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ड्रैगन जैसा न हो भारत का विकास
Posted on 26 Sep, 2014 03:58 PM निवेशक हमेशा मुनाफे के लिए ही निवेश करता है, वह चाहे अमेरिका हो या चीन। वैसे ही इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि निवेशकों में होड़ तभी होती है, जब निवेश करना सुरक्षित हो और पर्याप्त मुनाफे की गारंटी। संभवतः इस दृष्टि से दुनिया आज भारत केे सबसे मुफीद देशों में से एक है। निर्णय लेने और उसे लागू कराने में सक्षम प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की छवि, निस्संदेह निवेशकों को आकर्षित करने में सक्षम है। यह होड़ इसीलिए मची हुई है। हम चूंकि निवेश के भूखे राष्ट्र हैं इसलिए इस होड़ को लेकर हम अंदर-बाहर तक गदगद होते रहते हैं। हमारे प्रधानमंत्री हमारी इस भूख के इंतजाम करने में सफल भी दिखाई दे रहे हैं।

द्विपक्षीय शर्तों पर सहमति बनें


हम खुश हों कि अगले पांच साल में 100 अरब डॉलर के चीनी निवेश से सुविधा संपन्न रेलवे स्टेशन, रेलवे ट्रैक के विस्तार, तीव्र गति रेलगाड़ियों और अधिक औद्योगिक पार्क की हमारी भूख मिटेगी।
<i>तिब्बत में परमाणु कचरा</i>
बाढ़ की उल्टी गंगा
Posted on 26 Sep, 2014 03:50 PM
.बिहार, आसाम, बंगाल और पूर्वी उत्तर प्रदेश ये मुख्यतः बाढ़ के इलाके जाने जाते हैं। परंतु पिछले कुछ वर्षों से प्रकृति ने बाढ़ के संदर्भ में ‘उल्टी गंगा बहना’ मुहावरे को साकार कर दिया है। इस वर्ष राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और मध्य प्रदेश में हुई बारिश ने तबाही मचा दी है। आश्चर्य तो यह है कि कुछ दिनों पहले इन इलाकों से पानी की कमी की खबरें आ रहीं थीं।

महाराष्ट्र को तो इस बार बाढ़ की प्राकृतिक विपदा रह-रहकर झेलनी पड़ी। राजस्थान में प्रत्येक साल जहां बूंद-बूंद के लिए लोग तरसते रहते हैं, वहीं इस बार प्रकृति ने उसे भी एक नए तरह की या यूं कहिये पारिस्थितिकी तंत्र में आ रहे जबरदस्त बदलाव से अनायास आए इस तरह की विपदा को झेलने की तैयारी की चेतावनी दे दी है।
<i>राजस्थान में बाढ़</i>
सिंचाई में नहीं होगा पीने का पानी बर्बाद
Posted on 25 Sep, 2014 10:32 AM

दिल्ली जल बोर्ड ने सिंचाई, बागवानी, बिजली संयंत्रों व निर्माण के काम में उपचारित पानी का उपयोग बढ़ा कर पीने के पानी की मांग और आपूर्ति के अंतर को कम करने का फैसला किया है। इसके लिए छह मुख्य केंद्रों को उपचारित पानी मुहैया कराने की पहल की गई है।

Water
निर्मल गंगा
Posted on 25 Sep, 2014 09:40 AM

शिव की जटा से उत्पन्न, पर्वतों को चूमती हुई,
घाटियों में अठखेलियां करती, दूध की तरह धवल,
अग्नि की तरह पवित्र है जो।

सैकड़ों गुणों की खान है और मासूमियत से भरी है वो।
सबकी आवश्यकताओं को पूरा करती, सर्वत्र अपनी पवित्रता फैलाती।

