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अजमेर जिला
पंचायत समिति जवाजा की भूजल स्थिति
Posted on 27 Nov, 2015 11:35 AMपंचायत समिति, जवाजा (जिला अजमेर) अतिदोहित (डार्क) श्रेणी में वर्गीकृत
हमारे पुरखों ने सदियों से बूँद-बूँद पानी बचाकर भूजल जमा किया था। वर्ष 2001 में भूजल की मात्रा अजमेर जिले में 314.42 मिलियन घनमीटर थी जो अब घटकर 315.08 मिलियन घनमीटर रह गई है। भूजल अतिदोहन के कारण पानी की कमी गम्भीर समस्या बन गई है।
पंचायत समिति अराई की भूजल स्थिति
Posted on 27 Nov, 2015 11:33 AMपंचायत समिति, अराई (जिला अजमेर) अतिदोहित (डार्क) श्रेणी में वर्गीकृत
हमारे पुरखों ने सदियों से बूँद-बूँद पानी बचाकर भूजल जमा किया था। वर्ष 2001 में भूजल की मात्रा अजमेर जिले में 314.42 मिलियन घनमीटर थी जो अब घटकर 315.08 मिलियन घनमीटर रह गई है। भूजल अतिदोहन के कारण पानी की कमी गम्भीर समस्या बन गई है।
बेयरफुट कॉलेज ने दिखाई जल-संरक्षण की राह
Posted on 14 Apr, 2015 11:22 AMअनेक स्कूलों के जल संकट का टिकाऊ समाधान मिला
बेयरफुट कालेज के जल-संचयन के महत्त्वपूर्ण कामों में से एक है विद्यालयों के लिये भूमिगत पानी संग्रहण का। इस प्रयास से अब उन सैंकड़ों बच्चों की प्यास बुझती है जो पहले पानी की तलाश में पड़ोस के गाँवों में भटकते रहते थे या फिर कभी-कभी प्यासे ही रह जाते थे। साथ ही उन क्षेत्रों में जहाँ पानी की गुणवत्ता काफी खराब थी, वहाँ अब बच्चों की उपस्थिति में काफी सुधार हुआ है। इससे पानी से होने वाली बीमारियों पर भी रोक लगी है। पानी के संग्रहण के लिये टाँकों की उपलब्धता से अब विद्यालयों में स्वच्छता बनाए रखने में बड़ी मदद मिलती है।
अजमेर जिले (राजस्थान) में स्थित बेयरफुट कॉलेज संस्थान के प्रयासों से न केवल इस जिले में जल-संरक्षण के महत्त्वपूर्ण प्रयास हुए हैं, अपितु देश-विदेश के अनेक कार्यकर्ताओं को यहाँ जल-संरक्षण का प्रशिक्षण भी प्राप्त हुआ जिससे वे दूर-दूर के अनेक अन्य क्षेत्रों में भी जल-संरक्षण की महत्त्वपूर्ण उपलब्धियाँ प्राप्त कर सकें।बेयरफुट काॅलेज के जल-संचयन सम्बन्धी तमाम कामों की शुरुआत उसके खुद के तिलोनिया-स्थित परिसर से होती है। सावधानी से डिज़ाइन किए गए पाइपों की मदद से छतों के ऊपर जमा हुए वर्षा के पानी को भूमि के अन्दर टाँकों में संग्रहित किया जाता है। आस-पास के बहते वर्षाजल को दिशा-निर्देशित किया जाता है, थोड़े समय के लिये रोका जाता है और फिर एक खुले कुएँ में गिरा दिया जाता है।
कम खर्च में अधिक लोगों की प्यास बुझाने वाले कार्य
Posted on 12 Apr, 2015 03:33 PMजयपुर व अजमेर जिलों से रिपोर्ट
