धरती जलती भट्टी बनती जाए!

ग्लोबल वार्मिंग (फोटो साभार : सुनंदो रॉय, फ़्लिकर कॉमन्स)
ग्लोबल वार्मिंग (फोटो साभार : सुनंदो रॉय, फ़्लिकर कॉमन्स)

इस वर्ष प्रचंड गर्मी से देश का बड़ा हिस्सा झुलसता रहा। दिन में चिलचिलाती धूप के साथ लू के थपेड़ों ने आम लोगों की मुश्किलें पहले ही बढ़ा रखी थीं, गर्मी का मौसम बढ़ने के साथ रातें भी बुरी तरह से तपने लगीं। मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार, 1651 के बाद इस साल सबसे ज्यादा गर्मी पड़ी है। इसका सबसे अधिक दुष्प्रभाव उत्तर-पश्चिम भारत के बड़े क्षेत्र में देखने को मिला। आंकड़ों से भी पुष्टि हुई कि इस साल की प्रचंड गर्मी ने देश भर में करोड़ों लोगों के लिए कष्टकारी परिस्थितियां पैदा कर दीं। उत्तर-पश्चिम भारत के कम से कम 50 फीसदी हिस्सों दिल्ली, पंजाब, हरियाणा और राजस्थान में शायद अब तक की सबसे लम्बी गर्मी झेलनी पड़ी। देश के उत्तर, पूर्व और उत्तर-पश्चिम में पड़ी यह गर्मी इसलिए बेहद कष्टकारी रही, क्योंकि रात के समय भी तापमान असामान्य रूप से बढ़ा रहा। वैज्ञानिकों और डॉक्टरों का कहना है कि दिन और रात के समय अत्यधिक तापमान से ऐसी परिस्थितियां पैदा हो गईं, जो शरीर पर अत्यधिक गर्मी का प्रभाव डालती हैं। इससे सबसे ज्यादा वे लोग प्रभावित हुए जिनके पास एयर कंडीशनर या कूलर नहीं हैं। ठंडे पानी की उपलब्धता की कमी से यह संकट और भी बढ़ गया। इसका दुष्परिणाम रहा कि बड़ी संख्या में चलते-फिरते लोग अकस्मात मृत्यु तक का शिकार हो गए। इसमें अधिक आयु वर्ग के लोग ही नहीं बल्कि बड़ी संख्या में युवा भी शामिल रहे। देश की राजधानी दिल्ली के कई इलाकों में भीषण गर्मी ने लोगों का जीना दुश्वार कर दिया। इस दौरान पानी के संकट ने उनकी समस्याओं को कई गुना बढ़ा दिया। आंकड़ों के अनुसार उत्तर-पश्चिमी भारत के आधे से ज्यादा हिस्से में 16 मई से 1७ जून के बीच लगभग रोज अधिकतम तापमान 40 डिग्री सेल्सियस या उससे ज्यादा रहा। यह दिल्ली, पंजाब, हरियाणा और राजस्थान के अधिकांश हिस्सों में वर्ष 1651 के बाद से सबसे लंबा 40 डिग्री से अधिक तापमान का समयकाल रहा। गुजरात का लगभग आधा हिस्सा और उत्तर प्रदेश के बड़े भूभाग ने इस बार 1651 के बाद से सबसे भीषण गर्मी का सामना कर किया। वास्तव में 1651 वह सबसे पहला वर्ष है जिसके गर्मी को लेकर आंकड़े उपलब्ध है। इससे पता चलता है कि कितनी भीषण गर्मी का सामना इस बार लोगों को करना पड़ा है।

दिन का तापमान अत्यधिक होना समस्या का एक हिस्सा है, लेकिन यह पूरी तरह से यह नहीं बताता कि इस साल की गर्मी इतनी कष्टदायक क्यों रही। इसके लिए मौसम वैज्ञानिक रात में भी उच्च तापमान की ओर इशारा कर रहे हैं। रात ही वह समय होता है जब लोग राहत की उम्मीद करते है। लेकिन चूंकि दिन का तापमान बहुत अधिक रहा, इसलिए स्वाभाविक रूप से रातें उतनी ठंडी नहीं हो पाईं। अगर अधिकतम तापमान 45-46 डिग्री सेल्सियस के बीच है, तो आप रात के तापमान के सामान्य रहने की उम्मीद नहीं कर सकते। गर्म रातों की घोषणा तभी की जाती है जब अधिकतम तापमान 40 डिग्री सेल्सियस या उससे अधिक रहता है। इसे वास्तविक न्यूनतम तापमान में अंतर के आधार पर परिभाषित किया जाता है। गर्म रातें तब होती है जब न्यूनतम तापमान सामान्य से 4-5 डिग्री सेल्सियस से 6.4 डिग्री सेल्सियस अधिक होता है।

