आर्द्रभूमि एक विशिष्ट पारिस्थितिकी तंत्र है जो मौसमी या स्थायी रूप से जलमग्न या संतृप्त होता है। 'रामसर अंतरराष्ट्रीय आर्द्रभूमि संरक्षण संधि' के अंतर्गत, आर्द्रभूमि को इस प्रकार परिभाषित किया गया है: "आर्द्रभूमि; दलदल, पंक भूमि, पीट भूमि या पानी के क्षेत्र हैं; चाहे प्राकृतिक या कृत्रिम, स्थायी या अस्थायी, जिसमें पानी स्थिर या बहता हुआ, ताजा, खारा या नमकीन हो; जिसमें समुद्री जल की गहराई वाले क्षेत्र भी शामिल हैं जिनमें निम्न ज्वार की उँचाई छह मीटर से अधिक नहीं होती है"।
भारत में 7 लाख से अधिक आर्द्रभूमियाँ हैं, जो देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 4.86% है। 80 आर्द्रभूमियों को अंतरराष्ट्रीय महत्त्व की आर्द्रभूमि अर्थात रामसर आर्द्रभूमि माना जाता है। (2024 तक) आर्द्रभूमियों के अंतरराष्ट्रीय संगठन (Wetlands International) के अनुसार, भारत से पिछले तीन दशकों में 5 में से 2 आर्द्रभूमि लुप्त हो गई हैं।
आर्द्रभूमि पर रामसर अभिसमय (Ramsar Convention On Wetlands) -
1971 में स्थापित रामसर अभिसमय, आर्द्रभूमि संरक्षण के लिए समर्पित एकमात्र वैश्विक संधि है, जिसमें 169 अनुबंधकारी पक्ष शामिल हैं और 215 मिलियन हेक्टेयर में फैले 2,234 आर्द्रभूमि स्थलों को नामित किया गया है। यह आर्द्रभूमि की महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिक कार्यात्मकता के बारे में समझ की कमी के कारण, आर्द्रभूमि आवास की क्षति से निपटने की तत्काल आवश्यकता को संबोधित करता है।
आर्द्रभूमियों का महत्त्व (Significance Of Wetlands)
- • जलवायु परिवर्तन शमन और अनुकूलन (Climate Change Mitigation And Adaptation): आर्द्रभूमियों में कार्बन को अवशोषित करने की क्षमता के माध्यम से 'शमन' प्रभाव होता है, तथा जल को संगृहीत और विनियमित करने की क्षमता के माध्यम से 'अनुकूलन' प्रभाव होता है।
- भौमजल पुनःपूर्ति (Groundwater Replenishment): सतही जल जो आर्द्रभूमि प्रणालियों में स्पष्ट रूप से दिखाई देता है, समग्र जल चक्र के केवल उस एक हिस्से का प्रतिनिधित्व करता है जिसमें वायुमंडलीय जल और भौम जल दोनों शामिल है।
- • बाढ़ नियंत्रण (Flood Control): आर्द्रभूमियाँ अतिरिक्त पानी को अवशोषित करके तथा बाढ़ के पानी की गति के लिए बाधा के रूप में कार्य करके बाढ़ नियंत्रण में सहायता करती हैं।
- • तटरेखा स्थिरीकरण और तूफान संरक्षण (Shoreline Stabilization And Storm Protection): ज्वारीय और अंतर्ध्वारीय आर्द्रभूमियाँ तटीय क्षेत्रों को सुरक्षा और स्थिरता प्रदान करती हैं।
- • पोषक तत्त्व प्रतिधारण (Nutrient Retention): आर्द्रभूमि की वनस्पति आसपास की मृदा और जल में पाए जाने वाले पोषक तत्त्वों को ग्रहण करती है और संगृहीत करती है।
- • जलीय कृषि (Aquaculture): आर्द्रभूमियों का उपयोग मत्स्य/जलीय जीवों को मानव उपभोग और औषधियों को उत्पादित करने में किया जाता है।
- • भूदृश्य के गुर्दे (Kidneys of the Landscape): आर्द्रभूमि में जैवनिस्यंदक, जलीय पादप और जीव होते हैं जो पोषक तत्त्वों को अवशोषित करने की क्षमता के अतिरिक्त कीटनाशकों, औद्योगिक उत्सर्जन और खनन गतिविधियों से आने वाले विषाक्त पदार्थों को हटा सकते हैं।
आर्द्रभूमि के क्षरण के लिए उत्तरदायी कारक
- • नगरीकरण (Urbanization): आवासीय, औद्योगिक एवं वाणिज्यिक सुविधाओं के विकास का दबाव बढ़ रहा है। सार्वजनिक जल आपूर्ति को संरक्षित करने के लिए शहरी आर्द्रभूमि आवश्यक हैं। उदाहरण के लिए, कोलकाता को 'पारिस्थितिकी रूप से सब्सिडी प्राप्त शहर' माना जाता है।
- • कृषि (Agriculture): आर्द्रभूमियों के एक बड़े भाग को धान के खेतों में परवर्तित कर दिया गया है।
