दुनिया

Term Path Alias

/regions/world

टिकाऊ विकास के सपने का ‘रियो’
Posted on 19 Jun, 2012 11:49 AM रियो में ही 1992 में पृथ्वी शिखर सम्मेलन में भविष्य की सुंदर तस्वीर खींची गयी थी। पृथ्वी सम्मेलन से वह सब तो हासिल नहीं हुआ, जिसकी दरकार थी फिर भी उसने सकारात्मक वातावरण बनाया जो आज रियो+20 के रूप में हमारे सामने है। और अब, रियो+20 सम्मेलन में विश्वनेता कई महत्वपूर्ण निर्णय लेंगे जो सकारात्मक या नकारात्मक रूप से धरती की भावी तस्वीर बनायेंगे। इस वैश्विक सम्मेलन में जिन मुद्दों पर बहस और फैसले हो
रियो+20 : संकीर्ण स्वार्थों के जलसाघर
Posted on 19 Jun, 2012 11:45 AM भारत जैसे देश में रियो+20 का मतलब कितने प्रतिशत लोग समझते हैं, यह तो नहीं मालूम; लेकिन इतना ज़रूर है कि 1992 में आयोजित पृथ्वी शिखर सम्मेलन के 20 साल बाद हो रहे रियो+20 सम्मेलन से जो कुछ निकलेगा, उसका प्रभाव भारत ही नहीं पूरी दुनिया के लोगों और तमाम प्राणिमात्र पर पड़ेगा। आशा और आशंका के बीच ब्राजील के रियो दी-जानीरो शहर में संयुक्तराष्ट्र का रियो+20 सम्मेलन 13 से 22 जून तक होने जा रहा है, हाला
जैव विविधता पर मंडराते संकट के बीच
Posted on 18 Jun, 2012 12:20 PM दरअसल संसाधनों की लूट, उपभोक्तावादी संस्कृति, जलवायु परिवर्तन और जनसंख्या वृद्धि वैश्विक गरीबी बढ़ाने में खाद्य-पानी का काम कर रहे हैं। जैव विविधता में हो रही कमी के कारण ही मौसमी दशाओं में बदलाव आ रहा है, जिसका सर्वाधिक दुष्प्रभाव गरीबों पर पड़ रहा है। जिस पर चर्चा कर रहे हैं रमेश कुमार दुबे.....
जलवायु परिवर्तन : कुछ रोचक तथ्य
Posted on 16 Jun, 2012 11:10 AM 1. एक औसत बांग्लादेशी नागरिक के सालाना खर्चे से अधिक खर्चा यूरोप एवं अमेरिका में ‘जर्मन शेफर्ड’ प्रजाति के दो पालतू कुत्तों पर किया जाता है।
फूड बैंक की स्थापना से क्या हासिल होगा
Posted on 15 Jun, 2012 01:44 PM इन योजनाओं के व्यापक फलक के बावजूद देश में अधिकाधिक गरीब भुखमरी के शिकार हो रहे हैं। यूनिसेफ के अनुसार कुपोषण से भारत में रोजाना पांच हजार बच्चे मौत के मुंह में समा जाते हैं। यदि गहराई से देखा जाए तो अनाज भण्डारण की केंद्रीकृत व्यवस्था के कारण ही एक ओर अनाज का पहाड़ खड़ा है तो दूसरी ओर भुखमरी से मौतें हो रही हैं। इसकी जानकारी हमें रमेश कुमार दुबे दे रहे हैं।
रियो+20: स्थगित सरोकारों का सम्मेलन
Posted on 15 Jun, 2012 12:26 PM रियो के पहले सम्मेलन में पूरी दुनिया के देशों के समक्ष जब धरती के बढ़ते तापमान और जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने का एजेंडा रखा गया था, तब से लेकर आजतक विचित्र यह है कि चर्चा के लिए बहुत सारे ऐसे मुद्दों को स्वतंत्र विषय मान लिया गया है जो मूलत: विकास की मौजूदा दृष्टि के दुष्परिणाम ज्यादा हैं। इस विषय को उजागर कर रहे हैं नरेश गोस्वामी
गंदे पेयजल की बीमारियों से दूर भगाए नींबू + सूर्य किरण
Posted on 14 Jun, 2012 03:25 PM आज भी पीने का स्वच्छ पानी न मिल पाने से दुनिया की बहुत बड़ी आबादी गैस्ट्रो-एंटेराइटिस, डायरिया, अमीबायसिस, हैजा, टायफाइड, वाइरल हैपेटाइटिस आदि बीमारियों से घिरी हुई है। कुछ अनुमानों के अनुसार दुनियाभर के अस्पतालों में भर्ती 50 फीसदी से अधिक रोगी जल-संक्रमण से उपजी बीमारियों से ग्रस्त हैं। अगर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मुहिम छेड़ी जाए तो विश्व समुदाय इस भयानक साये से मुक्त हो सकता है। आवश्यकता जनजागरूक
कोप 15: जंग तो अब शुरू हुई है धरती बचाने की
Posted on 12 Jun, 2012 07:55 AM

