अलवर जिला

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मानसून मेहरबान, आपदा प्रबंधन की तैयारी नहीं
Posted on 23 Jul, 2016 04:31 PM

सिंचाई विभाग के अधिकारी बाढ़ से निपटने की बात तो कहते हैं, लेकिन हकीकत यह है कि विभाग के

सूखे जलाशयों में 15 दिनों में पानी ले आया रिटायर इंजीनियर
Posted on 18 Jul, 2016 10:11 AM

कुएँ, बावड़ी, पहाड़ी जलाशय, तालाब आदि पर हमारी निर्भरता थी। इनका ध्यान नहीं रखने से इनमें

नदी की धारा सा अविरल समाज (River connects society)
Posted on 14 Jun, 2016 04:59 PM
सूख चुकी नान्दूवाली नदी का फिर से बहना अकाल ग्रस्त भारत के लिये एक सुखद सन्देश है।

यह कल्पना करना मुश्किल है कि यह नदी और जंगल कभी सूख चले थे। पेड़ों के साथ-साथ समाज और परम्पराओं का भी कटाव होने लगा था। कुओं में कटीली झाड़ियाँ उग आईं और बरसात से जो थोड़ी सी फसल होती उसमें गुजारा करना मुश्किल था। गाय-भैंस बेचकर कई परिवार बकरियाँ रखने लगे क्योंकि चारे को खरीदने और गाँव तक लाने में ही काफी पैसे खर्च हो जाते। जवान लोगों का रोजी-रोटी के लिये पलायन जरूरी हो गया। निम्न जाति के परिवारों की हालत बदतर थी।

ढाक के पेड़ों पर नई लाल पत्तियाँ आ रही हैं पर कदम, ढोंक और खेजड़ी की शाखाएँ लदी हुई हैं। एक दूसरे में मिलकर यह हमें कठोर धूप से बचा रहे हैं। जिस कच्चे रास्ते पर हम बढ़ रहे हैं वह धीरे-धीरे सख्त पत्थरों को पीछे छोड़ मुलायम हो चला है और कुछ ही दूरी पर नान्दूवाली नदी में विलीन हो जाता है।

राजस्थान में अलवर जिले के राजगढ़ इलाके की यह मुख्य धारा कई गाँव के कुओं और खलिहानों को जीवन देती चलती है। इनमें न सिर्फ कई मन अनाज, बल्कि सब्जियों की बाड़ी और दुग्ध उत्पादन भी शामिल है।

यह कल्पना करना मुश्किल है कि यह नदी और जंगल कभी सूख चले थे। पेड़ों के साथ-साथ समाज और परम्पराओं का भी कटाव होने लगा था। कुओं में कटीली झाड़ियाँ उग आईं और बरसात से जो थोड़ी सी फसल होती उसमें गुजारा करना मुश्किल था।
ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल आपूर्ति
Posted on 17 May, 2016 01:27 PM

अरावली वनीकरण परियोजना न केवल अरावली पर्वत श्रेणी को संरक्षित रखने की योजना है वरन यह राज

अवसर देती जल अपील और प्रतिक्रियाएँ
Posted on 23 Apr, 2016 11:51 AM तारीख : 14 अप्रैल - बाबा साहब अम्बेडकर की 125वीं जन्मतिथि;
स्थान : परम्परागत तरीकों से जल संकट के समाधान की पैरोकारी के लिये विश्व विख्यात जलपुरुष राजेन्द्र सिंह की अध्यक्षता वाले संगठन तरुण भारत संघ का गाँव भीकमपुरा स्थित तरुण आश्रम;
मौका : 130 संगठनों के जमावड़े का अन्तिम दिन; जारी हुई एक अपील।

जारी जल अपील

पर्यावरण एवं सामाजिक न्याय नेतृत्व पर आठ दिवसीय कार्यशाला
Posted on 07 Apr, 2016 04:14 PM तिथि: 07 से 14 अप्रैल, 2016
स्थान: तरुण आश्रम,
गाँव: भीकमपुरा किशोरी,
तहसील: थानागाजी,
जिला: अलवर, राजस्थान
संयोजक संगठन : एकता परिषद, जलबिरादरी, जनान्दोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, नवदान्या, मजदूर किसान शक्ति संगठन एवं अन्य।



