जाहिद खान
पर्यावरण सहित हो विकास
Posted on 30 Jul, 2011 10:27 AMहमारे मुल्क में लंबे समय से नीतिगत निर्णयों के समय विकास के नाम पर पर्यावरण संरक्षण के तकाजे की बलि दी जाती रही है। आर्थिक वृद्धि के नाम पर पर्यावरण को जमकर नुकसान पहुंचाया गया। इसी का नतीजा है कि हालिया सालों में पर्यावरण संबंधी विवाद खूब उभरकर आए। इस पर विराम लगाने के लिए आखिरकार, हमारी सरकार संजीदा हुई है। औद्योगिक और खनन परियोजनाओं में पर्यावरण संबंधी विवादों पर लगाम लगाने के लिए जल्द ही एक
एंडोसल्फान पर पाबंदी से राहत
Posted on 07 May, 2011 10:07 AMएक अनुमान के मुताबिक भारत में यदि एंडोसल्फान पर पाबंदी लगी तो इस उद्योग को हर साल 279 से 450 कर
गंगा को बचाने की नई मुहिम
Posted on 05 May, 2011 10:04 AMआर्थिक मामलों की कैबिनेट कमेटी ने हाल में गंगा की सफाई के लिए सात हजार करोड़ की महत्वाकांक्षी परियोजना पर मुहर लगा दी है।तीव्र औद्योगिकरण, शहरीकरण और प्रदूषण से अपने अस्तित्व के लिए जूझ रही गंगा को बचाने के लिए अब तक की यह सबसे बड़ी परियोजना होगी। गंगा को साफ करने की पिछली परियोजनाओं की कामयाबी और नाकामयाबियों से सबक लेते हुए इस परियोजना को बनाया गया है जिसके तहत पर्यावरणीय नियमों का कड़ाई से प
अब पानी में सुपरबग का हल्ला
Posted on 13 Apr, 2011 05:45 PMभारत में बढ़ती स्वास्थ पर्यटन की संभावनाओं को नुकसान पहुंचाने के लिए पश्चिमी मुल्क और वहां की स
जान पर बना यमुना का प्रदूषण
Posted on 07 Mar, 2011 09:45 AMहमारे मुल्क में नदियों के अंदर बढ़ते प्रदूषण पर आए दिन चर्चा होती रहती है।प्रदूषण रोकने के लिए गोया बरसों से कई बड़ी परियोजनाएँ भी चल रही हैं। लेकिन नतीजे देखें तो वही “ढाक के तीन पात” प्रदूषण से हालात इतने भयावह हो गए हैं कि पेयजल तक का संकट गहरा गया है। राजधानी दिल्ली के 55 फीसद लोगों की जीवन-दायिनी, उनकी प्यास बुझाने वाली- यमुना के पानी में जहरीले रसायनों की मात्रा इतनी बढ़ गई है कि उसे साफ कर पीने योग्य बनाना तक दुष्कर हो गया है।
बीते एक महीने में दिल्ली में दूसरी बार ऐसे हालात के चलते पेयजल शोधन संयंत्रों को रोक देना पड़ा। चंद्राबल और वजीराबाद के जलशोधन केंद्रों की सभी इकाइयों को महज इसलिए बंद करना पड़ा कि पानी में अमोनिया की मात्रा .002 से बढ़ते-बढ़ते 13 हो गई, जिससे पानी जहरीला हो गया।
पर्यावरण संरक्षण की जरूरी पहल
Posted on 27 Oct, 2010 08:51 AMपर्यावरण सुरक्षा और पर्यावरण संबंधी विवादों के यथासमय निस्तारण के लिए आखिरकार देश में अलग से पर्यावरण अदालत की स्थापना हो ही गई।
पर्यावरण और वन राज्यमंत्री जयराम रमेश द्वारा राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण के गठन के औपचारिक ऐलान के साथ ही हम दुनिया के उन चुनिंदा मुल्कों में शामिल हो गये हैं, जहां पर्यावरण संबंधी मामलों के निपटारे के लिए राष्ट्रीय स्तर पर न्यायाधिकरण होते हैं। न्यायाधिकरण का मुख्यालय राजधानी दिल्ली होगा। शुरू में देश में अलग-अलग चार स्थानों पर इसकी पीठ कायम होंगी। मामलों के आधार पर भविष्य में इनकी संख्या बढ़ाई भी जा सकती है। इसकी सबसे खास बात यह है कि किसी को यदि लगता है कि पर्यावरण और वन मंत्रालय के नियम, नीतियां या उसकी ओर से किया गया कार्यान्वयन मनमाना, अपारदर्शी और पक्षपातपूर्ण है, तो वह बेझिझक न्यायाधिकरण में इंसाफ की गुहार लगा सकता है।