झीलें और आर्द्रभूमि

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आओ सारे, झील बचाएं
Posted on 05 Jan, 2009 11:02 AM

भास्कर/ भोपाल, रविवार को बड़े तालाब का नजारा कुछ अलग ही था। हमेशा सैलानियों से भरे रहने वाले तालाब के किनारों पर आज उन लोगों की भीड़ थी जिनमें तालाब की सफाई के लिए जज्बा और जुनून था। यह लोग बड़े तालाब से गाद निकालने के लिए दैनिक भास्कर द्वारा किए गए आह्वान पर वोट क्लब के समीप जुटे थे।

फोटो साभार - भास्कर
‘पुलिकट’ खतरे में
Posted on 03 Jan, 2009 08:08 AM

एजेंसी/ चेन्नई, भारत की दूसरी बड़ी झील पुलिकट मानवीय गतिविधियों और प्राकृतिक परिवर्तनों के कारण खतरे में है। एक नए सर्वे में यह बात सामने आई है। पुलिकट झील का आकार लगातार कम हो रहा है।

Photo - Coutesy - Mckay Savage - Wikipedia
झील-तालाबों बिन कैसे रहेंगे हम
देश की आईटी राजधानी कहे जाने वाले बेंगलुरु में पिछले दिनों एक दृश्य ने शहरवासियों समेत पूरे देश को चिंता में डाला है। यहाँ की बेल्लनदर (बेलंदूर) झील में आग लगने की घटनाएं हुईं। ऐसा नजारा इस झील में कई बार हो चुका है। Posted on 28 Apr, 2023 10:47 AM

झील-तालाबों बिन कैसे रहेंगे हम

झील-तालाबों बिन कैसे रहेंगे हम,Pc-elephango
भीमकुंड: जहां भीम ने कीचक का वध कर स्नान किया था
Posted on 11 Nov, 2010 10:15 AM
महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र में बसा अमरावती जिला जहां अपने प्राकृतिक व नैसर्गिक सौंदर्य के लिए प्रसिद्ध है वहीं यहां कई पौराणिक स्थल भी हैं जो महाभारत काल के हैं। सतपुड़ा पर्वत शृंखला से घिरी इन सुरम्य पहाडिय़ों के मध्य कभी विराट नगर था जहां नदियों व वनों से आच्छादित क्षेत्र थे। आजकल यह क्षेत्र परतवाड़ा जिला कहलाता है। यहीं पर चिखलदरा नामक वन क्षेत्र है। पहाडिय़ों से घिरे इस क्षेत्र में एक दक
दुनिया की सबसे बडी झील हो रही है सबसे गर्म
Posted on 25 Oct, 2010 01:01 PM यदि एक शोध पर यकीन किया जाए तो दुनिया की सबसे बडी झील लेक सुपीरियर इस बार हाल के वर्षों की अपेक्षा अधिक गर्म रहने वाली है। यह इंसानों के लिए खुशी की बात हो सकती है कि अब इस झील के किनारे वे अधिक समय बिता पाएंगे परंतु इससे पर्यावरण का संतुलन बिगडने का खतरा उत्पन्न हो गया है।

यूनिवर्सिटी ऑफ माइनसोटा के जै ऑस्टिन की शोध के अनुसार यह झील पिछले 30 वर्षों में सबसे अधिक गर्म रहने वाली है। इस बार इस क्षैत्र में कम ठंड पड़ी और इससे बर्फ की चादर ने इस झील को पूरी तरह से नहीं ढका।
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झील भरवा री प्रार्थना
Posted on 25 Oct, 2010 10:48 AM
राजसमन्द झील जिसका की जलस्तर दिन पर दिन कम होता जा रहा है ! इस व्यथा को शब्दो में पिरोया है यहां के ही एक शख्स नें ! राजसमंद के एक बहुत ही ख्यात युवा कवि सुनिल जी “सुनिल” नें अपनी बहुत ही उम्दा रचना भेजी है ! जो इस प्रकार है !

झील भरवा री प्रार्थना:


नाथा रा नाथ द्वारकानाथ ने किदी एक अरज,
प्रभू सुणजो म्हारी भक्ती रो करज !

दसम जल प्रपात
Posted on 16 Aug, 2010 10:28 PM
छोटानागपुर को झरनों और चट्टानी नदियों का क्षेत्र कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी।


आबादी बढने के साथ ही वनों में वृक्षों की सघनता भले कम हो गई हो मगर रैयती जमीन पर अब भी हरियाली बुरी नहीं है। दस किलोमीटर रास्ते के दोनों ओर पलास की हरियाली पर कालिमा आने लगी थी। उसकी लालिमा तो करीब छह माह पूर्व ही खत्म हो गई थी। पलास की लाली से आंखों को जो सकून मिलता है, किसानों को उससे कहीं अधिक सकून उस पर होने वाली लाह की खेती से मिलता है

जोगी का डेरा नाम है उस स्थल का, जहां हमें जाना था। पेट्रोल पंप के मालिक बीबी शरण, मेघालय में व्याख्याता रह चुके चौहान जी और कुछ गांव वालों के साथ वहां जाने का

दुआ करें कि नियम-कानूनों की अवहेलना के बावजूद बच जाये नैनीताल
Posted on 13 Aug, 2010 08:50 AM
10 जून को हुई इस ग्रीष्म की पहली बारिश ने नैनीताल को स्वच्छ व सुन्दर बनाए रखने के दावों को झुठला दिया। करीब दो घंटे की इस मूसलाधार बारिश से नालों, सड़कों, पैदल मार्गों का तमाम कूड़ा-कचड़ा, वैध-अवैध रूप से बने भवनों का नालों में पड़ा मलवा बहकर झील में समाने के साथ ही मालरोड में फैल गया। कई जगह सीवर लाईन चोक होकर बाहर फूटने से उसकी गंदगी सड़कों से होकर झील में बहने लगी। लोअर माल रोड तो जगह-जगह
सूरज कुण्डः एक परिचय
Posted on 21 Jul, 2010 01:01 PM सूरज कुण्ड मेरठ का अत्यधिक प्रसिद्ध एवं महत्वपूर्ण तालाब था। यद्यपि अब यह पूर्ण रूप से सूख चुका है परन्तु इसका गौरवशाली अतीत आज सोचने को विवश करता है कि हम विकास की ओर जा रहे हैं या विनाश की ओर। सूरज कुण्ड के इतिहास को हम तीन भागों में विभक्त कर सकते हैं।

1. प्रारम्भिक अथवा रामायणकालीन।

2. मध्य अथवा महाभारतकालीन।

3. अंगेजी काल से आज तक।
सूखते जलाशय
Posted on 17 Jun, 2010 09:04 AM
परंपरागत जल स्रोतों, वन क्षेत्रों और वन्य जीवों की सुरक्षा के दावे तो सरकारें बहुत करती हैं, पर हकीकत यह है कि इनसे संबंधित प्रयास घोषणाओं तक महदूद रह जाते हैं। पर्याप्त ध्यान न दिए जाने की वजह से अनेक झीलें, तालाब और दूसरे जल-स्रोत सूखते जा रहे हैं। जयपुर, उदयपुर आदि शहरों में पुरानी झीलों, तालाबों की उपेक्षा के कारण उनके सूखते जाने और फिर सरकार की मंजूरी से उन पर रिहाइशी और व्यावसायिक भवनो
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