जाओ, मगर सानंद नहीं, जी डी बनकर - अविमुक्तेश्वरानंद


स्वामी सानंद गंगा संकल्प संवाद -10वाँ कथन आपके समक्ष पठन, पाठन और प्रतिक्रिया के लिये प्रस्तुत है:

स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद डाँट के बाद की मेरी मनोस्थिति आप इससे समझ सकते हैं कि जब डाॅक्टर डाल ने डाँटा था, तो मेरे पास माँ थी। मैं रो भी सकता था। किन्तु जब गुरुजी (स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद जी) ने डाँटा, तो मैं रो भी नहीं सकता था।

 

अवसर को नष्ट करने की तैयारी


मजे की बात यह थी कि तब तक हंसादेवाचार्य और रामदेव जी को इन्वीटेशन मिल चुका था। पुरी शंकाराचार्य को नहीं मिला था। शिवानंद जी को बाद में मिला। प्रमोद कृष्णम से मैने पूछा नहीं था। मालूम यह भी हुआ कि हंसदेवाचार्य जी का नाम वापस ले लिया गया है। प्रश्न था कि गुरुजी को कैसे पता चला? शायद पीएमओ (प्रधानमंत्री कार्यालय) या नारायणसामी..किसी ने बताया होगा। शायद गुरुजी पाँचों में सभी को स्वीकार नहीं करते थे। हालाँकि उन्होंने यह नहीं कहा, किन्तु एजेण्डे पर जब मीटिंग हुई, तो वह प्रमोद कृष्णम और शिवानंद जी को ले गये, बाकि को नहीं। एक लोकेश मुनि को ले गये। एक बड़ौदा से जुड़े किसी को ले गये। स्पष्ट था कि वे अपने लोगों को ले जाना चाहते थे। किन्तु जो गये, उनकी कोई तैयारी नहीं थी; यहाँ तक कि उन्होंने एजेण्डा भी नहीं पढ़ा था। एक तरह से यह उस अवसर को भी नष्ट करने की तैयारी थी। मैं वहाँ जाता, तो भी क्या करता?

 

बंधक बनाये गये अनिल गौतम


गुरुजी कह रहे थे कि दो प्रोजेक्ट पर काम बंद करा दिया है, जबकि किसी प्रोजेक्ट पर काम बंद नहीं हुआ था। अनिल गौतम (लोक विज्ञान संस्थान, देहरादून में कार्यरत वैज्ञानिक) अन्य दो कामों को भी देखने गये। पीपलकोटी-विष्णुप्रयाग परियोजना देखने गये, तो उन्हें करीब चार घण्टे बंधक बनाकर रखा गया। बंधक बनने पर अनिल गौतम ने अविमुक्तेश्वरानंद जी से, अविमुक्तेश्रानंद जी ने प्रमोद कृष्णम से और प्रमोद कृष्णम से सेंट्रल गवर्नमेंट में किसी से बात की, तब अनिल गौतम को छोड़ा गया।

मैं बनारस पहुँचा, तो देखा कि भिक्षु जी ने जल छोड़ा हुआ है। मुझे अच्छा नहीं लगा, क्योंकि तय था कि मेरे प्राण जाने के बाद ही दूसरा तपस्वी तप पर बैठेगा। मुझे याद आया प्रेस कान्फ्रेंस में स्वामी जी ने कहा था कि स्वामी सानंद जल ले रहे हैं और भिक्षु जी इसी क्षण जल छोड़ रहे हैं। फोन पर यह बात प्रेस को भी सुनाई थी। मैं गुरुजी से लड़ने की मनोस्थिति में भी नहीं था। मैंने सोचा था कि उपवास पर चला जाऊँगा। गुरुजी ने कहा - “तुम भी करो, वह भी करे, लेकिन शंकराचार्य जी से अनुमति ले लो।’’

 

