सुजलाम्

सुजलाम्
तालाब: राम कोडावय ताल सगुरिया
Posted on 10 Feb, 2011 03:50 PM
राम कोडावय ताल सगुरिया दूर-दूर तक नज़र दौड़ायी । कहीं कोई नहीं । फूलचुहकी भी नहीं, जो उस दिन इसी महुए के पेड़ पर फुदकती दिख पड़ी थी । ऐसे में यह कौन मद्धिम स्वर में गा रहा है ? सिर पर पागा बाँधे,हाथ में तेंदू-लउड़ी धरे वह चरवाहा भी नहीं । फिर यह चिर-परिचित तान कौन छेड़ रखा है ?
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