The conundrum of water quality in urban water supply in India
This article argues for the need to explore an alternative model of decentralised treatment and non-pipe mode of water supply to overcome the issues of water quality in cities in India.
Piped water, but is it safe water? (Image Source: IWP Flickr photos)
पटना नगर निकाय के दावे बेमानी
पूर्व अनुभवों से सबक लेते हुए फील्ड में काम करने वाले अधिकारी समीक्षा बैठक‚  तैयारी बैठक‚ ‘गर्दन बचाव' बैठक करने से नहीं चूक रहे।
शहरी बाढ़ (courtesy - needpix.com)
How can India break the disaster cycle?
Considering India's diverse geography, what actions can be taken to address specific natural disasters like floods, droughts, or landslides
Floods induced by climate change (Image: CC0 1.0)
संदर्भ दिल्ली बाढ़: प्रशासनिक खींचतान को भुगत रही दिल्ली
नागरिकों को परेशानी की एक बड़़ी वजह भाजपा और आप के बीच चल रही राजनीतिक खींचतान भी है। दिल्ली नगर निगम में डे़ढ़ साल से स्टैंडिंग कमेटी ही नहीं बनी है‚ जोनल कमेटियां भी नहीं बनाई गई हैं। इनके बिना नगर निगम में कैसे काम हो रहा होगा समझ में आ जाता है। दिल्ली में गंदी राजनीति चल रही है‚ उपराज्यपाल भी सिर्फ बयान देते हैं। भाजपा नगर निगम की सत्ता हथियाना चाहती है। प्रस्तुत आलेख राष्ट्रीय सहारा अजय तिवारी से बातचीत पर आधारित है।
शहरी बाढ़ (courtesy needpix.com)
बढ़ते शहर से भी बढ़ रही है बाढ़
बारिश होती है तो देश के बड़े–बड़े शहर त्राहिमाम कर उठते हैं। जलभराव से शहरों की सड़कें ताल–तलैया बन जाती हैं। आखिर‚ क्यों हो रही है यह समस्याॽ पानी के संवर्धन और निकास पर क्या किया जाएॽ दीपिंदर कपूर‚ डायरेक्टर‚ वाटर प्रोग्राम‚ सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट‚ दिल्ली से अनिरुद्ध गौड़‚ वरिष्ठ पत्रकार ने बातचीत की। पेश हैं बातचीत के प्रमुख अंशः
शहरी बाढ़
A silent crisis in Indian farmlands: The disappearing trees
Millions of trees are fast disappearing from India's farmlands. What are its implications for agriculture and the environment?
Disappearing trees over Indian farmlands (Image Source: WOTR)
बदलते वन परिदृश्य में वनीय-जलविज्ञान के क्षेत्र में शोध आवश्यकताएं
वनाच्छादित क्षेत्र अक्सर वृहत नदियों के शीर्ष जल आवाह क्षेत्र को निर्मित करते हैं। सरिता प्रवाह वनों से होने वाले सर्वाधिक महत्वपूर्ण वहिर्वाह में से एक है। वनों के प्रकार और प्रबंधन पद्धतियाँ जलविज्ञानीय प्रक्रियाओं को प्रभावित करती हैं, जैसे अवरोधन, वाष्पोत्सर्जन, मृदा अंतःस्यंदन और अपवाह. वनीय-जलविज्ञान वन और जल के संबंध को समझने में मदद करता है। वनीय-जलविज्ञान के क्षेत्र में अनुसंधान वन प्रबंधन और जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को समझने में मदद करेगा। उपयोगिता और महत्व के बारे में जानिए
(छवि: अश्विन कुमार, विकिमीडिया कॉमन्स)
पश्चिमी घाट का अनोखा प्राकृतिक सौंदर्य : सैकड़ों नदियों का उद्गम
भारत के पश्चिमी घाट एक अनोखी पारिस्थितिकीय विविधता का संग्रहण है। यहां गोदावरी, कृष्णा और कावेरी जैसी महत्वपूर्ण नदियां उद्गमित होती हैं, और यह वन्यजीवों और पौधों के लिए एक महत्वपूर्ण आवास है। इसके बावजूद, वनस्पतियों की कटाई, खनन और अतिक्रमण के कारण इसकी पारिस्थितिकी तंत्र पर असर पड़ रहा है। जानिए इसके सौंदर्य के बारे में
गोबिचेत्तिपालयम से दिखने वाले पश्चिमी घाट. (स्रोत: www.wikipedia.org)
20 साल में उत्तर भारत ने बर्बाद कर दिया 450 घन किमी भूजल
