Banni grasslands, a lifeline for Maldharis from Kachchh district of Gujarat
Pastoralism is not just an economic activity for the Maldharis residing in the Banni grasslands, but a way of life in which pastoralists, livestock, land and culture are inseparable parts of a dynamic ecosystem.
Maldharis grazing buffaloes on grasslands (Image Source: A. J. T. Johnsingh, WWF-India and NCF via Wikimedia Commons)
संदर्भ मुम्बई बाढ़: भ्रष्टाचार में जा रहा है नालों की सफाई का पैसा
यह जो सीमेंट की सड़कें बनाने और गलियों में भी सीमेंट से ही समतलीकरण की सोच है‚ यह जल संरक्षण में बाधक है। सीमेंट की सड़कों और सीमेंट की गलियों की वजह से बारिश का पानी जमीन में नहीं जा पाता। स्पष्ट शब्दों में कहें तो मुंबई बारिश का काफी पानी बर्बाद कर देता है। आज मुंबई में जल संकट पैदा हो गया है‚ निवासियों को पिलाने के लिए १५ दिन का भी पानी नहीं बचा है। बीएमसी को पानी की राशनिंग करनी पड़ती है। प्रस्तुत आलेख राष्ट्रीय सहारा के अजय तिवारी से बातचीत पर आधारित है।
शहरी बाढ़ अब ऩए स्तर पर (courtesy - needpix.com)
Meter, Measure, Manage: Engineering a data-based approach for water conservation
Kritsnam where engineering meets hydrology, founded by K. Sri Harsha focuses on developing accurate, easy to install, tamper-proof, and weather-proof smart water metering solutions to deal with the growing water crisis in India.
An AI generated image, highlighting water shortage and use of tankers to provide water but water being wasted when available (Image Source: Praharsh Patel)
जल संकट का कैसे निकले हल ! प्रेरक उदाहरण सिंगापुर का मॉडल
गंदे पानी के शुद्धिकरण, समुद्री जल का खारापन कम करने और वर्षा जल के अधिकतम संग्रह के साथ सिंगापुर ने पानी से जुड़ी अपनी जरूरतों को पूरा करने का एक ऐसा मॉडल तैयार किया, जो एडवांस्ड टेक्नोलॉजी के साथ सामाजिक बदलाव की एक बड़ी मिसाल है
 सिंगापुर ने एडवांस्ड टेक्नोलॉजी के भरोसे कायम किया सफलता का मॉडल
नाला नहीं, अब सदानीरा बनेगी कुकरैल नदी
पिछले दिनों उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में चलाया गया एक अतिक्रमण विरोधी अभियान राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में रहा। वैसे तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार आने के बाद उनके बुलडोजर की बहुत चर्चा रही है। लेकिन इस बार लखनऊ में जब बुलडोजर चलाया गया तो इसके पीछे उद्देश्य सरकारी संपत्ति को कब्जा मुक्त कराना या किसी अपराधी को उसके किए का सबक सिखाना मात्र नहीं था। इसके पीछे जो कारण था वह बहुत ही पवित्र और पर्यावरण हितैषी था।
कुकरैल नदी प्रदूषण
हल्की बारिश से ही पूरी दिल्ली पानी–पानी हो जाती है, जानलेवा भी
मानसून की पहली बारिश में दिल्ली डूब गई‚ झेल नहीं पाई तेज बारिश। जगह–जगह जलभराव हुआ। टनल‚ अंडरपास‚ पुल–पुलिया‚ सड़कें सभी पानी से लबालब भर गईं। पीडब्ल्यूडी‚ दिल्ली जल बोर्ड‚ नगर निगम‚ एनडीएमसी ऐसे महकमे हैं जिन पर जलभराव से निपटने की सामूहिक जिम्मेदारियां रहती हैं। लेकिन ये सभी आपस में ही भिड़े पड़े हैं। एक–दूसरे पर नाकामियों के दोष मढ़े जा रहे हैं। इनकी इन हरकतों की मार बेकसूर दिल्लीवासी झेल रहे हैं। यह समस्या आखिर‚ क्यों साल–दर–साल नासूर बनती रही है। चुनावों में तो सभी दल इन समस्याओं से निपटने का दम भरते हैं‚ लेकिन चुनाव बीतने के बाद निल बटे सन्नाटा। इस विकट समस्या पर प्रकाश डालने के लिए डॉ. रमेश ठाकुर ने एमसीडी के प्लानिंग पूर्व चीफ इंजीनियर सुरेश चंद्रा से जानना चाहा कि आखिर‚ इस समस्या के कारण और निवारण हैं क्याॽ पेश हैं बातचीत के मुख्य हिस्से.
शहरी बाढ़ (courtesy - needpix.com)
The conundrum of water quality in urban water supply in India
This article argues for the need to explore an alternative model of decentralised treatment and non-pipe mode of water supply to overcome the issues of water quality in cities in India.
