खिवनी अभयारण्य बन सकता है ‘जंगल का हनुवंतिया’


घने और सुहावने जंगल में सागवान के ऊँचे-ऊँचे दरख्त। मधुर आवाजों के साथ बहुरंगी पक्षियों की मौजूदगी। दूर-दूर तक फैला प्रकृति का नजारा। और भी बहुत कुछ। देवास और सीहोर जिले का खिवनी अभयारण्य-वन्य प्राणियों की संख्या में बढ़ोत्तरी और जल प्रबंधन होने पर ‘जंगल का हनुवंतिया’ बन सकता है।

खण्डवा जिले का हनुवंतिया देश और प्रदेश में स्टार पर्यटन केन्द्र की श्रेणी में आ रहा है। यह जल केन्द्रीत है। इसी तर्ज पर जंगल केन्द्रित पर्यटन केन्द्र के तौर पर देवास और सीहोर जिले के खिवनी अभयारण्य को भी विकसित किया जा सकता है। खिवनी- इंदौर और भोपाल से लगभग 100 किमी के दायरे में आता है। हनुवंतिया से भी यह कन्नौद, नर्मदा नगर होते हुए 135 कि.मी. दूरी पर लिंक है। होशंगाबाद, भोपाल, सीहोर, हरदा, खण्डवा, खरगोन, इंदौर आदि जिलों से खिवनी का सीधा सम्पर्क है। टूरिस्ट सर्किल इस तरह बनाया जा सकता है कि हनुवंतिया, महेश्वर, मण्डलेश्वर, नेमावर, धाराजी, कावडिया पहाड़, सीता मंदिर, सीतावन से खिवनी अभयारण्य को लिंक किया जा सके। यहाँ जंगल टूरिज्म, बड़ा बाँध बनने पर वाटर टूरिज्म, एडवेंचर, ट्रेकिंग, कॉटेज पर्यटन आदि क्षेत्र में विकास की अनेक संभावनाएं हैं।

कैसे जाया जा सकता है?


- उत्तर में सीहोर जिले के इछावर से
- पश्चिम में आष्टा-कन्नौद मार्ग के सिया घाट से
- दक्षिण में आष्टा-कन्नौद मार्ग के कुसुमानिया से

खास बिंदु
- खिवनी- देवास के उत्तर और सीहोर के दक्षिण सीम पर स्थित है। इसका क्षेत्रफल 134 वर्ग कि.मी. है।
- यहाँ 110 से ज्यादा पक्षियों की प्रजातियाँ है। तेंदुआ, नीलगाय, हिरण से लेकर खरगोश तक हैं।
- विंध्याचल की ऊँची पहाड़ियों से घिरे इस जंगल की छटा देखते ही बनती है।
- यहाँ सागौन, साजा, सलई, आँवला, अर्जुन, शीशम आदि से भरा जंगल है। बालगंगा नदी का उद्गम भी है।
- जंगल की सुरक्षा को और मजबूत करने की दरकार है। दौलतपुर से अधिक आवाजाही जंगल के लिये खतरा है।
- इको टूरिज्म क्षेत्र में विकास करने पर आस-पास के शहरों के बाशिंदों के लिये नए स्पॉट की सम्भावना।

वनों के प्रकार एवं वनस्पति


अभयारण्य के वन सदर्न ट्रॉपीकल ड्राई डेसीड्यूअस वनों की श्रेणी में आते हैं। अभयारण्य का अधिकांश भाग सागौन के बहुमूल्य वनों का है। इसके अलावा साजा, धावड़ा, सलई, मोयन, आंवला, धामन, हल्दू, कलम, ईमली, अर्जुन, महुआ, शीशम, बहेड़ा, खैर, कुल्लू तिन्सा, बीजा, पलाश तथा ढलानों पर बांस बहुतायत में पाया जाता है। सिराली, दुधी, लेण्टाना, बैकल, घटबोर की झाड़ियों के अलावा सिरेटा, धनवेला काला बैला, कांच, कुटी आदि बैल प्रजातियाँ पाई जाती है। पोनिया, गोदराली, कुंदा, फुलेरा, सुकला एवं रोशा घास मुख्य रूप से पाई जाती है।

पर्यटन की सम्भावनाएं


1. अभयारण्य क्षेत्र में अनेक पहाड़ियाँ एवं घाटियाँ होने से यह क्षेत्र ट्रेकिंग हेतु उपयुक्त है।

2. सियाघाट से दौलतपुर, दौलतपुर से रूपादा, दौलतपुर से खिवनी, मोहाई से खिवनी व रिछीगेट से पटरानी आदि वन मार्ग अभयारण्य में आने-जाने के मुख्य रास्ते हैं। रास्तों के दोनों ओर वनों की छटा निराली है।

3. खिवनी दौलतपुर वन मार्ग स्थित व्यू प्वाइंट तथा कलमतलाई से अभयारण्य का अनुपम दृश्य दिखाई देता है।

4. ढलानों पर वॉच टॉवर, गोलकोठी जैसी पुरानी संरचनाएं तथा कलमतलाई तालाब आकर्षण का केन्द्र है।

5. खिवनी वनग्राम स्थित वन विश्राम गृह के पास बालगंगा नामक प्राकृतिक छटा से भरपूर, सुरम्य स्थल पर दो प्राचीन मंदिर यहाँ की धार्मिक आस्था के केन्द्र बिन्दु है।

6. बालगंगा में पूरे वर्ष अज्ञात स्थान से स्वच्छ पेयजल का प्रवाह अपने आप में चमत्कार है। यहाँ हर पूर्णिमा-अमावस्या शिवरात्रि आदि पर सैकड़ों श्रद्धालु स्नान करने आते हैं। इन अवसरों पर यहाँ धार्मिक मेले का वातावरण निर्मित हो जाता है।

 

वन्य प्राणियों की संख्या बढ़ने और कालीबाई तथा पटरानी के बीच जामनेर नदी पर बाँध बनने से वन्य प्राणियों को जल संकट से मुक्ति मिलेगी और वाटर टूरिज्म के क्षेत्र में विकास की सम्भावना बनेगी। - जी.एस. सिसौदिया अभयारण्य अधीक्षक, कन्नौद

 


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