अवैध खनन और उनकी चुनौतियां

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पूरे देश में अवैध रेत खनन का करोबार माफिया और आपराधिक तत्वों के हाथ में है। जो ईमानदार अधिकारी और कर्मचारी रेत माफिया के खिलाफ अभियान चलाते हैं उन पर रेत से भरे ट्रक, ट्रैक्टर चढ़ा देना, हत्या कर देना, उनका तबादला करवा देना माफिया के लिए आम है। माफिया में ऐसी हिम्मत उनके राजनेताओं, भ्रष्ट अधिकारियों व अपराधी तत्वों के साथ जगजाहिर संबंधों से आती है।

सीमेंट और कंकरीट के निर्माण कार्यों में रेत का उपयोग अपरिहार्य है। आबादी बढ़ने के साथ-साथ आवास, स्कूल, अस्पताल, सड़क हों या पेयजल भंडारण से जुड़ी जरूरतें सभी कि निर्माण में रेत, सीमेंट, कंकरीट आदि की मांग तेजी से बढ़ी है। रेत में भी प्राथमिकता में मांग नदियों से निकलने वाली रेत की है। इसलिए भारत सहित दुनिया भर में ही नदियों से रेत खनन अत्यधिक होने लगा है। गैर-कानूनी रेत खनन का कारोबार पूरे देश में ही आपराधिक हिंसक प्रवृत्तियों के साथ जड़ें जमा चुका है। 

गुजरात में साबरमती नदी में रेत का इतना अवैध खनन होता रहा है कि अहमदाबाद, साबरकांठा, गांधीनगर जिलों में इन पर निगाह रखने के लिए 2018 में ड्रोन से निगरानी तक की गई। यह स्थिति तब है जब 2016 के बाद साबरमती नदी में गांधीनगर और अहमदाबाद के बीच रेत खनन पूरी तरह से रोक दिया गया था और इस बीच के क्षेत्र को संवेदनशील घोषित कर दिया गया था। गुजरात सरकार ने स्वीकार किया था कि राज्य में अवैध खनन बहुत गंभीर समस्या है। अन्य राज्य भी इस समस्या से बचे नहीं हैै। राज्य विधानसभाओं में भी इस पर चर्चा होती है, लेकिन अवैध रेत खनन नहीं हो रहा है, ऐसा न सत्तारूढ़ दल कहता है न विपक्ष।

नदियों में खनन का तो अब तक का यही इतिहास रहा है कि जितने खनन की अनुमति ली जाती है, उससे कई गुना ज्यादा का खनन होता है। बाद के पर्यावरणीय प्रभाव आकलन से ही पता चल पाएगा कि जितने खनिज, उपखनिज को निकाला जाना है व जिस जगह से निकाला जाना है। जिन तरीकों से और जिन मशीनों से निकाला जाना है, उनसे पर्यावरण को नुकसान तो नहीं हो रहा है। पर्यावरणीय प्रभाव आकलन में किनारों के भूजल भंडारण पर होने वाला अंतर, किनारों का कटाव, नए भूस्खलन, भू-धंसाव, भूक्षरण के संभावित क्षेत्रों का भी उल्लेख होता है।

रेत खनन से नदियों की पारिस्थितिकीय प्रणालियों के साथ-साथ तटीय क्षरण, नदी तलहटियों की भू-आकृतीय संरचनाओं में बदलाव मछलियों, घड़ियालों, कछुओं जैसे जलजीवों के आवागमन व प्रजनन क्षेत्रों में अवरोध और आत्मरक्षा के लिए उनके छुपने के क्षेत्रों पर संकट भी आ जाता है। गंगा की ही बात लें तो वैज्ञानिकों ने ही यह पुष्ट किया है कि रेत खनन से ऐसे कछुए, जिन्हें एक बार सफाई के लिए गंगा में डाला गया था अब लगभग समाप्त हो गए हैं। ये कचरे को नष्ट करने में मददगार होते थे। नदियों की वनस्पतियां भी रेत से खनन प्रभावित होती हैं। रेत कई तरह के प्रदूषण से बचाने में मददगार होती है। इससे पानी की गुणवत्ता ठीक रखने में भी मदद मिलती है।

नदी तलहटियों से रेत खनन से नदियों में जल प्रवाह की दशा व गति पर भी असर पड़ता है। आसपास की खेती भी इससे प्रभावित होती है। नदियों व पर्यावरण के लिए रेत के महत्व को स्वीकारते हुए अदालतों व सरकारी मानकों ने भी पर्यावरण हित में रेत खनन को नियमित व कई जगहों पर प्रतिबंधित किया है। निर्देशों में साफ कहा गया है कि पुलों और आवासीय बस्तियों के पास रेत खनन न हो। किंतु खनन वहां भी होता है। हद तो यह है कि घोषित ईको सेंसटिव व वन क्षेत्रों में भी अवैध खनन हो रहा है। कुल मिलाकर तथ्य यह है कि बिना प्रशासन की मदद के अवैध खनन नहीं हो सकता है।

इस बीच नदियों में रेत खनन के मामले को समग्रता में समझने का एक अवसर एनजीटी का एक हालिया निर्देश देता है। अप्रैल, 2019 में आंध्र प्रदेश सरकार पर अवैध रेत खनन रोकने में असमर्थ रहने पर कुछ निर्देशों के साथ सौ करोड़ रुपए का अंतरिम दंड भी लगाया गया था। राज्य के मुख्य सचिव को अनियमित रेत खनन पर तुरंत रोक लगाने के आदेशों के साथ-साथ यह भी चेताया गया था कि राज्य प्राकृतिक संसाधनों का ट्रस्टी है व उन्हें पूर्ण संरक्षण प्रदान करना उसकी जिम्मेदारी है। निस्संदेह एनजीटी यह भी जानता है कि रेत खनन का अवैध करोबार पूरे देश में आपराधिक तत्वों और माफियाओं के कब्जे में है और उसके पहले के निर्देश भी विभिन्न राज्यों में दिखावे के लिए स्वीकारें जाते हैं।

