विमल भाई

विमल भाई
पुनर्निर्माण हेतु अपील...
Posted on 26 Jun, 2013 02:28 PM
उत्तराखंड में हुई त्रासदी के बारे में आप जान ही गए होंगे। हमारे 24.6.13 के प्रेस नोट में सारी स्थितियां हमने लिखी है। जन आन्दोलन के राष्ट्रीय समन्वय, एनएपीएम से जुड़े माटू जनसंगठन (2001 से उत्तराखंड में गंगाघाटी और यमुनाघाटी में बड़े बांधों के विरोध में पर्यावरण संरक्षण व जनहक के लिए कार्यरत 1989 से टिहरी बांध के खिलाफ संघर्षरत साथियों के साथ) और इसके साथियों ने अपनी ओर से कुछ-कुछ सहयोग तीर्थयात्रियों के लिए किया है।

हमें लगता है की जहां सरकारें और अनेक तरह के संगठन इस आपदा के बाद पुनर्निर्माण और सहयोग के काम में लग रहे हैं। हमारी भूमिका इस सब पर नजर रखते हुए, दूरस्थ इलाकों में लोगों व गांवों स्थिति, जरूरतों का सही जायजा लेना छूटे हुए स्थान व लोगों को सरकारी व राहत दिलाने का होगा। इस समय हमारी भूमिका शायद यही सही रहेगी।
तबाही की दांस्ता....
Posted on 26 Jun, 2013 02:04 PM
भागीरथीगंगा, अलकनंदागंगा और उनकी सहायक नदियों प्रमुख रूप से अस्सीगंगा, भिलंगना, बिरहीगंगा, मंदाकिनी, पिडंरगंगा नदियों के किनारे के होटल, दुकानें, घर आदि गिरे, पहाड़ दरके, सड़के टूटी जिससे हजारों की संख्या में वाहन बह गए कई स्थानों पर नदी में तेजी से गाद की मात्रा आई जो बाढ़ के साथ बस्तियों में घुसी, अनियंत्रित तरह से बनी पहाड़ी बस्तियां बही।
गंगा को मारने की नई साज़िश
Posted on 14 Jun, 2013 09:46 AM
सैंड्रप द्वारा तैयार की गई आलोचनात्मक टिप्पणी, जिसे माटू के अलावा अन्य कई जन संगठनों ने अनुमोदित किया है, बिंदुवार समिति की रिपोर्ट की बदनीयत, चालाकी और गैरजानकारी का खुलासा करती है। जो जलविद्युत परियोजनाएं भागीरथीगंगा पर रोक दिए गए हैं उन्हें भी निर्माणाधीन की श्रेणी में दिखाया गया है। ऐसे कई उदाहरण इस रिपोर्ट में मिलेंगे जो बताते हैं की समिति ने बांध समर्थन की भूमिका ली है। बांधों की स्थिति बताने वाली सारिणी भी गलत आंकड़ों से भरी है। नदी की लम्बाई का अनुपात भी गलत लगाया गया है। समिति 81 प्रतिशत भागीरथी और 69 प्रतिशत अलकनन्दा को बांधों से प्रभावित कहती है जो कि पूरी तरह से गलत है। नापे सौ गज और काटे इंच भी नहीं। प्रधानमंत्री जी बार-बार गंगा के लिए प्रतिबद्धता जताते हैं उनकी पार्टी गंगा रक्षण का दम भरते हुए वोट भी मांगती है। किंतु ज़मीनी स्तर यह नहीं दिखाई देता है। जिसका उदाहरण है हाल ही में गंगाजी पर आई अंतरमंत्रालयी समिति की रिर्पोट। सरकार ने 17 अप्रैल, 2012 को स्वामी सानंद जी के उपवास के समय राष्ट्रीय गंगा नदी प्राधिकरण की बैठक बुलाई थी। तब सानंद जी को सरकार ने एम्स में रखा हुआ था। बैठक में वे नहीं गए उनकी ओर से कुछ संत प्रतिनिधि गए थे। प्रधानमंत्री ने उन्हें अलग से मिलने का वादा किया। बैठक में डब्ल्यू. आई. आई. और आई. आई. टी. आर. की रिपोर्ट के बारे में उठ रही तमाम शंकाओं पर विराम लगाते हुए इन रिर्पोटों को सही ठहराया। इन संत प्रतिनिधियों ने इस पर कुछ कहा हो ऐसी कोई खबर बाहर नहीं आई। बैठक शांति से निबट गई। 15 जून 2012 को सरकार ने चुपचाप से गंगा के लिए चिल्लाने वालों के मुंह में अंतरमंत्रालयी समिति का लड्डू रखा दिया गया। 15 सदस्यों में बिना किसी चयन प्रक्रिया के तीन गैर सरकारी सदस्यों को भी समिति में रखा गया। रिपोर्ट के बीच बांधों के कामों पर भी कोई रोक नहीं लगाई गई थी।
उद्गम शेष
Posted on 23 May, 2013 10:28 AM

