Posted on 02 Nov, 2010 09:08 AM दुनियाभर में नदियों के साथ मनुष्य का एक भावनात्मक रिश्ता रहा है, लेकिन भारत में आदमी का जो रिश्ता नदियों- खासकर गंगा, यमुना, नर्मदा, गोदावरी आदि प्रमुख नदियों के साथ रहा है, उसकी शायद ही किसी दूसरी सभ्यता में मिसाल देखने को मिले। इनमें भी गंगा के साथ भारत के लोगों का रिश्ता जितना भावनात्मक है, उससे कहीं ज्यादा आध्यात्मिक है।
भारतीय मनुष्य ने गंगा को देवी के पद पर प्रतिष्ठित किया है। हिन्दू धर्मशास्त्रों और मिथकों में इस जीवनदायिनी नदी का आदरपूर्वक उल्लेख मिलता है।
Posted on 20 Oct, 2010 09:10 AM हिन्दुस्तान में अनगिनत नदियां है, इसलिए संगमों का भी कोई पार नहीं हैं। इन सभी संगमों में हमारे पुरखों ने गंगा-यमुना का यह संगम सबसे अधिक पसन्द किया है, और इसीलिए उसका ‘प्रयागराज’ जैसा गौरवपूर्ण नाम रखा है। हिन्दुस्तान में मुसलमानों के आने के बाद जिस प्रकार हिन्दुस्तान के इतिहास का रूप बदला, उसी प्रकार दिल्ली-आगरा और मथुरा-वृन्दावन के समीप से आते हुए यमुना के प्रवाह के कारण गंगा का स्वरूप भी प्रयाग के बाद बिलकुल बदल गया है। गंगा कुछ भी न करती, सिर्फ देवव्रत भीष्म को ही जन्म देती, तो भी आर्य-जाति की माता के तौर पर वह आज प्रख्यात होती। पितामह भीष्म की टेक, भीष्म की निःस्पृहता, भीष्म का ब्रह्मचर्य और भीष्म का तत्त्वज्ञान हमेशा के लिए आर्यजाति का आदरपात्र ध्येय बन चुका है। हम गंगा को आर्यसंस्कृति के ऐसे आधारस्तंभ महापुरुष की माता के रूप में पहचानते हैं।
नदी को यदि कोई उपमा शोभा देती है, तो वह माता की ही। नदी के किनारे पर रहने से अकाल का डर तो रहता ही नहीं। मेघराजा जब धोखा देते हैं तब नदी माता ही हमारी फसल पकाती है। नदी का किनारा यानी शुद्ध और शीतल हवा। नदी के किनारे-किनारे घूमने जायें तो प्रकृति के मातृवात्सल्य के अखंड प्रवाह का दर्शन होता है। नदी बड़ी हो और उसका प्रवाह धीरगंभीर हो, तब तो उसके किनारे पर रहनेवालों की शानशौकत उस नदी पर ही निर्भर करती है। सचमुच नदी जन समाज की माता है।
Posted on 24 Nov, 2009 06:49 AMनदियों के प्रति काका कालेलकर का भाव दृष्टव्य है ``नदी को देखते ही मन में विचार आता है कि यह कहां से आती है और कहां जाती है ... आदि और अंत को ढूंढने की सनातन खोज हमें शायद नदी से ही मिली होगी ....। संसार का हर व्यक्ति पेयजल, खाद्य पादर्थ, मत्स्य पालन, पशु पालन, कृषि एवं सिंचाई साधन आदि के लिए नदी जल परम्परा से जुड़ा है। जल चक्र की नियामक धारा स्वरूपा इन नदियों को सहेजना हमारा धर्म है। अब वक्त आ गया है कि हम उन कारणों को खोजे जो हमारी नदियों एवं जल वितरणिकाओं को निर्जला कर रहे हैं। हमारी रसवसना नदियों को सुखाकर अथवा प्रदूषित कर हमारी आँखों में आँसू भर रहे है।
Posted on 10 Oct, 2009 08:07 AM 5 अक्टूबर को सम्पन्न गंगा प्राधिकरण की पहली बैठक में जो महत्वपूर्ण निर्णय हुआ वह यह कि गंगा में निवास करनेवाली डॉल्फिन को राष्ट्रीय जलचर घोषित कर दिया गया. बाघ और मोर के बाद डाल्फिन को राष्ट्रीय महत्व का दर्जा दिया जाना डाल्फिन को उसकी गरिमा तो दिलाता है लेकिन हकीकत यह है कि देश के नदियों के पवित्र जल में निवास करनेवाली डाल्फिन का अस्तित्व खतरे में है.
Posted on 05 Oct, 2009 07:35 AM उत्तरकाशी जिले में स्थित 4,000 मीटर से लेकर 1,500 मीटर में स्थित गोमुख, भोजवासा, धराली, हर्शिल, दानपुर, रैंथल, दयारा, बड़कोट, नौगाँव, खलाड़ी, पुरोला क्षेत्रों के एक सामान्य अध्ययन से पता चला कि यहाँ का जन जीवन दिन प्रतिदिन कठिन होता जा रहा है। निरीह ग्रामीण विकराल होती आपदाओं के शिकार हो रहे हैं। साथ ही वातावरण, तापमान, भूमि, जैव विविधता, आजीविका, संस्कृति पर हो रहे प्रहारों से सहज जीवन भी क
Posted on 20 Sep, 2009 12:42 PM गंगा घाटी को नए सिरे से बचाने की सरकारी कवायद के तहत आगामी ५ अक्टूबर को पर्यावरण मंत्रालय ने जो बैठक बुलाई है उससे से कोई नयी शुरुआत की उम्मीद नहीं है क्योंकि नदियों को नुक्सान पहुंचाने वाली नीतियों की यथास्थिति बनी हुई है। प्रधानमंत्री ने १८ अगस्त को एक सम्मलेन में कहा था कि गंगा घाटी को बचाने का जो मॉडल बनाया है उसी मॉडल को अन्य नदियों पर लागू किया जायेगा। इस मॉडल की सबसे बड़ी खामी है की य
Posted on 14 Jul, 2009 02:28 PM हर रोज की तरह आज कछला घाट सूना सूना नहीं था। रविवार की दोपहर से ही वहां दूर दराज से लोगों का आना शुरू हो गया था। शाम होते-होते हजारों की तादाद में लोगों से भरे वाहनों की भीड़ गंगा किनारे आ लगी थी। इससे भी ज्यादा भीड़ थी सोरों में जो अगले दिन के इंतजार में सोरों में ही रात गुजारने की तैयारी में थी। उत्तरप्रदेश के जनपद काशीरामनगर (एटा) स्थित सोरों के पास महज 13 किलोमीटर की दूरी पर ही है गंगा का