रेत की मांग के मुकाबले आपूर्ति में भारी कमी बनी हुई है। भारत में ही मांग को पूरा करने के लिए कुछ हद तक अवैध रेत खनन को कम करने के लिए कर्नाटक व तमिलनाडु जैसे राज्य लाखों टन रेत आयात कर उपभोक्ता व उद्योगों को दे भी रहे हैं। निजी आयातकों के लिए यह लाभ का सौदा भी हो रहा है। 2017 से मलेशिया से ऐसा आयात जोर पकड़ रहा है। राज्य अपने यहां नदियों की रेत दूसरे राज्यों से मंगा कर बेच रहे हैं। इसके अलावा रेत की कमी पूरी करने के लिए स्टोन क्रैशरों से राज्यों के भीतर भी पत्थरों-चट्टानों से रेत निर्माण की मंजूरी दी जा रही है।

नतीजतन, कई जगहों पर लगभग पूरी पहाड़ियों को मटियामेट कर दिया है। अवैध रेत खनन की संभावनाएं तब भी बढ़ जाती हैं जब स्टोन क्रैशर भी नदियों के पास लगे हों। कई जगहों पर स्थानीय लोगों और पर्यावरण प्रेमियों ने इनसे होने वाले वायु प्रदूषण, जल भंडारों व पारिस्थितिकीय नुकसानों पर विरोध भी जताया है। यह भी कहा जा सकता है जब पूरे समुद्रों में रेत हैं, रेगिस्तानों में रेत है तो फिर भारत में रेत के मशीनी उत्पादन की आवश्यकता क्यों हो जाती है? समुद्र की रेत लवणीय होने के कारण और रेगिस्तान की रेत गोल होने व कम खुरदुरी होने के कारण निर्माण के लिए आदर्श नहीं मानी जाती है।

यदि रेत खनन के लिए प्रस्तावित क्षेत्रों में पहले से ही यह अध्ययन न किया गया हो कि वहां से कितनी रेत बंजरी पर्यावरण को कम से कम हानि पहुंचाए बिना निकाली जा सकती है तो वैध खनन से भी पर्यावरणीय हानि हो सकती है। वैज्ञानिक अध्ययनों और आंकड़ों की कमी के कारण रेत खनन से हुए कुप्रभावों का सही पता नहीं चल पाता है। जैसा कि आदेश में कहा गया है कि यदि खनन से कोई हानि हुई है तो उसकी भरपाई की जाए। निस्संदेह खनन के बाद वाले पर्यावरणीय प्रभाव आकलन भी जरूरी हो गए हैं, क्योंकि तभी तो आप भरपाई की बात सोच सकते हैं।

नदियों में खनन का तो अब तक का यही इतिहास रहा है कि जितने खनन की अनुमति ली जाती है, उससे कई गुना ज्यादा का खनन होता है। बाद के पर्यावरणीय प्रभाव आकलन से ही पता चल पाएगा कि जितने खनिज, उपखनिज को निकाला जाना है व जिस जगह से निकाला जाना है। जिन तरीकों से और जिन मशीनों से निकाला जाना है, उनसे पर्यावरण को नुकसान तो नहीं हो रहा है। पर्यावरणीय प्रभाव आकलन में किनारों के भूजल भंडारण पर होने वाला अंतर, किनारों का कटाव, नए भूस्खलन, भू-धंसाव, भूक्षरण के संभावित क्षेत्रों का भी उल्लेख होता है।

दरअसल, विरोध रेत के अवैध खनन को लेकर है। लेकिन जिन पहलुओं को एनजीटी ने छुआ है वे वैध खनन पर भी समान रूप से लागू होते हैं। पर्यावरण प्रभाव और ट्रस्टीशिप संबंधी चिंता वैध और अवैध दोनों मामलों में प्रासंगिक है। वैध खनन पर तो निगरानी रखनी और भी आवश्यक है, क्योंकि भारी मात्रा में अवैध खनन, कानून की ही आड़ में होता है। स्वीकृत गहराइयों से दुगनी-तिगुनी गहराइयों तक पहुंच कर रेत खनन किया जाता है। जिन चिन्हित क्षेत्रों के एि रेत खनन पट्टा होता है उनसे बाहर जाकर भी खनन होता है।

ढुलाई वाहन पारपत्र पर दर्शाए गए माल से दुगना-तिगुना माल लेकर बेरोकटोक बाहर निकाले जाते हैं। ज्यादातर जगहों पर तो इन ढुलाई वाहनों पर नंबर प्लेट भी नहीं होती। पूरे देश में अवैध रेत खनन का कारोबार माफिया और आपराधिक तत्वों के हाथ में है। जो ईमानदार अधिकारी और कर्मचारी रेत माफिया के खिलाफ अभियान चलाते हैं उन पर रेत से भरे ट्रक, ट्रैक्टर चढ़ा देना, हत्या कर देना, उनका तबादला करवा देना माफिया के लिए आम है। माफिया में ऐसी हिम्मत उनके राजनेताओं, भ्रष्ट अधिकारियों व अपराधी तत्वों के साथ जगजाहिर संबंधों से आती है। इसलिए अवैध रेत खनन पर शिकंजा कस पाना संभव नहीं लग रहा।

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