10 जून को हुई इस ग्रीष्म की पहली बारिश ने नैनीताल को स्वच्छ व सुन्दर बनाए रखने के दावों को झुठला दिया। करीब दो घंटे की इस मूसलाधार बारिश से नालों, सड़कों, पैदल मार्गों का तमाम कूड़ा-कचड़ा, वैध-अवैध रूप से बने भवनों का नालों में पड़ा मलवा बहकर झील में समाने के साथ ही मालरोड में फैल गया। कई जगह सीवर लाईन चोक होकर बाहर फूटने से उसकी गंदगी सड़कों से होकर झील में बहने लगी। लोअर माल रोड तो जगह-जगह मलवे से पट गई। बारिश बंद होने पर प्रशासन के साथ झील व नगर संरक्षण से सम्बद्ध सभी विभाग, सहयोगी संगठन व नगर के प्रबुद्ध लोग मण्डलायुक्त की अगुवाई में नगर व झील की सफाई में जुट गए। सेना व स्वयंसेवी संगठनों ने भी कुछ हिस्सों को साफ रखने का संकल्प लिया। जिलाधिकारी शैलेश बगौली ने बताया कि मालरोड के ऊपरी क्षेत्र में एक हजार आवास चिन्हित किए गए हैं, जिनकी छतों का बरसाती पानी सीवर लाइन में जा रहा है। मंडलायुक्त कुणाल शर्मा ने जल निगम व जल संस्थान के अधिकारियों को सीवर लाइनों की तत्काल सफाई कर आवासीय भवनों के बरसाती पानी को सीवर लाइन में जाने से रोकने के निर्देश दिए और विशेषज्ञों की मदद लेकर सीवर चोक होने की समस्या का स्थाई समाधान करने को कहा।
अगले दिन झील के चारों ओर लोग अपने-अपने हिस्से की सफाई में जुट गए। मीडियाकर्मी आते और कुछ लोगों से बातचीत करते, कैमरा वाले फोटो खींच ले जाते। उधर पी.डब्ल्यू.डी. व झील विकास प्राधिकरण भी सक्रिय हो गये। एस्टिमेट बनाये जाने लगे। सिल्ट निकालने के लिये भारी भरकम जेवीसी मशीन झील में उतार दी गई। टी.वी. चैनलों व दैनिकों में रंगीन फोटो सहित समाचार आने लगे। सैकड़ों ट्रक मलवा नगर से दूर फेंका जाने लगा। पम्प हाऊस के पास एक जेवीसी मशीन के दलदल में फँस जाने से दो-तीन दिन लोअर माल में यातायात बाधित रहा। जेवीसी निकालने दो-तीन जेवीसी तथा क्रेन और मँगाने पड़े। गोताखोर, नाव वाले भी जेवीसी निकालने में जुटे। तमाशबीन लोगों की भीड़ से एक मेले का सा माहौल बन गया। लोग चटखारे लेते और अपनी राय भी देते। कहते- ऐसे कैसे बचेगा नैनीताल। यह सब झील संरक्षण के नाम पर आ रहे बजट को खपाने का खेल है। नैनीताल को सुरक्षित व स्वच्छ बनाए रखने के बुनियादी सवालों पर तो कोई बोल ही नहीं रहा है। हर प्रभावशाली व्यक्ति चाहे वह बिल्डर हो या माफिया, नेता हो या जनप्रतिनिधि सब नैनीताल को अपनी-अपनी तरह से बर्बाद करने पर तुले हैं। बरसात से पूर्व यह सब तो कुछ वर्षों से होता रहता है। क्या पूर्व में लिए गए निर्णयों पर अमल हुआ ? भूस्खलन तो कहीं हुआ नहीं, फिर इतनी सिल्ट सड़कों व तालाब में कैसे पहुँची ? भविष्य में ऐसा न हो, उसके लिए क्या पुख्ता इन्तजाम किये जा रहे हैं ? जगह-जगह फौवारे की तरह ऊपर उठ कर सड़क गन्दा कर झील में समाने वाले सीवर का स्थाई समाधान क्यों नहीं होता।
नैनीताल को बचाने की इस मुहिम में प्रशासन का चरित्र झलक रहा था। सड़कों व मालरोड में फैले मलवे को तत्काल हटाना जरूरी था। पर इस काम में लगे विभागों का आपस में कोई तालमेल ही नहीं था। सब एक-दूसरे पर दोषारोपण कर रहे थे।
