1954 तथा 1955 की बागमती की बाढ़

दरभंगा जिले में आयी अब तक की इस सबसे बड़ी और भयंकर बाढ़ में जिले का कुल 65 प्रतिशत क्षेत्र प्रभावित हुआ था। जिले के कुल 3,438 गाँवों में से 2501 गाँवों पर बाढ़ का असर पड़ा और 37,67,798 की कुल आबादी में से 19,76,771 आबादी बाढ़ से प्रभावित हुई। 32,950 घर बाढ़ में बर्बाद हुए और 13 लोगों की कुर्बानी हुई। लगभग 500 जानवर भी इस बाढ़ में मारे गए थे। 1954 के साथ एक और खासियत जुड़ी हुई है कि इसी वर्ष देश की पहली बाढ़ नीति की घोषणा की गयी थी।

1953 के बाद 1954 तथा 1955 के साल में भी बागमती में अच्छी खासी बाढ़ आयी। इनमें से 1954 का वर्ष विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि उस साल पूरे बिहार में लगभग समान रूप से लोग बाढ़ से तबाह हुए थे और आज के बुजुर्ग लोग, जो उस समय बच्चे या जवान रहे होंगे, बड़ी शिद्दत से चौवन की बाढ़ के परिप्रेक्ष्य में ही सारी बाढ़ों का मूल्यांकन करते हैं। इस साल बागमती की बाढ़ का पानी अपने दोनों किनारे तोड़ कर दाहिनी तरफ लालबकेया और बायीं तरफ पुरानी धार तक जा लगा था। पूरे इलाके पर 60 सेन्टीमीटर (दो फुट) से 1.8 मीटर (छः फुट) तक गहरे पानी की चादर बिछी थी। ढेंग और बैरगनियाँ के बीच बागमती का पानी कई जगह पुल के निचले गर्डर को डुबा रहा था तो कहीं-कहीं लगता था कि बाढ़ का पानी रेल लाइन के ऊपर से बह जायेगा। नदी के बायें किनारे से छलकता हुआ पानी पूरब में लखनदेई में जा मिला। दिक्कत यह थी कि इस साल इन सारी नदियों में एक साथ बाढ़ आ गयी थी और 27 जुलाई के दिन लखनदेई का पानी शहर के रिंग बांध के ऊपर से छलक कर सीतामढ़ी शहर में घुस गया और उसका अधिकांश भाग 90 सेन्टीमीटर (तीन फुट) गहरे पानी की चपेट में आ गया।

सीतामढ़ी से बाजपट्टी जाने वाली सड़क के लगभग सभी पुलों से बाढ़ का पानी डरावनी रफ्तार से गुजर रहा था। 28 जुलाई को यह पानी सीतामढ़ी रेलवे स्टेशन के पूरब और पश्चिम दोनों तरफ के हिस्से को अपने साथ बहा ले गया और रेल लाइन हवा में झूल गयी। मुजफ्फरपुर-सीतामढ़ी सड़क कई जगहों पर टूट गयी और रहुआ चौर के पास सड़क में जो दरार पड़ी उससे इस सड़क के पूरब वाले हिस्से में गाँव पानी में तैरते हुए दिखाई पड़ने लगे। सीतामढ़ी-सोनबरसा सड़क को तोड़ता हुआ बागमती का पानी शिकाओ, जमुरा, बुढ़नद, माढ़ा और रातो जैसी अधवारा समूह की नदियों से जा मिला जो कि पहले से ही उफान पर थीं। बरसात का मौसम छोड़कर पतली सी दिखायी पड़ने वाली थोमने नदी की चौड़ाई इस बरसात में साढ़े छः किलोमीटर हो गयी। लगभग यही हाल अपनी पूरी लम्बाई में दरभंगा-बागमती का हुआ क्योंकि अधवारा और धौस नदियों में आये पानी से दरभंगा-बागमती की जल-निकासी में बाधा पड़ी। उन दिनों लहेरियासराय की सुरक्षा के लिए दरभंगा-बागमती पर बनाये गए महाराजी तटबन्ध पर खतरा मंडराने लगा।

खिरोई नदी के ऊफनते पानी ने कोढ़ में खाज की स्थिति पैदा कर दी क्योंकि इस नदी में उसकी क्षमता से कहीं ज्यादा पानी आ गया था जो कि उत्तर में ऐग्रोपट्टी से लेकर दक्षिण में एकमीघाट तक तीन से आठ किलोमीटर की चौड़ाई में बही। इन दोनों स्थानों के बीच की दूरी लगभग 40 किलोमीटर है। हायाघाट रेल गुमटी के पास नदी का अनियंत्रित पानी अपने बायें किनारे पर बुरी तरह फैला और हायाघाट-हथौड़ी बांध के बीच में बागमती ने अपनी पुरानी धारा की ओर राह पकड़ी। जैसे इतना ही काफी नहीं था, कमला नदी के उत्तरी जल-ग्रहण क्षेत्र में जोरदार बारिश हुई और कमला का पानी कमला नहरों को ताबड़तोड़ ध्वस्त करता हुआ धौरी नदी में घुसा। धौरी से यह पानी पहले सोनी नदी में और फिर झंझारपुर बलान में आया। फिर यह पानी लौट कर कमला की पुरानी धारा में नहीं गया और झंझारपुर बलान ही कमला-बलान का खिताब पा गयी। यह सारा पानी अब चला बागमती की ओर और लहेरियासराय और जठमलपुर के नीचे का पूरा इलाका समुद्र की तरह दिखाई पड़ने लगा।

दरभंगा जिले में आयी अब तक की इस सबसे बड़ी और भयंकर बाढ़ में जिले का कुल 65 प्रतिशत क्षेत्र प्रभावित हुआ था। जिले के कुल 3,438 गाँवों में से 2501 गाँवों पर बाढ़ का असर पड़ा और 37,67,798 की कुल आबादी में से 19,76,771 आबादी बाढ़ से प्रभावित हुई। 32,950 घर बाढ़ में बर्बाद हुए और 13 लोगों की कुर्बानी हुई। लगभग 500 जानवर भी इस बाढ़ में मारे गए थे। 1954 के साथ एक और खासियत जुड़ी हुई है कि इसी वर्ष देश की पहली बाढ़ नीति की घोषणा की गयी थी। इस नीति में नदियों के किनारे तत्काल लाभ पाने की गरज से तटबन्धों के निर्माण की सिफारिश की गयी थी और लगभग सात वर्षों के अन्दर देश में बाढ़ों पर यथासंभव नियंत्रण कर लेने का संकल्प लिया गया था। यह पूरा विवरण दूसरी जगह उपलब्ध है इसलिए हम यहाँ उसके विस्तार में नही जायेंगे। वैसे भी जहाँ तक बागमती नदी का प्रश्न है, इन दोनों वर्षों में सीतामढ़ी और मुजफ्फरपुर की वह दुर्गति नहीं हुई जो 1902 की बाढ़ में हुई थी। इन बाढ़ों का इतना असर जरूर हुआ था कि बागमती क्षेत्र में बाढ़ से सुरक्षा और सिंचाई की समुचित व्यवस्था करने के लिए बिहार विधानसभा के अन्दर और उसके बाहर भी संगठित रूप से आवाजें उठने लगी थीं।

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Post By: tridmin
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