Piped water, but is it safe water? (Image Source: IWP Flickr photos)
पटना नगर निकाय के दावे बेमानी
पूर्व अनुभवों से सबक लेते हुए फील्ड में काम करने वाले अधिकारी समीक्षा बैठक‚  तैयारी बैठक‚ ‘गर्दन बचाव' बैठक करने से नहीं चूक रहे।
शहरी बाढ़ (courtesy - needpix.com)
How can India break the disaster cycle?
Considering India's diverse geography, what actions can be taken to address specific natural disasters like floods, droughts, or landslides
Floods induced by climate change (Image: CC0 1.0)
संदर्भ दिल्ली बाढ़: प्रशासनिक खींचतान को भुगत रही दिल्ली
नागरिकों को परेशानी की एक बड़़ी वजह भाजपा और आप के बीच चल रही राजनीतिक खींचतान भी है। दिल्ली नगर निगम में डे़ढ़ साल से स्टैंडिंग कमेटी ही नहीं बनी है‚ जोनल कमेटियां भी नहीं बनाई गई हैं। इनके बिना नगर निगम में कैसे काम हो रहा होगा समझ में आ जाता है। दिल्ली में गंदी राजनीति चल रही है‚ उपराज्यपाल भी सिर्फ बयान देते हैं। भाजपा नगर निगम की सत्ता हथियाना चाहती है। प्रस्तुत आलेख राष्ट्रीय सहारा अजय तिवारी से बातचीत पर आधारित है।
शहरी बाढ़ (courtesy needpix.com)
बढ़ते शहर से भी बढ़ रही है बाढ़
बारिश होती है तो देश के बड़े–बड़े शहर त्राहिमाम कर उठते हैं। जलभराव से शहरों की सड़कें ताल–तलैया बन जाती हैं। आखिर‚ क्यों हो रही है यह समस्याॽ पानी के संवर्धन और निकास पर क्या किया जाएॽ दीपिंदर कपूर‚ डायरेक्टर‚ वाटर प्रोग्राम‚ सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट‚ दिल्ली से अनिरुद्ध गौड़‚ वरिष्ठ पत्रकार ने बातचीत की। पेश हैं बातचीत के प्रमुख अंशः
शहरी बाढ़
A silent crisis in Indian farmlands: The disappearing trees
Millions of trees are fast disappearing from India's farmlands. What are its implications for agriculture and the environment?
Disappearing trees over Indian farmlands (Image Source: WOTR)
बदलते वन परिदृश्य में वनीय-जलविज्ञान के क्षेत्र में शोध आवश्यकताएं
वनाच्छादित क्षेत्र अक्सर वृहत नदियों के शीर्ष जल आवाह क्षेत्र को निर्मित करते हैं। सरिता प्रवाह वनों से होने वाले सर्वाधिक महत्वपूर्ण वहिर्वाह में से एक है। वनों के प्रकार और प्रबंधन पद्धतियाँ जलविज्ञानीय प्रक्रियाओं को प्रभावित करती हैं, जैसे अवरोधन, वाष्पोत्सर्जन, मृदा अंतःस्यंदन और अपवाह. वनीय-जलविज्ञान वन और जल के संबंध को समझने में मदद करता है। वनीय-जलविज्ञान के क्षेत्र में अनुसंधान वन प्रबंधन और जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को समझने में मदद करेगा। उपयोगिता और महत्व के बारे में जानिए
(छवि: अश्विन कुमार, विकिमीडिया कॉमन्स)
पश्चिमी घाट का अनोखा प्राकृतिक सौंदर्य : सैकड़ों नदियों का उद्गम
भारत के पश्चिमी घाट एक अनोखी पारिस्थितिकीय विविधता का संग्रहण है। यहां गोदावरी, कृष्णा और कावेरी जैसी महत्वपूर्ण नदियां उद्गमित होती हैं, और यह वन्यजीवों और पौधों के लिए एक महत्वपूर्ण आवास है। इसके बावजूद, वनस्पतियों की कटाई, खनन और अतिक्रमण के कारण इसकी पारिस्थितिकी तंत्र पर असर पड़ रहा है। जानिए इसके सौंदर्य के बारे में
गोबिचेत्तिपालयम से दिखने वाले पश्चिमी घाट. (स्रोत: www.wikipedia.org)
20 साल में उत्तर भारत ने बर्बाद कर दिया 450 घन किमी भूजल
भारत में भूजल स्तर लगातार तेजी से गिर रहा है, उत्तर भारत में यह आंकड़ा और भयानक हो जाता है। आईआईटी की रिपोर्ट में इस पर भयानक आंकड़े सामने आए हैं। चिंताजनक बात यह है कि भूजल की बर्बादी बड़े पैमाने पर हुई है। पिछले 20 साल में उत्तर भारत ने लगभग 450 घन किमी की मूल्यवान भूजल संपदा को नष्ट कर दिया है। पूरी रिपोर्ट में क्या कहा गया है, इसे जानने के लिए पढ़ें।
