In our quest to spotlight dedicated entrepreneurs in the water sector, we bring you the inspiring story of Priyanshu Kamath, an IIT Bombay alumnus, who pivoted from a lucrative corporate career to tackle one of India's most intricate water quality challenges, that of pollution of its urban water bodies.
जानिए क्या कारण है कि चंपावत जिले की एकमात्र झील श्यामलाताल आज अपने अस्तित्व को तलाश रही है और तकरीबन 7 मीटर गहरी झील में अब सिर्फ एक से डेढ़ मीटर पानी रह गया है।
Posted on 23 Feb, 2011 02:02 PMसन् 1893 के करीब मैं पहली बार-कारवार गया था। मार्मागोवा बंदरगाह पर से जब मैंने पहली बार चमकता समुद्र देखा, तब मैं अवाक् हो गया था। रात को नौ बजे हम स्टीमर में बैठे। स्टीमर ने किराना छोड़कर समुद्र में चलना शुरु किया और मेरा दिमाग भी अपना हमेशा का किनारा छोड़कर कल्पना पर तैरने लगा। सुबह हुई और हम कारवार पहुंचे। स्टीमर से नाव में उतरना आसान न था। प्रत्येक नाव के साथ उलांडियां (outriggers) बंधी हुई थी
Posted on 23 Feb, 2011 11:40 AMमुझे डर था कि पिछली बार चांदीपुर में जो दृश्य मैनें देखा था वह अबकी बार देखने को नहीं मिलेगा। अतः मन को समझाकर कि विशेष आशा नहीं रखनी चाहिये, चांदीपुर के लिए हम चल पड़े। फिर भी चांदीपुर तो चांदीपुर ही है! उसकी सामान्य शोभा भी असामान्य मानी जायेगी।
Posted on 23 Feb, 2011 11:38 AMहरेक लहर किनारे तक आती है और वापस लौट जाती है। यह एक प्रकार का ज्वार-भाटा ही है। यह क्षणजीवी है। बड़ा ज्वार-भाटा बारह-बारह घंटों के अंतर से आता है। वह भी एक तरह की बड़ी लहर ही है। बारह घंटों का ज्वार भाटा जिसकी लहर है, वहा ज्वार-भाटा कौन सा है? अक्षय-तृतीया का ज्वार यदि वर्ष का सबसे बड़ा ज्वार हो, तो सबसे छोटा ज्वार कब आता है?
Posted on 22 Feb, 2011 01:11 PMधनुष्कोटी में मैं पहले-पहल आया उसको अब करीब बीस साल हो चुके हैं। जहां तक मुझे स्मरण है, श्री राजा जी ने मेरे साथ श्री वरदाचारी जी को भेजा था। वरदाचारी ठहरे रामायण के भक्त। रास्ते भर रामायण की ही रसिक बाते चलीं। हम धनुष्कोटि पहुंचे और वरदाचारी जी की सनातनी आत्मा श्राद्ध करने के लिए तड़पने लगी। एक योग्य ब्राह्मण का पता लगाकर वे इस विधि में मशगूल हो गये और हम लोग आमने-सामने गरजने वाले रत्नाकर और महोद
Posted on 22 Feb, 2011 01:05 PMसमुद्र या सागर जैसा परिचित शब्द छोड़कर मैंने अर्णव शब्द केवल आमंत्रण के साथ अनुप्रास के लोभ से ही नहीं पसन्द किया। अर्णव शब्द के पीछे ऊंची-ऊंची लहरों का अखंड तांडव सूचित है। तूफान, अस्वस्थता, अशांति, वेग, प्रवाह और हर तरह के बंधन के प्रति अमर्ष आदि सारे भाव अर्णव शब्दों में आ जाते हैं। अर्णव शब्द का धात्वर्थ और उसका उच्चारण, दोनों इन भावों में मदद करते हैं। इसीलिए वेदों में कई बार अर्णव शब्द का उप
Posted on 10 Feb, 2011 03:50 PMराम कोडावय ताल सगुरिया दूर-दूर तक नज़र दौड़ायी । कहीं कोई नहीं । फूलचुहकी भी नहीं, जो उस दिन इसी महुए के पेड़ पर फुदकती दिख पड़ी थी । ऐसे में यह कौन मद्धिम स्वर में गा रहा है ? सिर पर पागा बाँधे,हाथ में तेंदू-लउड़ी धरे वह चरवाहा भी नहीं । फिर यह चिर-परिचित तान कौन छेड़ रखा है ?
Posted on 09 Feb, 2011 06:01 PMअगर बारिश कम हो तो गर्मियों में उत्तराखंड में असाधारण जल संकट पैदा हो जाता है। पिछले साल हिमपात न होने से इस बार गर्मियों में नदियों में जल प्रवाह कम रहा था। गर्मियों में प्रमुख ग्लेशियरों पर आधारित भागीरथी और अलकनन्दा जैसी नदियों में जल प्रवाह में 50 प्रतिशत की कमी आ गई थी। अतिरिक्त जल विद्युत पैदा करने की क्षमता के विपरीत इस बार गर्मियो में उत्तराखंड को अन्य राज्यों से बिजली खरीदनी पड़ी। जाड़ो में कम वर्षा व कम हिमपात होने से जल स्रोत व धारे जल्दी ही सूख गए जिससे पूरे राज्य के पर्वतीय क्षेत्रों के रहने वालों के लिए बेहद कठिनाई पैदा हो गई।
ग्रामीण जल आपूर्ति
उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्र के गाँवों में ग्रामीण इलाकों की जलापूर्ति योजनाएँ हमेशा ही सवालों के घेरे में रही हैं। उनमें कई पेयजल योजनाएँ किसी सीजन में खास तौर पर गर्मियों में जबकि पानी की बहुत जरूरत होती है, ठप हो जाती हैं। बाकी कुछ योजनाएँ स्थाई रूप से बेकार हो जाती हैं, क्योंकि पानी का स्रोत ही सूख जाता
Posted on 17 Oct, 2010 08:51 AMसोचो कि झीलों का शहर हो, लहरों पे अपना एक घर हो..। कोई बात नहीं जो झीलों के शहर में लहरों पर अपना घर नहीं हो पाए, कुछ समय तो ऐसा अनुभव प्राप्त कर ही सकते हैं जो आपको जिंदगी भर याद रहे। कहीं झीलों में तैरते घर तो कहीं, उसमें बोटिंग का रोमांचक आनन्द। कहीं झील किनारे बैठकर या वोटिंग करते हुए डॉलफिन मछली की करतबों का आनन्द तो कहीं धार्मिक आस्थाओं में सराबोर किस्से। ऐसी अनेक झीलें हैं हमारे देश में जिनमें से 10 महत्वपूर्ण झीलों पर एक रिपोर्ट।
डल लेक
जहां लहरों पर दिखते हैं घर
डल लेक का तो नाम ही काफी है। देश की सबसे अधिक लोकप्रिय इस लेक को प्राकृतिक खूबसूरती के लिए तो दुनियाभर में जाना ही जाता है, यह लोगों की आस्था से भी जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि प्राचीन काल में इस लेक के किनारे देवी दुर्गा की निवास स्थली थी और इस स्थली का नाम था सुरेश्वरी। लेकिन यह झील ज्यादा लोकप्रिय हुई अपने प्राकृतिक और भौगोलिक