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पर्यावरण के मुद्दे (Environmental Issues)
Posted on 06 Jun, 2016 11:58 AM गत सौ वर्ष में मनुष्य की जनसंख्या में भारी बढ़ोत्तरी हुई है। इसके कारण अन्न, जल, घर, बिजली, सड़क, वाहन और अन्य वस्तुओं की माँग में भी वृद्धि हुई है। परिणामस्वरूप हमारे प्राकृतिक संसाधनों पर काफी दबाव पड़ रहा है और वायु, जल तथा भूमि प्रदूषण बढ़ता जा रहा है। हमारी आज भी आवश्यकता है कि विकास की प्रक्रिया को बिना रोके अपने महत्त्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधनों को खराब होने (निम्नीकरण) और इनको अवक्षय को रोकें और
भूजल में आर्सेनिक की रासायनिक यात्रा (Arsenic Contamination in Groundwater)
Posted on 03 Jun, 2016 04:31 PM

विश्व पर्यावरण दिवस, 05 जून 2016 पर विशेष

 


.बिहार में करीब चालीस साल पहले सिंचाई में भूजल का इस्तेमाल आरम्भ हुआ। लोग संशय से भरे थे। इसे ‘नरक से आने वाला पैशाचिक पानी’ ठहराया गया। लेकिन भूजल के इस्तेमाल का दायरा बढ़ता गया। इसमें सन 67-68 में अकाल का बड़ा योगदान था। तालाब और कुआँ खुदवाने की अपेक्षा नलकूप लगाना आसान और सस्ता था। बड़े पैमाने पर नलकूप लग गए।

पानी सर्वसुलभ होने का असर खेती पर पड़ा। अब धान की दो फसलें हो सकती थीं। लेकिन इस पानी में जहर आर्सेनिक छिपा था। इसका पता बहुत बाद में चल पाया। भूजल के अत्यधिक उपयोग से धरती के भीतर छिपा आर्सेनिक पानी में घुलकर बाहर आने लगा।

नदी जोड़ परियोजना - गम्भीर होती परिस्थितियों से तालमेल जरूरी
Posted on 23 May, 2016 02:04 PM


सन 1858 में सर आर्थर थामस कार्टन ने विदेशी माल ढुलाई का खर्च कम करने के लिये दक्षिण भारत की नदियों को जोड़ने का सुझाव दिया था। उसके बाद, सन 1972 में डॉ. केएल राव ने गंगा और कावेरी नदी को जोड़ने का सुझाव दिया। लगभग 30 सालों तक प्रस्ताव परीक्षणाधीन रहा और अन्ततः आर्थिक तथा तकनीकी आधार पर अनुपयुक्त होने के कारण खारिज हुआ।

जल संकट - राहत नहीं समाधान चाहिए
Posted on 20 May, 2016 10:59 AM


मौजूदा जल संकट बेहद गम्भीर है। उसे तत्काल समाधान की आवश्यकता है क्योंकि देश के दस राज्यों की लगभग 70 करोड़ आबादी सूखे से प्रभावित है। प्रभावित आबादी का अधिकांश हिस्सा ग्रामीण क्षेत्रों से है। इन इलाकों में पानी का मुख्य स्रोत कुएँ, तालाब, नदी या नलकूप हैं। वे ही सूख रहे हैं। प्रभावित लोग पानी के लिये तरस रहे हैं।

The Right to Information Act, 2005
Posted on 10 May, 2016 10:40 AM
संविधान, जल नीति और मौजूदा जल संकट
Posted on 08 May, 2016 03:11 PM
मौजूदा जल संकट की गम्भीरता का अनुमान सुप्रीम कोर्ट की 6 अप्रैल 2016 की उस टिप्पणी से लगाया जा सकता हैं जिसमें सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार से कहा है कि देश के दस राज्य सूखे की मार झेल रहे हैं। पारा 45 डिग्री पर पहुँच रहा है। लोगों के पास पीने का पानी नहीं है। उनकी मदद कीजिए। हालात बताते हैं कि महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखण्ड, कर्नाटक, ओड़िशा
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