कभी इठलाती, कभी बलखाती, अपनी ममता को दर्शाती,

Nirmal Ganga
बुराइयां भी मिटाइए और इनाम भी पाइए
Posted on 23 Sep, 2014 04:43 PM दिल्ली महानगर को साफ-सुथरा रखने के लिए एनडीएमसी की नई पहल
खुले में शौच पर करोड़ों खर्च पर नतीजा सिफर
Posted on 23 Sep, 2014 09:41 AM
भारत में आज 50 फीसदी से ज्यादा भारतीय लोगों के पास शौचालय नहीं है, विश्व में खुले में शौच जाने वाले सभी लोगों में 60 फीसदी लोग भारत में रहते हैं। भारत की यह समस्या खासकर ग्रामीण इलाकों में केंद्रित है, क्योंकि वहां की 60 फीसदी आबादी खुले में शौच करती है। इतनी संख्या में लोगों के खुले में शौच जाने से वातावरण में रोगाणु मिल जाते हैं, इससे बढ़ रहे और विक
मोबाइल शौच
नदियों को मारो मत...
Posted on 22 Sep, 2014 01:21 PM

नदियों को मारो मत,
निर्मल ही रहने दो।
अविरल तो बहने दो
जीयो और जीने दो।

हिमधर को रेती से,
विषधर को खेती से,
जोड़ो मत नदियों को,
सरगम को तोड़ो मत।

सरगम गर टूटी तो,
टूटेंगे छंद कई,
रुठेंगे रंग कई,
उभरेंगे द्वंद्व कई।
नदियों को मारो मत...

तरुवर की छांव तले।

पालों की सीलेंगे,

polluted river
प्रकृति के साथ मिलकर करें विकास
Posted on 21 Sep, 2014 12:13 PM नदियों, झीलों और पहाड़ों के पेट में घुसकर जिस तरह का निर्माण किया गया; उसे सभ्य समाज द्वारा विकसित सभ्यता का नाम तो कदापि नहीं दिया जा सकता।

. विकास और विनाश दो विपरीत ध्रुवों के नाम हैं। दोनों के बीच द्वंद्व कैसे हो सकता है? पहले आए विनाश के बाद बोए रचना के बीज को तो हम विकास कह सकते हैं; लेकिन जो विकास अपने पीछे-पीछे विनाश लाए, उसे विकास नहीं कह सकते। दरअसल वह विकास होता ही नहीं। बावजूद इस बुनियादी फर्क के हमारे योजनाकार आज भी अपने विनाशकारी कृत्यों को विकास का नाम देकर अपनी पीठ ठोकते रहते हैं।

विनाशकारी कृत्यों का विरोध करने वालों को विकास विरोधी का दर्जा देकर उनकी बात अनसुनी करते हैं। सुनकर अनसुनी करने का नतीजा है पहले उत्तराखंड, हिमाचल और अब धरती के जन्नत कहे जाने वाले कश्मीर में जलजला आया और हमने बेहिसाब नुकसान झेला। इन्हें राष्ट्रीय आपदा घोषित करना और हमारे प्रधानमंत्री जी द्वारा अपने जन्मदिन बनाने की बजाय जम्मू-कश्मीर को मदद भेजने का आह्वान संवेदनात्मक, सराहनीय और तत्काल सहयोगी कदम हो सकता है।
Badh
डिब्बाबंद भोजन यानि धीमा जहर
Posted on 20 Sep, 2014 10:48 AM बहुराष्ट्रीय कंपनियों के दबाव में आकर भारत सरकार एक बार पुनः मध्या
आदिवासियों को विशेषज्ञों से बचाएं
Posted on 20 Sep, 2014 10:19 AM हमारे देश में आदिवासियों को मुख्यधारा में लाने की मुहीम के चलते हमने उनका जीना दूभर कर दिया है। कोई भी समाज या समुदाय अपनी आंतरिक चेतना से ही बदलाव को अपना पाता है। हमारे नीति नियंताओं ने भारत के प्राकृतिक संसाधनों पर कब्जा करने के निमित्त आदिवासियों को जंगल से बाहर खदेड़ने के लिए एक काल्पनिक मुख्यधारा प्रवाहित कर ली है और यह बहाकर कहां ले जाएगी इसका भान किसी को भी नहीं है। प्रमुख चिंतक डॉ.
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