भारत में भूजल स्तर लगातार तेजी से गिर रहा है, उत्तर भारत में यह आंकड़ा और भयानक हो जाता है। आईआईटी की रिपोर्ट में इस पर भयानक आंकड़े सामने आए हैं। चिंताजनक बात यह है कि भूजल की बर्बादी बड़े पैमाने पर हुई है। पिछले 20 साल में उत्तर भारत ने लगभग 450 घन किमी की मूल्यवान भूजल संपदा को नष्ट कर दिया है। पूरी रिपोर्ट में क्या कहा गया है, इसे जानने के लिए पढ़ें।
भूजल, एक सीमित संसाधन (स्रोत: टीवी मनोज, विकिमीडिया कॉमन्स के माध्यम से)
संदर्भ दिल्ली बाढ़: कचरा प्रबंधन के बिना बाढ़ मुक्ति नहीं
मैंने अपनी किताब ‘स्टेट ऑफ द कैपिटलः क्रिएटिंग अ ट्रूली स्मार्ट सिटी' में इस बात की विस्तार से चर्चा की है कि राजधानी में बेहतर नगर नियोजन कैसे किया जा सकता है। इसमें मेरे दिल्ली नगर निगम में आयुक्त के रूप में चार साल (2008 से 2012) के दौरान हुए अनुभव से निकले समाधानों का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। इसमें अनियंत्रित निर्माण की भी चर्चा है और इस बात का भी उल्लेख है कि अतिक्रमण की वजह से दिल्ली की सड़कें छोटी हो गई हैं। इस किताब में मैंने दिल्ली को सुंदर और व्यवस्थित शहर बनाने के लिए स्वच्छता और जलभराव समेत कई अन्य विषयों पर भी प्रकाश डाला है। यह आलेख राष्ट्रीय सहारा के अजय तिवारी से बातचीत पर आधारित है।
बाढ़ (courtesy - needpix.com)
संदर्भ शहरी बाढ़: पानी ने नहीं भूली राहें, भटक तो शहर गया है
अब कथा बदल चुकी है। अब बारिश–बाढ़ संबंधी परेशानियां मर्सिडीज में चलने वाले सबसे इलीट वर्ग तक भी पहुंच चुकी हैं। चेन्नई के वे दृश्य शायद लोगों अभी भी नहीं भूले होंगे जब हजारों लग्जरी गाडि़यां पानी में डूब जाने के कारण बेकार हो गई थीं और साधन–संपन्न लोगों को भी कई दिनों तक ब्रेड–चाय पर गुजारा करना पड़ा था। इस बार दिल्ली में बरसात में होने वाली परेशानियों ने न सिर्फ आम लोगों का दरवाजा खटखटाया है पर इस बार उसने सांसदों और सत्ताधारी लोगों का भी दरवाजा खटखटा दिया है। बरसात में बदइंतजामी से परेशान शहर और शहरी कोई नई बात नहीं रह गए हैं। दिल्ली‚ मुंबई‚ चेन्नई‚ बेंगलुरुû हर जगह एक ही कहानी बार–बार दोहराई जा रही है‚ एक ही शहर पहले पानी के लिए तरसता है फिर कुछ दिनों बाद पानी के रेलमपेल से हलकान होता है। सबसे दुखद यह बात है कि हादसे अक्सर पहले से बदनाम जगहों पर होते हैं।
शहरी बाढ़ (courtesy needpix.com )
जीवन को बचाना है तो जीवनशैली बदलिए
पृथ्वी पर बना प्राकृतिक ग्रीनहाउस हमारे लिए लाभकारी है। लेकिन मानव की आलसी प्रवृत्ति एवं भोगवादी संस्कृति के चलते मनुष्य का मशीनी सुख- सुविधा जिसमें एयर कंडीशनर, फ्रिन व ओवन आदि उपकरणों पर निर्भर होना एक सामाजिक स्टेटस समझा जाता है।
प्रतिकात्मक तस्वीर
पर्यावरण प्रदूषण से जूझते बुग्याल
प्रकृति ने हमें हरे-भरे जंगल व बुग्याल, बर्फीले पहाड़, कलकल करती अविरल बहती नदियाँ, झीले और प्राकृतिक सौन्दर्यता को मनोरंजन के साधन के रूप में प्रदान किया है लेकिन आज के इस मौज मस्ती भरे मानवीय क्रिया-कलापों से इन संसाधनों का अस्तित्व बढ़ते प्रदूषण के कारण संकट में आ गया है। आज ये प्राकृतिक संसाधन धीरे- धीरे प्रदूषित हो रहे हैं। इसी प्रदूषण को झेलते सुनहरे बुग्यालों का भविष्य संकट की ओर जाता दिखाई दे रहा है।
औली बुग्याल, उत्तराखंड में एक घास का मैदान। (फोटो सौजन्य: विकिमीडिया कॉमन्स, फोटो - संदीप बराड़ जाट)
क्या समुद्री खाद्य शृंखलाएं जलवायु परिवर्तन से बदल जाएंगी
