नोएडा ग्रेटर नोएडा समेत पूरे एनसीआर क्षेत्र में आने वाले समय में लोगों को पीने के पानी के लिए तरसना पड़ सकता है। वैसे नोएडा में तो पहले ही पेय जल की कमी है। पीने के लिए जो पानी गंगा से मंगाया जा रहा है। उसकी मात्रा भी कम है। नोएडा का पानी कठोर और खारा है। इसके लिए नई तकनीकी को अपनाना होगा। तभी पानी की समस्या से निपटा जा सकता है। यह बात फोंटस वाटर के सीओओ सुब्रमण्यम एच ने एक सर्वे के बाद कही। वे नोएडा में प्रेस कांफ्रेंस को संबोधित कर रहे थे। इस मौके पर अर्थ वाटर समूह के भाग फोंटस ने दिल्ली और एनसीआर क्षेत्र में पानी का उपयोग न्यूनतम करने और इसके संरक्षण से संबंधित समाधान कारोबारी रणनीति की घोषणा की।
उन्होंने बताया कि भारत में दोबारा पानी के उपयोग किए जाने वाले ताजे पानी की प्रति व्यक्ति उपलब्धता 1955 में 5277 घन मीटर से घटकर 1990 में 2464 घन मीटर रह गई है। 2025 तक बढ़ती आबादी के कारण इसकी उपलब्धता घट कर एक हजार घन मीटर रह जाने की संभावना है। आज नोएडा और ग्रेटर नोएडा का विस्तार औद्योगिक विकास और आवासीय ग्लोवल शहर के रूप में हो रहा है। जिस तरह यहां आवासीय योजनाएं अमल में लाई जा रही है, उससे आने वाले समय में पानी की मांग बढ़ेगी।
उन्होंने नोएडा क्षेत्र में उपलब्ध पानी को खारा बताते हुए कहा कि यह पानी पीने के योग्य नहीं है। नोएडा की मिट्टी में दो तरह के खनिज पाए जाते हैं, जो मैग्नेशियम और कैल्शियम कहलाए जाते हैं। ये दोनों खनिज पानी में घुल जाते हैं जिससे पानी खारा और कठोर हो जाता है, जो पीने योग्य नहीं होता है। इसकी खास वजह बढ़ता प्रदूषण है। भूमिगत जलस्तर औद्योगिक क्षेत्र में सतह से नीचे चला गया है। मौजूदा समय में नोएडा में 48 एमएलडी गंगाजल है, जबकि यहां के लोगों को 84 एमएलडी गंगाजल की जरूरत है।
सुब्रमण्यम ने बताया कि फोंटस वाटर कंपनी ने पानी के शुद्धिकरण के लिए कई काम किए हैं। यह कंपनी देश भर में आरओ और डिसइंफेक्शन सिस्टम की आपूर्ति करती है। नोएडा और ग्रेटर नोएडा में भी जल के शुद्धीकरण के लिए काम कर रही है। नोएडा का रैडिसन होटल, आकृति होटल, हालैंड टैक्टर, इंस्टीटयूट और ज्यादातर बिल्डरों की आवासीय सेक्टरों में काम कर रही है। यह समूह महिला और लोगों को भी प्रशिक्षण देता है। इस कंपनी का मौजूदा समय में सौ करोड़ का कारोबार है, जो अगले साल तक पांच सौ करोड़ का कारोबार पार करने की उम्मीद है।
उन्होंने बताया कि भारत में दोबारा पानी के उपयोग किए जाने वाले ताजे पानी की प्रति व्यक्ति उपलब्धता 1955 में 5277 घन मीटर से घटकर 1990 में 2464 घन मीटर रह गई है। 2025 तक बढ़ती आबादी के कारण इसकी उपलब्धता घट कर एक हजार घन मीटर रह जाने की संभावना है। आज नोएडा और ग्रेटर नोएडा का विस्तार औद्योगिक विकास और आवासीय ग्लोवल शहर के रूप में हो रहा है। जिस तरह यहां आवासीय योजनाएं अमल में लाई जा रही है, उससे आने वाले समय में पानी की मांग बढ़ेगी।
उन्होंने नोएडा क्षेत्र में उपलब्ध पानी को खारा बताते हुए कहा कि यह पानी पीने के योग्य नहीं है। नोएडा की मिट्टी में दो तरह के खनिज पाए जाते हैं, जो मैग्नेशियम और कैल्शियम कहलाए जाते हैं। ये दोनों खनिज पानी में घुल जाते हैं जिससे पानी खारा और कठोर हो जाता है, जो पीने योग्य नहीं होता है। इसकी खास वजह बढ़ता प्रदूषण है। भूमिगत जलस्तर औद्योगिक क्षेत्र में सतह से नीचे चला गया है। मौजूदा समय में नोएडा में 48 एमएलडी गंगाजल है, जबकि यहां के लोगों को 84 एमएलडी गंगाजल की जरूरत है।
सुब्रमण्यम ने बताया कि फोंटस वाटर कंपनी ने पानी के शुद्धिकरण के लिए कई काम किए हैं। यह कंपनी देश भर में आरओ और डिसइंफेक्शन सिस्टम की आपूर्ति करती है। नोएडा और ग्रेटर नोएडा में भी जल के शुद्धीकरण के लिए काम कर रही है। नोएडा का रैडिसन होटल, आकृति होटल, हालैंड टैक्टर, इंस्टीटयूट और ज्यादातर बिल्डरों की आवासीय सेक्टरों में काम कर रही है। यह समूह महिला और लोगों को भी प्रशिक्षण देता है। इस कंपनी का मौजूदा समय में सौ करोड़ का कारोबार है, जो अगले साल तक पांच सौ करोड़ का कारोबार पार करने की उम्मीद है।
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