एक अनुमान के मुताबिक भारत में यदि एंडोसल्फान पर पाबंदी लगी तो इस उद्योग को हर साल 279 से 450 करोड़ का नुकसान होगा। मुल्क भर में एंडोसल्फान का उत्पादन फिलहाल 9 हजार टन है। यानी, पूरी दुनिया के कुल उत्पादन का 50 फीसद भारत में होता है। जिसमें वह 70 फीसद निर्यात करता है।
केरल में खतरनाक कीटनाशक एंडोसल्फान के खिलाफ लंबे समय से संघर्षरत किसानों का संघर्ष आखिरकार कुछ रंग लाया है।तमाम ना नुकुर के बाद ही सही, जिनेवा में हुए 'स्टॉकहोम कंनवेंशन ऑन परसिस्टमेंट आर्गेनिक पॉल्यूटेंट्स' पर हुई बैठक में भारत ने एंडोसल्फान के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने में अपनी सहमति जता दी है। वहीं भारत के अंदर एंडोसल्फान के सुरक्षित व किफायती विकल्प ढूढ़े जाने तक इसका इस्तेमाल होता रहेगा और इसका इस्तेमाल अब 44 फसलों की बजाय 22 पर ही हो सकेगा। जो हो, इस घातक कीटनाशक के खिलाफ एक हद तक लड़ाई जीत ली गई है।
मानव जीवन के लिए घातक इस कीटनाशक पर देशव्यापी प्रतिबंध की मांग बरसों से चल रही है। यह सरकार की उदासीनता का ही नतीजा है कि आज लड़ाई अदालत तक पहुंच गई है। एंडोसल्फान पर प्रतिबंध लगाने की मांग वाली याचिका पर हाल में सुप्रीम कोर्ट ने केंन्द्र समेत सभी सूबाई सरकारों को नोटिस जारी की है। मुख्य न्यायाधीश की कयादत वाली तीन सदस्यीय पीठ ने माकपा की युवा इकाई डेमोक्रेटिक यूथ फेडरेशन की याचिका पर सुनवाई के बाद नोटिस जारी कर सरकारों से जबाव मांगा है। याचिकाकर्ताओं की मांग है कि केन्द्र देश में एंडोसल्फान के मौजूदा स्वरूप या किसी अन्य स्वरूप में बिक्री पर प्रतिबंध लगाने का निर्देश दे।
गौरतलब है कि देश में हरित क्रांति के दौरान खेती में रासायनिक खाद, हाईब्रीड बीज और कीटनाशक- जिसे अंग्रेजी में लैंड ग्रांड सिस्टम कहा जाता है, का प्रचलन बढ़ा जिसने भारतीय खेती की दशा और दिशा बदल कर रख दी। शुरू में निश्चित रूप से इस कारण अभूतपूर्व पैदावर बढ़ी, लेकिन आहिस्ता-आहिस्ता इनके अंधाधुंध इस्तेमाल ने भूमि की उर्वरा शक्ति घटा दी। साथ ही खेती और किसानों पर भी कीटनाशकों का कुप्रभाव पड़ने लगा।
एंडोसल्फान ऐसा ही घातक कीटनाशक है। बीते वर्षों में मुल्क के कई हिस्सों में इसके खतरनाक प्रभाव की शिकायतें मिली हैं। खासतौर से केरल में इसके इस्तेमाल से कई घातक बीमारियां सामने आईं इसके दुष्प्रभाव से अब तक 400 से ज्यादा लोग मौत के मुंह में जा चुके हैं और 4000 से ज्यादा अपंग बताए जाते हैं। लिहाजा, केरल में ही इस पर पाबंदी की मांग सबसे पहली उठी और धरने-प्रदर्शन और बंद आयोजित हुए। केरल के एक सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल ने प्रधानमंत्री से मिलकर मांग की कि सरकार जिनेवा कंवेंशन में इस पर प्रतिबंध लगाने के लिए दबाव बनाए। राज्य के कसारगोड में हजारों लोग इसके दुष्प्रभाव से पीड़ित हैं। कभी अपनी हरियाली के लिए मशहूर कसारगोड का पर्यावरण आज पूरी तरह दूषित हो गया है। इसके इस्तेमाल से न सिर्फ वहां की जैव विविधता पर असर पड़ा है बल्कि पक्षियों और कीट-पतंगों की अनेक प्रजातियां भी विलुप्त होने की कगार पर हैं। आलम यह है कि पीड़तों को केरल सरकार को राहत और मुआवजा भी देना पड़ रहा है।
