दिसम्बर 1953 में सरकार ने कोसी नदी पर तटबन्धों के निर्माण का अनुमोदन कर दिया था जिसकी वजह से राज्य की दूसरी नदियों को नियंत्रित करने की अपेक्षाएं जगीं। 1954-55 के बिहार के बजट पर चल रही बहस में विधान सभा में दामोदर झा ने सरकार से यह सवाल किया कि सरकार बागमती नदी को नियंत्रित करने के लिए क्या करने जा रही है। मगर उनके सवाल के जवाब को सरकार ने यह कह कर टाल दिया था कि सरकार किसी योजना विशेष के बारे में बात न कर के आज रुचि वाली परियोजनाओं के बारे में अपनी नीतियों को स्पष्ट कर रही है।
देश की आजादी के बाद बागमती घाटी में बाढ़ की यह पहली बड़ी घटना थी। बागमती से समय-समय पर फूटकर निकलने वाली बहुत सी धाराएं उसके पानी को विभिन्न क्षेत्रों में फैलाने में बड़ी मददगार होती हैं। 1953 में बागमती का बहुत सा पानी सुगिया-परदेसिया धार से निकला और उसने पूर्वी चम्पारण के एक बड़े इलाके को तबाह किया। बकुआ नाले से मिलकर इस पानी ने आगे चल कर मीनापुर थाने के क्षेत्र को अपनी चपेट में ले लिया। बागमती और बूढ़ी गंडक के दोआब में लगी खरीफ की खड़ी फसल पूरी तरह बर्बाद हो गयी और बड़े पैमाने पर घरों का नुकसान हुआ। धीरे-धीरे यह सारा पानी बूढ़ी गंडक नदी में घुसा जिसकी वजह से इस क्षेत्र में पानी की एक मोटी चादर बिछ गयी। मुजफ्फरपुर-सीतामढ़ी सड़क के दोनों तरफ पानी ही पानी था। मुजफ्फरपुर-जन्दाहा मार्ग के पूरब भरथुआ चौर में अप्रत्याशित रूप से पानी की आमद बढ़ गयी और चौर के इस पानी से कटरा तक का इलाका प्रभावित हुआ था। बागमती की बाढ़ का पानी शिवहर-सिसउला, सिसउला-मेजरगंज, सीतामढ़ी-मधुबनी और शिवहर-बेलसंड सड़कों के ऊपर से बह निकला था।बागमती के अलावा इस साल लखनदेई में भी जुलाई महीने में काफी पानी आया और उसने अपने बाएं किनारे पर बने जमीन्दारी और प्राइवेट तटबन्धों को कई जगह तोड़ा। सीतामढ़ी से नेपाल सीमा के बीच में भी लखनदेई इस बार कई जगहों पर इन तटबन्धों से ऊपर होकर निकल गयी। इस नदी के पूरब वाली जमीन वैसे भी नीची है जिसकी वजह से लखनदेई के पानी को अधवारा समूह की नदियों तक पहुँचने में देर नहीं लगती। स्वाभाविक तौर पर यह नदी बाढ़ के पानी की निकासी और सिंचाई का बहुत अच्छा माध्यम रही है मगर 1934 के बिहार भूकम्प ने इसकी तलहटी को पूरा ऊबड़-खाबड़ बना दिया जिसकी वजह से न सिर्फ पानी की निकासी बाधित हुई वरन् ठहरे पानी के कारण मलेरिया ने भी सिर उठाना शुरू कर दिया। इस परिस्थिति से निपटने के लिए नदी की तलहटी की सफाई करनी पड़ गयी थी।
उधर अधवारा समूह की अधवारा, जमुरा, शिकाओ और बुढ़नद नदियों में एक साथ बाढ़ आयी क्योंकि उनके जलग्रहण क्षेत्रों में भी अच्छी खासी बारिश हुई थी। जितना पानी इलाके में आया उसे बिना नुकसान पहुँचाये बहा ले जाने की क्षमता इन नदियों में नहीं थी। नतीजा यह हुआ कि सीतामढ़ी-पुपरी, पुपरी-रुन्नी सैदपुर और पुपरी-दरभंगा सड़कों के ऊपर से पानी गुजर गया और सड़कें कई जगहों पर नष्ट हो गयीं। इस साल की बाढ़ ने यह तय कर दिया था कि अगर अधवारा को नदी स्वरूप में बनाये रखना है तो उसकी खुदाई करनी ही पड़ेगी और यह काम बाद में किया भी गया। भूकम्प के कारण अधवारा की धारा में आये परिवर्तन की वजह से बाजपट्टी के पास जमुरा और शिकाओ नदियों में पहले से अधिक बाढ़ आनी शुरू हो गयी जबकि उसकी पुरानी धारा वाले हिस्से में सिंचाई तक के लाले पड़ गए। बाजपट्टी से पुपरी जाने वाली रेल लाइन के बांध ने भी सारा पानी उत्तर में ही रोक लिया और कई जगहों पर बाढ़ का पानी रेल लाइन को छूने लगा तो बहुत सी जगहों पर उसके ऊपर से भी बह निकला। इस बात को इस बार सभी ने बड़ी शिद्दत से महसूस किया कि अगर इस रेल लाइन में कुछ पुल/ कलवर्ट अधिक रहे होते तो रेल लाइन के उत्तर में शायद इतनी तबाही न होती।