तेजी से हो रहे निरंतर जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्री पारिस्थितिक तंत्र में समय के साथ तेजी से पोषक तत्वों की कमी होती जाएगी। एक शोध का अनुमान है कि जलवायु परिवर्तन का दक्षिण प्रशांत, हिंद-प्रशांत, पश्चिम अफ्रीकी तट और मध्य अमरीका के पश्चिमी तट पर स्थित देशों की समुद्री खाद्य श्रृंखलाओं पर प्रतिकल प्रभाव पड़ने की आशंका है।
प्रतिकात्मक तस्वीर, फोटो स्रोत: विकिमीडिया कॉमन्स
गंगा नदी का धार्मिक महत्व : आध्यात्मिक एवं भौतिक उन्नति का प्राण-तत्व
गंगा नदी भारतीय जीवन के हर पहलू में गहराई से जुड़ी है और इसका सम्मान और संरक्षण सभी के लिए आवश्यक है। प्राचीन काल से नदिया मां की तरह हमारा भरण पोषण कर रही हैं। यदि हमने इनका समुचित संरक्षण किया तो मां रूपी नदियों का सेहिल छाया हमारी आने वाली पीढ़ियों पर भी बनी रहेगी।
प्रतिकात्मक तस्वीर
दिमाग खाने वाला अमीबा - ब्रेन ईटिंग अमीबा : जलवायु संकट की देन
नेगलेरिया फाउलेरी एक अमीबा है जो जल में पाया जाता है और यह जीवाणु नहीं होता है, बल्कि एक स्वतंत्र जीव होता है। यह अमीबा आमतौर पर गरम जल के तालाबों, झीलों, नदियों और झरनों में पाया जाता है। यह जीव विशेष रूप से गरम जल में बढ़ता है और यह इंसानों के नाक और मुंह के माध्यम से शरीर में प्रवेश करता है। यह अमीबा ब्रेन में प्रवेश करके अत्यधिक गंभीर बीमारी का कारण बन सकता है, जिसे प्राइमरी अमीबिक मेनिंजिटिस कहा जाता है। इसके लक्षण में बुखार, सिरदर्द, अक्सर बदलते दिमाग की स्थिति, और अक्सर असमान्य व्यवहार शामिल हो सकते हैं। जानिए लक्षण और बचाव के उपाय
नेगलेरिया फाउलेरी, फोटो साभार - http://www.dpd.cdc.gov
जल का महत्व निबंध : समस्या और समाधान
आज लखनऊ में भी भूजल स्तर प्रति वर्ष तीन फीट नीचे जा रहा है। शहर की झीलें और तालाब सूखे पड़े हैं तथा अनाधिकृत कब्जे में है। शहर की अधिकांश भूमि पक्की होने के कारण वर्षा जल रिचार्ज होने के बजाय बह जाता है। भविष्य में भारी जल संकट आ सकता है। इससे बचाव के लिए आवश्यक है कि लखनऊ के सभी तालाब, झील, नदी अतिक्रमण से मुक्त कराकर उनमें पर्याप्त जल रहे, उनके आसपास अधिक से अधिक पीपल, बरगद, पाकड़ के पेड़ लगाये जाएं, बड़े-बड़े मकानों का नक्शा स्वीकृत करने के समय छत के पानी की रिचार्जिग व्यवस्था यानी रेन वाटर हार्वेस्टिंग अनिवार्य किया जाय।
भूगर्भ जल यानी भूजल हर वर्ष 3 फिट नीचे जा रहा है लखनऊ में
बांदा, जखनी गांव : आज भी खरी है मेड़बंदी
मनुष्य को जब से भोजन की आवश्यकता पड़ी होगी उसने भोजन का आविष्कार किया होगा। किस स्थान पर भोजन उगाया जाए? फसलें पैदा की जाएं जमीन खोजी होगी खेत बनाया होगा। खाद्यान्न पैदा करने के लिए खेत का निर्माण तय हुआ होगा तभी से मेड़बंदी जैसी जल संरक्षण की विधि का आविष्कार हुआ होगा। यह हमारे पुरखों की विधि है जिन से खेत खलिहान का जन्म हुआ है एवं जिन्होंने जल संरक्षण परंपरागत प्रमाणित सर्वमान्य मेड़बंदी विधि का आविष्कार किया है जिसमें किसी प्रकार की कोई तकनीकी शिक्षा नवीन-ज्ञान, वैज्ञानिक ज्ञान की आवश्यकता नहीं होती है।
उमा शंकर पाण्डेय
उत्तर कोरिया सरकार ने मानव मल एकत्र करने के लिए आदेश क्यों दिया है
उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग उन के एक नए आदेश के बारे में जानना चाहिए कि उन्होंने कोरिया की जनता से 10 किलोग्राम मानव मल एकत्र करने का आदेश दिया है। ताकि उसे खाद के रूप में इस्तेमाल किया जा सके। हालांकि यह आदेश उत्तर कोरियाई लोगों के लिए पूरी तरह से नया नहीं है, क्योंकि वे पहले से ही सर्दियों में खाद के रूप में मानव मल का उपयोग करते आए हैं।
प्रतिकात्मक तस्वीर
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