जल-संकट से त्रस्त गाँवों में वर्षा के जल को सावधानी से संरक्षित किया जाए और इस कार्य को पूरी निष्ठा व ईमानदारी से गाँववासियों की नज़दीकी भागीदारी से किया जाए तो जल-संकट दूर होते देर नहीं लगती है। इस उपलब्धि का जीता-जागता उदाहरण है अजमेर जिले की बढ़कोचरा पंचायत जिसमें बेयरफुट कालेज के जवाजा फील्ड सेंटर के आठ जल-संरक्षण कार्यों ने जल-संकट को जल-प्रचुरता में बदल दिया है। इसके साथ यहाँ की पंचायत ने भी कुछ सराहनीय जल-संरक्षण कार्य विशेषकर मनरेगा के अन्तर्गत किए हैं।
कोरसीना पंचायत व आसपास के कुछ गाँव पेयजल के संकट से इतने त्रस्त हो गए थे कि कुछ वर्षों में इन गाँवों के अस्तित्व का संकट उत्पन्न होने वाला था। दरअसल राजस्थान के जयपुर जिले (दुधू ब्लाक) में स्थित यह गाँव सांभर झील के पास स्थित होने के कारण खारे व लवणयुक्त पानी के असर से बहुत प्रभावित हो रहे थे। सांभर झील में नमक बनता है पर इसका प्रतिकूल असर आसपास के गाँवों में खारे पानी की बढ़ती समस्या के रूप में सामने आता रहा है।गाँववासियों व वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता लक्ष्मी नारायण ने खोजबीन कर पता लगाया कि पंचायत के पास के पहाड़ों के ऊपरी क्षेत्र में एक जगह बहुत पहले किसी राजा-रजवाड़े के समय एक जल-संग्रहण प्रयास किया गया था। इस ऊँचे पहाड़ी स्थान पर जल-ग्रहण क्षेत्र काफी अच्छा है व कम स्थान में काफी पानी एकत्र हो जाता है। अधिक ऊँचाई के कारण यहाँ सांभर झील के नमक का असर भी नहीं पहुँचता है।
फिर तो भू-जल भी एक दिन खत्म हो जाएगा!
Posted on 07 Mar, 2011 10:15 AMअजमेर के आठों ब्लॉक अब भू-गर्भीय जल की मौजूदगी के मामले में अत्यधिक दोहित ब्लॉक्स बन गए हैं। यह कहना है केंद्रीय भूमिगत जल बोर्ड के वरिष्ठ वैज्ञानिक एमएन खान का। उन्होंने बताया कि साल 2000 में इनकी संख्या 6 थी, लेकिन पिछले 10 सालों में बिगड़े हाल तो सुधरे नहीं, लेकिन दो और ब्लॉक भिनाय और केकड़ी में भी हालात परम-चरम पहुंच गए हैं। खान गुरुवार को अजमेर में बोर्ड द्वारा आयोजित जल चेतना समारोह में आ
राजस्थान राज्य जल नीति 2010
Posted on 15 Apr, 2010 12:16 PM
राजस्थान की जल नीति को 15 फरवरी 2010 को कैबिनेट सब-कमेटी ने प्रदेश की पहली जल नीति के रूप में मंजूरी दे दी है।
राज्य जल नीति के उद्देश्य हैं: सस्टेनेबल आधार पर नदी बेसिन और उप बेसिन को इकाई के रूप में लेते हुए जल संसाधनों की योजना, विकास और प्रबंधन को एकीकृत और बहुक्षेत्रीय दृष्टिकोण अपनाना, और सतही और उपसतही जल के लिये एकात्मक दृष्टिकोण अपनाना। नीति में पानी की पहली प्राथमिकता पेयजल,
प्रोजेक्ट ऑफिसर
Posted on 02 Apr, 2009 09:07 AMजल भागीरथी फाउंडेशन
स्थान- राजस्थान
अंतिम तिथि- अप्रैल-10
प्रोजेक्ट एरिया- राजस्थान के बाड़मेर, अजमेर और पाली जिले