नैनीताल की सुरक्षा एवं इसको स्वच्छ रखने के संदर्भ में हमें इस नगर की समस्याओं को समग्र में देखना होगा। मगर हो यह रहा है कि झील संरक्षण, मिशन बटरफ्लाई, जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय नगरीय नवीनीकरण मिशन (जे.एन.एन.यू.आर.एम.) के रूप में आ रहे करोड़ो-अरबों रुपए के बजट को खपाने की ललक में हम सौंदर्यीकरण के नाम पर गैरजरूरी कामों के जरिये नगर को कंक्रीट के जंगल में बदलने की तैयारी कर रहे हैं। नगर की हरीतिमा, सूखते जा रहे जल-स्रोतों, पॉलीथीन की समस्या, यातायात नियंत्रण, क्षमता से अधिक भवनों के निर्माण पर रोक, नालों से मलवा बहाकर झील में भेज देने वालों को दण्डित करने जैसे सवालों को भूल जा रहे हैं।
नैनीताल की समस्याओं की छानबीन के सिलसिले में जब हमने सम्बन्धित विभागों के चक्कर लगाने शुरू किए तो नगरपालिका से हमें महंगे ग्लेज्ड कागज में छपे दो बहुरंगी फोल्डर मिले। मगर ये चकाचौंध कर देने वाले फोल्डर हमारी जिज्ञासाओं को शान्त करने में असमर्थ थे। पी.डब्ल्यू.डी. में पता चला कि करीब 13 लाख के एस्टीमेट के ऐवज में ‘राष्ट्रीय झील संरक्षण परियोजना’ के तहत 3.39 लाख स्वीकृत हुआ है, जिसमें से बोट हाउस क्लब व नैना देवी मंदिर के निकट के नाला नं 21 व 23 की सफाई के लिए प्रान्तीय खंड को एक लाख तथा निर्माण खंड को दो लाख रुपए अवमुक्त हुए हैं। जेवीसी मशीनों द्वारा तालाब से सिल्ट निकालने और ट्रकों द्वारा उस मलवे को दूर फेंकने में आए खर्च का भुगतान अभी नहीं किया गया है। 1880 में आये जबर्दस्त भूस्खलन के बाद अंग्रेजों द्वारा नगर की सुरक्षा की दृष्टि से बनाये गये नालों के रखरखाव व उनमें भर गई सिल्ट को निकालने के लिए लोनिवि के पास न बजट है और न पर्याप्त मजदूर। पच्चीस-तीस वर्ष पूर्व तक इनकी देखरेख के लिए लोनिवि. की गैंग में 80 मजदूर काम करते थे। अब 24 मेट-बेलदार तथा कुछ मृतकाश्रित महिलाएँ ही रह गये हैं। नये मजदूरों की भर्ती पर रोक है। पहले इस मद में 10-12 लाख रुपया मिलता था, लेकिन राज्य बनने के बाद वह बंद हो गया। लोनिवि को इस सफाई अभियान के दौरान झील संरक्षण विभाग द्वारा की गई अनावश्यक बयानबाजी से नाराजगी है। सिल्ट निकालने के लिये जेवीसी जहाँ से झील में उतारी जाएगी, वहाँ कुछ नुकसान तो होगा ही। इसके लिये पूर्व से न कोई मार्ग बने हैं और न ही कोई स्थान तय हैं। लोनिवि ने भी पलटवार करते हुए झील संरक्षण परियोजना के तहत लेकब्रिज निर्माण में हुई एक बड़ी लापरवाही की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए स्पष्टीकरण माँगा है। पत्र में लिखा है कि तल्लीताल पोस्ट ऑफिस के पीछे बलिया नाले की ओर कराये जा रहे निर्माण कार्य से उसके नीचे झील के पानी की निकासी हेतु बने पाँच गेटों तक पहुँचने का मार्ग बंद कर दिए जाने से सफाई नहीं हो पा रही है। भविष्य में होने वाले खतरों की जिम्मेदारी झील संरक्षण विभाग की होगी।
