लोक माता नर्मदा


नर्मदा नदीविन्ध्यांचल एवं सतपुड़ा के बीच अमरकंटक नामक ऊँचा पर्वत है। यहीं सोहागपुर जिले के अमरकंटक नामक गाँव के कुंड के एक गौमुख से जलधारा प्रकट होती है इस कुंड को कोटि कुंड तथा जलधारा को नर्मदा कहते हैं। यह 13.2 किलोमीटर की दूरी बहुत ही शांति के साथ पूर्ण करती है, अतः इसे ‘लोकमाता’ भी कहते हैं। अनेक वैज्ञानिकों ने कई परमाणु द्वारा यह सिद्ध करने की कोशिश की है कि नर्मदा, सरस्वती की ही एक धारा है जो पृथक होकर कई मील जमीन में बहने के पश्चात पुनः कोटितीर्थ में आकर प्रकट होती है।

अमरकंटक से निकलने के 332 किलोमीटर पश्चात नर्मदा मंडला से गुजरती है। मंडला से आगे नर्मदा का प्रवाह मंद हो जाता है। इसके आगे भेड़ाघाट नामक सुंदर पहाड़ी स्थान आता है। यह जबलपुर से 21 किलोमीटर दूर है। यहीं पर वामनगंगा नामक नदी जो विंध्याचल प्रर्वत से जन्म पाकर 419 किलोमीटर यात्रा पूर्ण कर नर्मदा में मिलती है। यहाँ संगमरमर के पर्वत हैं। इन पर्वतीय क्षेत्रों में कई जलप्रपात बनाए गए हैं। इनमें धुआँधार जलप्रपात सबसे प्रसिद्ध है। इस प्रपात से 2 मिल की दूरी तक नर्मदा का पानी संगमरमर के पर्वतों से होकर बहता है। इसी मार्ग में आगे बंदर ‘कूदनी’ नामक स्थान आता है, यहाँ दो पर्वत इतने नजदीक हैं कि बंदर कूद कर इसे पार कर सकते हैं। यहाँ से नर्मदा नदी आगे बढ़कर ब्राह्मण घाट पर पहुँचती है। यहाँ नर्मदा नदी में नौकाएं आदि चलती हैं। यहाँ से कुछ आगे बढ़ने पर नर्मदा दो भागों में विभक्त हो जाती है तथा कुछ आगे बढ़ने पर पहाड़ो में ‘सप्तधारा’ के रूप में गिरती है। इसके आगे करीब 11 किलोमीटर तक बहने के बाद रामघाट पर ‘कुब्जा’ नदी का इसमें संगम होता है। कुब्जा नदी सतपुड़ा से जन्म लेकर करीब 253 किलोमीटर की यात्रा पूर्ण कर नर्मदा में आ मिलती है।

इसके आगे यह सूर्यकुंड तीर्थ से गुजरती है। यहाँ नर्मदा में एक उपनदी का संगम होता है। इसके आगे बादरा भाव से 10 किलोमीटर आगे चलने पर नर्मदा नदी के दक्षिणी तट पर होशंगाबाद बसा है। (यह पहले नर्मदापुर कहलाता था।) इसके बाद नर्मदा मेला घाट, हाडिया एवं नेमोदर से आगे धायड़ी नामक स्थान पर नर्मदा का जल एक गहरे धायडीकुंड में गिरता है। यह नर्मदा नदी का सबसे बड़ा जलप्रपात है। यहाँ 18 मीटर की ऊँचाई से नर्मदा का जल कुंड में गिरता है। यहीं पुनासा जल विद्युत योजना के अन्तर्गत एक विशाल बाँध बनाया गया है।