बिहार सरकार ने इस बाढ़ के बाद उससे निजात पाने के उपाय सुझाने के लिए एक कमेटी का गठन किया। इस कमेटी का कहना था कि नदी के प्रवाह में अत्यधिक गाद आने के कारण इसका स्वभाव चंचल बना हुआ है। अपनी बदलती धारा के कारण जहाँ यह नदी भीषण तबाही का कारण बनती है वहीं घाटी में भूमि का लगातार निर्माण करते रहना इसकी बाढ़ का एक रचनात्मक पक्ष है। समस्या यह नहीं है कि बाढ़ को कैसे समाप्त कर दिया जाए, समस्या यह है कि बाढ़ के फाजिल पानी की निकासी किस तरह से की जाए और सिंचाई की व्यवस्था को कैसे सुनिश्चित किया जाए। इस कमेटी ने यह भी इशारा किया कि बाढ़ समस्या का स्थाई समाधान और बागमती नदी को नियंत्रित करने का एक मात्र उपाय उसकी धारा के सामने नेपाल में नुनथर के पास एक बहूद्देशीय बांध का निर्माण करना है मगर यह अपने आप में एक लम्बे समय में पूरी की जाने वाली योजना ही होगी। तात्कालिक तौर पर कमेटी का सुझाव था कि,
1. उन इलाकों में जहाँ बाढ़ की समस्या बहुत गंभीर होती है वहाँ नदी के दोनों किनारों पर तटबन्ध बनाये जाएं और उनमें स्लुइस गेट की समुचित व्यवस्था की जाए,
2. ढेंग रेल पुल के ऊपर एक वीयर बना कर बागमती की बहुत सी पुरानी छाड़न धाराओं के माध्यम से सिंचाई के लिए उसके पानी का इस्तेमाल किया जाए, तथा
3. समुचित जल-निकासी की व्यवस्था करके बागमती की बाकी छाड़न धाराओं पर नियंत्रण किया जाये।
बागमती की 1953 वाली बाढ़ एक मानक बाढ़ थी क्योंकि यह भारत की आजादी के बाद बाढ़ की पहली बड़ी घटना थी। इसके अलावा यह पहला मौका था जब इस नदी की बाढ़ की समस्या के समाधान के रूप में हिमालय में एक बांध के निर्माण का प्रस्ताव किया गया। इस प्रस्तावित बांध के बारे में हम अगले अध्याय में विस्तार से बात करेंगे पर यहाँ इतना ही बता देना काफी होगा कि पहले प्रस्ताव के 57 साल बाद भी इस बांध के निर्माण की दिशा में अभी तक (जून 2010) कोई सार्थक प्रयास नहीं हुआ है और न ही इस बात के कोई आसार हैं कि निकट भविष्य में इस बांध का निर्माण संभव हो सकेगा। इस बांध के निर्माण के लिए भारत और नेपाल सरकार की पारस्परिक सहमति चाहिये और तमाम कोशिशों के बावजूद यह सहमति अभी तक नहीं बन पायी है। इस बांध के निर्माण के बाद भी इलाके की बाढ़ समस्या का समाधान हो पायेगा, यह विवाद का विषय है।
सीतामढ़ी (मुजफ्फरपुर) की इस बाढ़ से पहले इस समस्या के प्रति सरकार का जो चिन्तन था वह अंग्रेजों की चिन्ताधारा की प्रतिध्वनि भर थी जिसकी एक झलक मुजफ्फरपुर के (1907) वाले गजैटियर में ओ’ मैली के बयान में मिलती है। ओ’ मैली का मानना था, ‘‘... सिद्धान्ततः इस तरह की विपदाओं से लोगों को काफी परेशानी झेलनी पड़ती है और भारी मात्रा में सम्पत्ति को नुकसान पहुँचता है मगर यह सब दुःष्प्रभाव स्थाई नहीं होते। किसानों को जो सब से बड़ा नुकसान पहुँचता है वह है उनके जानवरों की क्षति मगर इसकी भरपाई बाढ़ के बाद रबी के मौसम में असाधारण तौर पर बम्पर फसल के रूप में हो जाती है क्योंकि जाते-जाते बाढ़ अपने पीछे उर्वरक मिट्टी की एक पर्त छोड़ती हुई जाती है।’’ ओ’ मैली का मानना था कि बाढ़ कभी स्थानीय बरसात के कारण नहीं बल्कि चम्पारण और नेपाल के जल-ग्रहण क्षेत्र में भारी बारिश के कारण आती है। स्थानीय वर्षा केवल ऊपर से आये पानी के दुःष्प्रभाव को बढ़ाने में मदद भर करती है और क्योंकि यह बाढ़ अक्सर अगस्त या सितम्बर के महीने में आती है जबकि धान को पानी की सबसे ज्यादा जरूरत होती है तब निश्चित रूप से नुकसान के बजाय फायदा अधिक होता है।
इतना जरूर था कि 1953 की बाढ़ के बाद आजाद भारत की बिहार सरकार ने इस पूरी समस्या को बागमती घाटी की टोपोग्राफी, उसका भूगोल, नदियों के आपस में उलझने की प्रक्रिया, 1934 वाले बिहार भूकम्प का इन सब पर प्रभाव आदि सन्दर्भों में व्याख्या करना शुरू किया। पूरे जिले में चौरों की उपस्थिति का संज्ञान भी सरकार ने लिया। इन्हीं सब कारकों पर नजर रख कर ही 1953 में सरकार द्वारा गठित कमेटी ने अपनी सिफारिशें की होंगी।
दिसम्बर 1953 में सरकार ने कोसी नदी पर तटबन्धों के निर्माण का अनुमोदन कर दिया था जिसकी वजह से राज्य की दूसरी नदियों को नियंत्रित करने की अपेक्षाएं जगीं। 1954-55 के बिहार के बजट पर चल रही बहस में विधान सभा में दामोदर झा ने सरकार से यह सवाल किया कि सरकार बागमती नदी को नियंत्रित करने के लिए क्या करने जा रही है। मगर उनके सवाल के जवाब को सरकार ने यह कह कर टाल दिया था कि सरकार किसी योजना विशेष के बारे में बात न कर के आज रुचि वाली परियोजनाओं के बारे में अपनी नीतियों को स्पष्ट कर रही है, लेकिन विधान सभा के उसी सत्र में जब मौलवी मसूद ने यह कहा, ‘‘...दरिया-ए-बागमती में सैलाब की कसरत इतनी ज्यादा होती है कि पताही और मधुबन के दो तिहाई हिस्से सैलाब से बर्बाद हो जाते हैं। मगर बागमती स्कीम हुकूमत अपने सामने रखे और इसके दोनों किनारों पर मजबूती से बांध बांधने की स्कीम निकाले और ऐसे बांध के अन्दर स्लुइस गेट का इंतजाम करे तो बागमती के पानी को जहाँ जरूरत होगी ले लिया जायेगा और उससे बहुत फायदा होगा।
बागमती के पानी में बहुत खूबियाँ भी हैं, जहाँ वह बर्बाद करती है वहीं आबाद भी करती है। लेकिन बर्बादी का हिस्सा आबादी से ज्यादा है। जहाँ से पानी गुजरता हुआ आगे निकल जाता है वहाँ तो बहुत फायदा पहुँचता है लेकिन जहाँ पानी जमा हो जाता है उस जगह को बर्बाद कर देता है।’’ उसके जवाब में राज्य के सिंचाई मंत्री राम चरित्र सिंह ने कहा, ‘‘...मैं अभी यह कह देना चाहता हूँ कि बागमती और कमला, इन दोनों नदियों को ट्रेन करने का इंतजाम कर रहे हैं। (वाह! वाह!)। मैं आपको एक बात बता देना चाहता हूँ कि यह दोनों नदियाँ छोटी कोसी हैं। इन दोनों का सोर्स ग्लेशियर से है। ऐसी हालत में हम काम शुरू करने जा रहे हैं और हिमालय में जाने के लिए अपने आदमियों के बारे में हमने परमीशन भी ले लिया है और हमारे आदमी जाकर जाँच पड़ताल करेंगे।’’ ऐसा लगता है कि मात्रा दो सप्ताह के अन्तराल पर सरकार स्पष्ट रूप से बागमती की बाढ़ समस्या पर कोई बयान देने के लिए दबाव में आ गयी थी।
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