अब पानी में सुपरबग का हल्ला

भारत में बढ़ती स्वास्थ पर्यटन की संभावनाओं को नुकसान पहुंचाने के लिए पश्चिमी मुल्क और वहां की साइंस पत्रिकाएं इस तरह के शिगूफे आए-दिन छोड़ती रहती हैं, ताकि वहां के लोग भारत में इलाज के लिए न जाएं। यानी विशुद्ध रूप से देखा जाए तो यह पूरा मामला व्यावसायिक हितों का है।

ब्रिटेन की वैज्ञानिक शोध पत्रिका 'द लांसेट' को सुपर बग मामले में भारत सरकार से माफी मांगे हुए ज्यादा दिन नहीं बीते हैं।उसने फिर एक नया शिगूफा छोड़ दिया है। इस बार लांसेट में प्रकाशित एक रिपोर्ट में कुछ विशेषज्ञों का दावा है कि राजधानी दिल्ली के पानी में ऐसा सुपरबग है, जिस पर दुनिया भर के किसी एंटीबायोटिक का कोई असर नहीं पड़ता। रिपोर्ट में कथित विशेषज्ञों के हवाले से यह भी कहा गया है कि आदमी की जान के लिए खतरनाक एनडीएम-1 सुपरबग दिल्ली की फिजा में मौजूद है और इसके पूरी दुनिया में फैल जाने की आशंका है। जाहिर है, शोधकर्ताओं के इस विवादास्पद निष्कर्ष पर भारत ने अपना कड़ा रुख दिखाया है। स्वास्थ मंत्रालय के अफसरों और हमारे वैज्ञानिकों ने दुनिया भर में मुल्क की छवि खराब करने वाली इस रिपोर्ट को सिरे से खारिज करते हुए बेबुनियाद और झूठा बताया है।

गौरतलब है कि कार्डिफ यूनिवर्सिटी के टिमोथी वॉल्स और डॉ. मार्क टॉलेमान की यह विवादास्पद शोध रिपोर्ट सात मार्च को लांसेट के ऑनलाइन संस्करण में प्रकाशित हुई है जिसमें कहा गया है कि शोधकर्ताओं ने मध्य दिल्ली के 12 किलोमीटर दायरे में पानी के नमूने लेकर उनकी जांच की। इसमें सार्वजनिक नलों से भी पानी लिया गया और जगह-जगह जमा गंदा पानी के भी नमूने लिये गये। शोधकर्ताओं ने दावा किया कि चार फीसद नल के पानी और 30 फीसद गंदे पानी के बैक्टीरिया में एनडीएम-1 जीन थे। और यह वही जीन हैं, जो व्यापक तौर से इस्तेमाल में लाए जाने वाले एंटीबायोटिक्स का प्रतिरोध पैदा करते हैं। इसके अलावा इसमें हैजा और दस्त के बैक्टीरिया भी पाये गये।

बहरहाल, इस सनीसनीखेज रिपोर्ट में कही गई बातों के लिए शोधकर्ताओं ने कोई क्लीनिकल सबूत नहीं दिये हैं। जबकि, एक बड़े तबके या मुल्क की अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने वाली इस तरह की रिपोर्टों में, इन सब बातों का खास तौर से ध्यान रखा जाता है। यही नहीं, कानूनी तौर पर जब भी कोई मुल्क से बाहर का शोधकर्ता अपने यहां जैविक पदार्थ ले जाता है, तो उसे सबसे पहले इसकी इजाजत संबंधित सरकार से लेना होता है। लेकिन इस पूरे मामले में न तो भारत सरकार को सूचित किया गया और न ही किसी लोकल ऐजेंसी को अपने साथ लिया गया।

सवाल है कि सैंपल आखिरकार कहां से लिये गये। यानी यह भी शक के दायरे में हैं। एक बात और, यह रिपोर्ट कहती है कि दिल्ली के पानी में सुपरबग है! लेकिन इस सुपर बग का पूरे मुल्क में कहीं भी कोई प्रभाव नहीं दिखलाई देता और न ही अभी तक कोई ऐसा मामला सामने आया है। यानी पूरा मामला दुष्प्रचार प्रेरित लगता है। मेडिकल और टूरिज्म के क्षेत्र में दिन-ब-दिन आगे बढ़ती राजधानी दिल्ली के खिलाफ यह दुष्प्रचार के सिवाय कुछ नहीं। इस तरह की रिपोर्टें खास मंशा से प्रकाशित होती हैं। जिनका मकसद किसी मुल्क की छवि को पूरी दुनिया भर में धूमिल करना होता है।

