मैं 10 अक्टूबर से पानी पीना भी छोड़ दूँगा। सम्भवतः मैं दशहरा से पहले ही मर जाऊँगा। अगर मैं गंगा को बचाने के दौरान मर जाऊँ, तो मुझे कोई पछतावा नहीं होगा। - स्वामी सानंद
गंगा नदी की अविरलता लौटाने के लिये करीब चार महीने से अनशन कर रहे प्रो. गुरु दास (जीडी) अग्रवाल यानी स्वामी ज्ञान स्वरूप सानंद ने एक इंटरव्यू में ये सब कहा था।
हुक्मरां तो गंगा को बचाने के अपने वादे पूरा नहीं कर पाये, लेकिन स्वामी सानंद ने अपना वादा निभाया।
दशहरा से पहले ही यानी गुरुवार को उन्होंने शरीर त्याग दिया। वह 86 साल के थे और लम्बे समय से गंगा के लिये निहत्थे संघर्ष कर रहे थे। सही मायनों में कहा जाये, तो वह कलयुग के भगीरथ थे। आज गंगा जितनी भी बची हुई है, उसका श्रेय निश्चित तौर पर स्वामी सानंद को जाता है। लेकिन वह इतने से सन्तुष्ट नहीं थे।
वह चाहते थे कि गंगा न केवल अपने मूल रास्ते से अविरल, निर्बाध बहे बल्कि वह गंगा में मौजूद औषधीय तत्वों का बिना रुकावट संचार भी चाहते थे।
गंगा में मौजूद औषधीय तत्वों को वह गंगत्व कहा करते थे। उनके लिये गंगा महज एक नदी नहीं थी। उससे ज्यादा ही थी। इसलिये वह कभी भी गंगा नहीं कहते थे बल्कि वह गंगा के साथ ‘जी’ या ‘माँ’ जरूर जोड़ते।
गंगा को बचाने के लिये अपना सब कुछ तज देने वाले संत का अनशन करते हुए इस तरह चले जाना हुक्मरां की संगदिली की सबसे बड़ी मिसाल है।
स्वामी सानंद गंगा को बचाने के लिये पिछले 22 जून से ही हरिद्वार में अनशन पर बैठे हुए थे। उन्हें गुरुवार को दिल्ली लाया जा रहा था कि रास्ते में ही उनका निधन हो गया।
11 अक्टूबर की सुबह 6.45 बजे उनकी तरफ से जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया था कि 10 अक्टूबर की दोपहर 1 बजे हरिद्वार प्रशासन ने उन्हें मातृसदन से उठा कर एम्स ऋषिकेश में भर्ती कराया था। विज्ञापन में उन्होंने आगे लिखा था, ‘एम्स के डॉक्टरों ने मेरे अभियान और तपस्या का समर्थन किया। मेडिकल ट्रीटमेंट के पेशेवर संस्थान के बतौर उन्होंने कहा कि उनके पास तीन ही विकल्प हैं- (1) जबरदस्ती खिलाया जाये, (2) आईवी और (3) अस्पताल में भर्ती नहीं लेना।’
प्रेस रिलीज में उन्होंने लिखा था, ‘चेकअप व जाँच में पता चला कि मेरे रक्त में पोटेशियम की भारी कमी (न्यूनतम 3.5 की तुलना में महज 1.7 मौजूदगी) हो गई है। डॉक्टरों की ओर से भरोसा दिलाने के बाद मैं पोटेशियम लेने को तैयार हो गया।’
इस हस्तलिखित प्रेस विज्ञप्ति के सार्वजनिक होने के बाद स्वामी सानंद के आध्यात्मिक गुरू अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने उनके निधन को हत्या करार देते हुए मामले की जाँच सीबीआई से कराने की माँग की है।
उन्होंने कहा, ‘उन्होंने सुबह ही मुझे पत्र भेजकर अपने स्वास्थ्य के बारे में बताया था फिर अचानक उनकी मौत कैसे हो सकती है।’
उन्होंने कहा है, ‘हमें सन्देह है कि उनकी हत्या की गई है। अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने उनके पार्थिव शरीर के पोस्टमार्टम और मामले की सीबीआई जाँच की माँग की है।’
इस बीच एम्स के निदेशक प्रो. रविकांत ने कहा है कि स्वामी सानंद उपवास तोड़ना चाहते थे, लेकिन उनके परिवार के बाहर का कोई सदस्य उन्हें रोक रहा था।
जब उनसे इसके पुख्ता प्रमाण के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने कहा कि उनसे स्वामी सानंद की कई दफे बात हुई थी और उन्हें पता होता तो वे बातचीत को रिकॉर्ड कर लेते।