गरीब-सीमान्त किसान, भूमिहीन खेतिहर मजदूर और असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के जलवायु सरोकार क्या हैं? जलवायु परिवर्तन की इस परिस्थिति में सुरक्षा और समाधान को लेकर हमारी क्या-क्या भूमिका हो सकती है? उस भूमिका का निर्वाह सुनिश्चित करने के लिये हमें कैसी तैयारी की जरूरत है? इन प्रश्नों पर आज विचार-विमर्श की जरूरत है। जरूरत कि समय रहते भावी कार्ययोजना बने। इसीलिये तरुण भारत संघ के गँवई आँगन में ठंडे दिमाग और स्थिर मन के साथ विचार करने की दृष्टि से यह कार्यशाला आयोजित की गई है। बदलती आबोहवा के दिखते दुष्प्रभावों ने दुनिया को चिन्तित किया है; भारतीयों को भी। क्योंकि भारत में भी बाढ़ और सुखाड़ का दंश कम होने की बजाय, बढ़ा ही है। परिणति गरीब के मजबूरी भरे पलायन और जबरन विस्थापन के रूप में सामने है। वे कह रहे हैं कि धरती को बुखार है। वे कह रहे हैं कि मौसम गड़बड़ा गया है। गर्मी, सर्दी सब अनुमान से परे हो गए हैं।

बेमौसम बारिश, तापमान में अचानक वृद्धि और घटोत्तरी अब आश्चर्य की बात नहीं। निचले समुद्री तट से लेकर ऊँचे पहाड़ तक कोई भी अप्रत्याशित बाढ़ से अछूते नहीं है। महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ और झारखण्ड लम्बे समय से सुखाड़ के शिकार हो रहे हैं। सबसे कमजोर, सबसे गरीब, छोटे व मंझोले किसानों की आजीविका लम्बे समय से दुष्प्रभावित हो रही है।
अरावली में पारम्परिक वन प्रबन्ध
Posted on 05 Apr, 2016 10:34 AM
भारत में जल, वायु, वन, सूर्य, आकाश सभी को भगवान का रूप माना गया है। इसमें राज्य का कोई दखल नहीं था, इसलिये सभी लोग सहजता से इनका मर्यादित उपयोग करते थे और जनसंख्या दबाव बढ़ने के बाद भी ये प्राकृतिक भण्डार सबकी आवश्यकता की पूर्ति करते थे, इसलिये लम्बे समय तक सन्तुलन बना रहा। लेकिन धीरे-धीरे विचारों में बदलाव आया और वन प्रबन्ध की आवश्यकता आ पड़ी। अरावली पर्वतमाला के वनों का पारम्परिक वन प्
पंचायत समिति उमरैण की भूजल स्थिति
Posted on 28 Nov, 2015 08:35 AM
पंचायत समिति, उमरैण (जिला अलवर) अतिदोहित (डार्क) श्रेणी में वर्गीकृत

हमारे पुरखों ने सदियों से बूँद-बूँद पानी बचाकर भूजल जमा किया था। वर्ष 2001 में भूजल की मात्रा अलवर जिले में 912.30 मिलियन घनमीटर थी जो अब घटकर 794.82 मिलियन घनमीटर रह गई है। भूजल अतिदोहन के कारण पानी की कमी गम्भीर समस्या बन गई है।
पंचायत समिति तिजारा की भूजल स्थिति
Posted on 28 Nov, 2015 08:33 AM
पंचायत समिति, तिजारा (जिला अलवर) अतिदोहित (डार्क) श्रेणी में वर्गीकृत

हमारे पुरखों ने सदियों से बूँद-बूँद पानी बचाकर भूजल जमा किया था। वर्ष 2001 में भूजल की मात्रा अलवर जिले में 912.30 मिलियन घनमीटर थी जो अब घटकर 794.82 मिलियन घनमीटर रह गई है। भूजल अतिदोहन के कारण पानी की कमी गम्भीर समस्या बन गई है।
पंचायत समिति थानागाजी की भूजल स्थिति
Posted on 28 Nov, 2015 08:31 AM
पंचायत समिति, थानागाजी (जिला अलवर) अतिदोहित (डार्क) श्रेणी में वर्गीकृत

हमारे पुरखों ने सदियों से बूँद-बूँद पानी बचाकर भूजल जमा किया था। वर्ष 2001 में भूजल की मात्रा अलवर जिले में 912.30 मिलियन घनमीटर थी जो अब घटकर 794.82 मिलियन घनमीटर रह गई है। भूजल अतिदोहन के कारण पानी की कमी गम्भीर समस्या बन गई है।
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