डॉक्टरों का कहना है कि गर्मी से संबंधित बीमारियों और आपात स्थिति में भारी बढ़ोतरी देखी गई। अधिकतम तापमान के विश्लेषण से पता चलता है कि उत्तरी मैदानी इलाकों के ज्यादातर हिस्सों में मौसम गर्म रहा। राजस्थान, हरियाणा, उत्तरी मध्य प्रदेश और दक्षिणी उत्तर प्रदेश में कई जगहों पर एक भी दिन ऐसा नहीं रहा जब अधिकतम तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से नीचे गया हो। उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में मई-जून में कई दिन तक हीटवेव वाले हालात रहे। इस साल भीषण गर्मी से हिमालय भी अछूता नहीं रहा। जम्मू-कश्मीर में कई स्थानों पर अब तक का अधिकतम तापमान दर्ज किया गया। हिमाचल प्रदेश के शिमला और धर्मशाला और उत्तराखंड के मसूरी और नैनीताल में भी गर्मी का असर नजर आया। हिमाचल प्रदेश के ऊना और उत्तराखंड के रुड़की जैसे कुछ स्थानों पर तो तापमान 45 डिग्री सेल्सियस करीब पहुंच गया। देश के बड़े हिस्से में 20 जून तक लू की स्थिति बनी रही। उत्तर प्रदेश में 20 जून तक अत्यधिक गर्मी के लिए रेड कैटेगरी की चेतावनी जारी की गई। रेड कैटेगरी की चेतावनी का मतलब है कि स्थानीय अधिकारियों को गर्मी से जुड़ी आपात स्थितियों को रोकने के लिए कदम उठाने की जरूरत है। उत्तर भारत मध्य मई से ही भीषण गर्मी की चपेट में रहा। कई इलाकों में तापमान 45 डिग्री सेल्सियस से ऊपर चला गया। भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) के अनुसार, इस बार देश में अब तक की सबसे लंबी गर्मी रही। विशेशज्ञों ने भविष्य में और भी गंभीर स्थिति की चेतावनी दी है। अगर निवारक उपाय नहीं किए गए तो हीटवेव लंबे समय तक और ज्यादा भीषण रहेंगी।

विशेषज्ञों का मानना है कि मानवीय गतिविधियों, बढ़ती आबादी, औद्योगिकीकरण और परिवहन तंत्रों के कारण कार्बन मोनोऑक्साइड, मीथेन और क्लोरोकार्बन की सांद्रता बढ़ रही है। इससे हम न केवल खुद को बल्कि अपनी आने वाली पीढ़ियों को भी खतरे में डाल रहे हैं। अध्ययनों से संकेत मिलता है कि जलवायु परिवर्तन के कारण गर्मी की लहरें लंबी, अधिक लगातार और अधिक तीव्र हो रही हैं।

देश की राजधानी और आसपास के इलाके लगातार लू की चपेट में रहे हैं। 1 मई से 10 जून के बीच, दिल्ली में 32 दिन ऐसे रहे जब तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से ऊपर रहा, जो 14 साल में ऐसे दिनों की सबसे अधिक संख्या है। 14 मई से 10 जून तक, पारा लगातार 28 दिनों तक 40 डिग्री सेल्सियस से ऊपर रहा, जो 14 साल में सबसे ज्यादा है। इसकी तुलना में, 2023 और 2022 में इसी अवधि में क्रमशः 10 और 2७ दिन तापमान 40 डिग्री सेल्सियस को पार कर किया था। 2011 से उपलब्ध आईएमडी आंकड़ों से पता चलता है कि 2024 से पहले, किसी भी वर्ष में लगातार 28 दिनों तक अधिकतम तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से अधिक नहीं रहा था।