भूजल, एक सीमित संसाधन (स्रोत: टीवी मनोज, विकिमीडिया कॉमन्स के माध्यम से)
संदर्भ दिल्ली बाढ़: कचरा प्रबंधन के बिना बाढ़ मुक्ति नहीं
मैंने अपनी किताब ‘स्टेट ऑफ द कैपिटलः क्रिएटिंग अ ट्रूली स्मार्ट सिटी' में इस बात की विस्तार से चर्चा की है कि राजधानी में बेहतर नगर नियोजन कैसे किया जा सकता है। इसमें मेरे दिल्ली नगर निगम में आयुक्त के रूप में चार साल (2008 से 2012) के दौरान हुए अनुभव से निकले समाधानों का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। इसमें अनियंत्रित निर्माण की भी चर्चा है और इस बात का भी उल्लेख है कि अतिक्रमण की वजह से दिल्ली की सड़कें छोटी हो गई हैं। इस किताब में मैंने दिल्ली को सुंदर और व्यवस्थित शहर बनाने के लिए स्वच्छता और जलभराव समेत कई अन्य विषयों पर भी प्रकाश डाला है। यह आलेख राष्ट्रीय सहारा के अजय तिवारी से बातचीत पर आधारित है।
बाढ़ (courtesy - needpix.com)
संदर्भ शहरी बाढ़: पानी ने नहीं भूली राहें, भटक तो शहर गया है
अब कथा बदल चुकी है। अब बारिश–बाढ़ संबंधी परेशानियां मर्सिडीज में चलने वाले सबसे इलीट वर्ग तक भी पहुंच चुकी हैं। चेन्नई के वे दृश्य शायद लोगों अभी भी नहीं भूले होंगे जब हजारों लग्जरी गाडि़यां पानी में डूब जाने के कारण बेकार हो गई थीं और साधन–संपन्न लोगों को भी कई दिनों तक ब्रेड–चाय पर गुजारा करना पड़ा था। इस बार दिल्ली में बरसात में होने वाली परेशानियों ने न सिर्फ आम लोगों का दरवाजा खटखटाया है पर इस बार उसने सांसदों और सत्ताधारी लोगों का भी दरवाजा खटखटा दिया है। बरसात में बदइंतजामी से परेशान शहर और शहरी कोई नई बात नहीं रह गए हैं। दिल्ली‚ मुंबई‚ चेन्नई‚ बेंगलुरुû हर जगह एक ही कहानी बार–बार दोहराई जा रही है‚ एक ही शहर पहले पानी के लिए तरसता है फिर कुछ दिनों बाद पानी के रेलमपेल से हलकान होता है। सबसे दुखद यह बात है कि हादसे अक्सर पहले से बदनाम जगहों पर होते हैं।
शहरी बाढ़ (courtesy needpix.com )
जीवन को बचाना है तो जीवनशैली बदलिए
पृथ्वी पर बना प्राकृतिक ग्रीनहाउस हमारे लिए लाभकारी है। लेकिन मानव की आलसी प्रवृत्ति एवं भोगवादी संस्कृति के चलते मनुष्य का मशीनी सुख- सुविधा जिसमें एयर कंडीशनर, फ्रिन व ओवन आदि उपकरणों पर निर्भर होना एक सामाजिक स्टेटस समझा जाता है।
प्रतिकात्मक तस्वीर
पर्यावरण प्रदूषण से जूझते बुग्याल
प्रकृति ने हमें हरे-भरे जंगल व बुग्याल, बर्फीले पहाड़, कलकल करती अविरल बहती नदियाँ, झीले और प्राकृतिक सौन्दर्यता को मनोरंजन के साधन के रूप में प्रदान किया है लेकिन आज के इस मौज मस्ती भरे मानवीय क्रिया-कलापों से इन संसाधनों का अस्तित्व बढ़ते प्रदूषण के कारण संकट में आ गया है। आज ये प्राकृतिक संसाधन धीरे- धीरे प्रदूषित हो रहे हैं। इसी प्रदूषण को झेलते सुनहरे बुग्यालों का भविष्य संकट की ओर जाता दिखाई दे रहा है।
औली बुग्याल, उत्तराखंड में एक घास का मैदान। (फोटो सौजन्य: विकिमीडिया कॉमन्स, फोटो - संदीप बराड़ जाट)
क्या समुद्री खाद्य शृंखलाएं जलवायु परिवर्तन से बदल जाएंगी
तेजी से हो रहे निरंतर जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्री पारिस्थितिक तंत्र में समय के साथ तेजी से पोषक तत्वों की कमी होती जाएगी। एक शोध का अनुमान है कि जलवायु परिवर्तन का दक्षिण प्रशांत, हिंद-प्रशांत, पश्चिम अफ्रीकी तट और मध्य अमरीका के पश्चिमी तट पर स्थित देशों की समुद्री खाद्य श्रृंखलाओं पर प्रतिकल प्रभाव पड़ने की आशंका है।
प्रतिकात्मक तस्वीर, फोटो स्रोत: विकिमीडिया कॉमन्स
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