उनके निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने औपचारिकता निभाते हुए ट्वीट कर दुःख व्यक्त किया है। मगर, जब तक स्वामी सानंद अनशन पर थे, तब तक उनकी माँगें मानना तो दूर की बात है, उन माँगों पर विचार करने का आश्वासन तक नहीं दिया गया था।
उन्होंने हाल-फिलहाल केन्द्र सरकार को कम-से-कम तीन बार तल्ख खत लिखकर गंगा को बचाने के लिये गुहार लगाई थी। इन खतों से गुजरते हुए पता चलता है कि गंगा को बचाने के लिये वह किस तरह की मानसिक बेचैनी से गुजर रहे थे। उनके खत नक्कारखाने में तूती की आवाज साबित हुए। सरकार ने एक भी खत का माकूल जवाब देना मुनासिब नहीं समझा। उनके सारे खत लेटर बॉक्स या दफ्तर की धूल फाँकते रह गए।
पहला खत उन्होंने 28 फरवरी को लिखा था जिसमें प्रधानमंत्री को 2014 में उनके द्वारा किये गए वादों को याद दिलाई गई थी।
उक्त पत्र में उन्होंने लिखा था, ‘वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव तक तो तुम (प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी) भी स्वयं माँ गंगाजी के समझदार, लाडले और माँ के प्रति समर्पित बेटा होने की बात करते थे। पर वह चुनाव माँ के आशीर्वाद और प्रभु राम की कृपा से जीत कर अब तो तुम माँ के कुछ लालची, विलासिता-प्रिय बेटे-बेटियों के समूह में फँस गए हो और उन नालायकों की विलासिता के साधन (जैसे अधिक बिजली) जुटाने के लिये, जिसे तुम लोग विकास कहते हो, कभी जलमार्ग के नाम से बूढ़ी माँ को बोझा ढोने वाला खच्चर बना डालना चाहते हो, कभी ऊर्जा की आवश्यकता पूरी करने के लिये हल का, गाड़ी का या कोल्हू जैसी मशीनों का बैल।’
उन्होंने आगे लिखा था, ‘माँ के शरीर का ढेर सारा रक्त तो ढेर सारे भूखे बेटे-बेटियों की फौज को पालने में ही चला जाता है जिन नालायकों की भूख ही नहीं मिटती और जिन्हें माँ के गिरते स्वास्थ्य का जरा भी ध्यान नहीं।’
उनके खतों के मजमून बताते हैं कि गंगा नदी को लेकर भाजपा नीत केन्द्र सरकार के रवैए से नाराज थे और इसलिये उन्होंने अपने खतों के जरिए वर्ष 2014 के वादों की याद बार-बार दिलाने की कोशिश की थी।
आखिरी खत उन्होंने 5 अगस्त को लिखा था, जिसमें अपनी चार माँगें सरकार के समक्ष रखी थीं। इनमें गंगा को बचाने के लिये गंगा-महासभा द्वारा प्रस्तावित अधिनियम ड्राफ्ट 2012 को संसद में पेश कराकर इस पर चर्चा कर कानून बनाने की माँग की गई थी। यह माँग पूरी नहीं होने की सूरत में उन्होंने उक्त ड्राफ्ट की धारा 1 से धारा 9 तक को लागू करने की माँग शामिल थी।
अन्य माँगों में अलकनन्दा, धौलीगंगा, नन्दाकिनी, पिण्डर तथा मन्दाकिनी पर सभी निर्माणाधीन/प्रस्तावित जलविद्युत परियोजना तुरन्त निरस्त करना, ड्राफ्ट अधिनियम की धारा 4 (डी) वन कटान तथा 4(एफ) खनन, 4 (जी) किसी भी प्रकार की खदान पर पूरी तरह रोक लगाने व गंगा-भक्त परिषद (प्रोविजिनल) का गठन शामिल था।
पहला खत उन्होंने अनशन शुरू करने से पहले लिखा था, जबकि बाकी पत्र उन्होंने अनशन के दौरान लिखे थे।
हालांकि, अनशन उनके लिये कोई नई बात नहीं थी। संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन (संप्रग) की सरकार में भी उन्होंने कई दफे अनशन किया था और सरकार से अपनी माँगें मनवाई थीं। शायद इसीलिये उन्हें उम्मीद थी कि भाजपा की सरकार भी उनकी माँगों पर गम्भीरता से विचार करेगी, लेकिन माँगों पर विचार करना तो दूर उनके पत्रों का कोई जवाब तक नहीं भेजा गया।