बीते साल भी लांसेट ने पश्चिमी मुल्कों में पैदा हुए सुपरबग को जान-बूझकर नई दिल्ली से जोड़ा था। उस वक्त भी लांसेट ने अपनी तथाकथित शोध रिपोर्ट में दावा किया था कि स्वास्थ्य के लिए खतरनाक सुपरबग नाम का बैक्टीरिया भारत में पैदा हुआ है और यह बैक्टीरिया पूरी दुनिया में फैल सकता है। लेकिन बाद में यह पूरी रिपोर्ट झूठ का पुलिंदा साबित हुई और इसके लिए लांसेट ने बकायदा भारत से माफी भी मांगी। लांसेट इस बात से कोई सबक लेता, इसके उलट उसने एक बार फिर अपने यहां ऐसी ही रिपोर्ट दोबारा प्रकाशित कर दी। जो भारत की आबो-हवा पर सवालिया निशान लगाती है।

दरअसल, दिल्ली के पानी में सुपरबग बतलाने वाली लांसेट की यह विवादास्पद रिपोर्ट हो या उसकी पूर्व रिपोर्ट, दोनों ही तथ्यों से खिलवाड़ कर जान बूझकर गढ़ी गई हैं। इनके पीछे साजिश काम कर रही है, जिसका मकसद मुल्क को पूरी दुनिया में बदनाम करना है। एनडीएम-1 सुपरबग का हौव्वा खड़ा कर मेडिकल टूरिस्टों और दीगर टूरिस्टों को दिल्ली आने से रोकना है। भारत में बढ़ती स्वास्थ पर्यटन की संभावनाओं को नुकसान पहुंचाने के लिए पश्चिमी मुल्क और वहां की साइंस पत्रिकाएं इस तरह के शिगूफे आए-दिन छोड़ती रहती हैं, ताकि वहां के लोग भारत में इलाज के लिए न जाएं। यानी विशुद्ध रूप से देखा जाए तो यह पूरा मामला व्यावसायिक हितों का है। करोड़ों-अरबों के हो चुके स्वास्थ व्यवसाय पर एकाधिकार का है।

बीते कुछ सालों में हमारा मुल्क चिकित्सा पर्यटन के क्षेत्र में एक वैश्विक ताकत के रूप में उभरा है। हर साल तकरीबन 11 लाख मेडिकल टूरिस्ट भारत आते हैं और यह आंकड़ा दिन ब दिन बढ़ता जा रहा है। 'बूमिंग मेडिकल टूरिज्म इन इंडिया रिपोर्ट 2009' कहती है कि साल 2012 में मेडिकल टूरिज्म के क्षेत्र में भारत की हिस्सेदारी 24 फीसद होगी और यह कारोबार सालाना 27 फीसद के हिसाब से बढ़ेगा।

कुल मिलाकर, यह सब बातें आजकल पश्चिमी मुल्कों को बैचेन कर रही हैं। यह सिलसिला यूं ही आगे बढ़ा तो मेडिकल का बहुत बड़ा धंधा पश्चिम की पकड़ से निकल जाएगा। पश्चिमी मुल्कों का यही वह डर है, जो लांसेट जैसी उनकी पत्रिकाओं में जब-तब मुख्तलिफ रिपोर्टों के जरिए अभिव्यक्त होता रहता है। लांसेट की हालिया शोध रिपोर्ट न सिर्फ मेडिकल बल्कि हमारे पूरे टूरिज्म क्षेत्र को प्रभावित करने की एक चाल है। हमारे मुल्क के साथ लांसेट पहले भी यह गंदी हरकत कर चुकी है। उसने दूसरी बार अपनी यह घृणित हरकत दोहराई है। यदि पिछली बार ही हमारी हुकूमत ने लांसेट पर कोई कानूनी कार्रवाई कर दी होती तो, वह अपनी उस गलती को दोबारा दोहराने की हिम्मत नहीं करती।
 

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