आज धरती दुखी है। इस पर रहने वाले तमाम प्राणी दुखी हैं। तमाम विरासतें दुखी हैं। अर्थात् जड़ से चेतन सब दुखी। मनुष्य से 'कम समझदार' प्राणियों को शायद मालूम न हो कि दुख का कारण क्या है पर 'सबसे समझदार' प्राणी मनुष्य को मालूम है कि आज धरती पर जो संकट है उसके दुख का कारण वह स्वयं है। अब वह चाहे पहली दुनिया का ही क्यों न हो। क्यूबा के करिश्माई नेता फिदेल कास्त्

cope-14
रियो+20 के लिए राष्ट्रीय व वैश्विक प्राथमिकताएं
Posted on 11 Jun, 2012 06:01 PM

रियो सम्मेलन विश्व स्तर पर होने वाला सबसे बड़ा सम्मेलन है जो कि विकास के भविष्य का एजेंडा व रणनीति को तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। किंतु भारत सरकार द्वारा अभी तक अपना पक्ष या दृष्टि स्पष्टता से नहीं रखी गई है और न ही लोकसभा व राज्यसभा में इस विषय पर चर्चा व बहस कराई गई है। यह निराशाजनक है खासकर तब जब हम जानते हैं कि 2015 तक सहस्राब्दी विकास लक्ष्यों को पाना नामुमकिन है, विश्व की आधी से अधिक भुखमरी हमारे देश में व्याप्त है।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संपूर्ण विश्व के राष्ट्राध्यक्ष, सिविल सोसाइटी के प्रतिनिधि और विकास के मुद्दों से जुड़े विभिन्न संगठनों के प्रतिनिधी 20 से 22 जून 2012 को ब्राजील की राजधानी रियो दी जेनेरियो में एकत्रित होने जा रहे हैं। इस महासम्मेलन को रियो+20 का नाम दिया है क्योंकि 20 वर्ष पूर्व (1992) भी रियो में 172 सरकारों के प्रतिनिधियों की उपस्थिति में संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा पर्यावरण और विकास के मुद्दों पर वैश्विक सम्मेलन का आयोजन किया गया था और पहली बार वैश्विक राजनैतिक पटल पर सतत् विकास (Sustainable Development) पर गंभीरता से चिंतन किया गया और माना गया कि सामाजिक, आर्थिक व पर्यावरणीय विकास को पृथक न कर समग्रता में देखते हुए विकास के मुद्दों पर कार्य करना चाहिए। इस सम्मेलन का महत्वपूर्ण परिणाम था एजेंडा 21 जो कि 21वीं शताब्दी के विकास का एक्शन प्लान था और जिसे राष्ट्रों से अपने विकास के एजेंडा में शामिल करने की अपील की गई थी।
रियो+20 का आयोजन : हम भविष्य की पीढ़ियों को कैसी पृथ्वी देना चाहते हैं
Posted on 11 Jun, 2012 05:43 PM 1992 में लगभग 20 साल पहले पृथ्वी सम्मेलन का आयोजन किया गया था। जो ब्राजील के शहर रियो दि जेनेरियो में हुआ था। यह सम्मेलन पृथ्वी पर जीवों के सतत् विकास कि चिंताओं को लेकर हुआ था। 20 साल बाद फिर रियो में ही पृथ्वी सम्मेलन का आयोजन हो रहा है। इस आयोजन के मुद्दों, चिंताओं, और भविष्य की पीढ़ियों को सतत् विकास के लिए जरूरी संसाधनों की सोच को बता रहे हैं संयुक्त राष्ट्र के महासचिव बान की मून।

कई देशों में वृद्धि रुक गई है। नौकरियां कम हैं, अमीर-गरीब के बीच खाई बढ़ती जा रही है और भोजन, ईंधन तथा उन प्राकृतिक संसाधनों की कमी होने लगी है, जिन पर सभ्यता निर्भर होती है। रियो में उपस्थित प्रतिनिधि सहस्राब्दि विकास लक्ष्यों की सफलता की बुनियाद पर आगे बढ़ने की कोशिश करेंगे। इन लक्ष्यों ने लाखों लोगों को गरीबी के दलदल से निकालने में मदद की है। स्थायी विकास या वहनीय विकास पर नया जोर नौकरियों से भरपूर आर्थिक वृद्धि और पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ सोशल इनक्लूजन की गुंजाइश भी बना सकता है।

अब से 20 साल पहले पृथ्वी शिखर सम्मेलन हुआ था। रियो दि जेनेरियो में जमा हुए पूरी दुनिया के नेता इस ग्रह के अधिक सुरक्षित भविष्य के लिए एक महत्वाकांक्षी योजना पर सहमत हुए थे। वे जबर्दस्त आर्थिक विकास और बढ़ती जनसंख्या की आवश्यकताओं के साथ हमारी धरती के सबसे मूल्यवान संसाधनों जमीन, हवा और पानी के संरक्षण का संतुलन बनाना चाहते थे। इस बात को लेकर वे सहमत थे कि इसका एक ही रास्ता है - पुराना आर्थिक मॉडल तोड़कर नया मॉडल खोजा जाए। उन्होंने इसे टिकाऊ विकास का नाम दिया था। दो दशक बाद हम फिर भविष्य के मोड़ पर खड़े हैं। मानवता के सामने आज भी वही चुनौतियां हैं, बस उनका आकार बड़ा हो गया है। धीरे-धीरे हम समझने लगे हैं कि हम नए युग में आ गए हैं। कुछ लोग इसे नया भूगर्भीय युग कहते हैं, जिसमें इंसानी गतिविधियां धरती की चाल बदल रही हैं।
×