हमारे मुल्क में लंबे समय से नीतिगत निर्णयों के समय विकास के नाम पर पर्यावरण संरक्षण के तकाजे की बलि दी जाती रही है। आर्थिक वृद्धि के नाम पर पर्यावरण को जमकर नुकसान पहुंचाया गया। इसी का नतीजा है कि हालिया सालों में पर्यावरण संबंधी विवाद खूब उभरकर आए। इस पर विराम लगाने के लिए आखिरकार, हमारी सरकार संजीदा हुई है। औद्योगिक और खनन परियोजनाओं में पर्यावरण संबंधी विवादों पर लगाम लगाने के लिए जल्द ही एक स्वतंत्र नियामक 'राष्ट्रीय पर्यावरण आकलन और निगरानी प्राधिकरण' का गठन किया जाएगा। यह प्राधिकरण मुल्क में विकास की तमाम परियोजनाओं को पर्यावरण संबंधी मंजूरी देने के लिए एक स्वतंत्र नियामक के तौर पर कार्य करेगा।
यह प्राधिकरण यदि अस्तित्व में आया तो न सिर्फ परियोजनाओं द्वारा पर्यावरण मंजूरी लेने की प्रक्रिया में पूरी तरह से बदलाव आ जाएगा बल्कि परियोजनाओं पर पर्यावरण संबंधी मुद्दों के चलते होने वाली मुकदमेबाजी पर भी रोक लगेगी। बीते कुछ सालों में मुल्क के अंदर चल रही कई बड़ी औद्योगिक और खनन परियोजनाओं के ऊपर सवाल उठते रहे हैं। यह सवाल मुख्यत: पर्यावरण संबंधी है। इन परियोजनाओं में सभी कायदे-कानूनों को ताक पर रखकर बड़े पैमाने पर पर्यावरण व वन संबंधी नियमों का उल्लंघन किया गया। कई परियोजनाओं की तो मंजूरी देने से भी पर्यावरण मंत्रालय ने इनकार कर दिया। स्टील क्षेत्र की दिग्गज दक्षिण कोरियाई कंपनी पास्को व अनिल अग्रवाल की वेदांत से लेकर रीयल्टी कंपनी लवासा कॉर्पोरेशन की परियोजनाओं पर पर्यावरण कानून के उल्लंघन के इलजाम लगे और मंत्रालय व अदालतों ने बार-बार काम रोका।
उड़ीसा स्थित बेडाबहल अल्ट्रा मेगा बिजली परियोजना (यूएमपीपी) जैसी कुछ परियोजनाओं और उससे जुड़े कोयला ब्लॉक के उत्खनन को लेकर भी तमाम एतराज उठे, जिसके चलते बिजली और पर्यावरण मंत्रालय आमने-सामने आ गए। पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश के कार्यकाल में तो पर्यावरण मंत्रालय का पर्यावरण संबंधी मुद्दों पर दूसरे मंत्रालयों से कई बार टकराव हुआ। पर्यावरण मंत्रालय और कोयला मंत्रालय के बीच यह तकरार काफी दिनों तक चली। जयराम रमेश ने 203 नए कोयला क्षेत्रों में खनन की मंजूरी देने से साफ-साफ इनकार कर दिया था। प्रधानमंत्री ने विकसित देशों को लक्ष्य कर एक बात और दो टूक शब्दों में कही कि भारत पर्यावरण संरक्षण के मकसद से कदम उठाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आम सहमति होने तक इंतजार नहीं करेगा।
यह बात सच भी है। बीते कुछ सालों में सरकार ने पर्यावरण संरक्षण और आपदा प्रबंधन के लिए कई उल्लेखनीय कदम उठाए हैं। चार साल से केन्द्र सरकार पर्यावरण संरक्षण और आपदा प्रबंधन की चुनौतियों से निपटने के लिए एक राष्ट्रीय एजेंडे पर काम कर रही है। कुल मिलाकर, आज दुनिया भर में बढ़ते वैश्वीकरण, उदारीकरण और निजीकरण के चलते पर्यावरण सुरक्षा और संरक्षण बड़ा मुद्दा बनकर उभरा है। विकसित-विकासशील मुल्क अपने तई कोशिश कर रहे हैं कि पर्यावरण सुरक्षा और भी बेहतर हो और पर्यावरण नुकसान कम से कम हो, यह उनका अहम एजेंडा है और यह बदलते वक्त की दरकार भी है।
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