अधिसूचना में जहां बड़े बांधों पर पूरी तरह से रोक की बात है वहीं 25 मेगावाट से छोटे बांधों को पूरी तरह से हरी झंडी देने का प्रयास है। अस्सीगंगा में 4 जविप निर्माणाधीन हैं जो 10 मेगावाट से छोटी हैं। जिनमें एशियाई विकास बैंक द्वारा पोषित निमार्णाधीन कल्दीगाड व नाबार्ड द्वारा पोषित अस्सी गंगा चरण एक व दो जविप भी है। उत्तरकाशी में भागीरथीगंगा को मिलने वाली अस्सीगंगा की घाटी पर्यटन की दृष्टि से ना केवल सुंदर है वरन् घाटी के लोगो को स्थायी रोज़गार दिलाने में भी सक्षम है।

पर्यावरण एवं वन मंत्रालय की ताजी अधिसूचना के अनुसार गौमुख से उत्तरकाशी तक भागीरथीगंगा के लगभग 100 किलोमीटर लम्बे 4179.59 वर्ग किलोमीटर के संपूर्ण जल संरक्षण क्षेत्र को भागीरथीगंगा के पर्यावरणीय प्रवाह और परिस्थितिकी को बनाए रखने के लिए पारिस्थितिकीय और पर्यावरणीय दृष्टि से पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्र घोषित किया गया है। इसके साथ ही उत्तराखंड में खासकर उत्तरकाशी के इस क्षेत्र में फिर से धरने प्रर्दशन चालू हो गए।

पूर्व के जी.डी. अग्रवाल और वर्तमान में स्वामी सानंद के उपवास से आस्था के नाम पर बांध रोकने के प्रयासों पर यह पक्की मोहर है। उत्तराखंड सरकार ने नवंबर 2008 पाला-मनेरी व केन्द्र सरकार ने 2010 में लोहारीनाग-पाला बांध रोका था। यह जानते हुए भी कि केन्द्र की कांग्रेस सरकार और राज्य की बीजेपी सरकार के ही द्वारा यह बांध रुके हैं। स्थानीय स्तर पर बांध समर्थन में आंदोलन करके वोट बटोरने की खूब कोशिशें चली हैं। राजनीतिक दलों ने चाहे वह कांग्रेस हो या बीजेपी पिछले लोकसभा, विधानसभा और नगर निगम चुनावों में इसका भरपूर राजनीतिक फायदा उठाया।
पहले डूब अब धोखे से उजाड़
Posted on 11 May, 2013 03:21 PM

बरगी बांध से विस्थापन के बाद बड़े किसान भी अब मज़दूर बन गए हैं। अब इस परियोजना के कारण उनकी स्थिति और भी खराब होने वाली है। यह परियोजना ना केवल तीन गाँवों के जीवन-मरण का प्रश्न है। वरन् प्रस्तावित परियोजना के 30 किलोमीटर के दायरे आने वाले सभी गाँवों के इंसानों-जीव-जतुंओं और पर्यावरण के भविष्य पर भी प्रश्नचिन्ह लगाती है। प्रश्न सामने है कि जबलपुर के रहने वाले 22 लाख लोग जब विकिरण युक्त पानी पिएंगे तब क्या होगा? तो क्या मध्य प्रदेश राज्य में पंजाब की तरह कैंसर ट्रेन चलेगी? अभी भोपाल गैस कांड से पीड़ितों की संख्या काबू में नहीं आ रहा है तो क्या जबलपुर को दूसरा भोपाल बनाने की तैयारी है।

पहले डूब अब धोखे से उजाड़ आज लगभग 13 साल हुए जब चुटका गांव बरगी बांध में डूबा था। 69 मीटर ऊंचा और 5.4 किलोमीटर लंबा बांध यह मध्य प्रदेश में नर्मदा पर बने 5 विशालकाय बांधों में से एक है जिसमें घोषणा से ज्यादा 60 गांव डूबे थे। बैठे-बैठे लोगों के जल-जंगल-ज़मीन, गांव, खेत डूब गए। बाद में सरकार से लड़-लड़ कर थोड़ी ज़मीन मिली। ज्यादातर लोगों ने जंगल और दूसरी सरकारी जमीनों पर कब्ज़े किए जिस पर बहुत समय बाद जमीनों के पट्टे मिल पाए। बड़े-बड़े किसान आज मज़दूर बने हैं। चुटका भी उन्हीं गाँवों में से एक है जिसे लोगों ने अपनी ताकत से खड़ा किया है, वरना 4000 रु. प्रति एकड़ मिले मुआवज़े में कौन सा घर बना पाते? कौन सी ज़मीन ख़रीद पाते?

