बढ़ती जनसंख्या के दबाव और जल संसाधनों के प्रति उपेक्षित रवैए ने इसके आकार और इसकी प्राकृतिकता में भी बदलाव किया है। यह तालाब इसलिये भी महत्त्व का है कि यह मात्र भूजल स्तर या जैव विविधता के लिये ही नहीं बल्कि मछली पालन जैसे आय उपार्जित करने के प्रयोजन से भी महत्त्व का है। इसके आसपास करीब 400 परिवार रहते हैं। 2001 में पंचायत ने इस तालाब का गहरीकरण कर इसकी मिट्टी से पाल मजबूत किया था लेकिन उसके बाद बीते 13 सालों तक किसी ने इस पर ध्यान नहीं दिया। हमेशा यह जरूरी नहीं होता कि सार्वजनिक जल संसाधनों और तालाबों के पुनरुत्थान के लिये सरकारों की पहल, अधिकारियों की रुचि और भारी-भरकम बजट ही होना चाहिए, कई बार स्थानीय समाज भी अपनी पहल से अपने तालाबों को सुधार सकता है। ऐसा ही एक प्रयास मध्य प्रदेश के इन्दौर शहर स्थित लसूड़िया मोरी तालाब पर वहाँ के लोगों ने कर दिखाया है।
इन्दौर महानगर के नजदीक लसूड़िया मोरी कभी गाँव हुआ करता था पर अभी एक साल पहले इसे इन्दौर की नगर निगम सीमा में दर्ज कर शहर में तब्दील कर दिया गया है। अब तक लसूड़िया गाँव के लोग अपने पानी के लिये कुओं–कुण्डियों और यहाँ के तालाब पर निर्भर रहते थे लेकिन बाद में ग्राम पंचायत ने यहाँ कुछ नलकूप और हैंडपम्प खनन करवाए, जिससे फिलहाल पूरी आबादी को जल प्रदाय किया जाता है।
कभी इन्दौर शहर से 10 किमी दूर इस तालाब का निर्माण करीब 90 साल पहले ग्रामीणों की जलापूर्ति के लिये रियासत काल में हुआ था। ग्राम पंचायत के रिकॉर्ड में इसका क्षेत्र 4.86 हेक्टेयर दर्ज है पर अतिक्रमण के बाद अब 2.85 हेक्टेयर में ही सिमट गया है। यह तालाब बेंग्ची (टेडपोल) के आकार का है। फिलहाल इसकी अधिकतम गहराई साढ़े 4 मीटर की है।
बढ़ती जनसंख्या के दबाव और जल संसाधनों के प्रति उपेक्षित रवैए ने इसके आकार और इसकी प्राकृतिकता में भी बदलाव किया है। यह तालाब इसलिये भी महत्त्व का है कि यह मात्र भूजल स्तर या जैव विविधता के लिये ही नहीं बल्कि मछली पालन जैसे आय उपार्जित करने के प्रयोजन से भी महत्त्व का है। इसके आसपास करीब 400 परिवार रहते हैं। 2001 में पंचायत ने इस तालाब का गहरीकरण कर इसकी मिट्टी से पाल मजबूत किया था लेकिन उसके बाद बीते 13 सालों तक किसी ने इस पर ध्यान नहीं दिया।
तालाब में रासायनिक और जैविक दोनों ही तरह के प्रदूषकों के कारण प्रभावित हो रहा था। इसके संकरे भाग में खुली सीवेज का पानी मिल रहा था। गन्दगी आने से तालाब में जलकुम्भी और जंगली घास फैल जाया करती थी।
पानी की सतह पर इनके फैल जाने से सूर्य का प्रकाश नीचे तक नहीं पहुँच पाता और पानी में घुली ऑक्सीजन की मात्रा में कमी आने से यहाँ मच्छरों के बढ़ने के साथ ही मछलियों सहित अन्य जलीय जीवों के अस्तित्व पर संकट खड़ा हो जाया करता था।
बड़ी चुनौतियों के रूप में तालाब में ठोस अपशिष्ट पदार्थों को आने से रोकना, सीवेज से आने वाले दूषित पानी को रोकना, आबादी से लगने वाले हिस्से पर फेंसिंग करना, जलकुम्भी और जंगली घास को फैलने से रोकना, बारिश में अतिरिक्त पानी को बाहर निकालने के लिये आउटलेट आदि थे।
