अलवर जिला

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निमंत्रण- राष्ट्रीय सेमिनार
Posted on 22 Jun, 2009 12:59 PM

'जियो-हाइड्रोलॉजिकल परिवर्तन और इसके पर्यावरणीय प्रभाव पर राष्ट्रीय सेमिनार'


स्थान- भीकमपुरा, अलवर, राजस्थान.

तिथि- 6-8 जुलाई, 2009

संगोष्ठी का मुख्य फोकस- समुदाय की भागीदारी से जल संचयन को प्रोत्साहित करना और परंपरागत दृष्टिकोण से भूजल पुनर्भरण की तकनीकों के प्रभाव का विश्लेषण करना होगा.
संसाधनों के परिप्रेक्ष्य में साहित्य का पुनरावलोकन
Posted on 01 Mar, 2019 05:42 PM

संसाधन मानव विकास का पर्याय बन चुका है। सभ्यता के विकास के साथ-साथ संसाधनों में भी विकास हुआ है। मनुष्य संसाधन जुटाने में नई तकनीकों का उपयोग करने लगे हैं। भौगोलिक स्थलाकृति एवं वातावरण, संसाधन की मात्रा एवं गुणवत्ता को नियंत्रित करती रही है। परन्तु वर्तमान परिप्रेक्ष्य में संसाधन की मात्रा एवं गुणवत्ता मानवीय उपयोग पर आधारित है। परिणामस्वरूप जहाँ एक ओर स

राजस्थान जल संचयन
प्रथम अध्याय: अलवर में जल संकट की चुनौतियों से परिचय
Posted on 27 Feb, 2019 11:53 AM
संसाधन की परिभाषा मुख्य रूप से तीन कारकों पर आधारित है- मानव, पृथ्वी पर पाए जाने वाले सभी तत्व एवं उनका समुचित उपयोग। भूगोल में मुख्य तौर पर शोध का विषय भौतिक एवं मानव भूगोल पर आधारित होता है। हम्बोल्ट महोदय ने जहाँ एक ओर भौतिक भूगोल पर अपना पक्ष रखा वहीं रिटर महोदय ने मानव भूगोल पर अपना शोध प्रकट किया। इन दोनों शाखाओं को जोड़ने का श्रेय पर्यावरणीय अध्ययन को
राजस्थान में जल संरक्षण
जानिये आँकड़ों के विश्लेषण की बारीकियाँ
Posted on 28 Oct, 2018 04:33 PM

कार्यक्रम- जलवायु परिवर्तन और विकासात्मक संचार के लिये आँकड़ों का प्रभावी विश्लेषण
संस्थान- अनिल अग्रवाल एन्वायरनमेंट ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट, निमली, अलवर, राजस्थान
प्रशिक्षण कार्यशाला की अवधि- 14 से 17 नवम्बर, 2018
आवेदन की अन्तिम तिथि: 2 नवम्बर 2018

जलवायु परिवर्तन और विकासात्मक संचार के लिये आँकड़ों का प्रभावी विश्लेषण
निर्मल ग्राम से मिली पहचान
Posted on 25 Aug, 2014 01:23 AM अलवर जिले की नीमराना पंचायत समिति की 900 घरों और 4500 के करीब आबाद
जोहड़ आंदोलन ने उबारा जल संकट से (अलवर जिले के विशेष संदर्भ में)
Posted on 17 Aug, 2014 11:27 PM जोहड़ का उपयोग प्राचीनकाल से होता आया है लेकिन मध्यकाल आते-आते लोगों
अरवरी जल संसद
Posted on 09 Jun, 2014 01:51 PM
अरवरी जल संसद की कहानी, राजस्थान के एक पिछड़े इलाके में कम पढ
arvari sansad
कैसे सूखी नदी
Posted on 04 May, 2014 10:18 AM भारत के गंवई ज्ञान ने तरुण भारत संघ को इतना तो सिखा ही दिया था कि जंगलों को बचाए बगैर जहाजवाली नदी जी नहीं सकती। लेकिन तरुण भारत संघ यह कभी नहीं जानता था कि पीने और खेतों के लिए छोटे-छोटे कटोरों में रोक व बचाकर रखा पानी, रोपे गए पौधे व बिखेरे गए बीज एक दिन पूरी नदी को ही जिंदा कर देंगे। जहाजवाली नदी के इलाके में भी तरुण भारत संघ पानी का काम करने ही आया था, लेकिन यहां आते ही पहले न तो जंगल संवर्द्धन का काम हुआ और न पानी संजोने का। अपने प्रवाह क्षेत्र के उजड़ने-बसने के अतीत की भांति जहाजवाली नदी की जिंदगी में भी कभी उजाड़ व सूखा आया था। आपके मन में सवाल उठ सकता है कि आखिर एक शानदार झरने के बावजूद कैसे सूखी जहाजवाली नदी? तरुण भारत संघ जब अलवर में काम करने आया था...तो सूखे कुओं, नदियों व जोहड़ों को देखकर उसके मन में भी यही सवाल उठा था।