आज इन्हीं चुटका निवासियों पर फिर “चुटका मध्य प्रदेश परमाणु विद्युत परियोजना” के रूप में एक विस्थापन का नया खतरा सामने है। इस परियोजना से मुख्य रूप से तीन गाँव विस्थापित होंगे। बीजाडांडी, नारायण गंज (मंडला) तथा घंसौर (सिवनी) विकासखंड के लगभग 54 गाँव विकिरण से प्रभावित होंगे। 1400 मेगावाट बिजली बनाने हेतु बरगी जलाशय से पानी लिया जाएगा एवं पुनः उस पानी को जलाशय में छोड़ा जाएगा जिससे पानी प्रदूषित होंगा और मनुष्यों सहित इस पर आश्रित सभी जैविक घटकों का जीवन खतरे में पड़ जाएगा।
मशविरे का नाटक बंद करो
Posted on 30 Apr, 2013 01:56 PM
आईएफसी द्वारा वित्त पोषित जीएमआर कम्पनी के ताप परियोजना प्रभावित, पास्को से लेकर तमाम परियोजना प्रभावितों ने प्रदर्शन किया। मगर इसके बावजूद भी विश्व बैंक ने इस सारे विरोध को चर्चा का हिस्सा मानते हुए आगे बढ़ने की बात कही है जो फिर एक बार यह सिद्ध करता है कि विश्व बैंक जैसी तथा कथित विकास परियोजना के नाम पर पूंजीवादी देशों के हितों को साधने का ही औजार है। यह सब तौर तरीके बताते हैं कि वास्तव में विश्वबैंक की पर्यावरण और रक्षात्मक नीतियाँ उसकी वास्तविक कामों में कहीं कोई स्थान नहीं रखती है। मात्र एक सुंदर आवरण है।विश्वबैंक ने पर्यावरण और सामाजिक संदर्भ में अपनी कुछ नीतियाँ बनाई हुई। जिसे वो पर्यावरण और पुर्नवास रक्षात्मक नीतियों का नाम देता है। 1992 में नर्मदा घाटी से भगाए जाने के बाद जलविद्युत परियोजना में 15 वर्ष तक बैंक ने किसी बांध को पैसा नहीं दिया। अब कुछ वर्षों से धीरे-धीरे बांध परियोजनाओं में पैसा लगाना शुरू कर रहा है। उसकी दलील है कि उस पर भारत के निदेशक का दबाव है। विश्व बैंक में हर साझेदार देश का एक निदेशक होता है। हिमाचल में रामपुर जलविद्युत परियोजना के बाद अब उत्तराखंड में अलकनंदागंगा पर विष्णुगाड-पीपलकोटी जलविद्युत परियोजना में उधार दे रहा है। विश्वबैंक जिस भी परियोजना में पैसा उधार देता है वहां पर्यावरण व सामाजिक प्रभावों के तथाकथित ऊंचे मानकों को दिखाने की कोशिश करता है। पर्यावरण व सामाजिक प्रभावों के संदर्भ में विश्वबैंक समय-समय पर अपनी रक्षात्मक नीतियों को ऊंचा बनाने का दिखावा करता है।
''आपदा में फायदा'' का विमोचन
Posted on 19 Apr, 2013 01:11 PM
गंगा की दोनों मुख्य धाराओं भागीरथीगंगा की अस्सीगंगा घाटी और अलकनंदागंगा की केदारघाटी में जुलाई, अगस्त और सितंबर महीने 2012 में जो भयानक तबाही हुई उसका कारण बादल फटने से ज्यादा जलविद्युत परियोजनाएं थी। अस्सी गंगा नदी में बादल फटने के बाद एशियन विकास बैंक पोषित निर्माणाधीन कल्दीगाड व अस्सी गंगा चरण एक व दो जलविद्युत और भागीरथीगंगा में मनेरी भाली चरण दो परियोजनाओं के कारण बहुत नुकसान हुआ। मारे गए मज़दूरों का कोई रिकार्ड नहीं, अस्सीगंगा व केदार घाटी के गांव बुरी तरह से प्रभावित हुए, पर्यावरण तबाह हुआ जिसकी भरपाई में कई दशक लगेंगे। उत्तराखंड में उत्तरकाशी में अस्सीगंगा व भागीरथी गंगा के संगम पर 15 अप्रैल को आपदा प्रभावितों के बीच माटू जनसंगठन के पंद्रहवें दस्तावेज़ “आपदा में फायदा” का विमोचन किया गया। इस अवसर पर सभा में वक्ताओं ने आपदा प्रबंध की पोल खोलने के साथ मुआवज़ा वितरण में हो रही धांधली की आलोचना की। एकमत से अस्सीगंगा के बांधों का विरोध किया गया। क्षेत्र पंचायत सदस्य श्री कमल सिंह ने कहा की हम अस्सी गंगा के बांधों का प्रारंभ से विरोध कर रहे हैं।
बांधों की निगरानी
Posted on 18 Apr, 2013 03:15 PM