दरअसल इन्दौर में तरु लीडिंग एज प्रा.लि. आपातकालीन जल प्रबन्धन विकल्पों के लिये तालाबों के संरक्षण परियोजना का क्रियान्वयन नगर निगम इन्दौर के सहयोग से कर रही है। इसका मुख्य उद्देश्य स्थानीय जल संसाधनों का संरक्षण और समुदायों की भागीदारी सुनिश्चित करना और इनमें विभिन्न स्टेकहोल्डर को जोड़ते हुए तालाबों के तकनीकी, सामाजिक और प्रबन्धकीय मुद्दों को शामिल कर तालाबों का संरक्षण करना है।
तरु ने भी तालाब के पानी का उपचार करने के लिये तकनीकी संरचनाएँ विकसित की हैं। यहाँ संस्था के सहयोग से तीन कृत्रिम तैरते हुए द्वीप आर्टिफिशियल फ्लोटिंग आईलैंड लगाए गए हैं। ये तैरने वाली संरचना हैं और इस पर जलीय वनस्पति को रोपित किया जाता है।
इससे तालाब की सुन्दरता तो बढ़ती ही है। पानी को साफ रखने और कृत्रिम पारिस्थितिकी तंत्र बनाने में इनका बड़ा योगदान है। लसूड़िया तालाब में तीन तरह के प्रथम, द्वितीय और तृतीय जनरेशन वाले आईलैंड लगाए हैं।
इसके अलावा तरु ने तालाब में आने वाले मुख्य इनलेट की तरफ से बहकर आने वाले निस्तारी पानी की गुणवत्ता बढ़ाने के लिये जैविक पद्धति से वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट भी लगाया गया है। इसमें कुछ पौधों को इस तरह इनलेट एरिया में लगाया जाता है कि उससे होकर गुजरते पानी में दूषित होने की सम्भावनाएँ नहीं रह सकें।
जल संकट से बचाने और पर्यावरण को फायदा पहुँचाने के उद्देश्य से कुछ जागरूक रहवासियों ने तरु लीडिंग एज के सहयोग से लसूड़िया तालाब के जीर्णोंद्धार और संरक्षण के लिये जल संरक्षण और प्रबन्धन समिति बनाई है और इसे राज्य सोसाइटी एक्ट में पंजीकृत भी कराया है। अब समिति अपने सामूहिक प्रयासों से तालाब की तकदीर बदलने में जुटी है।
अप्रैल 2014 में पहली बार समिति की बैठक हुई। तालाबों के संरक्षण में समुदाय की सहभागिता को प्रेरित कर जागरुकता बढ़ाने और तालाब के पानी की गुणवत्ता बढ़ाने के लिये उसे उपचारित करने में जुटी तरु संस्था ने लोगों को पानी के मुद्दे पर जोड़ा और उन्हें तालाब की उपयोगिता और महत्त्व के बारे में जानकारियाँ दी। बाद में 46 सदस्यों वाली इस समिति का जनवरी 2016 में कानूनी तौर पर पंजीयन भी कराया गया।
समिति ने तालाब के किनारे ही स्थित सरकारी स्कूल में बच्चों के लिये चित्रकला और स्लोगन प्रतियोगिताएँ भी आयोजित की। रैलियाँ निकाली गईं। मानव शृंखलाएँ बनाई गईं। शपथ पत्र भरवाकर हस्ताक्षर अभियान चलाया गया। तालाब को बेहतर बनाने में आ रही अड़चनों को सूचीबद्ध किया गया और तत्सम्बन्धी निराकरण के लिये स्थानीय समुदाय ने मिल-बैठकर बातचीत की, इससे कई समस्याएँ सुलझ सकीं।
शहर के कुछ कॉलेजों के बच्चों ने यहाँ आकर राष्ट्रीय सेवा योजना में श्रमदान किया। तालाब परिसर और आसपास तालाब बचाने के नारे लिखे गए। आसपास रहने वाली महिलाओं की बैठक में सहमती से तय हुआ कि उनमें से कोई भी किसी भी दशा में अपने घरों का कचरा तालाब में नहीं आने देंगी।