निरंतर बढ़ते तापमान की चुनौती केवल दिल्ली अथवा भारत तक सीमित नहीं है। वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों मुख्य रूप से कार्बन डाई ऑक्साइड और मीथेन की तेजी से बढ़ती सांद्रता के कारण पृथ्वी की वैश्विक सतह का तापमान 1850-1600 के औसत की तुलना में पहले ही लगभग 1.15 डिग्री सेल्सियस बढ़ चुका है। माना जा रहा है कि इस तापमान वृद्धि के कारण ही दुनिया भर में रिकॉर्ड सूखा, जंगलों में आग और बाढ़ जैसी घटनाएं देखी जा रही है। अधिक चिंताजनक बात यह है कि इस भीषण गर्मी से केवल भारत या एशियाई देश ही नहीं बल्कि पश्चिमी देश और दक्षिणी गोलार्ध में स्थित अंटार्कटिका तक दो-चार हो रहे है। हमेशा बर्फ से ढके रहने वाले अंटार्कटिका में पहली बार इतनी भीषण गर्मी पढ़ी है कि इस ठंडे प्रदेश में रहने वाले जीव-जंतु तक सूरज की पराबैंगनी किरणों से झुलसते रहे। गर्मी की विकरालता से आभास हुआ कि सूरज पहले से ज्यादा तप रहा है। सुबह ७-8 बजे ही ऐसा लगता था कि दोपहर 12 बजे की कड़क और तीखी धूप हो रही है। हालांकि जैसा हम समझ रहे है वैसा नहीं है। 

सूरज तब भी वैसा तपता था और अभी भी वैसा ही तप रहा है। बस हमें बचाने वाली ओजोन चादर पतली हो गई है और वो हुई है ग्लोबल वार्मिंग की वजह से। दरअसल जब जीवाश्म ईंधन जलाते हैं, तो कार्बन प्रदूषण वातावरण में रहता है, एक कंबल की तरह काम करता है और गर्मी में फंस जाता है। आज, वायुमंडल में इतना ज्यादा कार्बन प्रदूषण है कि इसकी वजह से मौसम में बदलाव आ रहा है और गर्मी बढ़ रही है।

जलवायु परिवर्तन पर नजर रखने वाले अधिकांश वैज्ञानिक एकमत हैं कि जलवायु परिवर्तन का सबसे प्रमुख कारण इंसानों की वजह से हो रहा प्रदूषण और कार्बन उत्सर्जन हैं और जब तक हम प्रदूषण को बड़ी मात्रा में कम अथवा खत्म नहीं कर देते, तब तक गर्मी और ज्यादा बढ़ती जाएगी। अगर हम अपने कार्बन प्रदूषण को कम करने के लिए कदम उठाते हैं, तो हम पृथ्वी को जलती भट्ठी बनने और अपने बच्चों के लिए इस महाविनाश से बचा सकते हैं। गर्मी से बचने के लिए कार्बन उत्सर्जन तो घटाना ही होगा क्योंकि ये गर्मी बढ़ाने का सबसे बड़ा कारण हैं। यही जलवायु परिवर्तन का भी बड़ा कारण बन रहा है। वैश्विक तापमान वृद्धि के इस संकट से निपटने के लिए विश्व समुदाय को सामूहिक प्रयास करते हुए 10 वर्ष पूर्व ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा को सीमित करने के लिए हुए पेरिस समझौते को प्रभावी रूप से लागू करना होगा। फिलहाल हम व्यक्तिगत रूप से भी पृथ्वी को बढ़ती गर्मी से बचाने के लिए वृक्षारोपण, जल संरक्षण, प्लास्टिक का न्यूनतम उपयोग एवं प्राकृतिक खेती के जरिए योगदान दे सकते हैं। इस दिशा में किया गया प्रत्येक छोटा या बड़ा योगदान इतिहास में इस रूप में दर्ज होगा कि जब पृथ्वी सबसे बड़े संकट की ओर अग्रसर थी और प्रकृति हमें निरंतर चेतावनी दे रही थी तो हमने इसमें कैसी भूमिका निभाई। 

- लेखक लोक भारती के राष्ट्रीय संपर्क प्रमुख एवं उप्र कृषक समृद्धि आयोग के सदस्य हैं।


 

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Post By: Kesar Singh
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