मुंबई में जलभराव की भी समस्या रहती है‚ और जल संकट भी रहता है। दोनों समस्याएं कुछ मानवनिर्मित हैं‚ ओैर कुछ जलवायु परिवर्तन की वजह से निर्मित हुई हैं। मुंबई पर शहरीकरण का बीते कई दशकों में शायद सबसे ज्यादा दबाव रहा है। रोजगार की तलाश में गांवों से बड़़ी तादाद में लोग मुंबई जैसे शहरों में आकर बसे हैं। मुंबई में पानी की उपलब्धता तो बढ़ी नहीं लेकिन इसका इस्तेमाल बढ़ गया। पानी पर मुंबई में रहने वाले सभी नागरिकों का हक है‚ जो बाहर आकर बसे और जो पहले से यहां रह रहे थे उनका भी। सभी अर्थव्यवस्था में समान रूप से योगदान देते हैं। सभी नागरिक पानी पर टैक्स (जल कर) भी तो देते हैं लेकिन इसके बदले उन्हें पर्याप्त मात्रा में पानी नहीं मिलता। मुंबई में लगातार औद्योगिकीकरण भी बढ़ा है‚ इसलिए कारखानों में भी काफी पानी लगता है।
दुखः के साथ कहना पड़़ रहा है कि मुंबई में बारिश के पानी को रोकने या जल संरक्षण के जैसे उपाए किए जाने थे वैसे उपाए नहीं किए गए। यह जो सीमेंट की सड़़कें बनाने और गलियों में भी सीमेंट से ही समतलीकरण की सोच है‚ यह जल संरक्षण में बाधक है। सीमेंट की सड़़कों और सीमेंट की गलियों की वजह से बारिश का पानी जमीन में नहीं जा पाता। स्पष्ट शब्दों में कहा जाए तो मुंबई बारिश का काफी पानी बर्बाद कर देता है। आज मुंबई में पानी का संकट पैदा हो गया है‚ निवासियों को पिलाने के लिए १५ दिन का भी पानी नहीं बचा है। अगर बारिश में देरी हुई तो यह संकट और गहराएगा। मुंबई महानगर पालिका (बीएमसी) को पानी की राशनिंग करनी पड़़ी है।
मुंबई में जल स्तर काफी नीचे चला गया है। जलवायु परिवर्तन की वजह से बारिश का पूरा चक्र गड़़बड़़ा गया है। अब बारिश या तो समय से हो नहीं रही है या कम हो रही है अथवा बहुत ज्यादा हो रही है। मुंबई का अनियोजित विस्तार ही यहां जल भराव की प्रमुख वजह है। कभी इस पर विचार कीजिए कि मुंबई का समुद्र नीला क्यों नहीं हैॽ मुंबई की सारी गंदगी समुद्र में ही तो ड़ाली जाती है। सीवेज सिस्टम की बहुत बुरी दशा है‚ यह अविश्वसनीय लगेगा पर हकीकत है कि पूरे मुंबई में सीवेज सिस्टम ही नहीं है। इतने बड़़े महानगर में महज सात सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट हैं जो नाकाफी हैं। कुर्ला‚ घाटकोपर‚ कलीना‚ ब्रांद्रा ईस्ट‚ साकीनाका जैसे जो इलाके समुद्र से दूर हैं वहां हर बारिश में जल भराव की समस्या हो जाती है।
दो साल से मुंबई में कम बारिश हुई है तो नागरिकों को जलभराव की अधिक समस्या नहीं रही है। मुंबई में २६ जुलाई‚ २००५ को बाढ़ø की जो भयावह स्थिति निर्मित हुई थी‚ उसने काफी सिखाया है। जलभराव की समस्या को कम करने के लिए पश्चिम मुंबई में काफी काम हुआ है। लोग भी जागरूक हुए हैं‚ प्लास्टिक की थैली के इस्तेमाल पर अधिक जुर्माना भी लगाया गया है। यह भी महkवपूर्ण है कि मुंबई में सारे नाले समुद्र में ड़ाले जाते हैं लेकिन ये नाले समय पर साफ नहीं किए जाएंगे तो जलभराव की समस्या तो पैदा होगी ही। नालों की सफाई के लिए करोड़़ों रुûपये के ठेके तो दिए जा रहे हैं लेकिन जमीन पर काम नहीं दिखता। लगता है कि नालों की सफाई का पैसा भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ रहा है।
बीएमसी में दो साल से प्रशासन है‚ इसकी वजह से जलभराव जैसी कई समस्याओं की अनदेखी हो रही है। जनप्रतिनिधियों वाली व्यवस्था में अधिक जवाबदेही होती है‚ और समस्याग्रस्त इलाकों की बात अधिक मजबूती से उठाई जाती है। पॉश इलाकों को छोड़़ दें तो अन्य इलाकों में ठीक से सफाई भी नहीं हो रही है। दरअसल‚ प्रशासन की कोई जवाबदेही ही नहीं है। ढाई साल से बीएमसी के चुनाव नहीं हुए हैं। इस वजह से कई सारी व्यवस्थागत खामियां पैदा हो गई हैं।
लेखिका मुबंई पूर्व महापौर रह चुकी हैं।
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