26 अगस्त 2015 की बैठक में तय हुआ कि तालाब के पानी में रासायनिक प्रदूषण रोकने के लिये प्रतिमाओं का विसर्जन तालाब में होने से रोका जाये। स्थानीय विधायक राजेश सोनकर की मौजूदगी में करीब 500 प्रतिमाओं को तालाब में विसर्जित करने की जगह तालाब के बाहर एक कृत्रिम टैंक बनाकर विसर्जित किया। इसमें समिति सदस्यों के साथ सामुदायिक युवा समूह, महिलाओं, स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों और आसपास के लोगों ने भी मदद की।
इस तरह लसूड़िया तालाब इन्दौर शहर का पहला ऐसा तालाब बना, जिसने इन्दौर में पहली बार तालाबों को प्रदूषण से बचाने के लिये प्रतिमाओं के कृत्रिम टैंक में विसर्जित करने के काम को जमीन पर उतारा। इस अभियान से तालाब में एक भी मूर्ति विसर्जित नहीं हो सकी।
समिति के लोगों ने अब तक तालाब की पाल पर पौधरोपण, कुछ हिस्सों में अस्थायी बाड़ लगाने, जलकुम्भी और जंगली घास से तालाब को पूरी तरह मुक्त करने, अस्थायी आउटलेट बनाने, समय–समय पर फिटकरी डाले जाने, नगर निगम से नियमित कचरा गाड़ियों के बुलाने से कचरा नियंत्रण तथा तालाब में कचरा नहीं फेंकने और अन्य सूचनाओं के संकेत बोर्ड सहित सदस्यों के पहचान पत्र भी जारी किये हैं।
संस्था तरु लीडिंग एज की परियोजना सहायक दीपा दुबे ने बताया कि तरु के सहयोग से स्थानीय समिति ने रैली, जन चेतना सभाएँ, समूह चर्चा और नुक्कड़ बैठकों के जरिए जहाँ लोगों में तालाब की उपयोगिता और इसे गन्दा न करने पर जोर दिया, वहीं तालाब में मूर्तियों के विसर्जन पर भी खुद रोक लगाई। साथ ही तालाब के संरक्षण और सौन्दर्यीकरण के लिये भी सतत बीते दो सालों से काम में जुटी है।
ग्रामीणों की समिति ने इसके लिये बाकायदा एकीकृत तालाब संरक्षण एवं प्रबन्धन कार्ययोजना भी तैयार की है। अब समिति के लगातार काम और जागरुकता से रहवासी भी समझने लगे हैं कि इलाके का भूजल स्तर तालाब के पानी पर ही निर्भर है।
लसूड़िया तालाब की संरक्षण और प्रबन्धन समिति के अध्यक्ष बाबूलाल यादव बताते हैं कि उन्होंने नगर निगम से तालाब के संरक्षण में भागीदारी का आग्रह करते हुए प्रस्ताव दिया है कि वे तालाब के हित में यहाँ गाद निकालने, बगीचा निर्माण, पाल पर बंड निर्माण, 2 मीटर ऊँचाई की सुरक्षा वाल बनाने और फेंसिंग करने, चौकीदार नियुक्त करने, स्थायी आउटलेट, बोटिंग संरचना आदि काम करवाएँ तो यह तालाब अच्छे स्वरूप में हमारे सामने आ सकता है और हमारा उत्साह भी बढ़ेगा।
समिति के सचिव सुन्दर लाल ने बताया कि पहले यहाँ का तालाब गर्मियों में सूख जाया करता था पर अब पूरे साल पानी से भरा रहता है। यहाँ के लोग मवेशियों के पानी सहित निस्तारी कामों के लिये इस पानी का इस्तेमाल करते हैं, वहीं गाँव का ही सरस्वती स्वसहायता समूह इस पर मछली पालन कर रहा है।
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Post By: RuralWater