Posted on 31 Oct, 2013 11:59 AMलखवार बांध परियोजना ब्यासी बांध परियोजना से जुड़ी है जिसमें 86 मीटर ऊंचा बांध होगा और 2.7 कि.मी लम्बा सुरंग के द्वारा भूमिगत विद्युतगृह में 120 मेगावाट बिजली पैदा करने की बात कही गई है। इसमें कट्टा पत्थर के पास 86 मीटर उंचा बैराज भी बनाया जाएगा। ब्यासी परियोजना भी एक के बाद एक दूसरी बांध कंपनियों के हाथ में दी गई है किंतु अभी तक उसका भी कोई निश्चित नहीं हुई है। अब योजना आयोग लखवार बांध को वित्तीय निवेश की अनुमति देने के लिए विचार कर रहा है। ‘‘जितनी गंगा की उतनी ही यमुना की बर्बादी हो” इस लक्ष्य में सरकारें लगातार आगे बढ़ रही है। दिल्ली में यमुना के नाले में तब्दील करने के बाद गंगा पर टिहरी बांध से हर क्षण 300 क्यूसेक पानी का दोहन और यमुना की ऊपरी स्वच्छ धारा को भी समाप्त करके वहीं से यमुना को नहरों, पाइपलाइनों में डालकर दिल्ली की गैर जरूरतों को पानी दिया जाए इसकी कवायद चालू है। दूसरी तरफ कोका कोला कम्पनी जिसने लोगों में प्यास जगाने का ठेका लिया है उसे भी उत्तराखंड सरकार ने न्यौता दे दिया। वो भी वहीं अपनी यूनिट चालू करेगी। राज्य सचिव का कहना है कि कम्पनी भूगर्भीय जल का दोहन करेगी। उद्योग मंत्रालय के प्रमुख सचिव ने आश्वासन दिया है कि कोका कोला को पानी की कमी नहीं होने दी जाएगी। चाहे हमे यमुना बैराज की जगह पास की दूसरी नहरों से पानी लाना पड़े। किंतु इस विषय में कोई विवाद नहीं होने दिया जाएगा। सचिव जी कोका कोला कंपनी की इस उदारता पर बड़े ही नम्र है कि कंपनी ने भूमि लागत में 25 प्रतिशत छूट लेने से इंकार कर दिया।
Posted on 24 Oct, 2013 11:18 AMसंतोष के 16 खच्चर चलते हैं। उनके लिए घर में चने की 8 बोरियां रखी थी। संतोष के परिवार ने उसे ही उबाल कर भूखे यात्रियों को खिलाया। ज
Posted on 14 Sep, 2013 03:34 PMवर्ष 2012 में नर्मदा बचाओ आंदोलन ने ओंकारेश्वर बांध और इंदिरा सागर बांध के विस्थापितों के सवालों पर जल सत्याग्रह किया था। ओंकारेश्वर में सरकार ने मांगे मानी और दूसरी तरफ इंदिरा सागर में आंदोलनकारियों पर दमन किया गया। दसियों दिनों से पानी में खड़े लोगों को जेल में डाला गया। ओंकारेश्वर में जो मांगे मानी गर्इ, पूरा उन्हें भी नहीं किया। 1 सिंतबर, 2013 को पूरा जल सत्याग्रह का इलाक़ा पुलिस छावनी में बदल दिया गया था। पुनर्वास नहीं, ज़मीन नहीं, जो पैसा दिया भी गया वो भी इतना कम की स्वयं से शर्म आ जाए।पानी गरम था और पैर के नीचे चिकनी, मुलायम, धंसती, सरकती मिट्टी। इसी में से चलकर अंदर गंदे भारी पानी में लगभग 20 गाँवों के प्रतिनिधियों के रूप में महिला पुरूष बैठे थे। पीछे बैनर था नर्मदा बचाओ आंदोलन, ज़मीन नहीं तो बांध खाली करो। जोश के साथ नारे लग रहे थे, लड़ेंगे-जीतेंगे, वगैरह-वगैरह। जो नारे नर्मदा से निकले और देश के आंदोलनों पर छा गए थे ये जगह अजनाल नदी के किनारे नहीं बल्कि अजनाल के रास्ते इंदिरा सागर बांध में रुके नर्मदा के पानी की है। अजनाल के किनारे का टप्पर अब इंदिरा सागर बांध के जलाशय के किनारे आ गया है खेती-पेड़ सब डूबे हैं। यहां नर्मदा बचाओ आंदोलन के नेतृत्व में जल सत्याग्रह चालू है।
Posted on 14 Jul, 2013 10:48 AM पिछले कुछ वर्षों में कावड़ यात्रा, चारधाम यात्रा हेमकुंड सहित की यात्रा में अप्रत्याषित वृद्धि हुई है। जिन धार्मिक संगठनों ने इन्हें बढ़ावा दिया है। उन्होंने भी कभी गंगा जी के स्वास्थ्य को इन यात्राओं से जोड़कर नहीं देखा। आस्था के नाम पर, जिसमें आस्था है उसे ही रौंद दिया। ना यात्रियों की सुरक्षा पर कोई ध्यान दिया गया। सरकार को तो आज हम सब दोष दे ही रहे थे। वैसे सरकार अपने इस गैर जिम्मेदार व्यवहार के लिए, यात्रियों की इतनी परेशिानियों और मौंतों के दोष से सरकार बच नहीं सकती। उत्तराखंड में आई आपदा ने, जिसे मेधापाटकर जी ने ‘काफी हद तक शासन निर्मित’ करार दिया है, उत्तराखंड का नक्शा बदल दिया है। नदियों पर बने पुल टूटे और रास्ते बदले हैं। अब उत्तराखंड के पुननिर्माण में पिछली सब गलतियों को ध्यान में रखना होगा। दिल्ली जैसे तथाकथित विकास को एक तरफ करके ग्राम आधारित विकास की रणनीति बनानी होगी। केदारनाथ मंदिर निर्माण के साथ उत्तराखंड निर्माण पर ध्यान देना होगा। केदारनाथ मंदिर की स्थापत्य कला को देखे तो मालूम पड़ेगा कि पुराने समय में इंजिनीयरिंग हमसे कहीं आगे थी। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री जी का कहना है कि भू-वैज्ञानिकों और पर्यावरणविदों की सलाह मंदिर बनाने के लिए ली जाएगी साथ में केदारनाथ यमुनोत्री के लिए पंजीकरण कराने का प्रस्ताव है। पर गंगोत्री और बद्रीनाथ के लिए हमें किसी आपदा का इंतजार नहीं करना चाहिए वहां भी इस समय काफी बर्बादी हुई है। पंजीकरण चारोधाम के लिए अनिर्वाय करना चाहिए।