- • निर्माण (Construction): सिंचाई के लिए बड़ी संख्या में जलाशयों, नहरों और बांधों के निर्माण ने संबंधित आर्द्रभूमियों के जल विज्ञान को काफी हद तक बदल दिया है।
- • प्रदूषण (Pollution): आर्द्रभूमियाँ प्राकृतिक जल फिल्टर के रूप में कार्य करती हैं। हालाँकि, वे केवल कृषि अपवाह से उर्वरकों और कीटनाशकों को साफ कर सकते हैं, लेकिन औद्योगिक स्रोतों से पारा और अन्य प्रकार के प्रदूषण को नहीं।
- • जलवायु परिवर्तन (Climate Change): वायु के तापमान में वृद्धि, वर्षण में परिवर्तन, तूफान, सूखे और बाढ़ की आवृत्ति में वृद्धि, समुद्र के जलस्तर में वृद्धि आदि भी आर्द्रभूमियों को प्रभावित कर सकते हैं।
- • तलकर्षण (Dredging): आर्द्रभूमि या नदी तल से मिट्टी, बालू, बजरी जैसी सामग्री को निकालने से आस-पास का जल स्तर कम हो जाता है और निकटवर्ती आर्द्रभूमियाँ सूख जाती हैं।
- • आक्रामक विदेशी प्रजातियाँ (Invasive Alien Species): जलकुंभी और साल्विनिया जैसी विदेशी वनस्पति प्रजातियाँ जलमार्गों को अवरुद्ध करती हैं और देशी वनस्पतियों के साथ प्रतिस्पर्धा करती हैं।
भारत में आर्द्रभूमि संरक्षण प्रयास
- • जल (संरक्षण और प्रबंधन) नियम, 2017 (Water (Conservation and Management) Rules, 2017): सतत संरक्षण योजनाओं के कार्यान्वयन के माध्यम से जलीय पारिस्थितिकी तंत्र को संरक्षित करना।
- • गोवा सरकार ने आर्द्रभूमि नियम 2017 के अंतर्गत संपूर्ण राज्य में अनेक जल निकायों को आर्द्रभूमि घोषित करने की अधिसूचना जारी की है।
- • अमृत धरोहर योजना (Amrit Dharohar Scheme): जलीय जैव विविधता को बनाए रखने वाली महत्त्वपूर्ण आर्द्रभूमियों के संरक्षण के लिए।
- • 'हरित विकास' के अंतर्गत की गई पहल।
- • आर्द्रभूमि के अनुकूलतम उपयोग को प्रोत्साहित करने और स्थानीय समुदायों के लिए जैव विविधता, कार्बन स्टॉक, इको-पर्यटन के अवसरों और आय सृजन को बढ़ाने के लिए अगले तीन वर्षों (5 जून 2023 से प्रारंभ) में कार्यान्वित किया जाएगा।
- • राष्ट्रीय आर्द्रभूमि संरक्षण कार्यक्रम (NWCP)(National Wetland Conservation Programme - NWCP): भारत सरकार ने वर्ष 1985- 86 की अवधि में संबंधित राज्य सरकारों के घनिष्ठ सहयोग के साथ NWCP को क्रियान्वित किया। इसका उद्देश्य देश में आर्द्रभूमियों का संरक्षण और उनका बुद्धिमत्तापूर्ण उपयोग करना है जिससे उनका और अधिक क्षरण रोका जा सके।
- • राष्ट्रीय पर्यावरण नीति, 2006 (The National Environmental Policy, 2006): इसने अनेक पारिस्थितिक सेवाएँ प्रदान करने में आर्द्रभूमियों के महत्त्व को मान्यता दी। राष्ट्रीय वन आयोग द्वारा की गई सिफारिशों के आधार पर।
- • राष्ट्रीय आर्द्रभूमि संरक्षण रणनीति (National Wetland Protection Strategy): इसमें निम्नलिखित सम्मिलित होने चाहिए
- • संरक्षण और सहयोगात्मक प्रबंधन,
- • हानि की रोकथाम एवं पुनर्स्थापन को बढ़ावा देना।
आगे की राह
• समाधान के रूप में आर्द्रभूमि (Wetlands as Solutions): भूमि और जल प्रबंधन चुनौतियों के लिए आर्द्रभूमि को महत्त्वपूर्ण समाधान के रूप में पहचानना।
• अंतरराष्ट्रीय लक्ष्यों के साथ एकीकरण (Integration with International Missions): UNFCCC, सहस्राब्दी विकास लक्ष्य (MDG) और सतत विकास लक्ष्य (SDG) कार्यान्वयन में आर्द्रभूमि की भूमिकाओं और मूल्यों का संयोजन करना सुनिश्चित करना।
• योजना, प्रबंधन और निगरानी (Planning, Management, and Monitoring): जबकि संरक्षित क्षेत्र तंत्र के अधीन आर्द्रभूमियों के लिए प्रबंधन योजनाएँ हैं, अन्य को भी इसी प्रकार के ध्यान की आवश्यकता है।
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