उम्र के जिस पड़ाव पर आदमी दुनियादारी और अपनी तथा अपने परिवार की भौतिक प्रगति के अलावा कुछ सोच नहीं पाता, उसमें भी उन्हें जल संरक्षण की चिंता है। न किसी की मदद न संरक्षण। उनकी पहचान है उनका दृढ़ निश्चय और उनके मददगार हैं बेटा शिवांग, बेटी दीक्षा और धर्मपत्नी मिथिलेश। इस शख्स का नाम है नंद किशोर वर्मा। राजधानी में पेशे से शिक्षक हैं। उम्र करीब 42 वर्ष। खास है कि वर्माजी की पाठशाला में बच्चों को किताबी पढ़ाई शुरू करने से पहले यह शपथ लेनी होती है 'मैं स्वयं अपने आपसे वादा करता हूं कि जल की बरबादी न स्वयं करेंगे न ही किसी अन्य को करने देंगे।' वर्मा जी के शब्दों में मेरे छात्रों का यही संकल्प मेरी गुरु दक्षिणा है।
पर्यावरणविद् सुन्दरलाल बहुगुणा की सादगी को आदर्श मानने वाले वर्मा जी बताते हैं कि उत्तराखंड प्रशासनिक अकादमी के प्रशिक्षण कार्यक्रम के दौरान कुछ प्रश्नों का सामना करना पड़ा। मसलन गंगा यमुना, सई, कल्याणी आदि नदियां अंतिम सांसों की कगार पर हैं। ये सूख गईं तो क्या होगा? जैसे कुछ सवालों का जवाब किसी के पास नहीं था। प्रशिक्षण में शामिल होने देश के कई राज्यों से आये लोगों ने अल्मोड़ा जिले के ताड़ीखेत स्थित गांधी कुटी में शपथ ली की वे कम से कम पांच परिवारों को पानी बचाने के लिए जागरूक अंवश्य करेंगे। पांच परिवारों को पानी बचाने को जागरुक करने का यह संकल्प अब तक 103 परिवारों तक पहुंच गया है। यही नहीं कई स्कूलों के छात्र भी वर्मा जी के इस आंदोलन में उनके सहयोगी बन चुके हैं। वर्मा जी की प्रेरणा से ही गोमतीनगर में अपना मकान बनवा रहे प्रदीप कुमार चौधरी ने अपने निर्माणाधीन मकान में रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगवाना तय किया। अब खुद चौधरी जी अपने परिचितों और आसपड़ोस वालों को पानी बचाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं।
क्या है जागरूक करने का तरीका : स्कूलों में असेम्बली के दौरान बच्चों को बताना कि बोतल का पानी या तो पूरा पी जाओ या फिर गमलों में डाल दो। बड़ों को हस्ताक्षर अभियान के जरिए शपथ दिलाना, त्योहारों या अन्य विशेष अवसरों पर मोबाइल फोन से भेजे संदेश के जरिए संकल्प के लिए प्रेरित करना। स्कूलों में कार्यशाला का आयोजन। अभी तक लखनऊ व आसपास के जिलों के स्कूलों में वर्मा जी कार्यशाला का आयोजन कर चुके हैं। इस पूरे आयोजन में उनके सहयोगी होते हैं उनके बच्चे और धर्मपत्नी।
वर्मा जी की सुबह नित नये संपर्क तलाशने के साथ शुरू होती है। इस बीच स्कूल भी पहुंचना होता है। वर्मा जी बताते हैं कि सामान्य दिनों में एक परिचित वह किसी का भी जानने वाला हो सकता है, को मैं मोबाइल संदेश अवश्य भेजता हूं और यह निवेदन करता हूं कि अन्य को भेजें।
नंद किशोर वर्मा की माने तो जल संरक्षण बहुत आसान है। जिस तरह हम हर माह घर का बजट बनाते हैं उसी तरह पानी का भी बजट बना लें। इसमें तय करें कि पीने, खाना पकाने, कपड़ा धोने, स्नान करने, मंजन, शेविंग, शौच, बर्तन धोने, समय-समय पर हाथ धोने, वाहन धोने, भवन निर्माण आदि पर आप महीने में कितना पानी खर्च करेंगे। परिवार के सदस्यों के हिसाब से इसे तय करें। वर्मा जी मानते हैं कि यह व्यावहारिक नहीं लगेगा, लेकिन पानी बचाना है तो ऐसा करना होगा। इसके अलावा खुद से करें सवाल कि यह जल व प्राकृतिक संसाधन किसका और किसके लिए है? आपके बाद यह किसके होंगे? जहां आप रह रहे हैं वहां भूमि का जल स्तर 10 वर्ष बाद कहां पहुंच जाएगा? आपके आसपास के सभी जल स्रोत यदि अचानक बंद हो जाएं तो आपके विकल्प क्या होंगे?
