क्रांति चतुर्वेदी
पानी के पहाड़
Posted on 23 Jan, 2018 03:57 PM
...यह कोई कहानी नहीं है।
...यह तो कई ‘कहानियों’ का क्लाइमेक्स है।
रोमांचक! जीवंत! सरप्राइज! जिज्ञासा जगाने वाला! प्रेरणादायी! सत्यमेव जयते! संकल्प! और भी बहुत कुछ...! आप सोच रहे होंगे, भला ऐसा क्या राज है इसमें।
बूँदों की बैरक
Posted on 23 Jan, 2018 03:51 PM
हम इस समय उज्जैन जिले की सीमावर्ती महिदपुर के गाँवों में हैं। काचरिया गाँव से होलकर रियासत का खास रिश्ता रहा है। यहाँ होलकरों की एक विशाल छावनी मौजूद रहती थी। इस छावनी में होलकरों के सैनिकों और अधिकारियों को दुश्मनों से मुकाबले के प्रशिक्षण भी दिये जाते थे। इस छावनी के अवशेष आपको आज भी मिल जाएँगे। यहाँ अभी भी गंगावाड़ी का मेला लगता है।
गाँव की जीवन-रेखा
Posted on 22 Jan, 2018 04:37 PM
थोड़ा आसमान की ओर टकटकी लगाइये ना!
आपको बादल दिख रहे हैं?
क्या बरसात होने लगी है!
तो भी देखिये!
ये नन्हीं-नन्हीं बूँदें इठलाती, गाती, झूमती, मुस्कुराती, मस्ती के साथ चली आ रही हैं!
इनकी ‘जिन्दगी का सफर’ क्या है?
गाँव क्षेत्र में ये बूँदें खेतों में अलग-अलग गिरती हैं।
बूँदों के तराने
Posted on 22 Jan, 2018 12:51 PM
पानी की बात चले और कबीर की रचना कोई न सुनाए - ऐसा कैसे हो सकता है। कबीर ने पानी के विविध प्रसंगों के माध्यम से जीवन-दर्शन की बहुत ही सहज ढंग से चर्चा की है।
बूँदों का जंक्शन
Posted on 22 Jan, 2018 12:41 PM
मैं गंवई गाँव का
वह रेलवे स्टेशन
जहाँ सुखों की एक्सप्रेस
ठहरती नहीं,
धड़धड़ाती निकल जाती है
और हाथ हिलाते रह जाते हैं
इच्छाओं के मारे ग्रामीण जन।
पानी के टाइगर को बचाने की जुगत अब जरूरी
Posted on 20 Jul, 2017 10:43 AM
‘पानी के टाइगर’ नाम से पहचाने जाने वाली राज्य मत्स्य महाशीर के संरक्षण के लिये विविध प्रयासों की आवश्यकता है। मध्य प्रदेश में इन दिनों नर्मदा सेवा मिशन के तहत नदी संरक्षण के उपाय किये गए हैं। ऐसे में समाज और सरकार ने महाशीर के संरक्षण के प्रयास भी और तेज कर देना चाहिए।
इंसानी दर्जा क्या, स्वयं ईश्वर हैं नदियाँ
Posted on 02 Jul, 2017 10:08 AMभारत के प्राचीन समाज ने नदियों, पर्वतों, समुद्रों, बादलों, वृ
अनिल दवे : एक नदी चिंतक का अचानक यूँ चले जाना…
Posted on 20 May, 2017 04:48 PM
नदियों के बारे में चिंतन का एक दार्शनिक अंदाज कुछ यूँ भी है कि एक नदी को हम ज्यादा देर तक एकटक कहाँ देख पाते हैं? जिसे हम देख रहे होने का भ्रम पाले रहते हैं, दरअसल वह नदी तो कुछ ही क्षणों में हमारे सामने से ओझल हो जाती है। उसके प्रवाहमय पानी के लिये- फिर नई जमीन, नया आसमान, नये किनारे, नये पत्थर और नये लोग होते हैं। हम तो वहीं रहते हैं फिर ओझल होने वाली नई नदी को हम देख रहे होते हैं। प्रवाह ही नदी का परिचय है, लेकिन किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था कि 18 मई की सुबह एक शख्स नदी के प्रवाह की तरह एकाएक हमसे ओझल हो जाएगा जो अपने तमाम परिचयों के बीच नदी चिंतक के सर्वप्रिय परिचय के रूप में अपने प्रशंसकों के बीच पहचाना जाता हो।
भारत सरकार के पर्यावरण मंत्री और मध्यप्रदेश से सांसद श्री अनिल माधव दवे जी का एकाएक स्वर्गवास हो गया। उनके निधन से देश और विशेषकर मध्यप्रदेश स्तब्ध है। दरअसल अनिल दवे का व्यक्तित्व इंद्रधनुषीय आभामंडल लिये हुए था लेकिन इन सब में सबसे गहरा और आकर्षित रंग तो उनका नर्मदा अनुराग था।
कभी कर्जे में डूबे थे, अब लखपति हैं किसान
Posted on 09 Feb, 2017 10:30 AMनेवरी के पास कजली वन मार्ग पर सेतखेड़ी में उम्मीदों का आसमान