जागरण याहू
देहरादून। लगभग 29 करोड़ भारतीयों की जीवनरेखा बनी पतित पावनी गंगा और यमुना विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के महापर्व में मुद्दा नहीं बन सकीं। लोकसभा चुनाव में किसी भी दल के एजेंडे में गंगा-यमुना को प्रदूषण मुक्त कराया जाना नहीं शामिल किया गया। जबकि कम से कम उत्तराखण्ड से लेकर उत्तरप्रदेश के पूर्वाचल काशी और प्रयाग में तो यह बहस का मुद्दा होना ही चाहिए था। इस चुनाव में चारों ओर जातिवाद, क्षेत्रवाद, संप्रदायवाद हिलोरें ले रहे हैं। देश और समाज की तरक्की के मुद्दे तो गौण साबित होते जा रहे हैं।
गंगा और यमुना को ही ले लीजिए। करोड़ों लोगों की आस्था गंगा और यमुना की स्थिति वर्तमान में लगभग साठ साल पहले ब्रिटेन की टेम्स नदी जैसी हो गयी है। यह दीगर बात है कि टेम्स नदी वहां के लोगों की दृढ़ राष्ट्र्रीय इच्छा शक्ति से कुछ ही सालों बाद स्वच्छ हो गयी और आज उसकी स्वच्छता की मिसाल पेश की जाती है। अपने यहां भी दोनों नदियों को प्रदूषण मुक्त किए जाने के लिए बड़े प्रोजेक्ट संचालित किए गए। वर्ष 1985 में गंगा एक्शन प्लान और वर्ष 1993 में यमुना एक्शन प्लान शुरू हुआ पर हालात सुधरने की बजाय और बिगड़ते चले गए। गंगा और यमुना दिनोंदिन मैली होती चली गयीं। गंगा किनारे बसे 36 जिलों एवं 48 कस्बों से 5044 मिलियन लीटर सीवेज तथा 6440 मिलियन लीटर गंदा पानी रोज सदानीरा में जाता है। सिर्फ कानपुर, इलाहाबाद और वाराणसी से करीब 800 एमएलडी सीवेज गंगा में बहाया जा रहा है। बिठूर और जाजमऊ की लेदर इकाइयां, औद्योगिक इकाइयां, ऋषिकेश, हरिद्वार से लेकर गजरौला की तमाम फैक्ट्रियां, नरोरा एवं ऊंचाहार तापीय परियोजनाएं गंगा में जहर बहा रही हैं। इनके अलावा मेरठ, रामपुर, गजरौला, मुरादाबाद, बुलंदशहर में डिस्टलरी, पेपर, चीनी व अन्य रसायन इकाइयां गंगा को प्रदूषित कर रही हैं। इसकी वजह से गंगा किनारे के जलस्रोत जहरीले होते जा रहे हैं। इससे पानी में आयरन, नाइट्रेट, क्लोराइड और अर्सेनिक प्रदूषण की समस्या बढ़ती जा रही है जिससे पोलियो, पीलिया, कालरा, टाइफाइड, दस्त, पेट की बीमारियां, ब्लू बेबी, किडनी की समस्या, सांस संबंधी रोग, हड्डियों से संबंधित रोग होने की आशंका बढ़ती जा रही है। यही नहीं प्रदूषण से कराह रही दोनों नदियों में गंदगी का आलम यह है कि इनमें जलीय जीव-जंतु भी विलुप्त होते जा रहे हैं। दिनोंदिन पानी कम होने से नदियों के किनारे बसे जिलों में जलस्तर तेजी के साथ गिरता जा रहा है। इससे पेयजल संकट खड़ा होने की आशंका उत्पन्न होने लगी है और खेतों को सिंचाई के लिए पानी नहीं मिलने का खतरा उत्पन्न होने लगा है। इसी तरह मृत्यु के अधिष्ठाता यम की बहन यमुना की भी हालत बेहद खराब होती जा रही है। इसका बहाव क्षेत्र लगातार कम होता जा रहा है और जलस्तर लगभग डेढ़ मीटर हर साल कम हो जाता है। इस नदी के पानी से दिल्ली, आगरा, इलाहाबाद, छछरौली, फरीदाबाद, गाजियाबाद, गुडगांव, करनाल, मथुरा, मुजफ्फरनगर, नोएडा, पलवल, पानीपन, सहारनपुर, सोनीपत, यमुना नगर आदि शहरों के लगभग दो करोड़ लोगों की प्यास भी बुझायी जाती है। यमुना से पानी पंप कर उसे शोधित करने के बाद नलों के माध्यम से आपूर्ति किया जाता है। इन्हीं शहरों से लाखों टन औद्योगिक और रासायनिक कचरा भी यमुना में जाता है। इस नदी से लगभग 28 बड़ी नहरें निकलती हैं जिससे हजारों हेक्टेयर खेतों की सिंचाई होती है। लेकिन यह आने वाले समय में इतिहास बन जाएगी।
वर्तमान में पानी कम होने से इस नदी से जुड़ी सभी नहरें बंद हो गयी हैं और पेयजलापूर्ति के लिए भी पानी काफी कम होता जा रहा है। 2525 किमी लंबी गंगा तथा 1370 किमी लंबी यमुना नदी को बचाने के लिए तमाम संगठनों की ओर से मुहिम भी चलायी जा रही है पर इस लोकसभा चुनाव में गंगा-यमुना मुद्दा नहीं बन सकी। इतना ही नहीं इसे उत्तराखण्ड में भी चुनावी मुद्दा बनाया जाना चाहिए था क्योंकि यहां भी गंगा तथा यमुना को उसकी मूल धारा से हटा कर लगभग 60 से 100 किमी तक सुरंगों से होकर बहना पड़ रहा है।
साभार - जागरण याहू
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