पर्यावरणविद् सुन्दरलाल बहुगुणा की सादगी को आदर्श मानने वाले वर्मा जी बताते हैं कि उत्तराखंड प्रशासनिक अकादमी के प्रशिक्षण कार्यक्रम के दौरान कुछ प्रश्नों का सामना करना पड़ा। मसलन गंगा यमुना, सई, कल्याणी आदि नदियां अंतिम सांसों की कगार पर हैं। ये सूख गईं तो क्या होगा? जैसे कुछ सवालों का जवाब किसी के पास नहीं था। प्रशिक्षण में शामिल होने देश के कई राज्यों से आये लोगों ने अल्मोड़ा जिले के ताड़ीखेत स्थित गांधी कुटी में शपथ ली की वे कम से कम पांच परिवारों को पानी बचाने के लिए जागरूक अंवश्य करेंगे। पांच परिवारों को पानी बचाने को जागरुक करने का यह संकल्प अब तक 103 परिवारों तक पहुंच गया है। यही नहीं कई स्कूलों के छात्र भी वर्मा जी के इस आंदोलन में उनके सहयोगी बन चुके हैं। वर्मा जी की प्रेरणा से ही गोमतीनगर में अपना मकान बनवा रहे प्रदीप कुमार चौधरी ने अपने निर्माणाधीन मकान में रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगवाना तय किया। अब खुद चौधरी जी अपने परिचितों और आसपड़ोस वालों को पानी बचाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं।
क्या है जागरूक करने का तरीका : स्कूलों में असेम्बली के दौरान बच्चों को बताना कि बोतल का पानी या तो पूरा पी जाओ या फिर गमलों में डाल दो। बड़ों को हस्ताक्षर अभियान के जरिए शपथ दिलाना, त्योहारों या अन्य विशेष अवसरों पर मोबाइल फोन से भेजे संदेश के जरिए संकल्प के लिए प्रेरित करना। स्कूलों में कार्यशाला का आयोजन। अभी तक लखनऊ व आसपास के जिलों के स्कूलों में वर्मा जी कार्यशाला का आयोजन कर चुके हैं। इस पूरे आयोजन में उनके सहयोगी होते हैं उनके बच्चे और धर्मपत्नी।
कारवां यूं ही बनेगा :
वर्मा जी की सुबह नित नये संपर्क तलाशने के साथ शुरू होती है। इस बीच स्कूल भी पहुंचना होता है। वर्मा जी बताते हैं कि सामान्य दिनों में एक परिचित वह किसी का भी जानने वाला हो सकता है, को मैं मोबाइल संदेश अवश्य भेजता हूं और यह निवेदन करता हूं कि अन्य को भेजें।
पानी का बजट :
नंद किशोर वर्मा की माने तो जल संरक्षण बहुत आसान है। जिस तरह हम हर माह घर का बजट बनाते हैं उसी तरह पानी का भी बजट बना लें। इसमें तय करें कि पीने, खाना पकाने, कपड़ा धोने, स्नान करने, मंजन, शेविंग, शौच, बर्तन धोने, समय-समय पर हाथ धोने, वाहन धोने, भवन निर्माण आदि पर आप महीने में कितना पानी खर्च करेंगे। परिवार के सदस्यों के हिसाब से इसे तय करें। वर्मा जी मानते हैं कि यह व्यावहारिक नहीं लगेगा, लेकिन पानी बचाना है तो ऐसा करना होगा। इसके अलावा खुद से करें सवाल कि यह जल व प्राकृतिक संसाधन किसका और किसके लिए है? आपके बाद यह किसके होंगे? जहां आप रह रहे हैं वहां भूमि का जल स्तर 10 वर्ष बाद कहां पहुंच जाएगा? आपके आसपास के सभी जल स्रोत यदि अचानक बंद हो जाएं तो आपके विकल्प क्या होंगे?
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