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समुद्र के किनारे लगा प्लास्टिक के कचरे का ढेर।
बढ़ते सुखाड़ का घाव अब नासूर बन चुका है। अगले पांच साल बाद हालात बेहद गंभीर होंगे। जरूरत राहत की नहीं, रोग की जड़ पर जाकर उसका नाश करने की है। सिंचाई और उद्योग-पानी के दो सबसे बड़े उपभोक्ता हैं। इन दोनों से उनकी जरूरत के पानी के इंतजाम की जवाबदेही खुद उनके हाथ में देने की प्राथमिकता पर लाने के अलावा और कोई रास्ता नहीं है।