झील संरक्षण परियोजना के परियोजनाधिकारी सी.एम. साह के अनुसार नैनीताल के लिए स्वीकृत कुल 47.96 करोड़ रुपए के बजट में से अवमुक्त 43.43 करोड़ रुपए का विभिन्न कार्यों में उपयोग कर लिया गया है। 12.7 किमी. लम्बी सीवर लाईन में 693 संयोजन जोड़े गए। 36 चिन्हित भवनों की नालियों से सीवर लाईन से जुड़ा कनेक्शन अलग कर दिया। 27 सामुदायिक शौचालयों में से 25 बना दिए, एरिएशन सितम्बर में पूरा होगा। अप्रेल 2008 से प्रारम्भ मिशन बटर फ्लाई योजना के तहत 38 स्वच्छता समितियों का गठन कर आठ सौ परिवारों के अलावा 32 होटलों, 10 रेस्टोरेन्टों, 17 विद्यालयों तथा 7 अन्य संस्थानों को इस मिशन का सदस्य बना लिया गया है। इसके अलावा 51 लाख गम्बूसिया, 20.5 लाख पुंटिस मछलियाँ झील से निकाल 1.15 लाख सिल्वर काक, और 15 हजार महासीर डाल दी गई हैं। कैचमेंट क्षेत्र स्नोभ्यू, बिड़ला, ठंडी सड़क में 33 हजार वृक्ष लगाये गए हैं।
मिशन बटर फ्लाई को शुरू हुए दो साल से ज्यादा हो गया है। इसकी समीक्षा होनी चाहिए। लोगों का कहना है कि इस योजना में सुपरवाइजर ज्यादा हो गए हैं, काम करने वाले कम। 2001 की जनगणना के अनुसार नगर की स्थायी जनसंख्या 39,639 है और कुल परिवार 9,386 हैं। इस बीच हाईकोर्ट के लिए तमाम विभागों के कार्यालय व आवासीय भवनों को खाली कर दिए जाने से जनसंख्या घटी ही होगी। लेकिन इन दो सालों में तमाम प्रचार के बावजूद मिशन बटरफ्लाई से आठ हजार परिवार ही जुड़ पाए हैं। होटल, ढाबे-रेस्टोरेन्ट, सरकारी गैर सरकारी संस्थान, आवासीय भवन आदि तो अभी इस योजना से जुड़े ही नहीं।
नैनीताल की सफाई का सवाल वैध-अवैध रूप से बन रहे भवनों के निर्माण व उनके मलवे के निस्तारण से भी जुड़ा है। 1984 में प्राधिकरण बनने के बाद यहाँ भवनों के निर्माण में तेजी आई। किसी का अंकुश नहीं रहा। तमाम नियम-कानूनों को ताक में रख कर, जिसे जहाँ मौका मिला भवन बनाने लगा। इस अपराध में हर तबका शामिल है। धनबल, बाहुबल वाले ही नहीं, सामान्य फड़ लगाने वाले लोग भी। आज भी प्राधिकरण को बड़ी रकम देकर नक्शा पास कराये या बगैर पास कराये मकान बनाने का सिलसिला जारी है। कुछ माह पूर्व तक रतन कॉटेज कम्पाउण्ड में जीर्णोद्धार के बहाने बनाया जा रहा एक विशाल भवन चर्चा में था। ताजा प्रकरण एक प्रभावशाली व्यक्ति द्वारा स्टोनले के निकट जिला पंचायत की जमीन में चौमंजिला भवन निर्माण का है। हालाँकि जिला पंचायत का कहना है कि उक्त जमीन गैरेज व सर्वेन्ट क्वार्टर बनाने के लिये लीज में दी गई है। जब ऐसे कामों का विरोध होता है या प्रशासन अचानक शिथिलता तज कर कार्यवाही करने लगता है तो राजनैतिक पहुँच वाले लोग, वकील आदि एकजुट होकर इससे बचने का रास्ता निकाल लेते हैं। दबाव बनने पर पुलिस-प्रशासन के साथ प्राधिकरण के लोग खानापूर्ति के लिए अवैध निर्माण को ध्वस्त करने का छिटपुट नाटक कर चुप हो जाते हैं।
दरअसल नैनीताल की समस्यायें बहुआयामी हैं, लेकिन इसका इलाज सिर्फ खानापूरी के रूप में हो रहा है। कड़े कदम उठाने का साहस न सरकार-प्रशासन के पास है और न कड़ाई बर्दाश्त करने का बूता यहाँ के निवासियों के पास। इसलिये नैनीताल के लिये केवल शुभकामनायें ही व्यक्त की जा सकती हैं, इसका स्थायी इलाज नहीं किया जा सकता।
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