खजराना तालाब - चार दिन की चाँदनी

सन 2013 में खजराना तालाब का दृश्य
सन 2013 में खजराना तालाब का दृश्य


मध्य प्रदेश में इन्दौर शहर के खजराना इलाके में स्थित तालाब की हालिया स्थिति बताती है कि तालाबों का संरक्षण और इनकी निगरानी का काम कुछ समय विशेष तक ही नहीं, बल्कि एक सतत प्रक्रिया है। इसमें थोड़ी-सी भी लापरवाही अब तक किये गए कामों का असर भी खत्म कर देती है और तालाब फिर से पुरानी स्थिति में लौट सकते हैं। खजराना तालाब पर बीते तीन सालों से बहुत ध्यान दिया जा रहा था, लेकिन बीते कुछ महीनों से यह उपेक्षा का शिकार होकर एक बार फिर जलकुम्भियों से पट गया है।

यहाँ करीब ढाई सौ साल पहले इन्दौर रियासत की पहली भारतीय महिला शासिका अहिल्याबाई ने 1760 में यहाँ के सुरम्य प्राकृतिक परिवेश में गणेश मन्दिर और सुन्दर बगीचे का निर्माण करवाया था। इसी दौरान भूजल स्तर बनाए रखने तथा पानी के उपयोग के लिये इस तालाब का निर्माण भी हुआ था। समय बदलने के साथ भी तालाब लोगों की पानी की जरूरतों को पूरा करता रहा। लेकिन बीते 25 सालों में तालाब धीरे-धीरे खत्म होने लगा। शहर बढ़ा तो इसके आसपास भी बस्ती हो गई।

2.85 हेक्टेयर में फैले खजराना तालाब की अधिकतम गहराई साढ़े 4 मीटर है। (बुजुर्ग बताते हैं कि इससे पहले यह तालाब और भी बड़ा था।) इसका जलग्रहण क्षेत्र 43.18 हेक्टेयर करीब 18 हजार की आबादी और साढ़े तीन हजार घरों के खजराना इलाके में गोलाकार बने इस तालाब के पानी का कोई उपयोग नहीं हो पाता था। इसके कैचमेंट में नालियों का गन्दा पानी मिलकर इसे प्रदूषित कर देता था।

यहाँ जलकुम्भी और अन्य पौधे फैले रहते थे और कुछ लोग इसके किनारों पर शौच किया करते थे। लोग इसमें कचरा और मलबा फेंकने लगे। इसके जलग्रहण क्षेत्र में अनधिकृत कब्जे हुए। तालाब गन्दले से डोबरे की तरह हो गया, जिसमें हरे रंग का सड़ा हुआ पानी बदबू मारता रहता था और इससे आसपास के लोगों का जीना दूभर हो जाया करता।

2013 तक यही चलता रहा लेकिन तभी यहाँ कुछ लोगों ने तालाब बचाने की मुहिम शुरू की। इससे तस्वीर बदली नजर आने लगी। जो लोग कभी इसमें कचरा फेंकते रहते थे, वे ही अब इसे बचाने में जुट गए हैं।

2013 की बारिश के बाद तालाब साफ पानी से लबालब हो गया और मछलियों सहित जलीय जीव भी पहले की तरह जल क्रीड़ा करते देखे जाने लगे। इतना ही नहीं, इन लोगों ने नगर निगम को पत्र लिखा कि तालाब बचाने के लिये जतन किये जाएँ। लोग खुद पहरेदारी करते कि कोई कचरा या मलबा इसमें न फेंक सके। कभी सरकारी मानकर उपेक्षित मान लिया जाने वाला यह तालाब यहाँ के समाज का अपना बन गया। इसके किनारे इतने चित्ताकर्षक और मनोहारी हो गए कि लोग सुबह-शाम की तफरीह के लिये इसके सुकूनदेह वातावरण में सैर पर घूमने आने लगे।

दरअसल बीते कुछ सालों के दौरान इन्दौर शहर में तेजी से बढ़ते प्रदूषण और शहरीकरण की अन्य वजहों से जलवायु में बड़ा बदलाव आ रहा है। पर्यावरण के जानकारों ने इसे इन्दौर शहर में रहने वाले बाशिंदों की सेहत के लिये घातक बताया है। खेत, जंगल, तालाब और नदियों की जगह आबादी फैलने लगी और इसी ने जलवायु बदलाव के खतरों को और भी बड़ा बना दिया। शहर की करीब 27 फीसदी आबादी कच्चे मकानों और झुग्गियों की बस्तियों में रहती है, जो ज्यादातर बाढ़ पूरित या जल भराव वाले क्षेत्रों में रहते हैं।

इन्दौर शहर में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का आकलन करने वाली तरु लीडिंग एज के अध्ययन बताते हैं कि कभी यह शहर अपनी स्वास्थ्यवर्धक जलवायु के कारण पहचाना जाता रहा। शबे मालवा की मशहूर कहावत के मुताबिक यहाँ गर्मियों के मौसम में भी रातें ठंडी हुआ करती थी। गर्मी की रातों में यहाँ का तापमान 25 डिग्री सेंटीग्रेड से कम और दिन का 30 से 40 डिग्री तक हुआ करता था। वहीं अब रात का 35 से 40 और दिन का तापमान 45 से 50 डिग्री सेंटीग्रेड के बीच तक पहुँच जाता है।