इस सवाल का जवाब कभी बाबा मांगू पटेल, कभी धन्ना गुर्जर...तो कभी परता गुर्जर जैसे अनुभवी लोगों ने दिया। प्रस्तुत कथन जहाजवाली नदी जलागम क्षेत्र के ही एक गांव घेवर के रामजीलाल चौबे का है।

चौबे जी कहते हैं कि पहले जंगल में पेड़ों के बीच में मिट्टी और पत्थरों के प्राकृतिक टक बने हुए थे। अच्छा जंगल था। बरसात का पानी पेड़ों में रिसता था। ये पेड़ और छोटी-छोटी वनस्पतियां नदी में धीरे-धीरे पानी छोड़ते थे। इससे मिट्टी कटती नहीं थी।
River
जहाज का जलागम
Posted on 04 May, 2014 10:06 AM

उजड़ते-बसते तट


पता नहीं, ऊमरी-देवरी में बेटी ब्याह की कहावत पहले की है या बाद की। पर सच है कि ऊमरी को हजारों साल पहले उम्मरगढ़ के नाम से जाना जाता था। कालांतर में उम्मरगढ़ किसी कारण नष्ट हो गया। ऐसा ही देवरी नगर के साथ भी हुआ। समय बीता। नगर की जगह विशाल जंगल आबाद हो गया। कालांतर में ये स्थान पुनः धीरे-धीरे बसे। देवरी गांव में भाभला गोत्र के मीणा आकर बस गए। पर जाने क्यों बाद में उनकी संख्या धीरे-धीरे कम होती चली गई। सन् 1933 में इस गोत्र का एकमात्र सदस्य दल्ला पटेल ही बचा था। जहाजवाली नदी के जलागम में जहाज नामक स्थान की खास महत्ता है। इस स्थान पर एक अखंड झरना है। यह झरना अमृतधारा की भांति है। स्वच्छ और निर्मल प्रवाह का स्रोत! यहां पर हनुमान जी का एक मंदिर है।

नामकरण - कहते हैं कि पौराणिक काल में यहां जाजलि ऋषि ने तपस्या की थी। जाजलि ऋषि बड़े विद्वान और वेद-वेदांगों के ज्ञाता तो थे ही, वह आयुर्वेद के सोलह प्रमुख विशेषज्ञों में से भी एक थे।

धन्वतरिर्दिवोदासः काशिराजोSश्विनी सुतौ। नकुलः सहदेवार्की च्यवनों जनको बुधः।।
जाबलो जाजलिः पैलः करभोSगस्त्य एवं चSएते वेदा वेदज्ञाः षोडश व्याधिनाशका:।।


अर्थात् धन्वन्तरि, दिवोदास, काशिराज, दोनों अश्वनि कुमार, नकुल, सहदेव, सूर्यपुत्र यम, च्यवन, जनक, बुध जाबाल, जाजलि, पैल, करभ और अगस्त्य-ये सोलह विद्वान वेद-वेदांगों के ज्ञाता तथा रोगों के नाशक वैद्य हैं।
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