स्वरूपानंद जी निगाह में भगोड़ा


मैं कालका से दिल्ली चला आया। मैंने एजेण्डा पर नोट्स बनाये। उसकी काॅपी गोविंद या गुप्ता जी के पास दी। गोविंद ही उस समय सहायक के तौर पर मेरे साथ थे। ज्यादातर रिकार्ड उन्हीं के पास रहते थे। उस बिल के ड्राफ्ट, एजेण्डा व नोट्स वगैरह से आपको मेरी सोच का पता चल जायेगा। तब तक मुझे नहीं मालूम था कि कौन लोग गंगा प्राधिकरण की मीटिंग में जायेंगे। मैं मान रहा था कि मैं जाऊँगा। एम्स (अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, नई दिल्ली) में ड्रिप लगी थी। मीटिंग के दिन मैंने अपने को खुद रिलीव करा लिया; लामा केस - लीव अगेंस्ट मेडिसीनल एडवाइस; टयुब निकाल दी; खाना-पीना शुरु कर दिया। मुझे मीटिंग में जाना था। अस्पताल से छुट्टी ली, तो गुरुजी ही मुझे एस. के. गुप्ता के यहाँ छोड़कर आये।

इस पर शंकचराचार्य स्वरूपानंद जी ने कहा - “हम तो सोच रहे थे कि प्रधानमंत्री जी खुद जायें और उपवास खुलवायें। उसने तो पहले ही उपवास खोल दिया। वह तो भगोड़ा निकला।’’

 

उपवास से मुकरे राजेन्द्र सिंह


मालूम हुआ कि मीटिंग में कुछ नहीं हुआ, तो मैं 30 अप्रैल को बनारस चला गया। पता चला कि 25 साल के कृष्णप्रियानंद ने जल छोड़ दिया है। मुझे बुरा लगा। मैंने गुरुजी से आपत्ति की, तो बोले - “हम तो अस्पताल वालों को यमदूत मानते हैं। अस्पताल वाले ले गये, इसका मतलब यमदूत उठा ले गये।’’ तभी प्रमोद कृष्णम और सपरिवार राजेन्द्र सिंह आ गये। मैने विरोध किया कि कृष्णप्रियानंद को जलत्याग से मुक्त करो। मैं पुनः तपस्या पर बैठता हूँ। इस पर हुआ कि नहीं, यह कैसे?

17 की बैठक में हुआ था कि एजेण्डा पर चर्चा करेंगे। पहली-दूसरी मई पर यह बात हुई कि अंतिम निर्णय लेंगे। मैंने कहा कि प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर समय लें और निर्णय नहीं होता है, तो राजेन्द्र सिंह घोषणा करें हम तप कर रहे हैं। आगे राजेन्द्र सिंह घोषणा करें; फिर गुरुजी घोषणा करें। राजेन्द्र सिंह ने कहा - “मैं जो कर रहा हूँ, वही मेरा तप है।’’जनान्दोलन के पक्ष में जनमत दरअसल, मुझे छोड़कर बाकी सभी की राय थी कि जनान्दोलन हो। मई में पहली मीटिंग हो; बनारस के बेनियाबाग में।..फिर हर राज्य में एक रथ घूमे; आंदोलन की तैयारी करे। रथ वापस लौटे तो जून में दिल्ली में एक रैली हो। रैली में कम से कम 20-25 हजार लोग हों। यह भी बात हुई कि 20 रथ बनें। मठ (ज्योतिषमठ, बनारस), उसे फाइनेन्स करें। मैटीरियल तैयारी में भी ये लोग रहें। मुझे लगा कि यह सब करने की न उनकी सामर्थ्य है और न वे कर पायेंगे। मैंने एक तरह से अपने को विड्रा (अलग) कर लिया।

उधर मेरे देखते ही देखते कृष्णप्रियानंद जी को हाॅस्पीटल ले गये। मैं मठ में था। गुरुजी हाॅस्पीटल गये थे। कृष्णप्रियानंद, पूर्णाम्बा को भी प्रिय था; भिक्षुजी को भी प्रिय था। मेरे पास सेन्ट्रल गवर्नमेंट के लोग आये थे। मैंने उनसे कहा - “एनजीबीआरए (राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण) की मीटिंग बुलाओ। जो तब नहीं हुआ, वह अब हो।’’ सेन्ट्रल गवर्नमेंट की टीम अस्पताल गई। उसे घेर लिया गया। आगे की सुनिए।