बताया जाता है कि यूपीए की सरकार के वक्त जब उन्होंने अनशन किया था, तो केन्द्र सरकार ने उनकी माँगों को मानते हुए 90 प्रतिशत तैयार हो चुके लोहारी नागपाला प्रोजेक्ट को रद्द कर दिया था। इसके अलावा गंगोत्री से उत्तरकाशी तक के क्षेत्र को इको-सेंसिटिव जोन घोषित कर दिया गया था।
उन्होंने अपने खतों में लिखा था कि उन्हें यूपीए से ज्यादा उम्मीदें एनडीए सरकार से थी क्योंकि इस सरकार ने गंगा को लेकर एक अलग मंत्रालय बना दिया है।
लेकिन, साथ ही यह भी जिक्र किया कि पिछले चार सालों में सरकार ने जो कुछ भी किया उससे गंगा को कोई फायदा नहीं पहुँचा।
स्वामी सानंद मूलतः उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले के कंधला के रहने वाले थे। उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि खेतिहरों की थी। उनका जन्म 1932 में हुआ था। उन्होंने प्राथमिक शिक्षा अपने गाँव में ली और बाद रुड़की विश्वविद्यालय से सिविल इंजीनियरिंग में स्नातक की डिग्री हासिल की।
पर्यावरण को लेकर वह बचपन से ही जुनूनी थे, लेकिन अपने करियर की शुरुआत उन्होंने उत्तर प्रदेश के सिंचाई विभाग से बतौर डिजाइन इंजीनियरिंग की थी।
इस पद पर कार्य करते हुए उन्होंने बर्कले की कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी से एन्वायरनमेंटल इंजीनियरिंग में पीएचडी की डिग्री ली।
वह एक साल तक सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड में मेंबर सेक्रेटरी रहे। इसके अलावा वह रुड़की विश्वविद्यालय में एन्वायरनमेंटल इंजीनियरिंग भी पढ़ाते थे।
बतौर टीचर वह छात्रों के बीच काफी लोकप्रिय थे। लोकप्रियता का आलम ये था कि आईआईटी कानपुर के उनके पूर्व छात्रों ने उन्हें बेस्ट टीचर अवार्ड से नवाजा था।
उनसे शिक्षा लेने वाले तमाम छात्र अहम पदों पर हैं। उन्हीं में से एक अनिल अग्रवाल भी हैं। अनिल अग्रवाल ने सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरनमेंट की स्थापना की है।
उनकी जीवनशैली गाँधीवादी थी। वह मध्य प्रदेश के चित्रकूट में दो कमरों वाले कॉटेज में रहा करते थे। वह इतने जमीनी व्यक्ति थे कि अपने कपड़े खुद धोते, घर की सफाई खुद करते और भोजन भी खुद ही पकाते थे।
गंगा की सफाई व इसकी अविरलता बरकरार रखने को लेकर उनका नजरिया सरकारी तंत्र के नजरिए से अलग ही रहा। वह हमेशा ही कहते थे कि सरकार के इंजीनियर यह तय नहीं कर सकते कि गंगा पवित्र हुई कि नहीं। बल्कि धर्माचार्य इसका निर्धारण करेंगे।
उनका यह भी कहना था कि गंगा को साफ करने के लिये कोई भी प्लान तभी स्वीकार्य होगा जब उस प्लान को सभी चार पीठों के शंकराचार्य स्वीकार करेंगे।
जीडी अग्रवाल ने 79 वर्ष की उम्र में 2011 में संन्यास लिया था। 2011 में 11 जून को गंगा दशहरे के अवसर पर उन्होंने जोशी मठ में शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती से दीक्षा ली थी और जीडी अग्रवाल से स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद हो गए थे।
हालांकि, संन्यासी बनने से पहले ही वह गंगा को लेकर संघर्ष कर रहे थे। लेकिन, संन्यास लेने के बाद उन्होंने अपनी जिन्दगी ही गंगा को बचाने में खपानी शुरू कर दी थी।
