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ऋषिकेश
राजाजी टाइगर रिजर्व: हिमालय की तलहटी में एक अद्वितीय जैव विविधता का भंडार
Posted on 28 Jan, 2020 12:26 PMगंगा तट पर घाट निर्माण में गड़बड़झाला
Posted on 09 Jan, 2020 11:04 AMहरीश तिवारी, दैनिक जागरण, 09 जनवरी 2019
स्वामी चिदानंद मुनि और याचिकाकर्ता प्रतिशपथ पत्र दाखिल करें : हाईकोर्ट
Posted on 08 Jan, 2020 12:24 PMसंवाद न्यूज एजेंसी, अमर उजाला, देहरादून, 8 जनवरी 2020
स्वामी सानंद - कलयुग का भगीरथ
Posted on 13 Oct, 2018 02:02 PMमैं 10 अक्टूबर से पानी पीना भी छोड़ दूँगा। सम्भवतः मैं दशहरा से पहले ही मर जाऊँगा। अगर मैं गंगा को बचाने के दौरान मर जाऊँ, तो मुझे कोई पछतावा नहीं होगा। - स्वामी सानंद
गंगा मैली करने वालों के खिलाफ कानून जल्द
Posted on 21 Dec, 2017 11:49 AMकेंद्रीय जल संसाधन और गंगा संरक्षण राज्यमंत्री डॉ. सत्यपाल सिंह ने कहा कि नमामि गंगे परियोजना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट में शामिल है। नदियों को निर्मल रखने के लिये हर नागरिक को आगे आना होगा। कहा कि गंगा मैली करने वालों पर अंकुश लगाने के लिये जल्द ही कानून भी बनाया जाएगा।
मायके से ही मैली होकर चलती है गंगा
Posted on 18 Jul, 2017 03:49 PM
गंगा अपने मायके में ही मैली हो जाती है। गोमुख से उत्तरकाशी के बीच दस छोटे-बड़े कस्बे हैं। तीर्थयात्रा-काल में इन स्थानों पर औसतन एक लाख लोग होते हैं। इनमें से कहीं भी सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट नहीं है। करीब छह हजार की स्थायी आबादी वाले देवप्रयाग कस्बे में भागीरथी और अलकनंदा के मिलने के बाद गंगा बनती है। इस कस्बे में छह नाले सीधे गंगा में गिरते हैं, ट्रीटमेंट प्लांट 2010 से बन ही रहा है। ऋषिकेश में 12 नाले गंगा में जाते हैं, वहाँ लक्ष्मण झूला और त्रिवेणी घाट के बीच ट्रीटमेंट प्लांट तो बन गया है, पर उसके संचालन में कठिनाई है और मलजल सीधे गंगा में प्रवाहित करने का आसान रास्ता अपनाया जाता है।
समाजिक कार्यकर्ता सुरेश भाई बताते हैं कि उत्तराखण्ड के 76 कस्बों व शहरों से रोजाना लगभग 860 लाख लीटर मलजल गंगा में बहाया जाता है। इसके अलावा 17 नगर निकायों से निकला लगभग 70 टन कचरा भी गंगा के हिस्से आता है।
पाटुड़ी के ग्रामीणों ने जोड़े पानी के बूँद-बूँद
Posted on 13 Oct, 2016 04:20 PMउत्तराखण्ड की दुर्गम पहाड़ियों के बीच बसा एक बहुत ही छोटा गाँव पाटुड़ी की कहानी भी कुछ ऐसी है। जल संकट और इससे उबरने की इस गाँव की कहानी बेहद दिलचस्प और प्रेरणा देने वाली है।
इस गाँव के लोगों ने 1998-1999 में ही जल संकट का इतना खतरनाक खौफ देखा जो किसी आपदा से कमतर नहीं थी, खैर लोगों ने संयम बाँधा डटकर जल संकट से बाहर आने की भरसक कोशिश की। इसी के बदौलत इस संकट से ऊबरे और आज यह गाँव खुशहाल है। गाँव के लोगों ने मिलकर एक संगठन का निर्माण किया, टैंक बनवाये, खुद ही फंड इकट्ठा किया और बिना सरकारी मदद के असम्भव को सम्भव बना दिया।
एनजीटी के फरमान ने उड़ाई लोगों की नींद
Posted on 18 Feb, 2016 04:14 PM
एक तरफ सरकार साहसिक पर्यटन को बढ़ावा देने की बात कर रही है तो दूसरी तरफ गंगा किनारे बीच कैम्पिंग पर सवाल उठने लग गए हैं। क्योंकि मौजूदा हालात बयाँ कर रहे हैं कि केन्द्र से राज्य सरकारें तक निर्मल गंगा को लेकर संवेदनशील हो चुकी हैं।