जल भागीरथी फाउंडेशन में पानी के क्षेत्र में फील्ड अनुभवी और कुशल व्यक्तियों से आवेदन आमंत्रित हैं।
ईमेल से आवेदन करने के लिए पता -
HR@jalbhagirathi.org
सात हजार गांवों पर अकाल का साया
Posted on 15 Mar, 2009 07:45 PMजयपुर/ नई दुनिया। राजस्थान में इस साल 7372 गांवों पर अकाल का साया मंडरा रहा है। इन गांवों में सरकार शीघ्र ही राहत कार्य शुरु करने जा रही है। सरकार ने इसके साथ ही अकाल ग्रस्त इलाकों में पीने के पानी, रोजगार और पशुओं के लिए चारे की व्यवस्था करने के निर्देश दिए हैं। जिन जिलों में अकाल की छाया मंडरा रही है, वें हैं जोधपुर, जैसलमेर, बाड़मेंर, सिरोही, पाली, जालौर, अजमेर, भीलवाड़ा, उदयपुर, नागौर, र
जल नीति राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में बननी चाहिये
Posted on 21 Sep, 2008 07:37 PMप्रोफेसर रासा सिंह रावत अजमेर के सांसद हैं। कहते हैं कि जब मैं छोटा था तो अजमेर में अरब सागर और बंगाल की खाड़ी दोनो ही ओर का मानसून आता था। लेकिन वनों के कटने और रेगिस्तान के विस्तार के कारण वनस्पति का अभाव हो गया। परिणामस्वरुप अजमेर भी मारवाड़ व मेवाड़ की तरह अकाल की चपेट में आ गया। वर्षाभाव की वजह से तालाब सूख गये। राजस्थान सरकार ने अब तय किया है कि अजमेर जिले के गाँवों को भी बीसलपुर का पानी
जल संकट दूर करने के सफल प्रयास
Posted on 16 Feb, 2012 11:27 AMकोरसीना बांध के पूरा होने के एक वर्ष बाद ही इससे लगभग 50 कुओं का जल स्तर ऊपर उठ गया। अनेक हैंडपंपों व तालाबों को भी लाभ मिला। कोरसीना के एक मुख्य कुएं से पाइपलाइन अन्य गांवों तक पहुंचती है जिससे पेयजल लाभ अनेक अन्य गांवों तक भी पहुंचता है।यदि यह परियोजना अपनी पूरी क्षमता प्राप्त कर पाई तो इसका लाभ 20 गांवों के लोगों, किसानों को मिल सकता है। इसके अतिरिक्त वन्य जीव-जंतुओं, पक्षियों की जो प्यास बुझेगी वह अलग है।
जहां किसी महानगर के पॉश इलाकों में मात्र एक फ्लैट की कीमत एक करोड़ रुपए तक पहुंच रही है, वहां इससे भी कम धन राशि में पेयजल संकट झेल रहे 40 गांवों के लगभग 50,000 लोगों व 1,50,000 पशुओं का संकट दूर किया जा सकता है, पर इसके लिए जरूरी है स्थानीय गांववासियों की भागेदारी से काम करना। यह अनुकरणीय उदाहरण राजस्थान के जयपुर व अजमेर जिलों में तीन स्वैच्छिक संस्थाओं ने प्रस्तुत किया है। कोरसीना पंचायत व आसपास के कुछ गांवों में पेयजल का संकट इतना बढ़ गया था कि कुछ वर्षों में इन गांवों के अस्तित्व पर ही संकट उत्पन्न होने वाला था। दरअसल, राजस्थान के जयपुर जिले (दुधू ब्लॉक) में स्थित यह गांव सांभर झील के पास स्थित होने के कारण खारे पानी के असर से बहुत प्रभावित हो रहे थे। इसका प्रतिकूल असर आसपास के गांवों में खारे पानी की बढ़ती समस्या के रूप में सामने आता रहा है।