बताया जाता है कि गिरधर महाराज से मिलने के बाद ही उन्हें गंगा के लिये प्रेरणा मिली थी और तभी से वह गंगा के लिये काम करने लगे थे।
गंगा की पवित्रता लौटाने के लिये स्वामी सानंद ने 5 साल पहले भी करीब तीन महीने तक अनशन किया था। 2013 में उन्होंने जून मध्य से हरिद्वार में अनशन शुरू किया था। यह अनशन 2009 में तत्कालीन यूपीए सरकार द्वारा गठित नेशनल गंगा रीवर बेसिन अथॉरिटी की कार्यशैली को लेकर था।
उनके अनशन के समर्थन में अथॉरिटी से जुड़े तीन पर्यावरण विशेषज्ञों ने इस्तीफा दे दिया था।
इससे पहले 2008 और फिर 2009 में उन्होंने हिमालय में हाइड्रोइलेक्ट्रिक डैम के खिलाफ अनशन शुरू किया था। इस प्रोजेक्ट के बारे में कई रिपोर्ट आये थे, जिनमें बताया गया था कि प्रोजेक्ट से पर्यावरण को होने वाले नुकसान का आकलन किये बगैर काम शुरू किया गया था।
स्वामी सानंद चाहते थे कि गंगोत्री से उत्तरकाशी तक यानी 125 किलोमीटर तक भागीरथी को उसके मूल मार्ग से होकर अविरल बहने दिया जाये।
इसी तरह का आमरण अनशन वह कई बार कर चुके थे। वर्ष 2008 से 2013 के बीच उन्होंने 5 बार अनशन किया था, लेकिन पाँचों बार यूपीए सरकार को झुकना पड़ा। लेकिन, इस साल का अनशन सरकार को झुका नहीं सका।
अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने कहा है कि सरकार चाहती, तो उनकी माँगों मानकर उन्हें बचा सकती थी। उन्होंने यह भी कहा है कि गंगा को लेकर आन्दोलन जारी रहेगा।
भागीरथी बचाओ संकल्प से जुड़े अनिल गौतम ने स्वामी सानंद के निधन पर गहरा शोक प्रकट करते हुए कहा कि उनके लिये गंगा नदी नहीं थी। उन्होंने गंगा को बचाने के लिये जो संघर्ष किया है, वह अप्रतिम है। उनके निधन से जो नुकसान हुआ है, उसकी भरपाई सम्भव नहीं है।
उन्होंने कहा, ‘स्वामी जी गंगा की विलक्षण शक्तियों से भलीभाँति परिचित थे।’
अनिल गौतम ने कहा, ‘गंगा को लेकर उनके संघर्ष और उनकी बातों ने समाज को झकझोरा था। उनके बिना संघर्ष कठिन है, लेकिन इस संघर्ष को जारी रखा जाएगा।’
उन्होंने कहा, स्वामी जी अक्सर कहते थे, उन्हें विश्वास है कि गंगा की अविरलता लौटेगी। इस विश्वास को कायम रखने के लिये समाज को आन्दोलन करना होगा।
नदियों पर लम्बे समय से काम कर रहे मैगसेसे पुरस्कार से सम्मानित राजेंद्र सिंह ने कहा कि गंगा को बचाने के लिये स्वामी सानंद जो लड़ाई लड़ रहे थे, वह कतई नहीं थमेगी। उन्होंने कहा कि साधु-संत व आम लोग उनकी लड़ाई को जारी रखेंगे।
साउथ एशिया नेटवर्क ऑन डैम्स, रीवर्स और पीपुल्स के हिमांशु ठक्कर उन्हें मृदुभाषी व साधारण व्यक्ति के रूप में याद करते हुए कहते हैं कि गंगा को बचाने के लिये उनमें गजब की आन्तरिक मजबूती और समर्पण था।
एक श्रद्धांजलि लेख में केन्द्र की मौजूदा सरकार की आलोचना करते हुए वह लिखते हैं, लोग गाँधी की 150वीं वर्षगाँठ को याद कर रहे हैं, तो गंगा को बचाने के लिये गाँधीवादी आन्दोलन चलाने वाले इस शख्स को भी याद किया जाना चाहिए।
जिस तिरस्कारपूर्ण व अकड़ के साथ सरकार ने उनके संघर्ष को ट्रीट किया, उससे पता चलता है कि गाँधी और उनके आदर्शों के प्रति उसमें कितना सम्मान है।
जो भी व्यक्ति नदी को बचाने को लेकर जुनूनी है व इसके लिये संघर्ष कर रहा है तथा जो नदियों की पूजा करता है वह इस बलिदान को नहीं भूलेगा। प्रो. अग्रवाल ने गंगा को बचाने में जीते-जी व मर कर बेमिसाल योगदान दिया है।
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