 

बेनियाबाग की ‘मनोरंजक मीटिंग’, फिर संकल्पित सानंद


बेनियाबाग में 22 मई को बैठक हुई। 2500 लोग थे। बनारस, अयोध्या और मथुरा से संत बुलाये गये थे। एयर फेयर, टैक्सी फेयर और दक्षिणा दी गई। महाभारत में भीष्म का रोल करने वाले एक्टर (श्री मुकेश खन्ना) आये। उन्होंने ‘भीष्म प्रतिज्ञा’ की। मैं भी वहाँ था। मुझे भी बोलने को कहा गया, लेकिन इस मनोरंजन मीटिंग से मुझे निराशा ही हुई।

फिर अगले दिन हुआ कि 18 जून को दिल्ली में बड़ी रैली करनी है। मैंने कहा - “मैंने, बेनियाबाग की रैली देख ली है। दिल्ली की रैली मुझे क्या देखनी है।’’

गुरुजी ने कहा - “तुम्हें ठीक नहीं लगता, तो तुम अलग रहो।’’
मैने कहा - “यदि कृष्णप्रियानंद और पूर्णाम्बा का उपवास खत्म कर दीजिए, तो मैं बनारस रह सकता हूँ; वरना मेरा बनारस रहना कठिन हो गया है। मैं चाहता हूँ कि नैमिशारण्य या अलकनंदा के किनारे तप करुँ।’’

 

सानंद की जिद और सन्यास वस्त्र त्याग का गुरु आदेश


अंततः गुरुजी 22 मई की रात को एक ज्योतिषी को लेकर आये और कहा कि यह समय ठीक नहीं है। जब लड़ई हो, तो किले से जाने का यह ठीक मुहुर्त नहीं है।

मैंने पूछा - “यदि मैं बाहर जाता हूँ, तो किसे हानि होगी?’’
बोले - ‘तुम्हें।’
मैंने कहा - “मुझे अपनी हानि की चिन्ता नहीं है। गंगाजी के कार्य को हानि होगी क्या?’’
ज्योतिषी जी ने गणना की और कहा - ‘नहीं।’

मैंने गुरुजी से फिर कहा कि यदि कृष्णप्रियानंद व पूर्णाम्बा को जलग्रहण करने को कहें, तो मैं बनारस रह सकता हूँ। मैंने अगले दिन बस पकड़ने का तय किया। अर्जुन, उनका पेड व्यक्ति (वेतनभोगी) था। मैंने कहा कि उसे साथ ले जाऊँगा। बताया कि मैं सुबह छह बजे तैयार हो जाऊँगा। वह तय समय पर नहीं आया।

मैंने उससे सम्पर्क किया। उसने कहा कि गुरुजी ने कहा है कि उनसे मिले बगैर न जायें। गुरुजी का पता लगा कि सात बजे के बाद मिलेंगे। वह साढ़े आठ बजे मिले।

उन्होंने कहा - “आप नहीं जायेंगे। स्वरूपानंद जी की अनुमति नहीं है।’’
मैंने कहा - “नहीं जाऊँगा यदि अस्पताल चलो व कृष्णप्रियानंद और पूर्णाम्बा का जलत्याग हटा दो।’’
गुरुजी नहीं माने। गुरुजी बोले - “जाओ, लेकिन यह वस्त्र (सन्यासी बाना) त्यागकर जाओ और स्वामी सानंद के रूप में नहीं जी. डी. अग्रवाल के रूप में जाओ।’’
मैंने कहा कि ठीक है और वह वस्त्र त्याग दिए। अर्जुन भी साथ चल दिया।

संवाद जारी...
अगले सप्ताह दिनांक 27 मार्च, 2016 - दिन रविवार को पढ़िए स्वामी सानंद गंगा संकल्प संवाद श्रृंखला का 11वां कथन

इस बातचीत की शृंखला में पूर्व प्रकाशित कथनों कोे पढ़ने के लिये यहाँ क्लिक करें।

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