क्रांति चतुर्वेदी

क्रांति चतुर्वेदी
आधी करोड़पति बूंदें
Posted on 11 Feb, 2010 09:39 AM


मांडव यानी रानी रूपमती और राजा बाजबहादुर की प्रेम गाथाओं के स्मारक। जहाज महल, हिंडोला महल, तवेली महल और रूपमती महल का जर्रा-जर्रा आपको इतिहास की इस अमर प्रेम कथा को सुनाने के लिए तैयार है। रूपमती महल की छत पर खड़े होइए तो दूर, दूज के चाँद की शक्ल में नर्मदा नदी दिख जायेगी। रानी रूपमती स्नान के बाद हर रोज यहीं से तो नर्मदा मैया के दर्शन के बाद अपनी दिनचर्या शुरू करती थीं।

jahajmahal
आदाब, गौतम!
Posted on 04 Feb, 2010 08:35 AM


तपती दोपहरी में तीन ओर पहाड़ों से घिरे जंगल में हमारी आंखे नम हो गई हैं..... !

हम कभी पहाड़ तो कभी गौतम को देखते! बूंदों की हमसफर यात्रा का यह कथानक बूंदों से परे भी बहुत कुछ सुना रहा था। हमको लगता कि क्या हम बूंदों से भटक रहे हैं? लेकिन जब भी कभी पड़ाव मिलता तो बूंदों की महिमा हमारे सामने होती।

hill
बूंद साहिबा और नया समाज
Posted on 03 Feb, 2010 01:12 PM

प्रकृति के विविध रूप हमारी परम्पराओं में पूजा स्थल के रूप में मान्य किए जाते रहे हैं। पर्वत, नदियां, समुद्र, वृक्ष हमारी मनौतियों को पूरा करने के साक्ष्य से लगाकर उर्जा प्रदान करने वाले स्रोतों से रूप में समाज को स्वीकार्य रहे हैं। थोड़ा और गहराई में जाएं तो हमारे संस्कार भी हर मोड़ पर प्रकृति से एकाकार होते नजर आते हैं। हाल ही के दशक में भारत की पहचान साफ्टवेयर क्रांति के नायक, अतरिक्ष में कुल

water drop
बूंद-बूंद में नर्मदे हर
Posted on 02 Feb, 2010 05:59 PM


हे नन्हीं बूंदों!
जीवन के लिए
धरा पर कुछ देर थमो
जमीन की नसों में बहो
और धरती की सूनी कोख
पानी से भर दो.....!!

Narmada
जीवन दायिनी
Posted on 28 Jan, 2010 07:34 PM


झाबुआ जिले की पेटलावद तहसील के रूपापाड़ा की पहाड़ी................!

बूंदों को रोकने की चर्चा के साथ-साथ कभी हम नीचे तलहटी में बने तालाब को देखते तो कभी काली घाटी में हर गर्मी में सूख जाने वाले इतिहास के साक्षी हैंडपंपों के किस्से सुनते।

pahadi
डेढ़ हजार में नदी जिन्दा
Posted on 27 Jan, 2010 01:04 PM

डेढ़ हजार में नदी जिन्दा

river
बूंदों की अड़जी-पड़जी
Posted on 10 Jan, 2010 04:31 PM

झाबुआ जिले के आदिवासी बहुल गांवों में भागीदारी से सार्वजनिक या सामुदायिक कार्य करने की परम्परा पुनर्जीवित हो रही है। इसका सुखद पहलू यह है कि इसके माध्यम से पानी बचाने का काम गति पकड़ रहा है। बरसों से लगभग भुला दी गयी आदिवासी समाज की एक अच्छी परम्परा रही है “अड़जी-पड़जी।” पारस्परिक सहयोग सहकार के पुरातन मूल्य पर आधारित इस परम्परा के तहत ग्रामीणजन खेती किसानी के काम-काज में श्रम का आदान-प्रदान कि

Adji padji
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