इसके आगे इन्दौर में ग्यारह किलोमीटर दूर ओंकारेश्वर में नर्मदा नदी पहाड़ों के बीच से गुजरती है। नर्मदा नदी के दक्षिणी तट पर अमरेश्वर महादेव का भव्य मंदिर है। इस प्राचीन मंदिर के नीचे धरती से एक धारा जन्म लेकर नर्मदा में आकर मिलती है। इसे कपिलधारा संगम कहा जाता है। इसके आगे शिवपुरी के निकट चक्र तीर्थ नामक स्थान है। इस प्रदेश को ‘मान्धाता’ कहा जाता है। यह मध्यप्रदेश के निमाड़ जिले में आता है। ओंकारेश्वर पर्वत पर एक प्रसिद्ध प्राचीन मंदिर है। इस प्राचीन मंदिर से कुछ ही दूरी पर नर्मदा की दूसरी धारा बहती है, जिसे कावेरी कहते हैं। इसी के उत्तरी तट पर प्रसिद्ध जैन तीर्थ सिद्धेश्वरकूट है। ओंकारेश्वर के आस-पास घने जंगल हैं, जिन्हें सीतावन कहते हैं। ओंकारेश्वर से कुछ आगे चलने पर नर्मदा के तट पर रावेरखेड़ी नामक गाँव आता है, यहाँ नर्मदा नदी का पानी बहुत ही कम तथा शांत है।

रावेरखेड़ी गाँव के पड़ोस में ससाबरड़ नामक गाँव है। इसके आगे चलने पर मंडलेश्वर गाँव पड़ता है। विद्वानों के अनुसार प्रसिद्ध विद्वान मंडल मित्र का मूल स्थान यहीं है। इसे पहले महिष्मती नगर कहा जाता था। मंडलेश्वर से 8 कि.मी. दूरी पर महेश्वर गाँव आता है। इसके पश्चिम में सहस्त्रधारा नामक जलप्रपात है। यहाँ नर्मदा पहाड़ी चट्टानों से नीचे उतरती हुई सैकड़ों धाराओं के रूप में निकलती है। महेश्वर से 8 मील की दूरी पर खलघाट है, यहीं से मुम्बई-आगरा मार्ग, नर्मदा पर बने पुल से गुजरता है, इसे कपिल तीर्थ भी कहते हैं।

कपिल तीर्थ से लगभग 11 किलोमीटर दूर पश्चिम दिशा में धर्मपुरी नामक स्थान है। धर्मपुरी के निकट नर्मदा में एक छोटा सा टापू बन गया है। यही स्थान नागेश्वर कहलाता है। यहाँ राजा बाजबहादुर की पत्नी रानी रूपमती के गुरु रहते थे। एक प्रचलित कथा के अनुसार एक महात्मा के प्रभाव से मांडलगढ़ नामक स्थान पर नर्मदा प्रकट हुई इसे रेवाकुंड कहते हैं। धर्मपुरी के आगे चिटवलदा पड़ता है। यहीं अत्रि, वशिष्ठ, गौतम व विश्वामित्र आदि ऋषियों ने तप किए थे। आगे राजस्थान की सीमा के पास से गुजरते हुए दक्षिण की ओर बडवाणी प्रदेश आता है। इसके निकट ही सतपुड़ा की पहाड़ियों से जैन तीर्थ 52 गंगाजी स्थित है।

इसके आगे पश्चिम की ओर मुड़कर नर्मदा आपेश्वर से गुजरती है। इसके आगे ही सिंदूरी नामक नदी नर्मदा में आकर मिलती है। यह नदी पहाड़ों व जंगलों में लगभग 19 किलोमीटर तक बहती है। यहाँ नर्मदा के दक्षिणी तट पर शूलपाणि तीर्थ बसा है। यहाँ कई मंदिर हैं इसके बाद डारुड़ेश्वर नामक स्थान से नर्मदा गुजरती है। यहाँ सरस्वती व दत्तात्रेय की समाधि तथा कई मंदिर भी हैं। नर्मदा नदी इसके आगे की यात्रा में ब्यास तीर्थ होते हुए अनुसूया माई तीर्थ से गुजरती है। अब नर्मदा आगारेश्वर लाडवा के कुसुमेश्वर से होती हुई भड़ौच के निकट पहुँचती है। फिर विमलेश्वर नामक स्थान के पास से लाहोरिया गाँव होते हुए समुद्र में जा गिरती है।

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