉ गुप्ता -हम शुरू में एक आश्रम में जाते थे ये मिर्चाधुरी स्टेशन से करीब दो किलोमीटर दूर गुलालीडीह गांव

water efforts
नहर का पानी खा गया खेती
Posted on 06 Feb, 2011 10:53 AM अपनी फूस की झोंपड़ी में गरमी से परेशान छोटेलाल बात की शुरुआत आसान हो गई खेती के जिक्र से करते हैं. वे कहते हैं, ‘पानी की अब कोई कमी नहीं रही. नहर से पानी मिल जाता है तो धान के लिए पानी की दिक्कत नहीं रहती.’

पास बैठे रामसरूप यादव मानो एक जरूरी बात जोड़ते हैं, ‘अब बाढ़ का खतरा कम हो गया है.’
राजरानी इलाके में खर-पतवार के खत्म होने का श्रेय नहर को देती हैं.
शारदा सहायक नहर
नोएडा के क्षेत्रों में बढ़ेगा पेयजल का संकट
Posted on 02 Feb, 2011 02:58 PM नोएडा ग्रेटर नोएडा समेत पूरे एनसीआर क्षेत्र में आने वाले समय में लोगों को पीने के पानी के लिए तरसना पड़ सकता है। वैसे नोएडा में तो पहले ही पेय जल की कमी है। पीने के लिए जो पानी गंगा से मंगाया जा रहा है। उसकी मात्रा भी कम है। नोएडा का पानी कठोर और खारा है। इसके लिए नई तकनीकी को अपनाना होगा। तभी पानी की समस्या से निपटा जा सकता है। यह बात फोंटस वाटर के सीओओ सुब्रमण्यम एच ने एक सर्वे के बाद कही। वे नो
गुरु दक्षिणा में लेते हैं पानी बचाने का संकल्प
Posted on 18 Jan, 2011 05:14 PM उम्र के जिस पड़ाव पर आदमी दुनियादारी और अपनी तथा अपने परिवार की भौतिक प्रगति के अलावा कुछ सोच नहीं पाता, उसमें भी उन्हें जल संरक्षण की चिंता है। न किसी की मदद न संरक्षण। उनकी पहचान है उनका दृढ़ निश्चय और उनके मददगार हैं बेटा शिवांग, बेटी दीक्षा और धर्मपत्नी मिथिलेश। इस शख्स का नाम है नंद किशोर वर्मा। राजधानी में पेशे से शिक्षक हैं। उम्र करीब 42 वर्ष। खास है कि वर्माजी की पाठशाला में बच्चों को किताब
नदी कटान से त्रस्त गांव
Posted on 06 Jan, 2011 11:37 AM


आपने कभी किसी व्यक्ति को अपने आवास की नींव को स्वयं उजाड़ते देखा है?
यह दर्दनाक दृश्य पूर्वी उत्तर प्रदेश के बहराईच जिले के उन गांवों में बेहद आम हो चुका है जहां नदी का कटान तेजी से हो रहा है। जिस परिवार का आवास कटान की चपेट में आ रहा होता है वह स्वयं मजबूरी में अपने आवास को तोड़ता है ताकि कम से कम इंट-पत्थर ले जाकर कहीं स्थाई आवास बना सके।

प्रकृति, पर्यावरण और स्वास्थ्य का संरक्षक कदंब
Posted on 29 Dec, 2010 11:32 AM
कदंब भारतीय उपमहाद्वीप में उगने वाला शोभाकर वृक्ष है। सुगंधित फूलों से युक्त बारहों महीने हरे, तेज़ी से बढ़नेवाले इस विशाल वृक्ष की छाया शीतल होती है। इसका वानस्पतिक नाम एन्थोसिफेलस कदम्ब या एन्थोसिफेलस इंडिकस है, जो रूबिएसी परिवार का सदस्य है। उत्तरप्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, बंगाल, उड़ीसा में यह बहुतायत में होता है। इसके पेड़ की अधिकतम ऊँचाई ४५ मीटर तक हो सकती है। पत्तियों की लं
उत्तराखंडः प्रकृति नहीं विकास को कोसें
Posted on 15 Oct, 2010 03:43 PM अनियंत्रित और मैदानी प्रकृति का विकास उत्तराखंड जैसे पहाड़ी इलाकों के लिए विनाशकारी सिद्ध हो रहा है। हमें यह भी याद रखना चाहिए कि पड़ोस में लगी आग यदि हम नहीं बुझाएगें तो हमारा घर भी जल कर भस्म हो जाएगा। पूरा उत्तरी भारत इस बार उत्तराखंड की बाढ़ की भयावहता का विस्तार बन कर रह गया। इस विभीषिका का पुनरावृति रोकने के लिए आवश्यक भी है कि पहाड़ों को नैसर्गिक रूप से बचे रहने दिया जाए।-का.सं.सितम्बर के तीसरे सप्ताह की अखण्ड बारिश ने पूरे उत्तराखण्ड को तहस-नहस करके रख दिया था। अनुमान है कि इस दौरान दो सौ लोग तथा एकाध हजार पशु मारे गए। एक हजार मकान और फसल से भरे खेत भी नष्ट हो गए थे और अनेक सड़कें भी बह गई। वर्ष 1956, 1970 एवं 1978 में भी इस प्रकार की बारिश हुई थी। लेकिन तब इस प्रकार की तबाही नहीं हुई थी। मेरे बचपन में जहां गोपेश्वर गांव की आबादी 500 थी वह आज 15000 हो गई है। नए फैले हुए गोपेश्वर में बरसात के दिनों में टूट-फूट एवं जल-भराव की घटना कभी कभार होती रहती हैं लेकिन जो पुराना गांव है उसमें अभी तक इस प्रकार की गड़बड़ी नहीं के बराबर है। गोपेश्वर मन्दिर के नजदीक भूमिगत नाली पानी के निकास के लिए बनी थी जिसमें जलभराव की नौबत ही नहीं आती थी।

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