क्रांति चतुर्वेदी
फौजी गाँव की बूँदें
Posted on 20 Dec, 2016 04:21 PMपच्चीस साल पहले भी जनसहयोग से इस तालाब के ऊपर एक तालाब बनाया गया था। बाद में यह जीर्ण-शीर्ण हो गया। इसके बाद से ही यह जमीन बंजर पड़ी थी। समाज ने मिलकर तय किया कि तालाब यहीं बनाया जाना चाहिए। लोग जुट गए और चन्द ही दिनों में यह बंजर जमीन पानी के भण्डार में तब्दील हो गई। यह 700 मीटर लम्बा और 500 मीटर चौड़ा बना है। बीच में बरसात बाद रबी के मौसम में भी दस फीट तक पानी भरा है। थोड़ी ऊँचाई पर समीप ही ब
खिरनियों की मीठी बूँदें
Posted on 18 Dec, 2016 03:43 PMसिकन्दरखेड़ा के मगरे को माताजी की पहाड़ी के नाम से भी जाना ज
बूँदों के छिपे खजाने
Posted on 18 Dec, 2016 03:36 PMतलाई की खुदाई के दौरान एक 10 फीट गहरी कुण्डी मिली। ...और इसमे
एक अनूठी अन्तिम इच्छा
Posted on 18 Dec, 2016 11:48 AMलव तालाब में डेढ़ हेक्टेयर के क्षेत्र में पानी भरा है। इस रमणीक संरचना के आस-पास के किसान
महाशीर के बहाने नदी और नदी के बहाने जंगलों का चिन्तन
Posted on 01 Oct, 2016 11:20 AMइस सम्मेलन में कोलकाता, नैनीताल, मुम्बई, उदयपुर, कर्नाटक, बंग
कलेक्टर ने ओढ़ाई माता टेकरी को हरियाली चुनरी
Posted on 05 Sep, 2016 03:21 PMदेवास जिला कलेक्टर अवस्थी ने इस कार्य के लिये सहयोग हरियाली म
बावड़ियों का शहर
Posted on 16 Jul, 2016 12:55 PM
इन्दौर का परम्परागत जल संरक्षण लोक रुचि का विषय रहा है। कभी यहाँ बीच शहर से दो सुन्दर नदियाँ बहती थीं। यह शहर चारों ओर से तालाबों से घिरा था। यहाँ बावड़ियों की संख्या इतनी ज्यादा थी कि इसे बावड़ियों का शहर कहा जाता था। यहाँ घर-घर में कुण्डियाँ भी थीं। ऐसे शहर में परम्परागत जल प्रबन्धन की एक झलक।
मध्यप्रदेश की औद्योगिक राजधानी और देश में ‘मिनी बाॅम्बे’ के रूप में ख्यात शहर इंदौर की तुलना- यहाँ के बाशिंदे किसी समय खूबसूरत शहर पेरिस से किया करते थे।
वजह थी..... जिस तरह पेरिस के बीचों-बीच शहर से नदी बहती है, उसी तरह यहाँ भी शहर के बीच में ‘नदियाँ’ निकलती थीं...!
......शहर के आस-पास और बीच में भी तालाब आबाद रहते रहे हैं।
.....कल्पना कीजिए- इस शहर के बीच में स्वच्छ पानी से भरी नालियाँ हुआ करती थीं.... जो लालबाग, कागदीपुरा व राजवाड़ा तक आती थीं......! जिसे पानी चाहिए- वह घर के पास से बह रही नाली से ले लें.....!!
खिवनी अभयारण्य बन सकता है ‘जंगल का हनुवंतिया’
Posted on 02 Jul, 2016 01:33 PMघने और सुहावने जंगल में सागवान के ऊँचे-ऊँचे दरख्त। मधुर आवाजों के साथ बहुरंगी पक्षियों की मौजूदगी। दूर-दूर तक फैला प्रकृति का नजारा। और भी बहुत कुछ। देवास और सीहोर जिले का खिवनी अभयारण्य-वन्य प्राणियों की संख्या में बढ़ोत्तरी और जल प्रबंधन होने पर ‘जंगल का हनुवंतिया’ बन सकता है।
नर्मदा जी के बहाने नदी-चिन्तन
Posted on 20 Feb, 2016 03:24 PMनर्मदा जयंती पर विशेष
‘‘जो आँखें भगवान को याद दिलाने वाली नदी का दर्शन नहीं कराती है, वो मोरों की पाँख में बने हुए आँखों के चिन्ह के समान निरर्थक है।’’ - श्रीमद् भागवत पुराण
मोरी वाले तालाब
Posted on 27 Oct, 2015 11:26 AMबुजुर्ग लोग कहते हैं, पानी की ऐसी व्यवस्था करो कि समाज और खेत-दोनों को किसी का मोहताज