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इंदौर जिला
वनों की सुरक्षा से हुआ नर्मदा जल शुद्ध
Posted on 18 Nov, 2016 11:54 AM
इन्दौर की पेयजल व्यवस्था को प्राकृतिक रूप से शुद्ध करने में इन्दौर तथा बड़वाह वन मण्डलों के वन की बड़ी महत्त्वपूर्ण भूमिका है। यह वन क्षेत्र इन्दौर महानगर को दिये जाने वाले नर्मदा जल की गुणवत्ता, मात्रा तथा निरन्तरता को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करता है।
अब गाँव-गाँव ठाठे मार रहा नीला पानी
Posted on 08 Nov, 2016 12:53 PMबीते सालों के मुकाबले इस साल यहाँ के तालाबों में 40 फीसदी से ज्यादा बरसाती पानी इकट्ठा हुआ और यह पानी अब काफी समय तक गाँव के लोगों के उपयोग में आ सकेगा। कुछ गाँवों में तो यह गर्मी के मौसम तक चलने की उम्मीद है। उधर तालाबों में पानी रहने के कारण गाँव के आसपास का जलस्तर भी बढ़ गया है। इससे आसपास के जलस्रोत भी अब तक अच्छा पानी दे पा रहे हैं। इन्दौर जिले में प्रशासन ने जब गाँवों में पुराने और सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज तालाबों का आँकड़ा ढूँढा तो करीब साढ़े छह सौ तालाब ऐसे मिले जिनको थोड़ी-सी मेहनत से सँवारा जा सकता था।
अब इन्दौर जिले के करीब साढ़े तीन सौ तालाबों में नीला पानी ठाठे मार रहा है। कभी बारिश के बाद पानी के लिये बोरवेल के आसरे रहने वाले इस इलाके में अब तालाबों के इस पानी की बदौलत यहाँ के किसान सोयाबीन की फसल लेने के बाद अब गेहूँ-चने की फसल की तैयारी में जुट गए हैं।यह नजारा है मध्य प्रदेश के दिल कहे जाने वाले मालवा इलाके के इन्दौर जिले के गाँवों का। हमारी गाड़ी जिस भी पक्की-कच्ची सड़क से गुजरी, हर तरफ यही दृश्य था। दूर-दूर तक हरहराते खेत और उनके बीच बने तालाबों में लबालब नीला पानी। किसान खुश है कि इस साल उन्हें पानी के संकट का सामना नहीं करना पड़ेगा। कई किसान तो पहली बार अपने खेतों में दूसरी फसल ले पा रहे हैं। उनके लिये अब गर्मी तक के पानी का इन्तजाम हो गया है।
समाज ने सँवारी लसूड़िया तालाब की तकदीर
Posted on 20 Oct, 2016 11:51 AMबढ़ती जनसंख्या के दबाव और जल संसाधनों के प्रति उपेक्षित रवैए
250 साल बाद बावड़ी का पुनरुद्धार
Posted on 18 Sep, 2016 04:33 PMआज भी जहाँ का समाज पानी के लिये उठ खड़ा होता है, वहाँ कभी किसी को पानी की किल्लत नहीं झेलनी पड़ती। पानी की चिन्ता करने वाले समाज को हमेशा ही पानीदार होने का वरदान मिलता है। ऐसा हम हजारों उदाहरण में देख-समझ चुके हैं। अब लोग भी इसे समझ रहे हैं। बीते पाँच सालों में ऐसे प्रयासों में बढ़ोत्तरी हुई है। गर्मियों के दिनों में बूँद-बूँद पानी को मोहताज समाज के सामने अब पानी की चिन्ता करने और उसके लिये सामुदायिक प्रयास करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।
हमारे समाज में सैकड़ों सालों से पानी बचाने और उसे सहेजने के लिये जल संरचनाएँ बनाने का चलन है। जगह-जगह उल्लेख मिलता है कि तत्कालीन राजा-रानियों और बादशाहों ने अपनी प्रजा (जनता) की भलाई के साथ पानी को सहेजने और उसके व्यवस्थित पर्यावरण हितैषी तौर-तरीकों से, जिनमें कुएँ-बावड़ियाँ खुदवाने से लेकर तालाब बनवाने, नदियों के घाट बनवाने, प्यासों के लिये प्याऊ और भूखों के लिये अन्नक्षेत्र खोलने जैसे कदमों के साथ ही कहीं-कहीं छोटे बाँध बनाकर सिंचाई या लोगों के पीने के पानी मुहैया कराने के प्रमाण भी मिलते हैं।पर यह भी सच है कि आज भी जहाँ का समाज पानी के लिये उठ खड़ा होता है, वहाँ कभी किसी को पानी की किल्लत नहीं झेलनी पड़ती। पानी की चिन्ता करने वाले समाज को हमेशा ही पानीदार होने का वरदान मिलता है। ऐसा हम हजारों उदाहरण में देख-समझ चुके हैं। अब लोग भी इसे समझ रहे हैं।
पीपल्याहाना तालाब पर काम बन्द लेकिन जल सत्याग्रह जारी
Posted on 15 Jul, 2016 03:59 PMकरीब सौ साल पहले होलकर राजाओं ने पीपल्याहाना गाँव के नजदीक बड़
पानी की आस में पथराई आँखे
Posted on 27 Oct, 2015 11:13 AMखरीद कर पानी पीने को मजबूर उमरिया खुर्द के लोगबिजली के तारों के साथ पानी के पाइपों का जाल