जलवायु बदलाव के इन्हीं बुरे प्रभावों को दूर करने के लिये तरु लीडिंग एज ने कुछ कामों की पहल की, इनमें शहर के पुराने तालाबों को पुनर्जीवित करने की पहल भी शामिल है। पहली बार तरु की नजर इन पर पड़ी तो ये तालाब बदहाली से उपेक्षित थे। तरु ने नगर निगम के साथ मिलकर इनके कायाकल्प पर जोर दिया।

2013 में इसके जलग्रहण क्षेत्र में कई बार बाढ़ आने से तालाब जलकुम्भी से पूरी तरह ढँक गया। किसी ने ध्यान नहीं दिया। जलकुम्भी तेजी से फैलती है, इसका एक पौधा 50 दिनों में 3000 पौधे पैदा कर देता है। इस तरह एक साल में यह 600 वर्गमीटर के क्षेत्र को ढँक सकता है।

2014 में खजराना तालाब से इसको निकालने की पहल तरु ने नगर निगम और स्थानीय लोगों के साथ की। स्थानीय लोग इसकी विशेषता गिनाते हुए बताते हैं कि यह भूजल स्तर को बढ़ाने वाला साबित हो सकता है। इसके पानी का उपयोग स्थानीय लोगों की दैनिक आपूर्ति के लिये किया जा सकता है। जन सहभागिता से इसे नया स्वरूप दिया जा सकता है। यह तालाब आसपास के इलाके के लोगों के लिये तापमान को कम कर शहरी ऊष्मा घटाने में भी सहायक हो सकता है। इसी बात पर पहल हुई।

तरु लीडिंग एज की परियोजना सहायक दीपा दुबे बताती हैं कि बीते दो सालों में यहाँ बहुत काम हुए हैं। सबसे पहले लोगों के साथ मिलकर जागरुकता बढ़ाने पर काम शुरू किया। हमें लगता था कि एक बार समाज को यह अपना लगने लगे तो सब ठीक हो सकता है। हमने इसी पर फोकस किया। धीरे-धीरे लोगों की समझ विकसित हुई। रैलियाँ निकाली गई, बैठकें हुईं, बच्चों को जोड़ा, लोगों को पानी और पर्यावरण के मुद्दे पर समझाया। साफ-सफाई और इससे बीमारियों के सम्बन्ध बताए। वहीं के लोगों को शामिल कर तालाब संरक्षण व प्रबन्ध समिति बनाई गई।

दूसरा काम तालाब से जलकुम्भी हटाने और इसकी सफाई का था। निगम के साथ इसके पूरे जलग्रहण क्षेत्र पर विस्तार से काम शुरू हुआ। गाद हटाने के बाद पानी को साफ बनाए रखने के लिये कई तरह की तकनीकों का इस्तेमाल किया गया। इसमें ठोस तथा पानी के साथ बहकर आने वाले कचरे और दूषित जल को रोकने पर भी काम हुआ। जैविक पद्धतियों का सहारा लिया गया।

तालाब की सतह पर जम चुकी सिल्ट हटाकर मिट्टी का उपचार किया गया। सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट से ड्रेनेज के पानी को अलग कर इसके कैचमेंट को व्यवस्थित किया। यहाँ तैरता हुआ आईलैंड लगाया गया। कृत्रिम तैरते हुए द्वीप वनस्पति को तैरने वाले प्लेटफार्म का आधार देता है तथा इसका मुख्य काम पानी को साफ करना और छोटे कृत्रिम पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करना है। इसके साथ बाँस के पौधों का जाल भी बिछाया गया।

पार्षद प्रतिनिधि सुनील पाटीदार बताते हैं कि तालाब जल संरक्षण व प्रबन्ध समिति हर रविवार तालाब के किनारों पर इकट्ठा होकर इसके विकास पर बात करती है। पर कुछ लोगों के कचरा डालने तथा बारिश के पानी में कहीं से जलकुम्भी के पौधे हो जाने से तालाब पट गया है। कुछ जगह गन्दगी भी होने लगी है पर हम पूरा प्रयास कर रहे हैं कि तालाब का सौन्दर्य फिर से निखरे। जागरुकता के साथ ही नगर निगम से जलकुम्भी हटाने की बात भी चल रही है। लेकिन कुछ दिनों में तालाब खाली होने पर ही इसके समूल खत्म करने में आसानी होगी, इसलिये इसके सूखने के बाद फिर से इस पर काम करेंगे। जलकुम्भी हटाने के साथ ही गाद निकालने, सुरक्षा दीवाल बनाने और फेंसिंग के काम भी होंगे। तैरता हुआ द्वीप और ट्रीटमेंट प्लांट काम कर रहा है। हम तालाब को फिर से उसी स्वरूप में लाएँगे।

खजराना तालाब के लिये कुछ महीने चार दिन की चाँदनी साबित हुए हैं लेकिन इसका बड़ा सबक यही है कि तालाबों के संरक्षण में हमें लगातार काम करना होता है। छोटी-सी भी लापरवाही या उपेक्षा तालाबों को खत्म कर सकती है। यह एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है।
 

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Post By: RuralWater
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