मंत्रालय ने ये भी नहीं देखा कि टिहरी बांध परियोजना के नीचे गंगा का क्या हाल है? नीचे भागीरथी गंगा को मक डालने का क्षेत्र बनाया हुआ है। पहले से ही सूखती-भरती गंगा की स्थिति और पारिस्थितिकी बर्बाद हुई। उर्जा मंत्रालय ने भी कभी पलट कर नहीं देखा। अलकनंदा गंगा पर विष्णुप्रयाग जविप राज्य का पहला निजी बांध है। इसकी सुरंग के कारण से धसके चाई गांव के लोगो में न तो सबको ज़मीन मिली न समुचित मुआवजा कि वे अपना मकान बना सके। सरकार ने रुड़की यूनिवर्सिटी से इस बात की जांच करवाई की उनके मकान परियोजना के कारण धंसे या प्राकृतिक आपदा की वजह से। केन्द्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के कई विभाग हैं जिसमें आई. ए. डिविजन यानि प्रभाव आकलन, बड़ा ही प्रमुख विभाग है। उसका काम है कि विभिन्न परियोजनाओं के पर्यावरणीय असरों की निगरानी करना। किसी भी परियोजना को पहले मंत्रालय से पर्यावरण स्वीकृति और वन स्वीकृति लेनी पड़ती है। दोनों ही वास्तव में मज़ाक जैसे हो गये है क्योंकि ये पत्र जारी करने के बाद पर्यावरण मंत्रालय ने कभी अपनी दी गई इन स्वीकृतियों के पालन का कोई संज्ञान नही लिया। पर्यावरण मंत्रालय के लखनऊ स्थित क्षेत्रीय कार्यालय में सिर्फ चार-पांच कर्मचारी हैं। जिन पर हजारों परियोजनाएं देखने की ज़िम्मेदारी है। समझा जा सकता है कि वे कितनी निगरानी कर पाते होंगे। लोहारीनाग पाला जविप भागीरथीगंगा पर आज की तारीख में बंद है। माटू जनसंगठन की जांच से मालूम पड़ा जिस समय सुरंग से मक निकाली जाती थी तो उसे पहाड़ पर जहां-तहां और गंगा में भी सीधे भी फेंका गया। इसके चित्र लेखक के पास मौजूद है। वहां पर काम कर रही पटेल कंपनी पर बहुत बड़ा प्रश्न भी आया उसकी जांच की भी बात आई। मक को सड़क के किनारे डाला गया जिससे रास्ता कम हुआ और मई 2008 में कम रास्ते के कारण बस गंगा में गिरी।
गंगा चिंतन
Posted on 04 Apr, 2013 04:25 PM
जहां बांध बनने के समय चेतना नही थी वहां पर अब लोग खड़े हो रहे है। हां कहीं-कहीं पर प्रभावित बांध के पक्ष में भी खड़े हुए हैं और फिर भुगत रहे हैं। किंतु यह स्पष्ट है कि बांधों से कोई रोज़गार नहीं बढ़ा है। पर्यावरण एवं वन मंत्रालय की स्वीकृतियों के अनुसार बांध कंपनियां ही अपनी रिपोर्ट बना कर भेज देती हैं। बाकी पर्यावरणीय और पुनर्वास के पक्ष की किसी शर्त का पालन होता है या नहीं इसकी कोई निगरानी नहीं। बस सरकारी कागजात के पुलिंदे बढ़ते जा रहे हैं। करोड़ों लोगों की आस्था का केन्द्र गंगा को मात्र बिजली बनाने का हेतु मान लिया जाए? गंगा के शरीर पर बांध बनाकर गंगा के प्राकृतिक स्वरूप को समाप्त किया जा रहा है। कच्चे हिमालय को खोद कर सुरंगे बनाई जा रही हैं। जिससे पहाड़ी जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया है। गंगा नदी नहीं अपितु एक संस्कृति है। पावन, पतितपावनी, पापतारिणी गंगा को मां का स्थान ना केवल हमारे पुराणों में दिया गया है वरन् गंगाजी हमारी सभ्यता की भी परिचायक हैं। वैसे तो गंगा का पूरा आधार-विस्तार अंतरराष्ट्रीय सीमाओं को पार करता है। भारत देश में भी गंगा उत्तराखंड से उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल में सागर से मिलती है। हम यदि गंगा की उपत्याकाओं और उनके जल संग्रहण क्षेत्र को भी समेटे तो हरियाणा-मध्य प्रदेश और उत्तर-पूर्व राज्यों को भी जोड़ना होगा। गंगा का उद्गम उत्तराखंड से होता है।
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