कीटों से बचाव के लिए खेतों में कीटनाशकों का इस्तेमाल नई बात नहीं है। लेकिन एंडोसल्फान की तुलना दूसरे कीटनाशकों से नहीं की जा सकती। इसके इस्तेमाल के दौरान और बाद में लोगों ने त्वचा और आंखों में जलन से लेकर अंगों के निष्क्रिय होने तक की अनेक शिकायतें की हैं। इसके इस्तेमाल से न सिर्फ लोगों की सेहत पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है, बल्कि दिन-ब-दिन जमीन की उर्वरा शक्ति भी घट रही है। यही वजह है कि ज्यादातर मुल्कों ने इसे प्रतिबंधित कर दिया है। यूरोपीय संघ, आस्ट्रेलिया, ब्रिटेन, स्वीडन, नीदरलैंड, जर्मनी, ब्राजील और न्यूजीलैंड समेत 84 मुल्कों में फिलहाल इस पर पाबंदी है। एंडोसल्फान का सबसे बड़ा उत्पादक अमेरिका है, लेकिन वहां भी इसके दुष्प्रभाव को देखते हुए, बीते साल इस पर पाबंदी लग गयी है।
देश में केरल एकमात्र ऐसा सूबा है, जहां इस खतरनाक कीटनाशक पर सबसे पहले पाबंदी लगी। वहां 2005 से इसके इस्तेमाल पर पाबंदी है मगर शेष राज्यों में इसका इस्तेमाल धड़ल्ले से जारी है। जहां एक के बाद एक तमाम पश्चिमी मुल्क अपने यहां इसके इस्तेमाल पर पाबंदी लगा रहे हैं, वहीं हमारा मुल्क इसका सबसे बड़ा उपभोक्ता बना है।
सरकार की दलील है कि इस पर पाबंदी लगाने से पैदावार में कमी आएगी। इससे शायद ही किसी को एतराज हो लेकिन ऐसी उपज का भी क्या फायदा, जो लोगों की सेहत की कीमत पर हो? फिर खुद केंद्र और राज्य द्वारा गठित विषेषज्ञों की एक कमेटी ने अपने वैज्ञानिक अध्ययन में पाया है कि एंडोसल्फान घातक रसायन है और यह मानव विकास को प्रभावित कर सकता है। केरल का कसारगोड जिला इसकी छोटी सी मिसाल है। जहां तमाम राहत प्रयासों के बाद भी इसका प्रभाव दिख रहा है। ऐसे में इसे देश में पूरी तरह प्रतिबंधित न कर सरकार रसायन निर्माता बहुराष्ट्रीय कंपनियों का पक्ष ही ले रही है, जो हर लिहाज से गलत है।
एक अनुमान के मुताबिक भारत में यदि एंडोसल्फान पर पाबंदी लगी तो इस उद्योग को हर साल 279 से 450 करोड़ का नुकसान होगा। मुल्क भर में एंडोसल्फान का उत्पादन फिलहाल 9 हजार टन है। यानी, पूरी दुनिया के कुल उत्पादन का 50 फीसद भारत में होता है। जिसमें वह 70 फीसद निर्यात करता है। यही वजह है कि भारत सरकार इस पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाने के लिए मन नहीं बना पा रही है।
यह पहली बार नहीं है जब किसी कीटनाशक के खिलाफ दुनिया भर में एक साथ आवाज उठी हो। अतीत में गैमेक्सीन और डीडीटी जैसे रसायनों का दुष्प्रभाव देखते हुए इनके इस्तेमाल पर पाबंदी लगी है। एंडोसल्फान को संयुक्त राष्ट्र भी 'अति खतरनाक' श्रेणी में रख चुका है अत: इसके उत्पादन और बिक्री पर भारत में तुरंत रोक समय की दरकार है। स्टॉकहोम सम्मेलन ने हालांकि एंडोसल्फान को प्रतिबंधित कर दिया है फिर भी भारत कुछ रियायतें पाने में कामयाब हो गया है। 22 चुनिंदा फसलों पर इसका इस्तेमाल जारी रहेगा। यानी, इंसानी जिंदगी के लिए खतरनाक और हानिकारक कीटनाशक पर भारत में अभी भी पूरी तरह से पाबंदी नहीं लगी है। खैर! केरल के संघर्ष से हम आधी लड़ाई तो जीत गए हैं और आधी बाकी है।
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